चीन विरोध के कारण भारत को एन एस जी की सदस्यता नहीं मिल पाई

nsgशैलेंद्र चौहान

एन एस जी यानी न्यूक्लीयर सप्लायर्स ग्रुप में शामिल होने की भारत की कोशिशों को तगड़ा झटका लगा है। इसकी बड़ी वजह भारतीय रणनीति रही है। 24 जून को सोल में हुए एनएसजी के विशेष सत्र में ब्राज़ील और स्विटज़रलैंड जैसे कई अन्य देशों ने भी भारत को मदद नहीं दी जो 2008 में भारत के समर्थन में थे। और इस बार अमरीका ने भी भारत के पक्ष में माहौल बनाने की उतनी कोशिश नहीं की जितनी भारत को उम्मीद थी। जबकि 2008 में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश ने भारत को एनएसजी का सदस्य बनाए जाने की पुरज़ोर वकालत की थी और न्यूजीलैंड, स्विटज़रलैंड सहित कई देशों पर दबाव डाला था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। भारत ने ब्राज़ील को भी हल्के में ले लिया। हम मान कर चले कि हमें उसका समर्थन मिल ही जाएगा और इस मामले में ब्राज़ील की जो शंकाएं थीं उन्हें भारत ने दूर करने की कोशिश नहीं की। वहीं चीन और भारत के रिस्तों में पिछले डेढ़ सालों में तो ये तल्खी बढ़ी है। कभी बॉर्डर के मामले में तो कभी साउथ चीन सी के मामले को लेकर। भारत ने चीन को चारों तरफ से घेरने की बड़ी कोशिश की। यह भारत की कूटनीतिक असफलता थी। चीन एक बड़ा पड़ोसी देश है। उसकी ताकत भी बड़ी है। हमें प्रत्यक्षतः उसे नाराज नहीं करना चाहिए था जो हम लगातार करते रहे। महज ओबामा के भरोसे हम चीन को धता बताने की कोशिश करते रहे। भारत और अमरीका की बढ़ती नज़दीकियां चीन के भारत के प्रति बेरुखी का बड़ा कारण है। भारत को एनएसजी की सदस्यता हासिल करने की तैयारियां दो- तीन साल पहले ही शुरू कर देनी चाहिए थी, जिसमें उन्हें अमरीका और चीन जैसे बड़े सदस्यों के रिश्तों पर नज़र रखते हुए रणनीति बनाने की जरूरत थी, जो भारत नहीं कर पाया। भारत ने पिछले छह महीनों में तेज़ी दिखाई ज़रूर लेकिन वह पूरी तरह अमेरिका के भरोसे रहा। एनएसजी की स्थापना मई 1974 में की गई थी। भारत के पहले परमाणु परीक्षण के जवाब में इसकी स्थापना हुई। 48 देश इस समूह में सदस्य हैं। उसी वर्ष नवंबर में इस समूह के सदस्यों की पहली बैठक हुई। भारत के परीक्षण ने साबित कर दिया था कि न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को हथियार बनाने के लिए भी प्रयोग में किया जा सकता है। जो राष्ट्र पहले ही नॉन प्रॉलिफिरेशन ट्रीटी यानी एनपीटी का हिस्सा थे उन्हें न्यूक्लियर इक्विपमेंट्स और टेक्नोलॉजी को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद वर्ष 1975 से 1978 के बीच लंदन मे कई मीटिंगें हुई थीं। इन मीटिंगों के बाद कुछ गाइडलाइंस निर्धारित की गईं। इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एसोसिएशन की ओर से इन्हें ‘ट्रिगर लिस्ट ‘टाइटल के साथ पब्लिश किया गया। एनएसजी के दरवाजे सभी देशों के लिए खुले हैं लेकिन इसके बाद भी नए सदस्यों को कुछ नियम मानने होते हैं। सिर्फ उन्हीं देशों को मान्‍यता मिलती है जो एनपीटी या सीटीबीटी जैसी संधियों को साइन कर चुके होते हैं। एनएसजी की सदस्यता किसी भी देश को न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और कच्चा माल ट्रांसफर करने में मदद करती है। अमेरिका ने अब यह कह रहा है कि भारत के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का एक पूर्ण सदस्य बनने का ‘आगे का एक रास्ता’ साल के अंत तक है। अमेरिका ने यह बात सोल में एनएसजी की एक पूर्ण बैठक समाप्त होने के कुछ घंटे बाद कही जिसमें चीन नीत विरोध के मद्देनजर भारत की सदस्यता के बारे में कोई निर्णय नहीं हो सका। भारत के एनएसजी सदस्यता प्रयास में चीन के रोड़ा अटकाने के बीच एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी ने कहा है कि अमेरिका इन दोनों देशों के बीच ‘‘स्वस्थ संबंध’’ देखना चाहेगा जो महत्वपूर्ण प्रभाव वाली अत्यंत मजबूत और उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, ‘‘हम भारत और चीन के बीच स्वस्थ द्विपक्षीय संबंध देखना चाहेंगे। हम उनको काम करते देखना चाहेंगे चाहे वे कोई भी मतभेद रखते हों।’’ किर्बी भारत के एनएसजी सदस्यता मुद्दे पर चीन के विरोध के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘चीन के साथ हमारे मतभेद हैं और हम उनके जरिए काम करने की कोशिश के लिए वार्ता के वास्ते मजबूत माध्यम रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें हर चीज पर सहमत होना है, लेकिन हम स्वस्थ चर्चा के लिए माध्यम और मार्ग रखते हैं।’’ उन्होंने कहा कि भारत और चीन दोनों ‘‘बहुत मजबूत, उभरती अर्थव्यवस्थाएं’’ हैं। दोनों ही देशों में बड़ी आबादी रहती है और वे क्षेत्रीय स्तर पर ही नहीं, वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं। किर्बी ने कहा, ‘‘इसलिए हमारा मानना है कि भारत और चीन के बीच बेहतर, स्वस्थ संबंध, एक अच्छा द्विपक्षीय संबंध हर किसी के हित में है।’’ ओबामा प्रशासन के अधिकारी ने कहा है कि हमें पूरा भरोसा है कि हमारे समक्ष इस साल के अंत तक आगे का एक रास्ता है। इसके लिए कुछ काम करने की जरूरत है। हमें इस बात का भरोसा है कि साल के अंत तक भारत (एनएसजी) व्यवस्था का एक पूर्ण सदस्य होगा। यद्यपि अमेरिका का भारत की एनएसजी की सदस्यता को लेकर दृढ़ विश्वास है तथा ओबामा प्रशासन ने इस मुद्दे पर भारत एवं अन्य देशों के साथ ‘नजदीकी तौर पर काम किया है।’ उन्होंने प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) में हुई इसी तरह की चर्चा का उल्लेख किया जिसमें भारत को उसके सदस्य देशों के बीच कई महीने की चर्चा के बाद इस महीने के शुरू में शामिल किया गया था। एनएसजी की तरह ही एमटीसीआर में भी निर्णय सहमति से किए जाते हैं। अमेरिका यह स्पष्ट कर चुका है कि वह एनएसजी के भीतर भारत के आवेदन पर गंभीरता से विचार होते देखना चाहता है। रात्रिभोज के बाद तीन घंटे तक चली परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की बैठक में चीन ने भारत के एनएसजी सदस्यता मुद्दे पर विरोध का नेतृत्व किया। बैठक गतिरोध के साथ समाप्त हुई। एनएसजी की गुरुवार को शुरू हुई दो दिवसीय पूर्ण बैठक से पहले चीन ने बार-बार कहा था कि भारत की सदस्यता का मुद्दा एजेंडे में नहीं है और कहा जाता है कि उसने भारत के प्रयास पर किसी भी चर्चा को रोकने के लिए प्रत्येक प्रयास किया। इससे पहले चीन का समर्थन हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताशकंद में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। मोदी ने जिनपिंग से निष्पक्ष होकर भारत की अर्जी पर विचार करने को कहा। विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कहा कि सियोल में क्या होगा इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। मतलब साफ था कि चीन ने भारत को कोई आश्वासन नहीं दिया। एनएसजी की पूर्ण बैठक सोल में समाप्त हुई जिसमें भारत की सदस्यता के बारे में कोई निर्णय नहीं किया गया। ध्यातव्य है कि चीन ने भारत की एनएसजी की सदस्यता के दावेदारी के अपने विरोध को गोपनीय नहीं रखा। यद्यपि उसने भारत के पास पर्याप्त बहुमत होने के बावजूद उसकी सदस्यता की दावेदारी को रोक दिया। भारतीय अधिकारियों के अनुसार 38 देशों ने भारत का समर्थन किया।

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