-आलोक कुमार-
बिहार भाजपा की प्रदेश इकाई कैसे अंतर्विरोधों, अंतर्कलह व गुटबाजी से जूझ रही है , इसका जिक्र मैं लोकसभा चुनावों के पहले से अपने आलेखों व विश्लेषणों में करता आ रहा हूँ l लोकसभा चुनावों तक को नमो के नाम पर किसी तरह से इस आश्वासन के साथ इस पर पर्दा डाला गया कि चुनावों के बाद हल अवश्य ही ढूँढा जाएगा लेकिन स्थिति यथावत ही रही और जिसका खामियाजा १० सीटों वाले उपचुनाव में पार्टी को भुगतना भी पड़ा l उपचुनाव के नतीजों के बाद पार्टी के नेताओं की बयानबाजी एवं आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर पुनः अपने परवान पर है l सच्चाई तो ये है कि आज भाजपा में कोई शीर्ष नेता एक सुर में बात करता हुआ नहीं दिखता है , सब के सब अपनी डफली के साथ अपना राग अलाप रहे हैं , कोई किसी की सरपरस्ती मनाने को तैयार नहीं है , सब के अपने -अपने स्वहित के एजेंडे हैं , कोई पार्टी , संगठन व कार्यर्ताओं की परवाह करता हुआ नहीं दिखता है l
मैं भाजपा की गतिविधियों पर एक अर्से से नजदीकी नजर रखता आया हूँ और आज की तारीख में मुझे ये कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि भाजपा की प्रदेश इकाई में जितने गुट हैं उतने बिहार के किसी भी राजनीतिक दल में नहीं हैं l भाजपा की धूर विरोधी पार्टी जेडी (यू) की ही बात की जाए तो वहाँ भी तीन ही गुट स्पष्ट तौर पे दिखते हैं एक मुखर नीतीश विरोधी गुट , एक शरद यादव का गुट जिसमें मुख्यमंत्री श्री जीतन राम मांझी जी भी बड़े शातिराना अंदाज में शिरकत करते हुए दिखते हैं और नीतीश की अगुआई में उनके समर्थकों का एक गुट लेकिन भाजपा की प्रदेश इकाई गुटों की संख्या के मामले में सबों को मात देती दिखती है l सुशील मोदी का गुट , अश्विनी चौबे का गुट , नंदकिशोर यादव का गुट , शाहनवाज़ हुसैन का गुट ( गुटबाजी की मंडली में सबसे नई प्रविष्टि है ) सी.पी. ठाकुर का गुट , सी.पी. ठाकुर के अलावा भूमिहारों के दो अलग गुट जिसमें एक गुट की कमान गिरिराज सिंह के हाथों में है , कायस्थों के दो गुट (रविशंकर प्रसाद एवं शत्रुघ्न सिन्हा ) राजपूतों के तीन गुट ( गोपाल नारायण सिंह , राधा मोहन सिंह , राजीव प्रताप सिंह रूड़ी ) , वैश्यों का सुशील मोदी के इतर एक गुट जिसमें चाणक्य की भूमिका में गंगा प्रसाद जी रहते हैं , ब्राह्मणों का एक अलग गुट ( मंगल पांडे और अश्विनी चौबे के इतर ), पुराने जनसंघियों का एक गुट , रामेश्वर चौरसिया का गुट , प्रेम कुमार का गुट …वगैरह – वगैरह … अगर सारे गुटों के नामों की चर्चा यहाँ पर की जाए तो उबाऊ हो जाएगा l
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस गुटबाजी से अनभिज्ञ है लेकिन किन कारणों से इस दिशा में कोई कारवाई नहीं होती दिखती है ये बेहतर भाजपा हाई -कमाण्ड ही बता सकता है , लेकिन मेरा मानना है कि जीत की खुमारी अभी भी भाजपा पर हावी है और उसके ‘फील-गुड’ अनुभव से बाहर निकलने को अभी कोई तैयार नहीं है l आसन्न विधान-सभा चुनावों के पहले समय रहते अगर भाजपाई नहीं चेते तो “ज्यादा जोगी मठ उजाड़न ” वाली कहावत चरित्रार्थ होने की ही प्रबल सम्भावना है , जिसका ‘ट्रेलर’ लोगों को उपचुनावों में देखने को मिल चुका है l