हरिश्चन्द्र से पति के हाथों,बिकी शैव्या थी सतयुग में ।
निर्वासित हुई श्री राम के द्वारा , सीता त्रेता युग में ।।
छला इन्द्र ने और अहिल्या,शापित हुई निज पति के द्वारा ।
दमयन्ती भी त्यक्त हुई थी , द्यूतपराजित नल के द्वारा ।।
पंचपती न बचा सके थे, लाज द्रौपदी की द्वापर में ।
यशोधरा को सोते में ही , त्याग गए गौतम कलियुग में।।
वर्तमान का कहना ही क्या, हुई प्रताड़ित हर पल नारी ।
निज वर्चस्व दिखाते हैं सब, संकट नारी पर है भारी ।।
शकुन्तला बहादुर
कविता सुन्दर है और नारी के त्याग को दर्शाती है,पर एक प्रश्न भी छोड़ जाती है.सनातनी लोग महात्मा बुद्ध को ईश्वर का नौवां अवतार मानते हैं.अगर वे कलियुग में पैदा हुए थे,तो फिर किस कल्कि अवतार की प्रतीक्षा हो रही है?
(१)
कोमलता न होती।
ऋजुता न होती,
दया न होती।
करूणा न होती।
सारी गुणवत्ता,
सुन्दरता न होती।
संसार में यदि,
नारी न होती।
(सू. सारे गुण कोमलता,
ऋजुता,दया, करूणा,
गुणवत्ता, सुन्दरता
—इ. स्त्रीलिंगी हैं।)
(२)
सीता है, मूक त्याग
तो ही बडे राम है।
राम के आदर्श, पीछे
सीता का त्याग है।
……….
यह, स्मरण दिलाने के लिए, धन्यवाद।
बहुत सुन्दर – कुछ ऐतिहासिक/ पौराणिक सच