भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर 52 वर्षीय नितिन गडकरी ने 19 दिसम्बर 2009 को पदार्पण किया। देश के तेजी से बदलते राजनीतिक वातावरण में नितिन गडकरी को युवा विचारों का द्योतक समझा जा रहा है जिससे बुढ़ाते नेताओं के द्वारा चलाते लोकतंत्र में नए रक्त का संचार होने की आशा की जा रही है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विचार राष्ट्र के लिए एकदम से स्पष्ट है कि सबसे प्रथम राष्ट्र और बाद में बाकी सब कुछ। परंतु सत्ता के प्रेमी हमारे राजनेता देश को किसी न किसी प्रकार के अनर्गल मुद्दों पर बांटने का ही सपना देखते रहते है। राजनेताओं ने देश की राजनीति में जहां अल्पसंख्यकवाद, नक्सली उग्रवाद व कट्टरपंथी विचारों को जन्म दिया वहीं भाषायी क्षेत्रवाद, कश्मीर समस्या व पर्यावरण में असंतुलन को उछाल कर देश की अखंडता से खिलवाड़ करने में हमारे राजनेता कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं । भारत के 60 वर्ष के लोकतंत्र में जाति, भाषा, पंथ, प्रदेश और संख्या के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देने की राजनीति करके देश को हर सम्भव तरीके से कमजोर करने का षडयंत्र किया जा रहा है। विदेशों में देश की प्रतिष्ठा को उठाने की तरफ ध्यान न देकर भारत के चारों ओर की सीमाओं को असुरक्षित कर दिया गया है। आस्ट्रेलिया में निरंतर भारतियों पर हो रहे हमलों के बारे में सरकार केवल इतना ही कह पा रही है कि कुछ समय के लिए भारतियों को वहां नहीं जाना चाहिए। अर्थात जूंएं होने पर कपडे को उतार देना चाहिए जूंओं का ईलाज नहीं करना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करके उन्हें शीघ्र से शीघ्र देश की सीमाओं से बाहर निकाला जाए परंतु हमारे राजनेता बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी सम्प्रदाय विशेष से जोड़ कर देखते हुए राजनीति करने से बाज नहीं आते है।
वर्ष 1980 में मुम्बई में अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राजनीतिक इकाई के रूप में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई व लालकृष्ण आडवाणी को उपाध्यक्ष बनाया गया। देश में जनता को कांग्रेस का विकल्प तैयार करने व सत्ता में बदलाव लाकर संघ की राष्ट्रवाद की सोच को जनता में मजबूती से स्वीकार कराने का ध्येय भारतीय जनता पार्टी का रखा गया था। स्थापना के 16 वर्ष के बाद 13 दिन के लिए भाजपा को केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाने का मौका मिला। यह 13 दिन भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ इस बात की प्रबल सम्भावना भी प्रकट कर गये कि भविष्य में भाजपा की सरकार बन सकती है। संघ पृष्ठभूमि में भाजपा के नियंत्रक की ही भूमिका निभा रहा था परंतु 1998 आते-आते जब राजग गठबंधन के अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो संघ की नियंत्रक की भूमिका समाप्त होकर मात्र दर्शक की भूमिका ही रह गई थी। राजनीति व सत्ता चलाने के लिए व राजग गठबंधन के छोटे-मोटे दलों के साथ समझौते की राजनीति करने के चक्कर में भाजपा अपने तीन मुख्य ध्येय- समान नागरिक संहिता, धारा 370, राम मंदिर का निर्माण को भूल कर सत्ता प्राप्ति की व्यावहारिक राजनीति करने लगी जिससे गठबंधन की सरकार के अच्छे कामों का सेहरा तो गठबंधन में शामिल रहे राजनीतिक दलों के सिर पर बंधता रहा तथा गलत कामों व अपने अटल बिहारी वाजपेयी के होते हुए सत्ता के जीवन में राम मंदिर न बनवा पाने का ठीकरा आम जनता भाजपा के सिर पर फोड़ती रही। संघ के प्रमुख के. सी. सुर्दशन ने विदेशी पूंजी निवेश, संघ के बाहर के लोगों को महत्वपूर्ण मंत्रालय देने व वाजपेयी की कार्यशैली की ही आलोचना कर दी परंतु संघ कुछ कारगर उपाय नहीं कर पा रहा था। फील गुड का अहसास होने पर सरकार के कार्यकाल में छह महीने बाकी रहने के बाबजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2004 में ही लोकसभा के आम चुनाव की घोषणा कर दी जिसमें भाजपा को जनता ने सत्ताच्युत कर दिया।
सत्ता में न रहने के कारण भाजपा, राजग इत्यादि में आंतरिक कलह बढ़ गई। सत्ता प्रेमी भाजपा के कुछ नेता अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप लगा कर भाजपा के नेतृत्व को ही कोसने लगे। फिर दूसरे आम चुनाव में भी भाजपा लोकसभा में अपनी सरकार नहीं बना पायी। लगातार दो पराजयों के उपरांत भाजपा की स्थिति बदतर हो गई। भाजपा अपने कार्यकाल के अच्छे कार्यों को जनता को समझा ही नहीं पा रही थी। भाजपा के अघ्यक्ष राजनाथ सिंह का अपने ही दल के नेताओं पर से नियंत्रण लगभग समाप्त ही हो रहा था। उधर संघ में भी बदलाव आया और केसी सुदर्शन से अपेक्षाकृत युवा मोहन भागवत संघ के सरकार्यवाह बन कर संघ की कमान संभालने लगे। भागवत ने भाजपा को युवा नेतृत्व देने की आवश्यकता बतायी। संघ भाजपा के लिए एक युवा अध्यक्ष की तलाश में जुट गया। भागवत ने साफ-साफ कह दिया कि भाजपा का अध्यक्ष दिल्ली से बाहर का ही होगा। इस बयान की भाजपा के नेताओं ने आलोचना तो की परन्तु भाजपा संघ का कुछ बिगाड़ नहीं पायी। संघ कभी भी संघ की पुत्री कही जाने वाली भाजपा को बर्बाद होते हुए नहंीं देख सकती थी। भाजपा को समाप्त कर किसी नये दल के गठन की बात संघ ने नहीं मानी। संघ ने स्पष्ट सोच प्रगट की कि अब संघ पीछे की सीट की बजाय ड्राइविंग सीट पर बैठेगी। संघ के करीबी नितिन गडकरी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये। उनकी कार्यशैली ठीक ठाक हुई तो भाजपा के इंदौर में हो रहे राष्ट्रीय अधिवेशन में उनका कार्यकाल भी बढाने की बात हो रही है।
अध्यक्ष पद के संचालन के उपरांत नितिन गडकरी ने अपने विचार भी स्पष्ट रूप से प्रकट किये कि वे सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं। नितिन गडकरी प्रारम्भ में भाजपा के पोस्टर व पंपलेट दीवाराें पर चिपकाने वाले साधारण कार्यकर्ता थे उस स्तर से ऊपर उठ कर भाजपा के अध्यक्ष के स्तर तक पहुंचे हैं। उन्हें गौरव है कि वे उस आसन पर बैठ रहे है जिस पर दिग्गज अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह इत्यादि जैसे वरिष्ठ राजनेता बैठते थे। निचले स्तर के कार्यकर्ता के जुझारूपन से ही पार्टी आगे बढ़ती है। नितिन गडकरी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लम्बे समय तक जुड़े रहे हैं। अतः नितिन गडकरी में छात्र नेता का सा जुझारुपन दिखाई देता है जो अपने ध्येय के प्रति पूर्ण समर्पित होते है। नितिन गडकरी के अध्यक्ष बनने पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने यह कह कर उनका स्वागत किया कि वे भाजपा को नई ऊंचाइयों पर ले जायेंगे। नितिन गडकरी के आने से भाजपा के शीर्ष पर हो रही गुटबाजी को अभी ब्रेक लग गया है। यह गुटबाजी प्रांत, जिला, नगर व गांव स्तर पर भी अपना प्रभाव दिखा रही थी। ‘सूरज निकलेगा कमल खिलेगा’ जो भाजपा की स्थापना के समय ध्येय वाक्य था, नितिन गडकरी के नेतृत्व में फलीभूत हो सकेगा। संघ इन दिनों भाजपा को चुस्त-दुरुस्त करने की जुगाड कर रहा है। मिशन दिल्ली को सामने रख कर आगामी लोकसभा चुनावों की रणनीति संघ की सोच को सामने रख कर बनाई जा रही है।
अगला लोकसभा चुनाव संघ नितिन गडकरी के नेतृत्व में लड़ने का मन बना चुका है। यह भी सम्भव है कि राष्ट्रीय अधिवेशन में भाजपा अपने संविधान में संशोधन करके नितिन गडकरी को 3 की बजाय 5 वर्ष के लिए अध्यक्ष बना दे। अगामी लोकसभा चुनावों में नितिन गडकरी भाजपा के रथ के सारथी के रूप में होंगे, वे स्वयं चुनाव नहीं लड़ेंगे। नितिन गडकरी राजग के सहयोग से चुनावी रणनीति का कार्ड अवश्य खेलेंगे। 5 वर्ष के अध्यक्ष के कार्यकाल के बारे में संघ की सोच है कि तीन वर्ष में कोई भी अध्यक्ष संगठन का तानाबाना बुनने व समझने के लिए समर्थ्यवान नहीं होता है। जब तक वह संगठन को समझता है तब तक वह बाहर हो जाता है, तो भाजपा के अध्यक्ष पद का कार्यकाल भी पांच वर्ष होना चाहिए। लाल कृष्ण आडवाणी को संसदीय दल का अध्यक्ष बनाने के लिए भी भाजपा के संविधान में संशोधन किया गया था। नितिन गडकरी यदि पांच वर्ष के लिए अध्यक्ष बने तो फिर प्रदेश के अध्यक्षों का भी कार्यकाल पांच वर्ष हो सकेगा।
संघ राष्ट्रवाद को सामने रख कर व सत्ता प्रेमी राजनेताओं को दूर रख कर भाजपा को नितिन गडकरी के माध्यम से मजबूत करने व दुबारा से केंद्र में सत्ता में आने के लिए कोशिश कर रही है। नितिन गडकरी भी अति उत्साही व अति सकारात्मक सोच के लग रहे हैं, जिस प्रकार झारखंड के चुनाव के बाद कांग्रेस को पटकनी देकर शिबू सोरन जैसे नेता के साथ भाजपा की ताल बैठा कर कांग्रेस को झारखंड की सरकार से बाहर किया है वह ‘पूत के पांव पालने में दिखाई देने’ की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। नितिन गडकरी भविष्य में दलितों, आदिवासियों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों व अल्पसंख्यकों (खासकर मुसलमानों ) के मन में फैली भाजपा के प्रति गलतफहमी जो कांग्रेस ने प्रचारित की है, को भी समाप्त करना चाहते हैं। इस गलतफहमी को दूर करने के लिए वे वोट की राजनीति को दूर रखते हुए व्यापक स्तर पर रचनात्मक अभियान चलाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इस रचनात्मक अभियान में समाज के निचले पायदान पर खड़े आदमी (भाजपा का अंत्योदय कार्यक्रम) को सामाजिक व आर्थिक विकास में मदद देने का कार्य करेंगे।
वोट की राजनीति में कांग्रेस ने मुसलमानों का शोषण किया है। कांग्रेस के 57 साल के शासन में मुसलमान लड़के क्यों रिक्शा ठेला खींच रहे हैं। नितिन गडकरी की काट के लिए कांग्रेस अल्पसंख्यक (मुसलमानों) आरक्षण देने का राजनीतिक दांव लगा रही है। नितिन गडकरी के मुताबिक भाजपा सब को साथ लेकर चलने में यकीन करती है। भाजपा जात-पांत, पंथ, धर्म, भाषा व क्षेत्र के आधार पर भेदभाव की राजनीति से सदैव परहेज करती रही है। भाजपा आर्थिक व सामाजिक विषमताओं से मुक्त कराने की नीति पर काम करती है। नितिन गडकरी का अभी उद्देश्य यही लगता है कि वे आगामी चुनाव तक भाजपा संगठन को मजबूत करके वोटों में 10 प्रतिशत की वृध्दि कर सकें। भाजपा को सत्ता में दुबारा से लाने के लिए उत्तरप्रदेश, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल में पार्टी को और मजबूत करना होगा। कांग्रेस इस बात को गम्भीरता से ले रही है कि गडकरी अकेले नहीं हैं। उनके पीछे रा. स्व. संघ जैसे विश्व के विशालतम संगठन की पूरी ताकत है। कांग्रेस यह नहीं पचा पा रही है कि नितिन गडकरी के आने के बाद झामुमो ने झारखंड में भाजपा के साथ सरकार बना ली जबकि केंद्र में यूपीए में झामुमो बना रहेगा। गत कुछ वर्षों से भाजपा की अंदरूनी उठापटक का लाभ कांग्रेस उठा रही थी। अब यदि नितिन गडकरी के आने के बाद से कांग्रेस को यह लाभ मिलना बंद हो गया तो भाजपा को ही लाभ होगा। कांग्रेस भी नितिन गडकरी के आने के बाद अपने संगठन को मजबूत करने में जुट गई है।