जाने माने चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन का लंदन के रायल ब्राम्पटन अस्पताल में स्थानीय समयानुसार तड़के ढाई बजे निधन हो गया. परिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी.
वर्ष 1991 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुसैन का पिछले डेढ़ महीने से स्वास्थ्य खराब चल रहा था. महाराष्ट्र के पंढरपुर में 17 सितंबर 1915 को जन्मे हुसैन हिंदू देवियों के बनाये अपने चित्रों के कारण विवादों में आ गये. देवी दुर्गा और सरस्वती के उनके चित्रों पर हिंदू समूहों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और वर्ष 1998 में चित्रकार के घर पर हमला कर उनकी कलाकृतियों को नुकसान पहुंचाया गया था. फ़रवरी 2006 में हुसैन पर हिंदू देवी-देवताओं के निर्वस्त्र चित्र बना कर लोगों की भावनाएं आहत करने का आरोप लगा. भारत में कानूनी मुकदमे दायर होने और जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद से हुसैन वर्ष 2006 से आत्म निर्वासन में रह रहे थे. उन्हें जनवरी 2010 में कतर की नागरिकता दी गयी, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. हरिद्वार की जिला अदालत के भेजे समन पर हुसैन ने कभी जवाब नहीं दिया. अदालती आदेश के तहत भारत में उनकी संपत्तियों को कुर्क कर लिया गया. उनके खिलाफ़ एक अदालत ने जमानती वारंट भी जारी कर दिया.
हालांकि, हुसैन यह कहते रहे कि वह भारत वापसी करने के इच्छुक हैं, पर उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पायी. हुसैन के तीन चित्र हाल ही में यहां हुई बोनहैम नीलामी में 2.32 करोड रुपये में नीलाम हुए. इसमें से एक अनाम तैलीय चित्र में इस किंवदंती चित्रकार ने अपने प्रिय विषय घोड़े और महिला को उकेरा था. अकेला यही चित्र 1.23 करोड़ रुपये में नीलाम हुआ.
हुसैन को 1955 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. 1967 में उन्होंने एक पेंटर के नजरिये से अपनी पहली फ़िल्म बनायी. यह बर्लिन फ़िल्म समारोह में प्रदर्शित हुई और गोल्डन बीयर पुरस्कार जीता. वह 1971 में साओ पाओलो आर्ट बाईनियल में पाबलो पिकासो के साथ विशेष आमंत्रित अतिथि थे. उन्हें 1973 में पद्म भूषण सम्मान मिला और 1986 में हुसैन राज्यसभा के लिए नामांकित किये गये. 1991 में उन्हें पद्म विभूषण मिला. सन 1990 से 2011 के बीच हुसैन भारत में सबसे महंगे पेंटर बनकर उभरे.
उन्होंने गजगामिनी सहित कई फ़िल्मों का निर्माण एवं निर्देशन भी किया. गजगामिनी में हुसैन ने अपनी पसंदीदा अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को लिया, जिन्हें लेकर उन्होंने कई पेंटिंग बनायी. हुसैन की आत्मकथा के रूप में एक फ़िल्म भी बनायी जा रही थी, जिसमें युवा हुसैन के रूप में श्रेयस तलपड़े थे. अम्मान व जॉर्डन के रॉयल इस्लामिक सट्रेटेजिक स्टडीज सेंटर द्वारा जारी की गयी सूची में उनका नाम विश्व के 500 सबसे प्रभावशाली मुसलमानों में था. 1990 के दशक में हिन्दू-देवी देवताओं की नग्न तस्वीरें बनाये जाने को लेकर हुसैन की कुछ कलाकृतियों ने विवाद खड़ा कर दिया. उनकी कलाकृतियों को लेकर 1970 में ही सवाल खड़े होने शुरू हो गये थे, लेकिन 1996 तक यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया था. असल विवाद तब शुरू हुआ जब तस्वीरें हिन्दी की मासिक पत्रिका विचार मीमांसा में छपीं. तस्वीरों को लेकर छापे गए लेख का शीर्षक ‘एमएफ़ हुसैन कलाकार या कसाई’ था. इसे लेकर उनके खिलाफ़ आठ प्राथमिकी दर्ज की गयी.
कल खबर आयी कि मकबूल फ़िदा हुसैन का देहांत हो गया …………अब मैं आपके सामने झूठ मूठ का शिष्टा चार नहीं बघारना चाहता …..जैसा कि परंपरा है कि कम से कम मरे हुए आदमी को तो इज्ज़त बक्श दो ……..मेरी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि चलो धरती से कुछ बोझ तो कम हुआ ….एक दुष्ट आत्मा का बोझ अब इस बेचारी धरती को कम ढोना पड़ेगा ……..पर ध्यान दीजिये कि मैं ये मानता हूँ कि वो एक बहुत अच्छे या बहुत नामी गिरामी …पेंटर थे ……हम गंवार लोग क्या जानें कि कला क्या होती है ……और ये भी कि मेरी उनसे कोई जाती दुश्मनी भी नहीं थी .मैंने सिर्फ उनके बारे में पढ़ा था कि वो देवी देवताओं की nude पेंटिंग्स बनाते थे …….मुझे याद है की पहली बार जब मैंने ये पढ़ा तो मुझे गुस्सा तो नहीं आया था पर अजीब सा ज़रूर लगा था …..गुस्सा तब आया जब ये पता लगा कि सिर्फ हिन्दू देवी देवताओं की पेंटिंग्स ही nude बनाते थे ……..भारत माता ,दुर्गा ,पार्वती और सरस्वती की nudes बनाये उन्होंने ……पर अपनी माँ की पेंटिंग एकदम पूरी तरह ऊपर से नीचे तक कपड़ों से ढकी हुई बनाई है ….मदर टेरेसा की पेंटिंग भी इसी तरह पूरे कपड़ों में है ……….अब पता नहीं कौन सी मानसिकता है ये ……….पर समस्या ये नहीं है कि उन्होंने पेंटिंग बनाई ………आम तौर पर हिन्दू प्राचीन काल से ही इन सब मामलों में बहुत सहिष्णु रहा है ……बहुसंख्य लोग कोई बहुत उग्र प्रतिक्रिया नहीं देते …..पर भैया अगर मान लो कि कुछ लोगों को ये बुरा लगा तो इसमें इतना नाराज़ आप लोग क्यों होते हो ……..कुछ लोगों को बुरा लगा और वो नाराज़ हुए ………..तो शुरू हो गया हमारा तथाकथित सेकुलर समाज , progressive सोच वाला समाज ………हमारा secularism का झंडाबरदार मीडिया ….कि देखो साले कितने जाहिल हैं ये सब ……इस बेचारे चित्रकार ने इनकी माँ की नंगी पेंटिंग बना दी तो इतना बुरा लग रहा हैं इन मूढ़ मति जाहिलों को ………साले देश को मध्य युग में ले जाना चाहते हैं ……..बेचारे चित्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन रहे हैं ……..हाँ हमारी माँ बहन की नंगी फोटो बनाना उसका जन्म सिद्ध अधिकार है ……..हमें विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है ………
अब कुछ जाहिल , मूढ़ मत बेवक़ूफ़ हिन्दुओं ने श्रीमान जी का विरोध किया …..उनकी एक exhibition में कुछ तोड़ फोड़ भी की शायद …..तो श्रीमान जी हमेशा के लिए देश छोड़ कर चले गए …….क़तर में रहने लगे ……..बड़ा अहसान किया इस भारत देश पर ……..मीडिया और बुद्धिजीवी (हम तो भाई बुद्धिहीन हैं ) फिर रोये ….देखो बेचारे चित्रकार को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया ………अब कल मर गए ….तो एक anchor कल रो रहा था …टीवी पर ….दो गज जमीं भी मिल न सकी कुए यार में …….इतना बड़ा भी कोई जान का खतरा नहीं था यहाँ पर ………बहुसंख्यक समाज की भावनाओं का ध्यान रखते हुए एक बार अफ़सोस प्रकट कर देते ….दिल से …….. पर उन्हें कोई अफ़सोस कभी हुआ ही नहीं……. तभी तो वहां इतने साल तान तोड़ते रहे ….क़तर में बैठे …हम लोगों पर …….अब मुझे ये तो नहीं पता कि उन्होंने वहां कोई nude पेंटिंग …….किसी मुस्लिम महापुरुष की ………..बनायी ya नहीं …….कलाकार तो वो थे बहुत बड़े पर उनकी कलाकारी की उड़ान इतनी उँची भी नहीं थी कि किसी मुस्लिम महापुरुष की nude बना पाते…..यहाँ तो सिर्फ विरोध हुआ था …एकाध शीशा तोड़ दिया था इनकी exhibition में …वहां ऐसी हिमाकत करते तो बोटी बोटी नोच लेते वो सब ……
दुःख इस बात का है की इस गंदे घटिया आदमी ने ता उम्र तो हम बहुसंख्यक हिन्दुस्तानियों की बे इज्ज़ती की ही ……मरते मरते भी कर गया कमबख्त …..बहर हाल सुनते हैं की अच्छा आर्टिस्ट था ….भारत का पिकासो था ….अल्लाह करे ज़न्नत नसीब हो ……..मरने के बाद माफ़ किया उसे ….जैस भी था, था तो हिन्दुस्तानी ही.
saraswati
lakshmi
durga
parvati
mother teresa fully clothed
his own mother ….fully clothed
यह टिप्पणी हम सभी को एक बार फिर इस कलाकार के बारें में सोचने को मजबूर करती है यह मेरी नहीं है लेकिन इस को पढ़कर मैं बहुत व्यथित हो गया.
अजित भोसले
हुसैन को एक कलाकार के ही रूप में हम क्यों नही देखते.वह किससे प्रेम करता था और किससे नफरत ,इस पर टिप्पणी करने का हमें क्या अधिकार है?वह तो यह भी कहता था की वह पवित्रता को कोई पहनावा नहीं देना चाहता था.उसकी इस विचार धारा क्यों नहीं समझा गया?
बात सही है हुस्सेन चित्रकार तो बहुत अछे है , एक बार उन्होंने हिटलर की नग्न चित्र निकला था उस चित्र के बारे मैं पूछे जाने पर उन्होंने कहा था की ” मैं हिटलर से बहुत नफरत करता हूँ , क्योकि वो फासिस्ट था” इसका मतलब हुस्सेन हिन्दू देवी देवताओं से भी नफरत करता था भारत माता से भी नफरत करता था इसिस्लिये उसने देवी देवताओं की और भारत माता की नग्न चित्र निकला , मुंबई हमले के बाद मैं उसने “रेप ऑफ़ इंडिया ” का वीभत्स चित्र निकला उससे हुस्सेन की मानसिकता देखाई पड़ती है , क्या उसको पाकिस्तान मैं हर हप्ते ब्लास्ट हो है दखाई नहीं दिया , क्या वो gang रेप ऑफ़ पाकिस्तान का चित्र नहीं बना सकता था ?