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धूमधाम से मनाएं नया साल विक्रमी संवत 2068

भारत व्रत पर्व व त्यौहारों का देश है। यूं तो काल गणना का प्रत्येक पल कोई न कोई महत्व रखता है किन्तु कुछ तिथियों का भारतीय काल गणना (कलैंडर) में विशेष महत्व है। भारतीय नव वर्ष (विक्रमी संवत्) का पहला दिन (यानि वर्षप्रतिपदा) अपने आप में अनूठा है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। इस दिन पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है तथा दिनरात बराबर होते हैं। इसके बाद से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है। काली अंधेरी रात के अन्धकार को चीर चन्द्रमां की चांदनी अपनी छटा बिखेरना शुरू कर देती है। वसंत ऋतु का राज होने के कारण प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फाल्गुन के रंग और फूलों की सुगंध से तनमन प्रफुल्लित और उत्साहित रहता है। 
 
विक्रमी सम्वत्सर की वैज्ञानिकता
भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य द्वारा प्रारंभ किये जाने के कारण इसे विक्रमी संवत के नाम से जाना जाता है। विक्रमी संवत के बाद ही वर्ष को 12 माह का और सप्ताह को 7 दिन का माना गया। इसके महीनों का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर रखा गया। विक्रमी संवत का प्रारंभ अंग्रेजी कलैण्डर ईसवीं सन से 57 वर्ष पूर्व ही हो गया था।
 
चन्द्रमा के पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाने को एक माह माना जाता है, जबकि यह 29 दिन का होता है। हर मास को दो भागों में बांटा जाता है कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष। कृष्णपक्ष, में चांद घटता है और शुक्लपक्ष में चांद ब़ता है। दोनों पक्ष प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी आदि ऐसे ही चलते हैं। कृष्णपक्ष के अन्तिम दिन (यानी अमावस्या को) चन्द्रमा बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता है जबकि शुक्लपक्ष के अन्तिम दिन (यानी पूर्णिमा को) चांद अपने पूरे यौवन पर होता है।
अर्द्धरात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा सोमवार के स्थान पर रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने के साथ चौत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चौत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ करने का एक वैज्ञानिक आधार है। वैसे भी इंग्लैण्ड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्द्धरात्रि के 12 बजे को आधार इसलिए बनाया गया है क्योंकि उस समय भारत में भगवान भास्कर की अगवानी करने के लिए प्रातरू 530 बज रहे होते हैं। वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया को देखें तो पता चलता है कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमशरू बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों पर सप्ताह के सात दिनों का नामकरण किया गया। तिथि घटे या ब़े किंतु सूर्य ग्रहण सदा अमावस्या को होगा और चन्द्र ग्रहण सदा पूर्णिमा को होगा, इसमें अंतर नहीं आ सकता। तीसरे वर्ष एक मास ब़ जाने पर भी ऋतुओं का प्रभाव उन्हीं महीनों में दिखाई देता है, जिनमें सामान्य वर्ष में दिखाई पड़ता है। जैसे, वसन्त के फूल चौत्रवैशाख में ही खिलते हैं और पतझड़ माघफाल्गुन में ही होती है। इस प्रकार इस कालगणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों व दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है।
तिहासिक संदर्भ
वर्ष प्रतिपदा पृथ्वी का प्राकटय दिवस, ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित सृष्टि का प्रथम दिवस, सतयुग का प्रारम्भ दिवस, त्रेता में भगवान श्री राम के राज्याभिषेक का दिवस (जिस दिन राम राज्य की स्थापना हुई), द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस होने के अलावा कलयुग के प्रथम सम्राट परीक्षित के सिंहासनाऱु होने का दिन भी है। इसके अतिरिक्त देव पुरुष संत झूलेलाल, महर्षि गौतम व समाज संगठन के सूत्र पुरुष तथा सामाजिक चेतना के प्रेरक डॉ. केशव बलिराम हेड़गेवार का जन्म दिवस भी यही है। इसी दिन समाज सुधार के युग प्रणेता स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी। वर्ष भर के लिए शक्ति संचय करने हेतु नौ दिनों की शक्ति साधना (चौत्र नवरात्रि) का प्रथम दिवस भी यही है। इतना ही नहीं, दुनिया के महान गणितज्ञ भास्कराचार्य जी ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की। भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति इसी दिन दिलाई। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2068 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर यवन, हूण, तुषार, तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई थी। उसी विजय की स्मृति में यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती है।
अन्य काल गणनाँ
ग्रेगेरियन (अंग्रेजी) कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष यहूदी 5767 वर्ष, मिस्त्र की 28670 वर्ष, पारसी 198874 वर्ष तथा चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एकएक पल की गणना की गयी है। जिस प्रकार ईस्वी सम्वत का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु विक्रमी सम्वत का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्घांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। 
 
ग्रन्थों व संतों का मत
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था “यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा। गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहनेवाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है’। महात्मा गांधी ने 1944 की हरिजन पत्रिका में लिखा था “स्वराज्य का अर्थ है स्वसंस्कृति, स्वधर्म एवं स्वपरम्पराओं का हृदय से निर्वहन करना। पराया धन और परायी परम्परा को अपनाने वाला व्यक्ति न ईमानदार होता है न आस्थावान’। नव संवत यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में भी विस्तार से दिया गया है। 
 
स्वाधीनता के पश्चात
देश की स्वाधीनता के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में पंचाग सुधार समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष प्रो मेघनाथ साहा थे। वे स्वयं तो परमाणु वैज्ञानिक थे ही साथ ही उनकी इस समिति में एक भी सदस्य ऐसा नहीं था, जो भारत की ज्योतिष विद्या या हमारे धर्म शास्त्रों का ज्ञान रखता हो। यही नहीं, प्रो. साहा स्वय भी भारतीय काल गणना के श्सूर्य सिद्घातश के सर्वथा विरोधी थे तथा ज्योतिष को मूर्खतापूर्ण मानते थे। परिणामतरू इस समिति ने जो पंचाग बनाया उसे ग्रेगेरियन कलेंडर के अनुरूप ही बारह मासों में बांट दिया गया। अंतर केवल उनके नामकरण में रखा। अर्थात जनवरी, फरवरी आदि के स्थान पर चौत्र, बैशाख आदि रख दिए। लेकिन, महीनों व दिवसों की गणना ग्रेगेरियन कलेंडर के आधार पर ही की गई। 
 
पर्व एक नाम अनेक
चेती चाँद का त्यौहार, गुडी पडवा त्यौहार (महाराष्ट्र), उगादी त्यौहार (दक्षिण भारत) भी इसी दिन पडते हैं। वर्ष प्रतिपदा के आसपास ही पडने वाले अंग्रेजी वर्ष के अप्रेल माह से ही दुनियाभर में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। समस्त भारतीय व्यापारिक व गैर व्यापारिक प्रतिष्ठानों को अपनाअपना अधिक्रत लेखा जोखा इसी आधार पर रखना होता है जिसे वहीखाता वर्ष कहा जाता है। भारत के आय कर कानून के अनुसार प्रत्येक कर दाता को अपना कर निर्धारण भी इसी के आधार पर करवाना होता है जिसे कर निर्धारण वर्ष कहा जाता है। भारत सरकार तथा समस्त राज्य सरकारों का बजट वर्ष भी इसी के साथ प्रारंभ होता है। सरकारी पंचवर्षीय योजनाओं का आधार भी यही वित्तीय वर्ष होता है। 
 
कैसे करें नव वर्ष का स्वागत
हमारे यहां रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता बल्कि, भारतीय नव वर्ष तो सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। सभी को नववर्ष की बधाई प्रेषित करें। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण बनाएँ। शंख व मंगल ध्वनि के साथ प्रभात फेरीयां निकाल कर ईश्वर उपासना हेतु व्रहद यज्ञ करें तथा गऊओं, संतों व बडों की सेवा करें । घरों, कार्यालयों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भगवा ध्वजों व तोरण से सजाएं । संत, ब्राह्मण, कन्या व गाय इत्यादि को भोजन कराएं। रोलीचन्दन का तिलक लगाते हुए मिठाइयाँ बाँटें। इनके अलावा नववर्ष प्रतिपदा पर कुछ ऐसे कार्य भी किए जा सकते हैं जिनसे समाज में सुख, शान्ति, पारस्परिक प्रेम तथा एकता के भाव उत्पन्न हों। जैसे, गरीबों और रोगग्रस्त व्यक्तियों की सहायता, वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने हेतु वृक्षारोपण, समाज में प्यार और विश्वास ब़ाने के प्रयास, शिक्षा का प्रसार तथा सामाजिक कुरीतियां दूर करने जैसे कार्यों के लिए संकल्प लें। सामुदायिक सफाई अभियान, खेल कूद प्रतियोगिताएं,रक्त दान शिविर इत्यादि का आयोजन भी किया जा सकता है। आधुनिक साधनों (यथा एस एम एस, ईमेल, फेस बुक, और्कुट के साथसाथ बौनर, होडिंर्ग व करपत्रकों) के माध्यम से भी नव वर्ष की बधाईयां प्रेषित करते हुए उसका महत्व जनजन तक पहुंचाएं।
 
इन श्रेष्ठताओं को राष्ट्र की ऋचाओं में समेटने एवं जीवन में उत्साह व आनन्द भरने के लिये यह नव संवत्सर की प्रतिपदा प्रति वर्ष समाज जीवन में आत्म गौरव भरने के लिए आता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सब भारतवासी इसे पूरी निष्ठा के साथ आत्मसात कर धूमधाम से मनाएं और विश्वभर में इसका प्रकाश फैलाएं। आओ! सन को छोड़ संवत अपनाएं, निज गौरव का मान जगाएं

देवों से वंदन पाना ………….

देवों से वंदन पाना ………….

अब होते अत्याचारों पर

मिलकर ये हुँकार भरो

कहाँ छिपे हो घर मैं बेठे

निकलो और संहार करो

आतंकी अफजल , कसाब को

और नहीं जीने दो अब

घुस जाओ जेलों मैं मित्रो

आओ मिलकर वार करो

कोन है हिटलर ? कोन है हुस्नी ?

किसका नाम है गद्दाफी ?

दुष्टों को बस मोत सुना दो

देना नहीं कोई माफ़ी ….

कि जो कोई साथ दे उनका ,

बजाय हुक्म माली सा ,

सजाय मोत दो उनको

रूप हो , रोद्र काली सा .

जेलों मैं बिरयानी खाते

धंधे अड्डे वहीँ जमाते

सरकारी मेहमान वन जाते

वीच चोराहे मारो लाकर

उनका पर्दाफाश करो

जो इनको देते सुख सारे

( संसद पर हुए हमले मैं

शहीद हुए पुलिस विभाग के

वीरों से माफ़ी के साथ )

करते जेवों के न्यारे -वारे

उन वर्दी धारी गुंडों का

अब न कोई खोफ करो

चमड़ी खींच नमक भर दो अब

मारो और हलाल करो -२

वो जो इनकी फांसी पर

राजनीति करने वाले

सफेदपोश दिखते ऊपर से

अन्दर जिनके मन काले

ऐसे नेताओं का अब

जनता से वनवास करो

मुंह काला कर दो उनका अब

पूरा सत्यानाश करो …२

उनने जाने कितने राही

चलती राहों पर मारे

उनके जुल्मो और सितम

जग जाहिर कर दो अब सारे

अब भी रहे मोन साथी तो

कुछ भी न कर पाओगे

वेवस आहों और दर्दों के

अपराधी कहलाओगे

आहों से लपटें निकल रहीं

दीन दुखी जन सांसों से

भस्म-भूत होगा अब सब कुछ

आर्तनाद की आहों से

महाकाल की आहट को

अब अपना संबल जानो

कृष्ण सारथी बन जायेंगे

अर्जुन बन अब तुम ठानो

प्रलय मचा दो इन दुष्टों पर

इनको माफ़ नहीं करना

उनकी सोचो जिन बहिनों का

अब सिंदूर नहीं भरना

पूछो उस माँ से जिसने

रण मैं इकलोता खोया है

अश्क आँख से सूख गए

उसने ऐसा क्या बोया है….?

बिटिया को लगता है अब भी

उसके पापा आयेंगे

प्यार करेंगे गोदी लेकर

लोरी नई सुनायेंगे

उस बिटिया को पता नहीं है

अब पापा न आयेंगे

उसके लोरी के सपने

अब झूठे पड़ जायेंगे

ऐसे गद्दारों की रक्षा

जेलों मैं क्यों होती है ?

और कुटिल सरकार निकम्मी

उनके चरणों को धोती है

मंदिर मस्जिद से उठने दो

हक़ की अब आवाजों को

पहिचानो गुरुद्वारा गिरिजा

से उठते अब साजों को

ऋषि दधीचि से बज्री वन तुम

ऐसा रण संहार करो

ख़ाक मिटा दो हत्यारों की

मिलकर आज प्रहार करो

ऐसा कर के पक्का मानो

स्वर्ग लोक तुम जाओगे

देव करेंगे अभिबादन

तुम महावीर कहलाओगे -२

भगत सिंह सुखदेव राजगुरु

और आजाद से वीरों को

पूजित वन्दनीय ये जंगी

क्या पूजें धनी – अमीरों को ?

लिखता नहीं गीत मैं मित्रों

गुंजा गोरी के गालों पर

न्योछावर जीवन ये सारा

मानवता के लालों पर

महा काल की आहट को

अब आया तुम सब जानो

आतंकी तहस नहस होंगे

संकल्प यही पक्का मानो

मुट्ठी बांधे आये जग मैं

खाली हाथ हमें जाना

शर्म शार न हो भारत माँ

गर्वित हो गोरव पाना

दुर्योधन की मांद से अच्छे

अभिमन्यु तुम बन जाना

बलिदानी हो जाना रण मैं

देवों से वंदन पाना …

संतों से वंदन पाना …

गुरुओं से वंदन पाना…

जन जन अभिनन्दन पाना ….

भारत माता की जय

( देश के वीरों को समर्पित कविता )

सोनिया दुनिया की “टॉप 10” हस्तियों में

1968 में जब सोनिया माइनो इटली से इंदिरा गॉधी के पुत्र राजीव गॉधी की जीवन संगनी बनने पहली बार भारत आई थी तो लोगो ने उन्हे एक अजूबे कि तरह देखा था। पहली बार दिल्ली आते वक्त सोनिया के पिता ने उन्हे वापसी का टिकट भी दिया था। वह टिकट अतीत के अंधियारे में आज कहा गुम हो शायद सोनिया को भी नही पता। उन की चुप्पी और समय आने पर अपने विरोधियो पर सोच समझ कर हमला बोलने की अदृभ्त क्षमता ने उन का सियासी मैदान में हमेशा पलडा भारी रखा। सोनिया गॉधी की मजबूत शख्सियत का शायद असली बीजमंत्र ये ही है। ये संयोग ही है की इटली की मदर टैरेसा की तरह ही सोनिया ने भी भारत को अपनी दूसरी जननी माना और पिछले 42 सालो से हर सुख दुख के बावजूद वो भारत की धरती को अपना मानती रही है। सियासी शालीनता और परिपक्वता के मामले में वो आज पं0 जवाहर लाल नेहरू सास इंदिरा और पति राजीव गॉधी से भी कई बार इक्कीस दिखाई पडती है। इस के बावजूद की नेहरू, इंदिरा, और राजीव को घुट्टी में सियासत पिलाई गई थी और काग्रेस भी उस वक्त चुनौती रहित थी आज सोनिया ने अपने बलबुते पर बिखरती काग्रेस को एकजुट बनाये रखने में जबरदस्त कामयाबी हासिल की है। उन परंपरागत मॉओ की तरह जो किसी भी कीमत पर अपना परिवार टूटने नही देती।

इटली मूल, विदेशी धर्म और राजनीतिक अनिच्छा के बावजूद अपनी असाधारण शख्सीयत से करीब 1.2 अरब भारतीयो को प्रभावित करने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गॉधी को अमेरिकी पत्रिका फोब्र्स ने भारत की सब से प्रभावशाली शख्सीयत बताया है। दुनिया के प्रभावशाली लोगो की 2010 की सूची में सोनिया गॉधीे “टॉप 10’’ में शामिल है। आप को याद होगा कि पिछले वर्ष 2009 की समाप्ति पर भी एक ब्रिटिश अखबार ॔फाइनेंशियल टाईम्स’’ ने दुनिया भर की 50 प्रमुख हस्तियों में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती और सोनिया गॉधी का चयन किया था। इस वर्ष अमेरिकी पत्रिका फोब्र्स की सूची में दुनिया के सब से प्रभावशाली 68 लोगो में कुल पॉच भारतीय है। जिन में सोनिया (9) प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह (18) उघोगपति मुकेश अम्बानी (34) रतन टाटा (44) और लक्ष्मी मित्तल (68) का नाम शामिल है। लगभग 150 मुल्खो में अरबो खरबो की आबादी में से सिर्फ 68 लोगो में पॉच भारतीयो का नाम होना हम सब भारतीयो के लिये गर्व की बात होंने के साथ साथ जिन लोगो को अमेरिकी पत्रिका फोब्र्स ने अपनी सूची में शामिल किया है उन सभी भारतीयो के लिये एक बहुत बडी एक उपलब्धि है। वही विदेशी मूल की होने के बावजूद देश का मान सम्मान बाने वाली सोनिया गॉधी 9वा स्थान पाकर देश का गौरव बाने वालो में सब से आगे है। इस उपलब्धि की गरिमा बरकरार रहे इस के लिये सोनियो को देश की अर्थव्यवस्था, एकता अखंडता, और विशोषकर ग्रामीण लोगो के उत्थान के लिये थोडा और सख्त होना पडेगा। क्यो के उन की यह उपलब्धि किसी एक वर्ष कि नही बल्कि पूरे एक दशर्क तक भारतीय लोकतंत्र की रक्षा और उस की गरिमा को बरकरार रखने का ताज उन्हे इस उपलब्धि के रूप में मिला है।

श्रीमति सोनिया गॉधी को अमेरिकी पत्रिका फोब्र्स ने भारत की सब से प्रभावशाली शख्सीयत यू ही नही चुना है। दुनिया के प्रभावशाली लोगो में सोनिया गॉधीे आज “टॉप 10’’ में शामिल है। काग्रेस पार्टी के 125 सालो के इतिहास में करीब 32 वर्ष नेहरूगॉधी परिवार के लोग अध्यक्ष रहे। सोनिया गॉधी लगातार बारह साल तक इस पद पर रहने के बाद अब चार साल के लिये और चुन ली गई है। जब कि नेहरू परिवार से सब से पहले प्रख्यात वकील और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू 1919 में अध्यक्ष चुने गये थे और 1920 तक वो काग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे। तथा 1929 में दोबारा मोती लाल नेहरू जी अध्यक्ष चुने गये और करीब एक वर्ष तक वो पार्टी के अध्यक्ष रहे। इन के बाद पं0 जवाहर लाल नेहरू ने ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन में काग्रेस का पदभार संभाला और 1930, 1936, 1937, 1951, 1953 तथा 1954 में काग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे।

सोनिया गॉधी ने देश के सब से पुराने और आधार वाले राजनीतिक दल कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर सब से अधिक समय तक बने रहने के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और श्रीमति इंदिरा गॉधी सहित नेहरूगॉधी परिवार के सभी रिकॉर्ड तोड दिये है। उन के नेतृत्व में उस काग्रेस में जान पड गई जिसे लोग मृतप्राय समझने लगे थे। केन्द्र में लगातार दो बार सोनिया के नेतृत्व में सरकार बनी और उत्तर प्रदेश जैसे देश के महत्तवपूर्ण राज्य में जहॉ काग्रेस चौथे स्थान पर पहॅूच गई थी वहा लोकसभा चुनाव में काग्रेस दूसरे पायदान पर खडी नजर आई। इस के अलावा बाबरी विध्वंस और विशोष रूप से नरसिम्हा राव के कार्यकाल में बिखरी काग्रेस को एकजुट रखने के साथ साथ देश के विभिन्न सेकुलर दलो से तालमेल कर यूनाईटेड प्रोग्रेसिव एलांइस बना कर पार्टी से विश्वासघात करने वालो को कठोर दण्ड और वफादार को सत्ता में भागीदार बनाकर अपने साथ और पास बिठाकर सोनियो ने खुद को एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में देश के सामने पेश किया। 15 सियासी दलो के जमघट को जोडे रखने और भाजपा सहित तमाम दलो को विपक्ष में बैठने के लिये मजबूर करने में सोनिया पूरी तरह से कामयाब रही है। विपक्ष द्वारा उठाया गया विदेशी मूल का मुद्दा आज पूरी तरह समाप्त हो चूका है सोनिया का सार्वजनिक रूप से मजाक उडाने वाले अमर सिॅह भी आज उन की तारीफो के पुल बांधने को मजबूर है। जिस शरद पवार ने पी ए संगमा के साथ मिलकर कभी सोनिया के विदेशी मूल का मुद्दा पूरे जोर शोर के साथ उठाया था, काग्रेस पार्टी को तोड़ा था ओर उन पर निजी टिप्पणीया की थी वो ही शरद पवार और उन ही संगमा जी का बेटा अगाथा आज सरकार में मंत्री है। सियासत में मौका पडने पर कडवाहट को भूल जाना और संगठन के लिये हमेशा उदार रहना जरूरी होता है सोनिया गॉधी ने इन गुणो को अपने अन्दर बहुत कम समय में उत्पादित किया है। सोनिया गॉधी कई बार कई मामलो में इंदिरा गॉधी से भी ज्यादा ताकतवर और कठोर नजर आती है कभी कभी तो ऐसा लगता है कि पूरे देश की सियासत और सियासी पार्टिया उन की जेब में है। कही से कोई चुनौती नजर ही नही आती

विश्व भर ने सोनिया का लोहा 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद तब माना जब देश के महत्तावपूर्ण प्रधानमंत्री के पद का ताज उन्होने अपने सर से उतार कर डा.मनमोहन सिॅह को पहना दिया। उन के इस त्याग की चारो ओर प्रसंशा होने के साथ साथ लोगो ने उन की तुलना महात्मा गॉधी तक से की। सोनिया को इस मायने में भी इस वक्त की अनोखी नेता कहा जा सकता है। पार्टी की निर्विवाद नेता होते हुए भी वे सरकार की नेता नही बनी प्रधानमंत्री पद मनमोहन सिॅह को सौपने का उन का फैसला सत्ता की लूट में चौकाने वाला था। सोनिया का यह फैसला एक ओर जहॉ सत्ता मोह से दूरी का प्रमाण था वही दूसरी ओर विनम्रता से अपनी सीमाऍ पहचानने के विवेक को भी दशार्ता है। सोनिया के इस फैसले से यकीनन काग्रेस को बहुत ज्यादा मजबूती मिली। आज भारत तेजी से बदल रहा है सरकार के लिये आज चुनौती के रूप में कश्मीर के पत्थरबाज नौजवान, नक्सली हिंसा, देश में बता भष्टाचार, देश के युवाओ को रोजगार के अवसर उपलब्धि कराना, भसमासुर की तरह मुॅह फाडे खडी मंहगॉई जैसी तमाम चुनौतिया सरकार के पाले में है। काग्रेस के सफल नेतृत्व के साथ साथ सोनिया और सोनिया के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन को इन तमाम बातो पर भी सफलता पानी होगी तभी ये सोनिया और यूपीए की कामयाबी होगी वरना ये पब्लिक कब 9 नम्बर से 99 पर ले आये कोई नही कह सकता। किसी शायर ने क्या खूब कहा है।

बुलंदियो पे पहुॅचना कोई कमाल नही

बुलंदियो पे ठहरना कमाल होता है।

नालायक औलादो सरकार का चाबुक जल्द

वरिष्ट नागरिक भरण पोषण अधिनियम 2007 के तहत अब बहुत जल्द बेटा अथवा बेटी पर अपने माता पिता व दादा दादी के भरण पोषण की अनिवार्य रूप से जिम्मेदारी होगी। इसे अमल में लाकर उ0 प्र0 प्रदेश सरकार इस पर कार्यवाही के लिये प्रत्येक जिले में एक एक ट्रिब्युनल व अपीलिएट ट्रिब्युनल गठित किया जायेगा। जिस में उपेक्षित मॉ बाप अथवा दादा दादी को अपनी अपेक्षा के बारे में ट्रिब्युनल को एक प्रार्थना पत्र देना होगा। जिस के प्राप्त होते ही ट्रिब्युनल कमाऊ पूतो और उन के न होने कि दशा में इन लोगो के पुत्रपुत्रियो का पक्ष सुनकर उन्हे उन के माता पिता अथवा दादा दादी व नाना नानी के लिये 10000 हजार रूपये महीना भरण पोषण का आदेश जारी कर सकता है इस कानून के तहत विदेश में रहने वाले पुत्र अथवा पुत्री भी नही बच पायेगे इस परिधि में  रिश्तेदार भी आयेगे जो अपने बुजुर्ग की सम्पत्ती पर हक तो जताते है पर रोटी कपडा देने के नाम पर इन बूे लोगो की उपेक्षा कर उन्हे दर दर भटकने पर मजबूर कर देते है। सरकार द्वारा उप जिलाधिकारियो को इन ट्रिब्युनल का अध्यक्ष बनाने की योजना है। सरकार ने इस के लिये जल्द ही समाज कल्याण विभाग व राजस्व परिषद से सहमति प्रदान करने को कहा गया है। परिषद की सहमति मिलते ही एक ट्रिब्युनल का गठन उ0 प्र0 सरकार के शासनादेश के अनुसार जल्द ही कर दिया जायेगा अन्यथा अध्यक्ष पद पर सेवानिवृत्त ऐसे अधिकारियो की नियुक्ति का प्रस्ताव भी मंत्रीमंडल के समक्ष पेश किया जायेगा जो कम से कम उप जिलाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए हो। इस विधेयक को अमल में लाने के लिये थोडा समय जरूर लग सकता है क्यो कि इस की औपचारिकताओ को पूरा करने में कुछ अधिक वक्त जरूर लगेगा।
लखपति, करोडपति बनते ही बेटी, बेटे और पोती पोते अपने बूे मॉ बाप दादा दादी को भूल जाते है। जब कि मॉ बाप औलाद की तरक्की के लिये एक वक्त रोटी खाकर एक वक्त भूखा रहकर उन के लिये स्कूल की फीस किताबे, कापिया जुटाते है। मेहनत मजदूरी कर के बच्चो को डाक्टर, इन्जीनियर, आईएस, पीसीएस बना कर समाज में मान सम्मान देते है। उन्ही बच्चो में से अधिकतर बच्चे सरकारी नौकरी पाने के बाद हाई सोसायटी से जुडते ही अपने गरीब मॉ बाप को धीरे धीरे भूलने लगते है। अपना सारा जीवन बच्चो पर निछावर करने वाले लोग बूपे में खुद को उस वक्त और ठगा सा महसूस करते है। जब औलाद नौकरी के कारण अपने इन बूे मॉ बाप को पडोसियो अथवा गॉव वालो के सहारे छोड कर शहरो में जा बसते है। और बूे मॉ बाप गॉवो कस्बो में पडे रोटी के एक एक निवाले को मोहताज हो जाते है हद तो तब हो जाती है जब मरते वक्त कोई अपना इन के मुॅह में पानी डालने वाला भी नही होता।
अब इस विषय में हम सोचे या न सोचे पर हमारे प्रदेश कि सरकार ने गम्भीरता से सोचना शुरू कर दिया है। मातापिता और वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण अधिनियम 2007 को उत्तर प्रदेश सरकार इसी वर्ष प्रदेश में लागू कर देना चाहती है। एक ओर जहॉ इस अधिनियम से घर परिवार बेटे बेटी पोते पोती चल अचल सम्पत्ती होने के बावजूद बुापे में घरो से निकाले गये बूे लोगो को कानूनी हक मिलेगा वही जिन लोगो का कोई नही है ऐसे वृद्वजनो को सरकार की ओर से प्रतिमाह 1500 रू0 मदद मिलेगी। माता पिता, वरिष्ट नागरिक भरण पोषण अधिनियम 2007 के तहत बेटा अथवा बेटी पर अपने माता पिता व दादा दादी के भरण पोषण की अनिवार्य रूप से जिम्मेदारी होगी। पीडित मॉ बाप या दादा दादी को भरणपोषण न मिलने कि दशा में सरकार द्वारा प्रत्येक जिले में बनाई गई ट्रिब्युनल कोर्ट के समक्ष प्रार्थना पत्र देने का अधिकार होगा। पक्षकार को सामान्य तौर पर नोटिस जारी होने के 90 दिन के भीतर ट्रिब्युनल मामले का निस्तारण करना होगा। बगैर पर्याप्त कारण के माता पिता दादा दादी के भरण पोषण के आदेश का उल्लंघन करने पर राशि की वसूली के लिये ट्रिब्युनल को वारंट जारी करने, जुर्माना लगाने और एक माह तक की सजा का अधिकार होगा। वही एक से अधिक बेटे अथवा बेटी में से किसी एक की मृत्यू हो जाने पर दूसरे की भरण पोषण कि जिम्मेदारी समाप्त नही होगी। अधिकतम भरण पोषण भत्ते का निर्धारण राज्य सरकार करेगी लेकिन ये राशि किसी भी दशा में 10000 हजार रूपये प्रति महीने से अधिक नही होगी।
ट्रिब्युनल के आदेश के खिलाफ अपील करने के लिये जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक एपीलिएट अर्थारिटी का गठन भी किया जायेगा। इस के साथ ही वे गरीब जिन का इस दुनिया में कोई नही या ऐसे बेटाबेटी व नातीपोते है जो अपनी पत्नी और बच्चो का ही पालन पोषण सही ग से नही कर पा रहे उन के ऐसे वृद्वो के भरण पोषण के लिये प्रत्येक माह करीब 1500 सौ रूपये सरकार खर्च करेगी। सरकार के द्वारा निसंतान बूे लोगो के ऊपर प्रत्येक माह खानपान पर 1200 रूपये, 150 रूपये चिकित्सा पर और 100 रूपये जेब खर्च तथा 50 रूपये महीना अन्य मदो पर व्यय किया जायेगा। इस विधेयक में सरकार द्वारा ऐसा प्रस्ताव भी रखा गया के जिन वृद्वजनो के पास रहने के लिये मकान नही होगे सरकार उन के रहने के लिये प्रत्येक जिले में आश्रमो का निर्माण अपने खर्च पर करायेगी। प्रदेश सरकार के इस प्रस्ताव से केन्द्र सरकार काफी उत्साहित है तथा इन वृद्वजनों के आवास व अन्य सुविधाओ पर आने वाले खर्च के सम्बंध में केन्द्र सरकार कुल खर्च का 75 फीसदी खुद वहन करने को तैयार भी हो गई है। केन्द्र सरकार ने योजना आयोग से इस सम्बन्ध में मंजूरी भी मांगी है। यदि समय रहते यह विधेयक पास हो जाता है तो अपने मॉ बाप, दादा दादी, नाना नानी को नजर अंदाज करने वाले देश के तमाम नालायको पर सरकार का चाबुक बहुत जल्द चल जायेगा और सब कुछ होने के बावजूद समाज में हीन दृष्टि से जीवन जी रहे बूे लोग भी अब पूरे आत्म समान से जीवन जी सकेगे।

राहुल क्यो प्रधानमंत्री नही बनते ?

भारतीय कि्रकेट टीम के कप्तान की जिम्मेदारिया कंधो पर आते ही सचिन की पारिया लडखडाने लगी थी सचिन, सचिन नही रहें थे। किक्रेट प्रेमी उन से ऊकताने लगे थे। उन के बल्ले ने रन उगलने बन्द कर दिये थे,मास्टर बलास्टर फुस हो गये थे। पर कप्तान की जिम्मेदारी कंधे से हटते ही सचिन सचिन बन गये और उन का बल्ला रन के साथ ही तमाम रिकॉर्ड बनाने लगा। काग्रेस पाट्री के राजकुमार राहुल गॉधी ने शायद ये पूरा तमाशा बहुत ही संजीदगी से देखा और इस से सबक भी लिया तभी तो जब जब यूपीए की कमान राहुल को देने की बात आती है राहुल कन्नी काट जाते है। आखिर क्यो? राहुल गॉधी प्रधानमंत्री नही बनना चाहते क्या वो देश में फैले आतंकवाद से डरते है या फिर आज जिस प्रकार की राजनीति हो चली है उन्हे डर है कही ये उन की पाक साफ छवि और कपडे भी दागदार न कर दे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह सहित तमाम वरिष्ट काग्रेसी राजनेता राहुल से कई बार कैबिनेट में शामिल होने का आग्रह कर चुके है इस सब के लिये राहुल पूरी तरह योग्य भी है,लेकिन मंत्रीमंडल में शामिल होने को लेकर वो हमेशा अनिच्छुक रहते हैं हर बार उन का एक ही जवाब होता है ॔॔वह पाट्री संगठन को मजबूती देने के काम को पूरे समय के साथ तनमन से करना चाहते है।
यह बात भी एकदम सोलह आना सच है कि नरसिम्हा राव के हाथो पिट और मिट चुकी कागेस को बहुत कम समय में जिस प्रकार से एक कुशल राजनेता के रूप में राहुल और सोनिया गॉधी ने संजीवनी प्रदान की वो काबिले तारीफ है। वही दूसरी ओर राहुल ने काग्रेस के एक वरिष्ट नेता को पूरे मान सम्मान के साथ अपनी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा रखा है। जब कि मनमोहन सिॅह जी को हर समय इस ओर से चिंता जरूर रहती होगी कि न जाने युवराज कब प्रधानमंत्री बनने का मन बना ले किन्तु आज जब सियासत में सारा किस्सा ही कुर्सी का है तब कुर्सी से इस प्रकार राहुल और सोनिया गॉधी का विमुख होना इन दोनो के सियासी और समाजी कद को काफी ऊॅचा करता है। ये ही वजह है कि राहुल गॉधी और सोनिया पर आज तक कोई भी विपक्षी नेता या कोई पाट्री घटिया इल्जाम नही लगा सकी। पिछले दिनो दलितो की बस्ती का जिस प्रकार दौरा कर राहुल ने मायावती और कई सियासी पाट्रियो की नीन्द उडाई वो भी चौकाने वाली बात है।
यू तो काग्रेस देश की सब से पुरानी सियासी पाट्री होने के साथ साथ अपने 125वें वर्ष में प्रवेश भी कर चुकी है यानी एक बहुत ही लम्बा सियासी अनुभव इस पाट्री को प्राप्त है। काग्रेस ने आजादी के 62 साल में लगभग 50 साल देश पर राज किया है। आजादी के बाद से लगातार 40 साल देश की सत्ता काग्रेस के पास रही फिलहाल यूपीए गठबन्धन के जरये काग्रेस केन्द्र की सत्ता पर काबिज है। राहुल गॉधी ने देश के पिछडे हुए गॉवो में जा जाकर जिस प्रकार से लोगो का दुख दर्द सूना, दलितो और गरीब लोगो के चूल्हे पर बनी कच्ची पक्की रोटी खाई,उन के साथ झोपडी में कभी सोकर कभी जागकर राते काटी, और उन्ही लोगो के बीच बैठ कर उन्ही के विकास की योजनाये बनाई इस सब का फायदा कही न कही आने वाले चुनावो में काग्रेस को जरूर मिलना है।
11 मई 2010 को दुनिया के सब से अमीर शख्सो में शुमार माईक्रोसाफट के चेयरमैन बिल गेटस अमेठी के शाहग में राहुल संग जमीन पर दरी बिछा कर चौपाल लगाकर बैठे। राहुल ने इस चौपाल में अमेठी के लोगो का दुःख दर्द सूना ग्रामीण महिलाओ ने बिल गेटस से उन के अमीर होने का राज पूछा तो वही बिल गेटस ने महिलाओ से स्वास्थ्य व विकास को लेकर सवाल किये। लोगो का दुःख दर्द बडे ध्यान से सुनकर महिला स्वावलंबन की स्थिति देखी और स्वास्थ्य सुविधाओ का बारीकी से मुआयना किया। इस अवसर पर बिल गेटस ने कहा कि उन का फाउंडेशन शिशू मृत्यू दर कम करने के लिये एक टीका बना रहा है जिसे जल्द ही अमेठी के लोगो के साथ साथ पूरे भारत के लोगो को उपलब्ध कराया जायेगा। इस दौरान उत्तर प्रदेश में गरीब महिलाओ की स्थिति, बाल विवाह,ज्यादा संताने, पलायन, परदा प्रथा, जैसे मुद्दे उठे। इस अवसर पर बिल गेटस ने महिलाओ को ये भी सलाह दी की वो खुद तो कम्प्यूटर सीखे ही साथ ही अपने बच्चो को कम्प्यूटर का ज्ञान जरूर दिलाये।
आज काग्रेस के सामने सरकार चलाने में सब से बडी समस्या जो आ रही है वो न तो देश में भस्मासुर जैसा मुॅह फाडे खडी महंगाई है और न ही देश का आर्थिक संकट आज सरकार के सामने जो सब से बडी समस्या है वो है मंत्रियो के अनुशासित न होने की। हर दूसरे तीसरे दिन कोई न कोई मंत्री अपनी सरकार के खिलाफ दूसरे मंत्रियो के मंत्रालयो के कामकाज की आलोचना कर सार्वजनिक ब्यान दे देता है। शशी थरूर और जयराम रमेश ने फिलहाल सरकार की ज्यादा किरकिरी कर रखी है। शशी थरूर तो आईपीएल मुद्दे पर अपनी मंत्री पद की कुर्सी गंवा चुके है। पर जयराम रमेश भोपाल के एक दीक्षान्त समारोह में गाउन उतार फेंकने के साथ ही काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गॉधी को काग्रेस की राबडी बताने साथ ही गंदगी के लिये अगर नोबेल पुरस्कार होता तो भारत को मिलता, व जिन्ना की तुलना भगवान शंकर से कर काग्रेस को कई बार मुश्किलो में डाला चुके है। पिछले दिनो चीन दौरे पर गये जयराम रमेश द्वारा चीन में गृहमंत्रालय की जिस प्रकार आलोचना कि गई उस से सरकार के साथ साथ विपक्ष भी खासा नाराज है। भाजपा के पाट्री प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि विदेशी धरती पर जाकर अपनी ही सरकार की आलोचना करने के लिये पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिये। इस से एक ओर जहॉ सरकार की किरकिरी होती है वही मनमोहन सिॅह के वजूद का भी पता चलने लगा है। ऐसे में सोनिया या फिर राहुल को प्रधानमंत्री पद पर बैठना चाहिये क्यो कि मनमोहन सिॅह में अब वों दम खम नही रहा कि वो इन बडबोले मंत्रियो पर लगाम कस सके, बती मंहगाई को रोक सके। नक्सली हमलो को रोकने में नाकामयाब मनमोहन सिॅह के नेतृत्व वाली ये सरकार अपने एक साल के कार्यकाल में हर एक क्षेत्र में विफल रही है। भोपाल गैस त्रासदी में मरे 15000 हजार लोगो की मौत के छीटे और वारेन एंडरसन को देश से बाहर भागाने में मदद करने में काग्रेस की जिस प्रकार किरकिरी हो रही है तथा म्त लोगो की मौत का जिम्मेदारी आज पूरा देश काग्रेस को बता कर इस पूरा हादसे को लोग काग्रेस के सर म रहे है। इस सब से आना वाला समय कागे्रस के लिये अच्छा नही होगा। ऐसे में आज देश और काग्रेस को बचाने के लिये राहुल का प्रधानमंत्री पद पर बैठना बहुत जरूरी है

काला धन : मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त

आर्थिक तरक्की के मामले में नए मुकाम बननाने का दावा करने वाला भारत आज भ्रष्टाचार, घोटालो, और काले धन के मामले में नित नये नये कीर्तिमान बना रहा है। आज माननीय उच्च न्यायालय, हमारी सरकार, देश के वरिष्ठ अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, सरकारी नुमाईन्दे व विपक्ष सहित पूरा भारत काले धन की समस्या से चिंतित है कि आखिर किस प्रकार इस समस्या से निबटा जाये साथ ही सरकार द्वारा इस मसले पर भी जोर आजमाईश की जा रही है की आखिर सरकार उन लोगो के नामो को किस प्रकार सार्वजनिक करे जिन भारतीयो के नाम विदेशी बैंको में कुबेर का खजाना जमा है। पर इस सब के साथ ही सरकार के सामने इक बडी चिंता ये भी आ रही है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद ब रहा है, देश भी संपन्न हो रहा है पर देश का एक बडा वर्ग निरंतर गरीब होता जा रहा है दाने दाने को मोहताज होता जा रहा है। कल कारखानो में कर्मचारियो की छटनी हो रही है देश के कर्णधार नौजवान डिग्री लिये एक आफिस से दूसरे आफिस नौकरी के लिये चक्कर काट रहे है हर जगह नोवेकंसी का बोर्ड लगा है। देश में संसाधन बे है हम मजबूत हुए है फिर भी ऐसा आखिर ऐसा क्यो हो रहा है। देश के बडे बडे अर्थशास्त्री सोच सोचकर परेशान है। दरअसल इस मुद्दे पर देश के कुछ प्रभावशाली अर्थशास्त्रीयो का ये मानना है कि देश के कुछ प्रभावशाली और भष्ट लोगो ने देश का एक बडा धन विदेशी बैंको में जमा करा रखा है। जिस पैसे से भारत तरक्की करता, कल कारखाने तरक्की के गीत गाते, जिस पैसे से स्वास्थ्य सेवाए देशवासियो को मिलती, ग्रामीण इलाको में सडको का जाल बुना जाता आज वो पैसा स्विस बैंक की कालकोठरी में बंद है और सरकार चुप है। राष्ट्र संघ में इस मुद्दे पर वर्षो चर्चा हुई पर नतीजा कुछ नही।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनो काला धन मामले में केन्द्र सरकार के ुलमुल रवैये पर सख्त एतराज जताते हुए कहा था की विदेशी बैंको में जमा काला धन राष्ट्रीय सम्पत्ति की लूट है। इस के साथ ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने विदेशी बैंको में जमा काले धन का स्रोत, हथियार सौदो और मादक पदार्थो की तस्करी से देश को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई। एक नई रिर्पोट के मुताबिक वष 2000 से 2008 के दौरान 104 अरब डालर(करीब 4680अरब रूपये)काला घन भारत से बाहर भेजा गया और इस के साथ ही काला धन विदेश भेजने वाले एशियाई देशो की सूची में भारत का स्थान पॉचवा थां। मात्र 35 हजार की आबादी और 61.8 वर्गमील की परिधि वाला देश लिश्टेन्स्टाइन दुनिया की अर्थ व्यवस्था को चूसने की पूरी ताकत रखता है। स्विट्जरलैंड और आस्ट्रिेया के बीच बसे भारत के किसी कस्बे से भी छोटे इस देश के राजा ॔॔प्रिंस एलोइस’’ एलटीजी बैंक के संचालक है। यहा का पर्यटन कार्यलय ही पर्यटक को पासपोर्ट पर मात्र दो फ्रांक(लगभग 96 रूप्ये)लेकर वीजा लग देता है। आप यहा अपने साथ लाया कितना भी धन लिश्टेन्स्टाईन प्रिंसपलिटी के बैंको में सुरक्षित जमा कर सकते है। यहॉ किसी भी व्यक्ति द्वारा लाये गये पैसे का स्रोत नही पूछा जाता। अगर आप इस धन को अपने नाम जमा नही करना चाहे तो आप इसे मात्र 0.1 प्रतिशत के मामूली ट्रांसफर चार्ज पर आप बेनामी ंग से शाही परिवार के हवाले भी कर सकते है। जिस की निकासी इसी चार्ज पर कही भी संभव है। आयकर इतना मामूली है कि दुनिया भर के प्रभावशाली और भष्ट लोग यहा भागे चले आते है। इस कस्बेनुमा देश की बस ये ही हकीकत और इतनी सी कहानी है यहॉ पैसे की खेती होती है और पैसे की फसल काटी जाती है ये ही इस छोटे से देश का फंडा है जिस में आज बडे बडे देश उलझे है।
ग्लोबल फिनांशियल इंटेग्रिटी वाशिंगटनडीसी आधारित एक संस्था है। यह संस्था अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में पारदिशर्ता को बावा देने के मकसद से अनुसंधान करती है और सुझाव भी देती है। इस संस्था द्वारा किए गये अध्यन के मुताबिक 2000 से 2008 के बीच नौ वर्षो में एशिया के जिन देशो ने सब से ज्यादा काला धन विदेश भेजा है उन में पहले पॉच देश है मलेशिया, भारत, चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस के नाम शामिल है। संस्था की रिपोंर्ट के मुताबिक इन नौ सालो में चीन ने 2.2 खरब डॉलर, मलेशिया ने 291 अीब डॉलर, फिलीपींस ने 109 अरब डॉलर, इंडोनेशिया ने 104 अरब डॉलर विदेश भेजे। वही इस रिपोर्ट में कहा गया कि भारत ने भी इंडोनेशिया के बराबर काला धन विदेश भेजा। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि औसतन एशिया से जितना काला धन विदेश भेजा जाता है उस का 95.5 प्रतिशतइन्ही पॉच देशो का होता है। यदि सभी विकासशील देशो द्वारा भेजे जाने वाले कुल काले धन के संदर्भ में देखे तो उस में इन पॉच देशो का हिस्सा करीब 44.9 प्रतिशत ठहरता है। हालांकि विकासशील देशो द्वारा भेजे जाने वाले कुल धन के संदर्भ में इन अव्वल पॉच देशो की हिस्सेदारी में गिरावट देखाी जा रही है। इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि वर्ष 2000 में इन पॉच देशो की हिस्सेदारी 53.3 प्रतिशत थी, लेकिन आठ वर्ष बाद 2008 में ये हिस्सेदारी 36.9 प्रतिशत दर्ज की गई। वही स्विस बैंक एसोसिएशन की वर्ष 2006 की रिर्पोट के अनुसार चीन, रूस, भारत, ब्रिटेन, युक्रेन केवल इन पॉच देशो के लोगो द्वारा स्विस बैंक में 251.2 करोड डालर जमा कराया गया है जिन में से केवल भारत के प्रभावशाली और भ्रष्ट लोगो का 145.6 करोड डालर इस बैंक में जमा है।
भारत का इतना अधिक धन विदेशी बैंको में जमा है और मौजूदा सरकार खामोश है। पिछले दिनो घोडा फार्म मालिक हसन अली के दस विदेशी बैंक खातो का पता चला था। जिस पर सरकार ने हसन अली पर पचॉस हजार करोड रूपये की आयकर देनदारी निकाली थी कुछ छापे भी डाले गये थे। पर कुछ बडे नेताओ के उन से संबध निकल आये और मामला दबा दिया गया। सरकार के शीर्ष नेताओ और देश के प्रधानमंत्री की ईमानदरी पर किसी को शक नही, लेकिन सरकार भ्रष्टाचार और काले धन के मामले में क्यो रक्षात्मक नजर आती है। लूट के इस धन का बहुत सा भाग जिस स्विस बैंको में जमा है उस के प्रतिनिधि ने राष्ट्रसंघ में घोषणा की कि वह यह धन वापस करना चाहता है पर मनमोहन सरकार इस संबध में कोई उचित कार्यवाही करने को तैयार ही नही है आखिर क्यो ?।

ताज सिर्फ मौहब्बत की निशानी है

एक शहंशाह ने बनवा के हॅसी ताज महल, हम गरीबो की मौहब्बत का उडाया है मजाक’’ बहुत साल पहले किसी शायर ने क्या खूब कहा था। वास्तव में आज ताज महल गरीबो का मजाक उडा रहा है। हो सकता है के कल ये ताज अपनी हद के भीतर गरीब लोगो को घुसने भी न दे। जिस प्रेम के बेमिसाल प्रतीक ताज महल को देखकर दुनिया भर के अमीर गरीब प्रेमी युगल कई जन्मो तक साथ साथ जीने मरने की कसमे खाते है, उस ताज को अब सिर्फ और सिर्फ दुनिया के अमीर लोगो तक सीमित रखने की बात की जा रही है। कुछ सिर फिरे लोगो ने ये तर्क दिया है की गरीब लोगो के स्पशर करने से इस की खुबसूरती में कमी आ रही है। लिहाजा ताज को ज्यादा दिनो तक सुरखित रखने इस की उम्र बाने के लिये इसे गरीबो से दूर रखा जाये। सिर्फ दुनिया के रईसो और सेलिब्रीटी जैसे गिने चुने लोगो के देखने और इस में घूमने के लिये इसे सीमित किया जाना चाहिये।

ब्रिटेन की प्रतिष्ठित फ्यूचा लेबोरेटरी के एक नये अध्यन में दावा किया गया है की भारत में ताज महल, मिस्र के पिरामिड और वेनिस को केवल दुनिया के धनी वर्ग के लिये मौज मस्ती और खेल का मैदान बना दिया जाना चाहिये, ताकि उन्हे संरक्षित किया जा सके। ब्रिटेन की इस प्रतिष्ठित फ्यूचा लेबोरेटरी ने ये भी चेतावनी दी है कि इन विश्व विरासत स्थलो को बचाने के लिये यदि यह तरीका जल्द से जल्द नही अपनाया गया तो पर्यटन के भारी दबाव के कारण हम अगले 20 वर्षा में अपनी इन विरासतो को खो देगे। ॔॔डेली एक्सप्रेस’’ में एक रिर्पोट प्रकाशित की गई है जिस में इस प्रकार की वकालत की गई है। इस रिर्पोट और इस मुद्दे के दुनिया भर में उछलने के बाद सब से बडा सवाल ये उठता है कि क्या ऐसा कर पाना संभव हो सकता है हिन्दुस्तान में तो नामुमकिन है क्यो की जब से ताज बना तब से आज तक हिन्दुस्तान के हर अमीर गरीब के दिलो में बसा है गरीब लोगो की झोपडियो में टंगा है। ताज होटल मुम्बई में शायद गरीब लोगो के प्रवेश करने पर प्रतिबंध हो मगर असली ताज हर रोज हजारो गरीब लोगो से बिना भेद भाव के रोज मिलता है। इस के आंगन में जब प्रेमी युगल हाथ में हाथ लिये बाहो में बाहे डाले एक दूसरे को निहारते है तो ताज महल के रूप में खडे शाहजहॉ और मुमताज महल को अपनी मौहब्बत याद आ जाती है। इस के बगीचो में जब गरीब दयावती और रजिया के बच्चे शोर मचाते हुए इधर से उधर खुश होकर दौडते है तो ताज कितना खुश होता है इस बात का अंदाजा ये अंग्रेज कभी नही लगा सकते। क्यो की इन लोगो में वो मौहब्बत कहा जो हम हिन्दुस्तानियो में हीर राझा लैला मजनू शीरी फराद और राधा कृष्ण और न जाने कितनी अनगिनत मौहब्बत भरे किस्से कहानिया सुना कर हमारे पूर्वजो ने हमारे दिलो में कूट कूट कर भरी है।

हम हर रोज देखते और सुनते रहते है कि विदेशो में घर परिवार शादी विवाह के नाम पर क्या क्या होता है और क्या क्या हो रहा है जो लोग ठीक से अपना घर परिवार नही बना सकते वो भला ताज का महत्तव क्या जानेगे। ये लोग कितना प्यार को महत्तव देते है आये दिन हिन्दुस्तानी अखबारो में इन की शादियो से पहले तलाक की खबरे छप जाती है। क्या दुनिया के अमीर लोगो के पास ताज निहारने के लिये वक्त है क्या अमीर लोग ताज को उस मौहब्बत भरी निगाह से देख सकते है जिस निगाह से एक गरीब उसे निहारता है और ताज निहारते निहारते अपने सारे दुख दर्द पीडा़ सब कुछ भूल जाता है। नही शायद कभी नही। क्यो कि इन अमीर लोग के पास तो अपने सगे बच्चे को निहारने का वक्त नही गुजरे कुछ वर्षा मे अमीर लोगो के घरो की तसवीर तेजी से बदली है पिता को बच्चो से बात करने की उनके पास बैठने और पाई के बारे में पूछने की फुरसत नही। मॉ भी किटटी पार्टियो ,शापिंग नौकरी में उलझी रहती है। आज व्यापार के आगे इन अमीर लोगो को कुछ नजर ही नही आता। जो लोग अपने घर की सुन्दरता और रिश्तो का ख्याल नही रख पाते उन्हे हमारे ताज की फिक्र क्यो हो रही है दरअसल इन अमीर लोगो का कभी परिवार ही नही बन पाता बच्चे जन्म लेने के बाद आया के भरोसे थोडा बडे होने पर बोड़िग स्कूल, बच्चा कब बडा हुआ कैसे हुआ इन लोगो को नही पता इन्होने तो उस के हर दिन की कीमत अदा कर दी। इन लोगो के परिवार में दादा दादी ज्यादातर घरो में होते ही नही। ज्यादातर हाई सोसायटी घरो में एक अकेला बच्चा होता है। अकेला बच्चा क्या करे किस से बोले किस के संग खेले। आया के साथ माली के साथ। पडोस और पडोसी से इन पॉश कालोनी वालो का कोई वास्ता नही होता। बच्चा अकेलेपन ,सन्नाटे ,घुटन और उपेक्षा के बीच बडा होता है। बच्चे को ना तो अपने मिलते है और ना ही अपनापन। लेकिन उम्र तो अपना फर्ज निभाती है बडे होते बच्चो को जब प्यार और किसी के साथ ,सहारे की जरूरत पडती है तब इन अमीर लोगो के घरो में उस के पास मॉ बाप चाचा चाची दादा दादी या भाई बहन नही होते। होता है अकेलापन पागल कर देने वाली तन्हाई या फिर उस के साथ उल्टी सीधी हरकते करने वाले घरेलू नौकर।

हर रोज ताज को निहारने दुनिया के कोने कोने से हजारो लोग आते है लेकिन आज ताज महल अगर बोल पाता तो उस से पूछा जा सकता था कि उसे अपने आंगन में आये अमीर से मौहब्बत है या गरीब से। ताज पर इस प्रकार का प्रतिबंध लगाना की बात करना बहुत ही घटिया मानसिकता की बात है। ताज किसी अमीर या गरीब की जागीर नही ताज सिर्फ और सिर्फ मौहब्बत की निशानी है। इन अंग्रेजो ने हमे बरसो गुलाम बनाये रखा ये फिर से नई नई चाले चल रहे है हम हिन्दुस्तानियो के बीच हिन्दू मुस्लिम के बीज बोकर हमे आज तक लडा रहे है अब अमीर गरीब के बीज बोकर हमे फिर बाटना चाहते है। हमे और हमारी सरकार को इन की ऐसी किसी भी रिर्पोट से इत्तेफाक नही करना चाहिये क्यो कि हम हिन्दुस्तानी मौहब्बत के पुजारी है और ताज महल मौहब्बत का मंदिर इस में आने जाने वाला कैसा अमीर कैसा गरीब अरे वो तो मौहब्बत का पुजारी है जिस की आराधना, साधना सिर्फ और सिर्फ मौहब्बत है। गरीब हो या अमीर सब मिल कर बोले वाह ताज!

विकीलीक और राजनयिकों का साइबर रोजनामचा

मजेदार बात है हमारी संसद अपने दोस्त राष्ट्र अमेरिका के राजनयिकों के केबलों पर संसद का बेशकीमती समय बर्बाद कर रही है। हम हर मामले में अमेरिका की नकल करते हैं लेकिन केबल के मामले में हमने अमेरिकी सीनेट की नकल नहीं की , हाँ, अमेरिका के शासकों की नकल करते हुए उसके बारे में मूल्यनिर्णय किया,फतबेबाजी की, यहां तक कि एक मंत्री ने तो विकीलीक को साइबर आतंकवाद तक कह डाला। उल्लेखनीय है अमेरिका में भी कई नेताओं ने जिनमें वहां के उपराष्ट्रपति भी शामिल हैं, उन्होंने जूलियन असांचे को साइबर आतंकवादी और देशद्रोही तक कहा था। उन जनाब की नकल करते हुए भारत की संसद में कांग्रेस के एकमंत्री ने विकीलीक को साइबर आतंकवाद कहा है। प्रधानमंत्री ने विकीलीक से एकदम पल्ला झाड़ लिया है। कांग्रेस और उनके सिपहसालार मंत्रियों-वकीलों को विकीलीक में कोई भी सारवान सत्य और तथ्य नजर नहीं आया। यह बात दीगर है कि वे अपनी रक्षा के सभी सूत्र और भाजपा पर हमले करने के सभी औजार विकीलीक के केबलों से ही जुटाकर बोल रहे हैं।

    विकीलीक के भारत संबंधी या अन्य केबलों के बारे में यह कहा जा सकता है कि ये सत्य केबल हैं। इनमें व्यक्त की गई राय भी संबंधित व्यक्ति या राजदूत या राजनयिक की है। ये वैध केबल हैं। लेकिन ये राजनयिकों के केबल हैं। इन्हें राजनयिक साइबर रोजनामचे के रूप में देखा जाना चाहिए। ये न तो नीति हैं,न प्रमाण हैं, और न ये आतंकी संदेश हैं और न इनका प्रसारण या प्रकाशन साइबर आतंकवाद है। ये तो मात्र अमेरिकी राजनयिकों का साइबर रोजनामचा है। ये मात्र साइबर कम्युनिकेशन हैं। राजनयिक जैसा देख-सुन रहे हैं उसकी दैनन्दिन हू-ब-हू रिपोर्टिंग अपने विदेश विभाग को कर रहे है। इसमें राजनयिकों की अपनी राय कम और अन्य घटनाओं के बारे में उनके द्वारा एकत्रित की गई सूचनाएं,जानकारियां और विश्लेषण हैं।

   विकीलीक वास्तव अर्थ में गुप्त राजनयिक कम्युनिकेशन का उदघाटन है। लेकिन अमेरिकी सिस्टम में यह सहज,सामान्य और वैध प्रक्रिया है औऱ विकीलीक के अधिकांश केबल जूलियन असांजे ने वैध तरीकों से हासिल किए हैं। अमेरिका एक अवधि के बाद गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए जाते हैं ,उन्हें कोई भी व्यक्ति हासिल कर सकता है। इनमें कुछ हैं जो अवैध स्रोतों से हासिल किए हैं। भारत में गोपनीय दस्तावेज सरकार कभी सार्वजनिक नहीं करती ,वे उन्हें जनता को देने की बजाय,लाइब्रेरी को सौंपने की बजाय दीमकों के हवाले करना,आग के हवाले करना पसंद करते हैं।

       अमेरिकी राजनयिक कैसे सूचनाएं एकत्रित करते हैं और वे इन सूचनाओं का क्या करते हैं, क्यों करते हैं आदि चीजों के अलावा राजनयिक की आंखें और मन किन चीजों में उलझा रहता है,इन सबका आईना है विकीलीक केबल। इन लीक में सनसनीखेज कुछ भी नहीं है। आम लोगों को सनसनीखेज इसलिए लग सकता है क्योंकि आम लोग विदेशनीति में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते।आम लोगों की बात छोड़ दें, हमारा राष्ट्रीय मीडिया भी विदेश नीति में खास रूचि नहीं लेता। हमें पता करना चाहिए कि कितने ऐसे अखबार या मीडिया समूह या घराने हैं जिनके दुनिया के सभी बड़े देशों और घटनास्थलों पर नियमित संवाददाता काम कर रहे हैं ? हमें ज्यादातर अखबार विदेशी समाचार एजेंसियों से प्राप्त समाचारों से भरे रहते हैं। विदेश की खबरों को हम भारत की नहीं विदेशी लोगों की आंखों से देखते और पढ़ते रहे हैं। फलतः हमें देशी आंखों से देखा विदेश नहीं विदेशी आंखों से देखा विदेश देखने में सुंदर और लुभावना लगता है। इसीलिए विकीलीक भी अपील कर रहा है।

   हमारे देशी देशभक्त मीडिया में सप्ताह में विदेश नीति पर कितने विवेचनात्मक लेख,खबरें संबंधित पत्रकारों से लिखवाते हैं। सच यह है कि अधिकांश मीडिया घरानों के विदेशों में कोई नियमित संवाददाता नहीं हैं। आमतौर पर वे विदेशनीति के सवालों पर पत्रकारों की बजाय भारत के पूर्व राजनयिकों और सरकारी-अर्द्ध सरकारी थिंकटैंकों में काम करने वाले सरकारी पंडितों से लेख लिखवाते हैं। इन लेखों में अंदर -खाते की पेचीदगियों का जिक्र या रहस्योदघाटन कभी नहीं होता। ऐसी अवस्था में अमेरिकी राजनयिकों की केबलों पर हंगामा और संसद में भीषण चर्चा गले नहीं उतरती, यह संसद का समय बर्बाद करना है। जिन दलों की अमेरिका की राजनीति में रूचि है और अमेरिकी केबलों के आधार जो हंगामा कर रहे हैं ,खासकर भाजपा के सांसद कभी ठंडे दिमाग से सोचें कि वे पार्टी मुखपत्र और संघ परिवार के माध्यमों में विदेश नीति पर कितनी सामग्री नियमित छापते रहे हैं और उसमें भी कितनी रूटिन सामग्री है और कितनी मौलिक,यह भी देखा जाना चाहिए।

    विकीलीक के केबल प्रकाशित करके जूलियन असांजे ने एक बड़ा काम किया है उसने विदेशनीति को विश्वमीडिया का प्रधान एजेण्डा बनाया है। खासकर अमेरिकी विदेश नीति के मूल्यांकन के सवालों को खड़ा कर दिया है। वहीं पर दैनिक हिन्दू ने विकीलीक के केबलों का प्रकाशन करके विदेशनीति की अहमियत की ओर ध्यान खींचा है। उस बड़े सूचना प्रवाह की ओर ध्यान खींचा है जो अमेरिकी दूतावास से अमेरिका की ओर प्रवाहित हो रहा है और फिर पलटकर भारत की राजनीति और राजनीतिज्ञों को अपने घेरे में ले रहा है।

    कायदे से हिन्दू को उन पत्रकारों-लेखकों-बुद्धिजीवियों आदि को भी एक्सपोज करना चाहिए जो अमेरिका के पैरोल पर हैं और भारत में अमेरिकी प्रचारक के रूप में काम कर रहे हैं,कम से कम भारत के नागरिकों को उन महानुभावों की कलम की पोल से वाकिफ कराया जाना चाहिए।

     भारत के अंदर एक अच्छा-खासा तबका है जो अमेरिका के लिए विदेश नीति के मामलों में भारत में पैरोकारी करता रहा है। लिखने से लेकर नेताओं को पटाने तक का काम करता रहा है। इन लोगों की जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए।

     काफी अर्सा पहले संभवतः 1981-82 में गिरफ्तार किए डबल-ट्रिपिल जासूस रामस्वरूप के घर से सीबीआई ने एक ट्रक गोपनीय सरकारी दस्तावेज पकड़े थे, ये जनाब बहुत कम पैसे में विदेशी जासूसों और दूतावासों को केन्द्र सरकार की गोपनीय फाइलें मुहैय्या कराने का काम किया करते थे। पता नहीं ये जनाब जेल में हैं बाहर हैं या मर गए ? लेकिन इन जनाब को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। इनके यहाँ से जो एकट्रक गोपनीय दस्तावेज मिले थे उनमें जेएनयू के अनेक लब्धप्रतिष्ठित प्रोफेसरों के नाम भीथे जिनको सीआईए से सीधे पैसा मिलता था और इनमें से कई लोग भारत सरकार के गलियारों में नीति निर्धारकों बन गए। राजदूत की कुर्सियों पर विराजमान हो गए। रामस्वरूप के यहां पाए गए दस्तावेजों में पत्रकारों की भी सूची थी। नेताओं,युवानेताओं की भी सूची मिली थी,जिन्हें सीधे सीआईए से पैसा मिलता था और ये बातें सीआईए के वैध कागजों में पाई गई थीं । मैं उन दिनों जेएनयू में पढ़ता था और वहां की सक्रिय छात्र राजनीति का हिस्सा था। हमने सभी छात्रों के सामने उन चेहरों को बेनकाब भी किया था जो सीआईए के लिए काम करते थे। इस बात को रखने का मकसद यह है कि अमेरिका की हमारे देश की राजनीति में आज ही दिलचस्पी नहीं पैदा हुई,यह दिलचस्पी आरंभ से है।शीतयुद्ध के जमाने में तो और भी गहरी दिलचस्पी थी। चूंकि विकीलीक ने 1960 के बाद के अमेरिका के अधिकांश गोपनीय दस्तावेज,केबल आदि हासिल किए हैं अतः कोशिश करके शीतयुद्ध के दौरान और बाद के केबलों को सामने लाया जाना चाहिए। इस तरह के केबलों से वे परतें खुल रही हैं जिन्हें अमेरिकीतंत्र ने हमारे देश में नेताओं,मीडिया और व्यापारियों में बिछा दिया है।

    विकीलीक के केबल अमेरिकी तंत्र की कार्यप्रणाली,खासकर राजनयिकों की दैनंदिन कार्यप्रणाली और विचारधारात्मक मानसिक संरचनाओं को समझने का पुख्ता आधार देते हैं। ये राजनयिक प्रशिक्षणशास्त्र की अनेक नई दिशाओं पर रोशनी डाल रहे हैं। इन केबलों से यह भी पता चल रहा है कि अमेरिकी राजनयिक कूटनीतिज्ञ होने के साथ एक अच्छे जनसंपर्क अधिकारी भी होते हैं। इसलिए वे अच्छे अमेरिकी विचारों के प्रसारक होते हैं. अन्य को फुसलाने और पटाने की कला में निष्णात होते हैं।

पुरूष भी होते है पत्नियो द्वारा प्रताड़ित

पति और सास ने बेचारी पूनम का रोज रोज के लडाई झगडे मारपीट से जीना दुश्वार कर रखा है। ये शब्द हमे हर रोज रोज कही न कही सुनने को जरूर मिलते है। पर कही ये सुनने को नही मिलता कि पूनम ने अपने पति और सास का जीना दुश्वार कर रखा है क्यो ? क्या बहू द्वारा पति और सास प्रतांडित नही होते। होते है पर पुरूष प्रधान समाज होते हुए भी ये बात घर से बाहर समाज में नही पहॅुच पाती। तभी तो सीधे साधे पुरूष चुपचाप खानदान की इज्जत की खातिर अपने बच्चो इज्जत की खातिर समझौता कर घरेलू हिंसा का शिकार होते रहते है। हद तो तब हो जाती है जब पत्नी और ससुराल वालो द्वारा ऐसे पुरूषो को दहेज एक्ट में फॅसा कर जेल तक भिजवा दिया जाता है। अगस्त 2010 में दिल्ली यात्रा के दौरान मैने जगह जगह के कई संगठनो के विज्ञापनो द्वारा ये लिखा देखा ॔॔पत्नी सताये तो हमे बताये’’ पने के बाद लगा कि अब ये आवाज पूरी ताकत से उठने लगी है। लेकिन इस आवाज और ऐसे विज्ञापनो कि जरूरत दिल्ली से ज्यादा छोटे छोटे कस्बो और ग्रामीण इलाको को ज्यादा है। दरअसल पिछले कुछ सालो से केबिल और डिश के द्वारा घरो में पहुॅच रहे टीवी सीरिलो के कारण ऐसे मामलो में लगातार बडी तादात में इजाफा हो रहा है। जिस में पुरूषो को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड रहा है। इन घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले पुरूषो के लिये कुछ समाजसेवी संगठन बन रहे है ये एक अच्छी पहल है। क्यो कि महिलाओ के मुकाबले पुरूष घरेलू हिंसा का सब से भयावह पहलू यह है कि पुरूषो के खिलाफ होने वाली हिंसा की बात न तो कोई मानता है और न ही पुलिस इस की शिकायत दर्ज करती है और न ही कोई सरकार द्वारा महिला आयोग की तरह पुरूष आयोग का गठन अभी तक किया गया है। हॅसी मजाक में पूरे प्रकरण को उडा दिया जाता है समाज में कुछ लोग घरेलू हिंसा के शिकार व्यक्ति को जोरू का गुलाम, नामर्द और न जाने क्या क्या कहते है। जिसे सुन पीडित पुरूष खुद को हीन महसूस करता है इस सब से परेशान होकर बेबसी में कोई कोई पुरूष कई बार आत्महत्या जैसा गम्भीर कदम तक उठाने पर भी मजबूर हो जाता है।
पुरूषो के साथ कुछ महिलाये हिंसा ही नही करती उन की मर्जी के बगैर जबरदस्ती रोज रोज उन का यौन शौषण भी करती है। इस के साथ ही घूमने फिरने व मौजमस्ती करने के लिये पैसा देने व खाना बनाने के लिये उन्हे मजबूर किया जाता है ऐसा न करने या मना करने पर उन के साथ मारपीट तो आम बात है। लेकिन आज कोई यह मानने को तैयार ही नही कि पुरूषो का भी हमारे समाज में कुछ महिलाओ द्वारा उत्पीडन किया जाता है। यदि पुरूष इस सब का विरोध करता है तो पत्नी और उस के परिवार वाले उसे दहेज के झूठे मामलो में फसाने कि धमकिया देकर उस का और उस के परिवार का उत्पीडन करते है। आज समाज जिस तेजी के साथ बादल रहा है उस की जद में निसंदेह हमारी परम्पराए आ रही है। पैसा रिश्तो के मुकाबले महत्वपूर्ण हो गया है पुरानी परम्पराए और मान्यताओ के साथ साथ जीवन के अर्थ भी बदल गये है। फैशन के इस दौर में कुछ स्ति्रया भी बदली है उन के विचार और परिवार भी बदले है। पर ये भी सच है कि इस पुरूष प्रधान समाज में पुरूषो कें कठोर व्यवहार और दहेज लालचियो की तादाद में इन का प्रतिशत आज भी बहुत कम है। पर ये भी मानना पडेगा कि पुरूषो के साथ हिंसा करने वाली महिलाओ का कुछ प्रतिशत समाज में जरूर बा है।
इन सब बातो को हम या समाज स्वीकार करे या न करे पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने इन सब बातो को महसूस किया है और पिछले महीने एक मामले की सुनवाई के दौरान घरेलू हिंसा के शिकार पुरूषो की स्थिति को समझते हुए न्यायमूर्ति दलवीर भण्डारी और न्यायमूर्ति के0एस0 राधाकृष्णन की खण्डपीठ ने धारा 498(ए) के दुरूपयोग की बती श्कियतो के मद्देनजर ये कहा था कि महिलाये दहेज विरोधी कानून का दुरूपयोग कर रही है। सरकार को एक बार फिर से इस पर नजर डालने कि जरूरत है न्यायालय को ऐसी कई शिकायते देखने को मिली है जो वास्तविक नही होती है और किसी खास उद्वेश्य को लेकर दायर की जाती है। भारत में सेव फैमिली फाउंडेशन और माय नेशन फाउंडेशन ने अप्रैल 2005 से मार्च 2006 के बीच एक ऑनलाईन सर्वेक्षण किया था। जिस में शामिल लगभग एक लाख पुरूषो में से 98 फीसदी पुरूष किसी न किसी प्रकार की घरेलू हिंसा का शिकार रह चुके थे। इस सर्वेक्षण में आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और यौन संबंधो के दौरान की जाने वाली पत्नियो द्वारा हिंसा के मामले में पुरूष पीडित थे। दहेज विरोधी कानून हमारे देश में सभी धर्मो के अर्न्तगत किये गये विवाहो पर लागू होता है। पर सन 1983 से आज तक दहेज उत्पीडन के नाम पर अदालतो में ऐसे हजारो मुक्कदमे फाईल हुए है जिन की जद में आकर हजारो निर्दोश परिवार तबाह बर्बाद हो गये है। ससुराल पक्ष में किसी एक ने ताना या कुछ कहा नही कि बहू सारे ससुराल वालो पर भा.दं.सं. की धारा 498ए के तहत पति,सास,ससुर नन्द, जिठानी,जेठ, देवरो सहित घर के सारे लोगो को मुक्कदमा दर्ज करा कर जेल करा देती है हमारी पुलिस भी इन केसो में गजब की जल्दी दिखाती है और जो लोग दूसरे शहरो कस्बो में रहते है उन को भी पकड पकड कर जेलो में ठूस देती है कोई कोई घर तो इतना बदनसीब होता है कि इन घरो में बचे बुजुर्ग को कोई पानी देने वाला तक नही बचता और किसी किसी केस में नाबालिग और दूध मुहे बच्चो को भी काफी वक्त जेलो में बिताना पडता है।
मेरा यह सब लिखने का ये कतई मकसद नही कि अपराधी खुले छूटे रहे। नही बिल्कुल नही, अत्याचारी को सजा जरूर मिले पर निर्दोश और लाचार लोगो को बिना वजह जेलो में न डाला जाये और न ही मुक्कदमे चलने चाहिये। हमारी मीडिया को ऐसे मामलो में समाचार प्रकाशित करने से पहले अपने रिर्पोटरो द्वारा सही सही जानकारी करनी चाहिये और समाचार भेजते समय रिर्पोटरो को भी अपनी अपनी जिम्मेदारी का पूरा र्निवाह करना चाहिये साथ ही उसे ये सोचने भी चाहिये कि उस कि भेजी रिर्पोट से समाज में कोई सामाजिक बुराई उत्पन्न न हो इस के साथ ही ये भी सोचना चाहिये कि कोई बेगुनाह सजा न पा जाये। वकीलो को भी ऐसे मुक्कदमे लेने के बाद गहराई से छानबीन करनी चाहिये क्यो कि उन का भी समाज के प्रति दायित्व बनता है कि वो धारा 498ए, पुरूष उत्पीडन, व महिला उत्पीडन के मुक्क्दमे जल्दबाजी में फाईल न करे उन्हे ऐसे मुक्कदमे कमाई की नजर से नही बल्कि मानव जाति की भलाई के तौर पर देखने और लेने चाहिये। इस से निसंदेह हमारा सामाजिक व पारिवारिक ताना बाना छिन्नभिन्न नही बल्कि मजबूत होगा।

दोस्ती और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल है कश्मीर घाटी का शिव मंदिर

मुस्लिम पुजारी करते है शिव आरती
आज हमारे देश की कुछ सियासी पाट्रिया और कुछ राजनेता कुर्सी पाने की खातिर जिस प्रकार की गन्दी राजनीति पर उतारू हो गये है। साम्प्रदायिक दंगे करा कर हिंदू मुस्लिम, मस्जिद मंदिर, छोटी जाति, बडी जातियो में हमे बाटकर हम भारतवासियो के दिलो में जिस प्रकार ये लोग नफरत का जहर भर रहे है वो निसंदेह हमारी देश की एकता अखंडता के लिये बहुत ही खतरनाक है। इस धर्म की राजनीति का सब से बुरा प्रभाव हमारी युवा पी पर पड रहा है। आज से दस बीस साल पहले ऐसा कुछ भी नही था। हम सब लोग तमाम त्यौहार और शादी विवाह की रस्मे मिलजुल कर मनाते थे। गॉव और कस्बो में शाम को चौपाले सजती थी हुक्के की गुडगुडाहट के बीच सांग और लोक गीतो कीे धुनो के बीच लोग प्यार सौहार्द के साथ ईद दिवाली दशहरा होली का गुलाल खेलते थे। और खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत करते थे। गॉव के हर एक बुजुर्ग का युवा पी सम्मान करती थी चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम।
आज राह से पूरी तरह भटकी हुई सत्ता के भूखे भेडियो रूपी राजनेताओ की इस दौर की राजनीति ने फजा में किस कदर साम्प्रदायिक जहर भर दिया है। गॉव और कस्बो की बात तो छोडिये आज एक ही घर में सिर्फ कुर्सी के कारण भाई भाई के खून का प्यासा हो गया है। बाप बेटे का और बेटा बाप के खून का प्यासा है। पर आज भी हमारे मुल्क कश्मीर घाटी में जिसे मुगल बादशाह शाहजहॉ ने जन्नत का खिताब दिया था ये जन्नत भी गन्दी राजनीति के कारण दोजख बन गई। इस घाटी में उगने वाले तमाम खूबसूरत फूलो को बारूद के धुए ने काला और बदरंग बना दिया। इस सब के बावजूद आज भी देश में ऐसी तमाम मिसाले हम भारतवासियो की ओर से सुनने को मिलती है जिसे सुनकर अमन पसन्द लोगो का सीना गर्व से फूल जाता है।
ऐसी ही एक मिसाल कश्मीर घाटी के पहलगाम में लिद्दर नदी के किनारे स्थित 900 वर्ष प्राचीन शिव मन्दिर में आज भी देखने को मिलती है। जिस के पुजारी मुस्लिम है। कश्मीर घाटी का यू तो ये एक मात्र ही मंदिर है। इस मंदिर का संचालन लम्बे समय से पंडित राधा कृष्ण के नेतृत्व में स्थानीय कश्मीरी पंडित संघ किया करता था लेकिन 1989 में हिंदू कश्मीर पंडितो को कश्मीरी आतंकवाद के चलते कश्मीर छोडना पडा। कश्मीर छोडने से पूर्व पंडित जी ने पास के गॉव में रहने वाले अपने मुस्लिम मित्र अब्दुल बट्ट को मंदिर का पूरा दायित्वयह कह कर दिया था कि तुम रोज मंदिर के दरवाजे खोलकर इस की साफ सफाई कर दिया करना। और वायदे के मुताबिक अब्दुल बट्ट ने वर्ष 2004 में हुए तबादले से पहले तक रोज मंदिर की देखरेख करना और उस का दरवाजा खोलना और बंद करना जारी रखा। अब्दुल बट्ट के बाद मेोह0अब्दुल्लाह और गुलाम हसन ने इस मामालाक मंदिर की जिम्मेदारी जब से ली है तब से आज तक मंदिर के दरवाजो को बन्द नही होने दिया। इस मंदिर की घंटियो के बजने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। मोह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन का कहना है कि  हम केवल मंदिर की देखरेख ही नही करते बल्कि रोज मंदिर में आरती भी करते है। मंदिर में स्थित तीन फुट ऊॅचे शिवलिंग की सुरक्षा का ही सिर्फ ध्यान नही रखते बल्कि मोह0अब्दुल्लाह और गुलाम हसन रोजाना ये भी ध्यान रखते है कि कोई भी श्रृद्वालु मंदिर से प्रसाद लिये बगैर न चला जाये।
राजा जयसूर्या द्वारा निर्मित इस मंदिर का महत्तव एक समय ऐसा था कि कोई भी अमरनाथ यात्री इस मंदिर के दशर्न किये बगैर अपनी आगे की यात्रा शुरू नही करता था। दरअसल मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन मंदिर की सेवा ही नही करते बल्कि भगवान शिव में आपार आस्था भी रखते है। इन के द्वारा मंदिर के अन्दर समय समय पर मरम्मत का कार्य भी करवाया जाता है। मंदिर का तमाम काम ये लोग आतंकवादियो की धमकियो के बावजूद सुचारू रूप से चला रहे है। मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन ने यू तो कश्मीरी पंडितो के इस मंदिर की सुरक्षा हेतु हरेक जिम्मेदारी का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है फिर भी ये लोग चाहते है कि इस मंदिर के असली हकदार कश्मीरी पंडित लौट आये और अपने इस मंदिर की तमाम जिम्मेदारिया फिर से सभाल लें।
इस सुन्दर और अनोखे शिव मंदिर में भगवान गणेश, पार्वती, और हनुमान की मूर्तिया भी स्थिपित है इस के अलावा मंदिर परिसर के अन्दर कलकल करता एक दूधिया झरना भी बहता है पिछले चार वर्षो में इस मंदिर के दशर्न के लिये आने वाले हिन्दू श्रृद्वालुओ की सॅख्या में भी काफी वृद्वि हुई है। इन श्रृद्वालुओ में अब वो लोग भी शामिल है जो यहा से अपने अपने घर और ये मंदिर छोड कर चले गये थे पर अब ये लोग एक पर्यटक के रूप में इस मंदिर के दशर्न करने आया करते है। 900 वर्ष पुराने इस शिव मंदिर की देखरेख करते इन मुस्लिम पुजारियो द्वारा नियमित रूप से मंदिर में भोले बाबा की आरती कि जाती है और श्रृद्वालुओ में प्रसाद बाटा जाता है। मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन की मेहनत और आस्था देखकर हिन्दू श्रृद्वालुओ की खुशी देखते ही बनती है। भगवान के दशर्न के साथ साथ कुछ श्रृद्वालु मौह0 अब्दुल्लाह और गुलाम हसन के दशर्न कर पॉव छूकर आशीर्वाद भी प्राप्त करते है। हिन्दू मुस्लिम एकता की ऐसी तमाम मिसाले फिरकापरस्त लोगो के मुॅह पर बार बार तमाचे मारती है पर कुत्ते की टेडी पूंछ की तरह ये राह से भटके कुछ राजनेता और कुछ धर्म के ठेकेदार फिर भी सीधे नही हो पा रहे

पैसा नही, बच्चो को वक्त दीजिये

आज हमारी युवा पी और छोटे छोटे बच्चो को न जाने क्या हो रहा है मॉ बाप और टीचरो की जरा जरा सी बातो और डाट फटकार पर खुदकुशी की खबरे बहुत तेजी से सुनने को मिल रही है। साथ ही साथ स्कूल कालेजो में अपने सहपाठियो के साथ कम उम्र युवाओ द्वारा हिंसक घटनाओ की तादाद भी लगातार बती जा रही है। आखिर ऐसा क्यो हो रहा है। एक ओर जहॉ इन घटनाओं से बच्चो के परिजन परेशान है वही ये घटनाए देश और समाज के लिये भी चिंता का विषय बनती जा है। दरअसल इन घटनाओ की वजह बहुत ही साफ और सच्ची है जो बच्चे ऐसी घटनाओ को अन्जाम दे रहे है उन के आदशर फिल्मी हीरो, हिंसक वीडियो गेम ,माता पिता द्वारा बच्चो को ऐश ओ आराम के साथ महत्वाकांशी दुनिया की तस्वीरो के अलावा जिन्दगी के वास्तविक यथार्थ बताये और दिखाये नही जा रहे है। संघर्ष करना नही सिखाया जा रहा। हा सब कुछ हासिल करने का ख्वाब जरूर दिखाया जा रहा है। वह भी कोई संघर्ष किये बिना। दरअसल जो बच्चे संघर्षशील जीवन जीते है उनकी संवेदनाए मरती नही है वे कठिन परिस्थि्तियो में भी निराश नही होते और हर विपरीत परिस्थि्ति से लडने के लिये तौयार रहते है। कुछ आत्महत्याओ के पीछे शिक्षा और परीक्षा का दबाव है तो कुछ के पीछे मात्र अभिभावको की सामान्य सी डाट ,अपने सहपाठियो की उपेक्षा अथवा अग्रेजी भाषा में हाथ तंग होना। मामूली बातो पर गम्भीर फैसले ले लेने वाली इस युवा पी को ना तो अपनी जान की परवाह है और ना ही उन के इस कदम से परिवार पर पडने वाले असर की उन्हे कोई चिंता है।
यदि हम थोडा पीछे देखे तो 9 फरवरी 2010 को कानपुर के चकेरी के स्कूल के0 आर0 एजुकेशन सेंटर के कक्षा 11 के छात्र अमन सिॅह और उस के सहपाठी विवेक में किसी बात को लेकर मामूली विवाद हो गया। मामला स्कूल के प्रिंसीपल तक पहुॅचा और उन्होने दोनो बच्चो को डाट कर समझा दिया किन्तु अगले दिन अमन सिॅह अपने चाचा की रिवाल्वर बस्ते में छुपाकर स्कूल ले आया और उसने क्लास में ही अपने सहपाठी विवेक को गोली मार दी। स्कूल या कालेज में इस प्रकार की घटना का ये पहला मामला नही हैं। 18 सितम्बर 2008 को दिल्ली के लाडो सराये में एक छात्र द्वारा एक छात्रा की हत्या गोली मार कर कर दी गई थी, 18 सितम्बर 2008 को ही मध्य प्रदेश के सतपाडा में एक छात्रा को उस की ही सहपाठिनीयो ने जिन्दा जला दिया था, 16 फरवरी 2008 को गाजियाबाद के मनतौरा स्थित कालेज में एक छात्र ने अपने सहपाठी को गोली मार दी थी, 11 फरवरी 2008 को दिल्ली ही के कैंट स्थित सेंट्रल स्कूल में एक छात्र द्वारा अपने सीनियर को मामूली कहासुनी पर चाकू मार दिया था। नवंबर 2009 में जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में आठवी क्लास की मासूम छात्रा के साथ लगभग 18 साल की उम्र के आसपास के 7 स्कूली बच्चो ने रेप किया सब के सब आरोपी युवा बिगडे रईसजादे थे। बच्चो और युवाओ में दिन प्रतिदिन हिंसक दुष्प्रवृति बती ही जा रही है। अभिभावक हैरान परेशान है कि आखिर बच्चो की परवरिश में क्या कमी रह रही है। अपने लाडलो को समझाने बुझाने में कहा खोट है कहा चूक रहे है हम।ं
आज देशभर के शिक्षको, मनोचिक्ति्सको, और माता पिताओ के सामने बच्चो द्वारा की जा रही आत्महत्याए तथा रोज रोज स्कूलो में हिंसक घटनाओ से नई चुनौतिया आ खडी हुई है। आज बाजार का सब से अधिक दबाव बच्चो और युवाओ पर है। दिशाहीन फिल्मे युवाओ और बच्चो को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। जब से हालीवुड ने भारत का रूख किया है स्थि्ति बद से बदतर हो गई है। बे सिर पैर की एक्शन फिल्मे सुपरमैन, डैकूला, ट्रमीनेटार, हैरीपौटर जैसी ना जाने कितनी फिल्मे बच्चो के दिमाग में फितूर भर रही है। वही वान्टेड, बाबर, अब तक छपपन, वास्तव, आदि हिंसा प्रधान फिल्मे युवाओ की दिशा बदल रही है। आज का युवा खुद को सलमान खान, शाहरूख खान, अजय देवगन, रिर्तिक रोशन, शाहिद कपूर, अक्षय कुमार की तरह समझता है और उन्ही की तरह ऐकशन भी करता है। ये तमाम फिल्मे संघर्षशीलता का पाठ पाने की बजाये यह कह रही है कि पैसे के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है, छल, कपट, घात प्रतिघात, धूतर्ता, ठगी, छीना झपटी ,कोई अवगुण नही है इस पी पर फिल्मी ग्लैमर ,कृत्रिम बाजार और नई चहकती दुनिया, शारीरिक परिवर्तन ,सैक्स की खुल्लम खुल्ला बाजार में उपलब्ध किताबे ,ब्लू फिल्मो की सीडी डीवीडी व इन्टरनेट और मोबाईल पर सेक्स की पूरी कि्रयाओ सहित जानकारी हमारे किशोरो को बिगाडने में कही हद तक जिम्मेदार है। इस ओर किशोरो का बता रूझान ऐसा आकर्षण पैदा कर रहा है जैसे भूखे को चॉद रोटी की तरह नजर आता है।
गुजरे कुछ वर्षा मे हमारे घरो की तसवीर तेजी से बदली है पिता को बच्चो से बात करने की उनके पास बैठने और पाई के बारे में पूछने की फुरसत नही। मॉ भी किटटी पॉिट्रयो ,शापिंग घरेलू कामो में उल्झी है। आज के टीचर को शिक्षा और छात्र से कोई मतलब नही उसे तो बस अपने टुयूश्न से मतलब है। फिक्र है बडे बडे बैच बनाने की एक एक पारी में पचास पचास बच्चो को टुयूशन देने की। शिक्षा ने आज व्यापार का रूप ले लिया है। दादा दादी ज्यादातर घरो में है नही। ज्यादातर हाई सोसायटी घरो में एक अकेला बच्चा है। अकेला बच्चा क्या करे किस से बोले किस के संग खेले। आया के साथ माली के साथ। पडोस और पडोसी से इन पॉश कालोनी वालो का कोई वास्ता नही होता। बच्चा अकेलेपन ,सन्नाटे ,घुटन और उपेक्षा के बीच बडा होता है। बच्चे को ना तो अपने मिलते है और ना ही अपनापन। लेकिन उम्र तो अपना फर्ज निभाती है बडे होते बच्चो को जब प्यार और किसी के साथ ,सहारे की जरूरत पडती है तब उस के पास मॉ बाप चाचा चाची दादा दादी या भाई बहन नही होते। होता है अकेलापन पागल कर देने वाली तन्हाई या फिर उस के साथ उल्टी सीधी हरकते करने वाले घरेलू नौकर।
ऐसे में आज की युवा पी को टूटने से बचाने के लिये सही राह दिखाने के लिये जरूरी है की हम लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझे और समझे की हमारे बच्चे इतने खूंखार इतने हस्सास क्यो हो रहे जरा जरा सी बात पर जान देने और लेने पर क्यो अमादा हो जाते है इन की रगो में खून की जगह गरम लावा किसने भर दिया है। इन सवालो के जवाब किसी सेमीनार पत्र पत्रिकाओ या एनजीओ से हमे नही मिलेगे इन सवालो के जवाबो को हमे बच्चो के पास बैठकर उन्हे प्यार दुलार और समय देकर हासिल करने होगे। वास्तव में घर को बच्चे का पहला स्कूल कहा जाता है आज वो ही घर बच्चो की अपनी कब्रगाह बनते जा रहे है। फसल को हवा पानी खाद दिये बिना बयि उपज की हमारी उम्मीद सरासर गलत है। बच्चो से हमारा व्यवहार हमारे बुापे पर भी प्रशन चिन्ह लगा रहा है। आज पैसा कमाने की भागदौड में जो अपराध हम अपने बच्चो को समय न देकर कर रहे है वो हमारे घर परिवार ही नही देश और समाज के लिये बहुॅत ही घातक सिद्व हो रहा ह

जिन्दगी की कहानी

जिन्दगी की कहानी

जिन्दगी के रंग में

जिन्दगी के संग में उमेश कुमार यादव

नये नये ढंग में

नये नये रुप में

संगी मिलते रहे

मौसम खीलते रहे

मौसमों के खेल में

जिन्दगी गुज़र गई

संवर जाये जिन्दगी

इस होड़ में लगे रहे

जिन्दगी सम्भली नहीं

और जिन्दगी निकल गई ।

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी भटक गई ।

++

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी गुजर गई

आगे का सोचा नहीं

और जिन्दगी बदल गई

आस थी कुछ खास थी

कुछ करने की चाह थी

चाह पूरी न हुई

और जिन्दगी सहम गई

सच झूठ के द्वंद में

जिन्दगी मचल गई

2

हार जीत की सोच में

जिन्दगी बिगड़ गई

हिन्द में हो हिन्दी ही

अरमान धरी ही रह गई

++

क्या करें क्या न करें

यह सोचते ही रह गये

सोच ही कर क्या करें

जब जिन्दगी ठहर गई

पढ़ने की होड़ में

क्या क्या न जाने पढ़ गये

बिना किसी योजना के

पढ़ते ही रह गये

अपनी सभ्यता भूल

पाश्चात्य पर जा रम गये

सोचकर ही क्या करें जब

जिन्दगी बदल गई

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी भटक गई ।

—-

क्या करने आये थे

किस काम में हम लग गये

सत्कर्म छोड़कर

क्या क्या करते रह गये

परमार्थ का कार्य छोड़

निज स्वार्थ में ही रम गये

क्या करने आये थे

क्या क्या करते रह गये ।

3

धन के अति लोभ में

जिन्दगी बिगड़ गई

इधर गई उधर गई

जाने किधर किधर गई

हाथ मलते रह गये

और जिन्दगी निकल गई

जितने हम दूर गये

दूरियाँ बढ़ती गई

फ़ाँसलों की फ़ाँद में

फ़ँसते चले गये

जिन्दगी बेचैन थी

जिन्दगी बेजान थी

फ़ैसलों की आड़ में

बहुत परेशान थी

क्या करें क्या ना करें

यह सोचकर हैरान थी

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी निकल गई

दिन गिनते रह गये

और उम्र सारी ढल गई

हम देखते रह गये

और जिन्दगी बदल गई

जिन्दगी की आस में

जिन्दगी भटक गई ।