मोतीलाल
मैँने उसे देखा है
अभी-अभी
इन्हीँ आँखोँ से
वह आया है
हमारे इस शहर मेँ
और खड़ा है बाहर
धुँध से भरे कोहरे मेँ
वह आना चाहता है
हमारे घरोँ मेँ
और दो क्षण सुस्ताना चाहता है
थकान से चूर उसकी देह
अब नहीँ उठ पाती है
और नहीँ ठहरती है आँखेँ
किसी भी कोने मेँ
हमेँ उसे बुलाना चाहिए
और पुछना चाहिए पानी
वह ठहरना चाहता है
दो घड़ी रात को
और मुँह सवेरे ही
वह तो चला जायेगा
अपने किसी ठाँव पर
वह नहीँ रुकेगा
तुम्हारे आँचल मेँ
और दीया का तेल
आखिर कितना खर्च होगा
उसके बुलाने पर
अरे यह कैसी चुप्पी
न मंदिर मेँ घंटी
न मस्जिद मेँ अजान
नदी का बहना भी रुक गयी
चिड़िया भी नहीँ चहचहाती
ना ही जूते फेँकने की आवाज
तुम्हारे आँगन से उठी है
क्या तुम नहीँ चाहते
उसे लाना
और लौटा देना चाहते हो
अपने सीमा से ही बाहर
जरा सोचो तुम
और सुनो
माटी का संगीत
अपने राक-एंड-राक को बंदकर
और झाँको
फूटपाथोँ के पन्नोँ मेँ भी
कि अब नहीँ बची है कोई कविता
हाँ अभी-अभी
मैँने उसे देखा है
कविता के भीतर से
कि वह आया है ।