संबंधों का अन्त है पोर्न

पोर्न देखना आज आम बात हो गई है। पोर्न से बचना अब असंभव सा होता जा रहा है। पोर्न ने जिस तरह समूचे दृश्य संसार को घेरा है, उतनी तेजी से किसी विधा ने नहीं घेरा। पोर्न के सवाल हमें परेषान करते हैं। राज्य के हस्तक्षेप की मांग करते हैं। सामाजिक हस्तक्षेप की मांग करते हैं। पोर्न का सामाजिक विमर्श में आना इस बात का संकेत है कि समाज परवर्ती पूंजीवाद के सांस्कृतिक विमर्ष में दाखिल हो चुका है। खासकर इंटरनेट के आने के बाद पोर्न सहजता से उपलब्ध है, पोर्न विमर्श भी सहजभाव से उपलब्ध है। पोर्न से बचने का सॉफ्टवेयर भी सहज उपलब्ध है।

 आज पोर्न शरीफों का मनोरंजन है। विज्ञापन,फिल्म,मोबाइल,पत्रिका,इटरनेट आदि सभी माध्यमों के जरिए पोर्न हम तक पहुँच रहा है। एक सर्वे के अनुसार ब्रिटेन में सन् 2000 तक तकरीबन 33 फीसदी इंटरनेट यूजर पोर्न का इस्तेमाल कर रहे थे। अमेरिका में पोर्न उद्योग का कारोबार 15 विलियन डालर सालाना आंका गया है। वर्ष में फिल्मों की टिकट और ललित कलाएं खरीदने से ज्यादा लोग पोर्न पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। अमेरिका में अकेले लॉस एंजिल्स में सालाना दस हजार हार्डकोर पोर्न फिल्में तैयार हो रही हैं। जबकि हॉलीवुड साल में मात्र 400 फिल्में बना पाता है।

पोर्न व्यवसाय का दायरा बहुत बड़ा है। इसकी धीरे-धीरे सामाजिक स्वीकृति बढ़ रही है। आज यह फैशन का रूप धारण कर चुका है। पोर्न के संदर्भ में पहला सवाल यह उठता है कि पोर्न को औरतें ज्यादा देखती हैं या मर्द ? सर्वे बताते हैं पोर्न पुरूष ज्यादा देखते हैं, पोर्न सबकी क्षति करता है। यह सामयिक पूंजीवादी फैशन है। यह अपने तरह का खास सम्मान दिलाता है।

एडवर्ड मारियट ने ‘मैन एण्ड पोर्न'(गार्दियन,8नबम्वर2003) में लिखा कि पोर्न आज ज्यादा स्वीकृत धंधा है, ज्यादा फैशनेबिल ज्यादा आरामदायक है,सबसे बड़ा व्यापार है, आज स्थिति यह है कि इसका सभ्य समाज के आनंद रूपों में स्वीकृत स्थान है।

पोर्न को हम वर्षों से देख रहे हैं कि किन्तु हमने कभी इसका विश्लेषण नहीं किया कि किस तरह इसने स्त्री का दर्जा गिराया है। यह समयानुकूल पूंजीवादी फैशन है। यह सिर्फ औरत ही नहीं सारे समाज को पतन के गर्त में मिलाया है। यह बात बार-बार कही जा रही है कि पश्चिम में औरतें खूब पोर्न देख रही हैं किन्तु सच यह है कि पोर्न मर्द ज्यादा देख रहे हैं। यह मूलत: मर्द विधा है।

 पोर्न की ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में परिभाषा है सन् 1864 से ‘वेश्या के अपने संरक्षक के प्रति जीवन, हाव-भाव’ पोर्न है। बाद में चेम्बर ने लिखा ‘कामुक उत्तेजना पैदा करने वाली सामग्री’ को पोर्न कहते हैं। इसका साझा थीम है पावर और समर्पण। जिसका आधार है वेश्या। जबकि ‘कामुकता’ (इरोटिका) में पोर्न की तुलना में नियंत्रण और वर्चस्व कम होता है।

 पोर्न मनुष्य की बुनियादी जिज्ञासाओं को शांत करती है। जो पोर्न के आदी हो जाते हैं, वे अन्य किसी के साथ मिल नहीं पाते। पोर्न मर्द के बारे में झूठी धारणाएं पैदा करती है। स्त्री-पुरूष संबंधों के बारे में झूठी धारणा बनाती है। उत्तेजना पैदा करने के नाम पर पोर्न मर्द का शोषण करती है। स्त्री के प्रति घृणा पैदा करती है। मर्द और दोनों के बीच आत्मीयता का झूठा वायदा करती है। संक्रमण काल में सिर्फ हस्तमैथुन का विकल्प पेश करती है। पुरूष जब अकेला होता है, कामुक तौर पर कुण्ठित हो तब वह पोर्न देखता है।

 पोर्न की लत शराब की लत की तरह है जो सहज ही छूटती नहीं है। अनेक मर्तबा पति अपनी पत्नी को साथ में बिठाकर पोर्न देखने के लिए दबाव डालता है और यह तर्क देता है इससे कामोत्तेजना बढ़ेगी सेक्स में मजा आएगा, बाद में स्वयं के मैथुन दृश्यों को कैमरे से उतारता है और सोचता है कि वह तो पोर्न से बाहर है किन्तु सच यह है कि इससे ज्यादा अमानवीय चीज कुछ भी नहीं हो सकती।

 पोर्न का मूल लक्ष्य है अन्य व्यक्ति को अमानवीय बनाना, संबंध को अमानवीय बनाना,आत्मीयता को अमानवीय बनाना। इसके अलावा जो लोग पोर्न देखकर अपनी पत्नी से प्यार करना चाहते हैं, ऐसी पत्नियों के लिए पोर्न दर्दनाक अनुभव है। वे इसमें एकसिरे से आनंद नहीं ले पाती हैं।

 जो लोग पोर्न का इस्तेमाल करते हैं वे अंदर से मर चुके होते हैं। वे अपने इस मरे हुए के दर्द से ध्यान हटाने के लिए पोर्न का इस्तेमाल करते हैं। पोर्न एक तरह से बच्चे का मनोविज्ञान भी है जहां बच्चा माता-पिता के नियंत्रण से मुक्त होकर जीना चाहता है। पुरूष के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जो मर्द पोर्न ज्यादा देखते हैं वे अंदर से खोखले हो जाते हैं,संबंध बनाने में असमर्थ होते हैं। पोर्न मर्द को मजबूर करती है कि वह खोखले संबंध बनाए।

 पोर्न की लत अवसाद की सृष्टि करती है। पोर्न मर्द को मुक्ति नहीं देता, बल्कि लत पैदा करता है, लत का गुलाम बनाता है। इसके अलावा कामुक हिंसाचार में भी इसकी भूमिका है। पोर्न से बचने का आसान तरीका है कि आप अपने कम्प्यूटर को जबावदेह बनाएं, अन्य आपके कम्प्यूटर को देख सके कि आप क्या देख रहे हैं। पारिवारिक संबंधों में मधुरता हो, बच्चों से प्यार हो, तो पोर्न से बचा जा सकता है।

4 COMMENTS

  1. aap ki soch aor samjh good hai par ese samj me failne se kaise roka jae tarike bahut se hai
    aor ese roka ja sakta hai sarkar aor hamri maddat do no se

  2. पोर्न पूंजीवाद का ही एक हिस्सा है ये आप ने बिलकुल सही कहा लेकिन सवाल ये है के जब सरकार पूंजीवाद के रस्ते पर सरपट दौड़ रही है तो युवा पीढ़ी को इस गर्त से बचाएगा कौन?

  3. यह विषय काफी विवेकपूर्ण मानसिकता की है , किन्तु इस प्रकार के विचार से उन सबों को पूर्ण कराना है जो किसी के बहकावे में या कुंठित जीवन में इस प्रकार के आयामों को अपनातें हैं | यह सच है कि , जो व्यक्ति अन्दर से खोखले होतें हैं , वह मजबूरन इस सन्दर्भ में काफी आनंद महसूस करतें हैं और दूसरे को किसी न किसी प्रकार के झूठा आश्वाशन देकर आकर्षित करने का प्रयास करतें हैं | मनो तो यह पूर्ण मनोविज्ञान है , जहाँ पुरुषवादी समाज उन्मुक्त होकर जीवन जीना चाहता हैं |

  4. चतुर्वेदीजी, आपसे १०० % सहमति प्रकट करता हूं। पोर्न इसी भांति सहजतासे उपलब्ध होता रहा, तो आबालवृद्ध सहित सारा समाज अनीतिकी गर्तमें गिरेगा, मूल्योंका अवमूल्यन होगा, कुटुंब संस्था छिन्न भिन्न होगी।सुना है, युनान और रुमा की संस्कृतिका पतन, सस्ती कामोत्तेजक उपलब्धियोंके कारणहि हुआ था।कुटुंब संस्था पहले समाप्त हुयी थी।– यहां अमरिकामें छात्रभी इसी वासनासे पीडित है, कुछ इसी कारण संयमित, भारतीय छात्र, स्पर्धामें आगे बढ जाते हैं। आज अमरिकामें केवल २१ % विवाहित जोडे है, जो अपने स्वयंके बालकोंके साथ रहते हैं।५० % महिलाएं, और ५४% पुरूष जीवनमें एक बारभी विवाह नहीं करते। कामसुख जब बिना विवाह प्राप्त हो, तो कौन (पुरूष) मूरख कुटुंब पोषणका, उत्तरदायित्व स्वीकार करेगा? थोडा विषयांतर हुआ है, पर असंबद्ध नहीं है।भारतभक्त सावधान यह बडी चुनौति है। मेरी दृष्टिमे आर एस एस, सेवा दल, इत्यादि संगठनोंमे आप बच्चोंको भेजे, जिससे इस दिशामें संस्कार द्वारा कुछ किया जा सकता है। धन्यवाद।

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