अक्षर अक्षर प्यार .
हर सुख से संपन्न है
हिन्दी का संसार .
जिनकी रोटी पर लिखा
है हिन्दी का नाम.
हिन्दी उनके वास्ते
शबद एक वे दाम.
हिन्दी तो छोड़ी मगर
बन न सके अंगरेज.
एक मुखौटा ओढ़्कर
क्योंकर रहे सहेज.
मीरा केशव जायसी
तुलसी सूर कबीर.
किस भाषा की है भला
हिन्दी सी तकदीर.
अरे परिन्दे छोड़कर
निज भाषा अनमोल.
कब तक बोलेगा भला
इधर -उधर के बोल.
(रेखा साव एक उदीयमान कवियित्री हैं. इन्हें साहित्यिक पत्रिकओं की तरफ़ से पुरस्कार भी मिल चुके हैं. आप कोलकाता वि. वि. से एम ए की छात्रा हैं.)
कुछेक पंक्तियाँ ओर शब्द चयन पसंद आए…
पर लगी तो एक उक्ति-कविता…
पर लिखते रहिए…
सुन्दर कविता। उत्तम शब्द-चयन। शुभकामनाओं के साथ बधाई। लिखते रहिए।