मानवीय गुणों के अवतार श्रीकृष्ण

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radha krishnaसदर्भ :–28 अगस्त श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष

प्रमोद भार्गव

 

 

हाल ही में एक भारतवंशी बि्रतानी शोधकर्ता ने खगोलीय घटनाओं और पुरातातिवक व भाषार्इ साक्ष्यों के  आधार पर दावा किया है कि भगवान कृष्ण हिन्दु मिथक और पौराणिक कथाओं के काल्पनिक पात्र न होते हुए एक वास्तविक पात्र थे। सच्चार्इ भी यही है। बि्रटेन में न्यूकिलयर मेडीसिन के फिजिशियन डा. मनीष पंडित ने अपने अनुसंधान में बताया है कि टेनेसी के मेमिफस विश्वविधालय में भौतिकी के प्रोफेसर डा. नरहरि अचर द्वारा एक शोध पत्र में उल्लेख है कि खगोल विज्ञान की मदद से महाभारत युद्ध के काल का पता लगाया है। इसी आधार पर जब डा. पंडित ने तारामंडल के साफ्टवेयर की मदद से डा. अचर के निष्कर्षों की पड़ताल की तब वे आश्चर्यचकित रह गये जब दोनों निष्कर्षों में अजीब संयोग पाया गया। कृष्ण का जन्म 3112 बी.सी. में हुआ। डा. पंडित द्वारा बनार्इ गर्इ दस्तावेजी फिल्म ”कृष्ण इतिहास और मिथक में बताया गया है कि पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत की लड़ार्इ र्इसा पूर्व 3067 में हुर्इ थी। इन गणनाओं के अनुसार कृष्ण का जन्म र्इसा पूर्व 3112 में हुआ था, यानि महाभारत युद्ध के समय कृष्ण की उम्र 54-55 साल की थी। महाभारत में 140 से अधिक खगोलीय घटनाओं का विवरण है। इसी आधार पर डा. अचर ने पता लगाया कि महाभारत के युद्ध के समय आकाश कैसा था और उस दौरान कौन-कौन सी खगोलीय घटनायें घटी थीं। जब इन दोनों अध्ययनों के तुलनात्मक निष्कर्ष निकाले गये तो पता चला कि महाभारत युद्ध र्इसा पूर्व 22 नवंबर 3067 को शुरू होकर 17 दिन चला। इससे स्पष्ट होता है कि कृष्ण कोर्इ अलौकिक या दैवीय शक्ति न होकर एक मानवीय शक्ति थे।

यही कारण रहे कि कृष्ण बाल जीवन से ही जीवनपर्यंत समाजिक न्याय की स्थापना और असमानता को दूर करने की लड़ार्इ दैव व राजसत्ता से लड़ते रहे। वे गरीब की चिंता करते हुए खेतीहर संस्कृति और दुग्ध क्रांति के माध्यम से ठेठ देशज अर्थ व्यवस्था की स्थापना और विस्तार में लगे रहे। सामारिक दृषिट से उनका श्रेष्ठ योगदान भारतीय अखण्डता के लिए उल्लेखनीय रहा। इसीलिए कृष्ण के किसान और गौपालक कहीं भी फसल व गायों के क्रय-विक्रय के लिए मंडियों में पहुंचकर शोषणकारी व्यवस्थाओं के शिकार होते दिखार्इ नहीं देते ? कृष्ण जड़ हो चुकी उस राज और देव सत्ता को भी चुनौती देते हैं जो जन विरोधी नीतियां अपनाकर लूट तंत्र और अनाचार का हिस्सा बन गये थे ? भारतीय लोक के कृष्ण ऐसे परमार्थी थे जो चरित्र भारतीय अवतारों के किसी अन्य पात्र में नहीं मिलता। कृष्ण की विकास गाथा अनवरत साधारण मनुष्य बने रहने में निहित रही।

16 कलाओं में निपुण इस महानायक के बहुआयामी चरित्र में वे सब चालाकियां बालपन से ही थीं जो किसी चरित्र को वाकपटु और उददण्डता के साथ निर्भीक नायक बनाती हैं। लेकिन बाल कृष्ण जब माखन चुराते हैं तो अकेले नहीं खाते अपने सब सखाओं को खिलाते हैं और जब यशोदा मैया चोरी पकड़े जाने पर दण्ड देती हैं तो उस दण्ड को अकेले कृष्ण झेलते हैं। वे दण्ड का भागीदार उन सखाओं को नहीं बनाते जो चाव से माखन खाने में भागीदार थे। चरित्र का यह प्रस्थान बिंदु किसी उदात्त नायक का ही हो सकता है।

कृष्ण का पूरा जीवन समृद्धि के उन उपायों के विरूद्ध था, जिनका आधार लूट और शोषण रहा। शोषण से मुकित समता व सामाजिक समरसता से मानव को सुखी और संपन्न बनाने के गुर गढ़ने में कृष्ण का चिंतन लगा रहा। इसीलिए कृष्ण जब चोरी करते हैं, स्नान करती सित्रयों के वस्त्र चुराते हैं, खेल-खेल में यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कालिया नाग का मान मर्दन करते हैं, उनकी वे सब हरकतें अथवा संघर्ष उत्सवप्रिय हो जाते हैं। नकारात्मकता को भी उत्सवधर्मिता में बदल देने का गुर कृष्ण चरित्र के अलावा दुनिया के किसी इतिहास नायक के चरित्र में विधमान नहीं हैं ?

भारतीय मिथकों में कोर्इ भी कृष्ण के अलावा र्इश्वरीय शक्ति ऐसी नहीं है जो राजसत्ता से ही नहीं उस पारलौकिक सत्ता के प्रतिनिधि इन्द्र से विरोध ले सकती हो जिसका जीवनदायी जल पर नियंत्रण था ? यदि हम इन्द्र के चरित्र को देवतुल्य अथवा मिथक पात्र से परे मनुष्य रूप में देखें तो वे जल प्रबंधन के विशेषज्ञ थे। लेकिन कृष्ण ने रूढ़, भ्रष्ट व अनियमित हो चुकी उस देवसत्ता से विरोध लिया, जिस सत्ता ने इन्द्र को जल प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी हुर्इ थी और इन्द्र जल निकासी में पक्षपात बरतने लगे थे। किसान को तो समय पर जल चाहिए अन्यथा फसल चौपट हो जाने का संकट उसका चैन हराम कर देता है। कृष्ण के नेतृत्व में कृषक और गौ पालकों के हित में यह शायद दुनिया का पहला आंदोलन था, जिसके आगे प्रशासकीय प्रबंधन नतमस्तक हुआ और जल वर्षा की शुरूआत किसान हितों को दृषिटगत रखते हुए शुरू हुर्इ।

पुरूषवादी वर्चस्ववाद ने धर्म के आधार पर स्त्री का मिथकीकरण किया। इन्द्र जैसे कामी पुरूषों ने स्त्री को स्त्री होने की सजा उसके स्त्रीत्व केा भंग करके दी। देवी अहिल्या के साथ छल पूर्वक किया गया दुराचार इसका शास्त्र सम्मत उदाहरण है। आज नारी नर के समान स्वतंत्रता और अधिकारों की मांग कर रही है लेकिन कृष्ण ने तो औरत को पुरूष के बराबरी का दर्जा द्वापर में ही दे दिया था। राधा विवाहित थी लेकिन कृष्ण की मुखर दीवानी थी। ब्रज भूमि में स्त्री स्वतंत्रता का परचम कृष्ण ने फहराया। जब स्त्री चीर हरण (द्रोपदी प्रसंग) के अवसर पर आए तो कृष्ण ने चुनरी को अनंत लंबार्इ दी। स्त्री संरक्षण का ऐसा कोर्इ दूसरा उदाहरण दुनियां के किसी भी साहित्य में नहीं है ? इसीलिए वृंदावन में यमुना किनारे आज भी पेड़ से चुनरी बांधने की परंपरा है । जिससे आबरू संकट की घड़ी में कृष्ण रक्षा करें। जबकि आज बाजारवादी व्यवस्था ने स्त्री की अर्ध निर्वस्त्र देह को विज्ञापनों का एक ऐसा माल बनाकर बाजार में छोड दिया है जो उपभोक्तावादी संस्कृति का पोषण करती हुर्इ लिप्साओं में उफान ला रही है। स्त्री खुद की देह को बाजार में उपभोग के लिए परोस रही हैं। कृष्ण का मंतव्य स्त्री शुचिता की ऐसी निर्लज्जता के प्रदर्शन प्रबंधन का हितकारी कहीं भी Ñष्ण साहित्य में देखने में नहीं आता।

कृष्ण युद्ध कौशल के महारथी होने के साथ देश की सीमाओं की सुरक्षा संबंधी सामरिक महत्व के जानकार थे। इसीलिए कृष्ण पूरब से पशिचम अर्थात मणीपुर से द्वारका तक सत्ता विस्तार के साथ उसके संरक्षण में भी सफल रहे। मणीपुर की पर्वत श्रृंखला पर और द्वारका के समुद्र तट पर कृष्ण ने सामरिक महत्व के अडडे स्थापित किए जिससे कालांतर में संभावित आक्रांताओं यूनानियों, हूणों, पठानों, तुर्कों, शकों और मुगलों से लोहा लिया जा सके। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमारे यही सीमांत प्रदेश आतंकवादी घुसपैठों और हिसंक वारदातों का हिस्सा बने हुए हैं। कृष्ण के इसी प्रभाव के चलते आज भी मणीपुर के मूल निवासी कृष्ण दर्शन से प्रभावित भकित के निष्ठावान अनुयायी है। यह अचरज भरा वैभव कोर्इ अद्वितीय मानव ही कर सकता है।

सही मायनों में बलराम और कृष्ण का मानव सभ्यता के विकास में अदभुत योगदान है। बलराम के कंधों पर रखा हल इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है। वहीं कृष्ण मानव सभ्यता व प्रगति के ऐसे प्रतिनिधि हैं जो गायों के पालन से लेकर दूध व उसके उत्पादनों से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। ग्रामीण व पशु आधारित अर्थव्यवस्था को गतिशीलता का वाहक बनाए रखने के कारण ही कृष्ण का नेतृत्व एक बड़ी उत्पादक जनसंख्या स्वीकारती रही। जबकि भूमंडलीकरण के दौर में हमने कृष्ण के उस मूल्यवान योगदान को नकार दिया जो किसान और कृषि के हित तथा गाय और दूध के व्यापार से जुड़ा था। बावजूद इसके पूरे ब्रज मण्डल और कृष्ण साहित्य में कहीं भी शोषणकारी व्यवस्था की प्रतीक मंडियों और उनके कर्णधार दलालों का जिक्र नहीं है। शोषण मुक्त इस अर्थव्यवस्था का क्या आधार था हमारे आधुनिक कथावाचक पंडितों को इसकी पड़ताल करनी चाहिए ?  कृष्ण मानव पात्र ही थे जो उन्होंने उस प्राकृतिक संसाधनों की चिंता की जिसके उत्पादन तंत्र को विकसित करने में भू-मण्डल को लाखों करोड़ों साल लगे। कृष्ण तो इस जैव विविधता रूपी सौंदर्य के उपासक व संरक्षक थे। जिससे ग्रामीण जीवन व्यवस्था को प्राकृतिक तत्वों से जीवन संजीवनी मिलती रहे। डा. मनीष पंडित और डा. अचर के  खगोलीय घटनाओं क आधार पर निष्कर्ष सही लगते हैं कि कृष्ण पौराणिक युग के काल्पनिक पात्र कतर्इ नहीं थे, वे मानव थे और उनमें मानवजन्य तमाम खूबियां और खामियां थीं। इन सबके बावजूद वे एक ऐसे उदात्त नायक थे जो महाभारत युद्ध के नेता और प्रणेता अपने गुणों के कारण बने।

3 COMMENTS

  1. द्वापर काल के सटीक दार्शनिक विचार पक्ष के सहज प्रस्तुतीकरण के लिए लेखक को साधुवाद के साथ ही नमन…

  2. We should follow Krishna’s teachings to bring back the glory of Bharatvarsha that will be the real tribute to Shri Krishna.
    NASTO MOHA SMRIT LABDHA TAT PRASADAN MAYACHYUTA,
    STHITO ASMI GAT SANDEHA KARYESHYE VACHANAM TAVA.
    wake to Krishna’s teaching and be great and peaceful with all the prosperities.
    This is very good and inspiring article on Janmasthami.
    hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare
    hare raam hare raam raam raam hare hare.

  3. बहुत ही सुन्दर लेख। कम शब्दों में श्रीकृष्ण का अद्भुत मूल्यांकन। ऐसे सारगर्भित और ललित लेख के लिए लेखक को कोटिशः धन्यवाद। सार्थक लेखन का अनूठा उदाहरण है यह लेख।

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