लगभग छह साल बाद हैदराबाद एक बार फिर आतंकी बम धमाकों से धहल गया। २००७ में गोकुल चाट और लुंबनी पार्क में बम विस्फोटों के बाद से अब तक हैदराबाद आतंकी हमलों से महफूज रहा था। उसी साल मशहूर मक्का मस्जिद में हुए धमाके में नौ लोगों की जान चली गई थी। २००२ में दिलसुख नगर इलाके में हुए धमाके में दो लोगों की मौत हो गई थी। एक बार फिर दक्षिण भारत के महानगर के दिलसुख नगर इलाके में पांच मिनट के अंतराल से दो धमाके हुए। कोणार्क और वेंकटाद्रि सिनेमाहाल के करीब हुए इन धमाकों में १२ लोगों की मौत हो गई और ८४ लोग जख्मी हैं, जिनमें से कुछ ही हालत गंभीर बताई जा रही है। धमाके में आइईडी (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) के इस्तेमाल की संभावना जताई गई है। दो साइकिलों में रखे गए विस्फोटक में टाइमर के जरिए धमाका किया गया। ये धमाके ऐसे समय हुए हैं जब तीन महीने के भीतर दो आतंकियों अजमल कसाब और अफजल गुरु को फांसी दी गई है। ऐसी भी आशंका जताई जा रही है कि इन बम धमाकों के पीछे लश्कर-ए-तैयबा का हाथ हो सकता है। वहीं सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि ये धमाके अजमल कसाब और अफजल गुरु की फांसी से ज्यादा लश्कर-ए-तैयबा के 12 आतंकियों के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी की चार्जशीट का बदला लेने के लिए हो सकते हैं। गौरतलब है कि जिन १२ आतंकियों के खिलाफ बुधवार को बेंगलूरु में चार्जशीट दाखिल की गई है उनमें से दो का संबंध हैदराबाद से है। इनमें ओबैदुर्रहमान मूलत: हैदराबाद का रहने वाला है, जबकि नांदेड़ का अकरम पाशा लंबे समय से हैदराबाद में रह रहा था। वैसे सुरक्षा एजेंसियां लंबे समय से हैदराबाद में आतंकी हमले की आशंका जताती रही हैं। मुंबई हमले के दोषी लश्कर आतंकी अजमल कसाब की फांसी के बाद केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने हैदराबाद में आतंकी हमले की आशंका जताई थी जिसके बाद शहर की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के अनुसार बुधवार और गुरुवार को खुफिया एजेंसियों ने आतंकी हमले के प्रति आगाह किया था। इसके आधार पर सभी राज्यों को सचेत भी कर दिया गया था। लेकिन इसमें हैदराबाद में आतंकी हमले की अलग से आशंका नहीं जताई गई थी। जाहिर है खुफिया विभाग की इस सतही सूचना पर सुरक्षा बंदोबस्त करना संभव नहीं था और आतंकियों ने इसी का लाभ उठाया। बहरहाल हैदराबाद में जो हुआ उसकी कड़े शब्दों में निंदा की जानी चाहिए।
फिर ये धमाके ऐसे समय में हुए हैं जबकि आतंक को रंगों में बांटने की साजिश चल रही है। देश के गृहमंत्री सुशिल कुमार शिंदे कांग्रेस आलाकमान को खुश करने के लिए हिन्दू आतंकवाद का शिफूगा छोड़ते हैं वहीं कमोबेश हर आतंकी घटना में आई एम जैसे मुस्लिम आतंकी संगठन का नाम आता है। वैसे आतंकवाद को बढाने में कांग्रेस की नीतियों की भूमिका कम नहीं रही। इंदिराजी की नीतियों ने भिंडरांवाला को शह दी, जिसका परिणाम आज तक सिख समुदाय भुगत रहा है। वैसे ही कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण को हवा देती रही है। जहां कहीं भी भगवा आतंकवाद के नाम पर बम धमाके हुए हैं, वे इसी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के परिणाम थे। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का जिन्न राजीवजी ने बोतल से बाहर निकाला था, जिसका खामियाजा देश आज तक भोग रहा है। भला क्या जरूरत थी, एक निचली अदालत के आदेश पर विवादित स्थल का ताला खुलवाने की? क्या उस फैसले के खिलाफ ऊंची अदालत में अपील नहीं हो सकती थी? राजीवजी ने इधर शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर मुस्लिम वोट बैंक पक्का करने की कोशिश की थी, तो उधर अयोध्या के विवादित स्थल का ताला खुलवाकर और मंदिर का शिलान्यास कराके हिंदू वोट बैंक। फिर हैदराबाद में हुए बम धमाकों में चाहे जिस संगठन या रंग की भूमिका रही हो किन्तु हताहत होने वाले इस देश के आम नागरिक ही थे जिनका रंगों की राजनीति से कोई सीधा ताल्लुक नहीं था। वहीं यह संभावना भी जताई जा रही है कि इन धमाकों के तार गुजरात से भी जुड़ सकते है। चूंकि गुजरात की सबसे सुरक्षित साबरमती जेल में ४२ फीट लंबी सुरंग खोदे जाने में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ होने के खुलासे के बाद से ही सुरक्षा एजेंसियों को आंशका थी कि आइएम कुछ बड़ा करने की फिराक में है और आखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका थी। कारण और वजह चाहे जो हों किन्तु हैदराबाद समेत देश की सुरक्षा को चुनौती देने वाले कृत्य की कठोर निंदा होनी चाहिए और राजनीति से परे जाकर सम्बंधित आतंकी संगठनों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कारवाई की जानी चाहिए। सबसे बड़ी बात आतंक का कोई रंग नहीं होता यह हमारे राजनीतिज्ञों को समझना ही चाहिए।
सिद्धार्थ शंकर गौतम