‘ पारश्य ‘ देश ईरान कभी भारत का एक अंग रहा।
पारसी लोगों का मूल पूर्वज अपना भारत देश रहा।।
‘ आर्यान’ प्रांत ईरान बना, वैदिक धर्म अनुयायी था।
मैक्समूलर है लेखक इसका, ईरान सत्यानुरागी था।।
उत्तर भारत के मूल निवासी बसे ईरान की धरती पर।
वही पारसी कहलाए , हमें गर्व है उनकी हस्ती पर।।
भारत की नदियों के ऊपर नाम रखे निज नदियों के।
पारस से प्रमाणित होते संबंध हमारे सदियों के।।
उपकारों को नहीं भुलाया, सरस्वती और सरयू के ।
दोनों को सम्मान दिया कह हरहवती और हरयू के।।
भरत को बोला ‘फरत’ उन्होंने भूपालन को ‘बेबिलन’।
हम ही भूल गए निज गौरव, बिगड़ा भाषा उच्चारण।।
विस्मय होता है आज देखकर बच्चे शिक्षक बन बैठे।
मूल पिता पर रौब झाड़ते, रहते हर पल ऐंठे – ऐंठे।।
मेधा को लिया उधार हमीं ने, गौरव सारा बिसराया।
अपने ही बिछड़े परिजनों को , नहीं इतिहास बताया।।
सीख लीजिए पारस से यह, दूरी कितनी घातक होती ?
अपने ही जब नादिर बन जाते पीड़ा कितनी गहरी होती ?
हाथ पकड़ अपनों को रखिए, साथ हमेशा याद रखो।
आभास दीजिए अपनेपन का, कड़वाहट को दूर रखो।।
स्याह रात का अंधियारा था, ‘अपने’ हाथ झटक बैठे।
इस्लाम का झंडा हाथ उठाकर, देश में रक्त बहा बैठे।।
अपने ही अपने रह न सके , उन तूफानों की आंधी में।
मातृभूमि को किया विभाजित सहयोग दिया बर्बादी में।।
भूलो मत इतिहास कभी अपना हर पृष्ठ हमें बतलाता है।
किस-किस ने कब की गद्दारी, खोल खोल समझाता है।।
जो अतीत को भूलेगा, भविष्य उसी का उजड़ा करता।
जो बीते कल से शिक्षा ले, भविष्य उसी का सुधरा करता।।
भारत के बाहर भारत खोजो, गंभीर शोध अनुसंधान करो।
अपने योद्धा पूर्वजों का – तन, मन, धन से सम्मान करो।।