इन मुट्ठी भर लोगों के,
भड़काने और बहकाने से,
क्यों राम के भक्त
और अल्लाह के बन्दे,
मरने मारने पर,
आमदा हो जाते हैं!
कभी मुज़्जफ़रनगर तो कभी,
सहारनपुर जलाते हैं।
चंद नेता और कुछ कट्टरवादी
(अ)धार्मिक तत्व,
कैसे मजबूर कर देते हैं,
अपनो को अपनो का ख़ून बहाने को,
सिर्फ इसलियें कि एक तिलक लगाता है,
और दूसरा जालीदार टोपी पहनता है।
सिर्फ़ इसलियें कि एक रोज़ा रखता है,
दूसरा उपवास करता है।
हिन्दू को लगता है,
हिन्दुत्व असुरक्षित है।
मुसलमान समझता है,
इस्लाम ख़तरे मे है।
पर यहाँ तो इंसान और
इसांनियत ही ख़तरे मे है।
वो धर्म इंसान की को क्या सिखायेगा,
जो अपना कवच भी न बन पाये…
धर्म इतना कमज़ोर तो नहीं होता,
कि हवा के झोंके से बह जाये!