-हरेराम मिश्र
बिहार में इन दिनों चुनावी सरगर्मियां बड़ी तेज हो गयी हैं। इस राज्य में इन दिनों विधान सभा के आम चुनाव हो रहे हैं। और इस चुनाव को निष्पक्षतापूर्वक निपटाने के लिए निर्वाचन आयोग ने भले ही कमर कस ली हो, लेकिन बिहार में आज भी यह दावे से कोई नहीं कह सकता कि चुनाव के दौरान या उसके ठीक बाद में किसी तरह की कोई चुनावी हिंसा नहीं होगी। और इसी असमंजस का एक परिणाम यह निकला कि निर्वाचन आयोग ने चुनाव डयूटी गये सभी सरकारी कर्मचारियों का एक बीमा करा दिया है ।इस बीमें के तहत अगर किसी भी किस्म की चुनावी हिंसा मे पोलिंग डयुटी में लगे कर्मचारी की मौत होती है तो उसके आश्रितों को दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा।
गौरतलब है कि यह राज्य सामंती और नक्सली हिंसा की चपेट में पिछले कई वर्षों से रहा है। और पिछले कई चुनाव इस बात के गवाह रहे हैं कि आम चुनावों मे बूथों पर या इस चुनाव के दौरान हुई हिंसा में केवल सरकारी कर्मचारी ही नहीं लाइन मे लगा आम वोटर भी मारा गया है । और इस हिंसा के शिकार हुए सरकारी पोलिंग कर्मचारियों को सरकार द्वारा भारी भरकम मुआवजा और सरकारी सेवा के सारे लाभ मिलते हैं, वही वोटर के लिए आज भी हमारे चुनाव आयोग के पास कोई ठोस योजना नहीं है। और वह आज भी सरकार द्वारा घोषित अनुग्रह राशि ही पा पाता है और वह भी शायद एक या दो लाख। आज भी हमारी सरकार के पास वोटर को देने के लिए कुछ नहीं है। उसे किसी किस्म का कोई बीमा कवर नहीं मिलता है। आखिर देश के इस मतदाता के साथ ऐसा क्यों? उसे चुनाव ड्यूटी में लगे सरकारी कर्मचारी जैसा बीमा कवर सरकार क्यो नहीं देती? निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि हर मतदाता को चुनावी और बूथ पर हुई किसी किस्म की हिंसा से पूर्णत: सुरक्षा दी जाएगी। और अगर बूथ पर या चुनाव हिंसा के कारण किसी भी वोटर की जान जाती है तो उसके आश्रितों को एक पर्याप्त आर्थिक सुरक्षा हित लाभ दिया जाएगा। अगर इस तरह का कोई कदम सरकार नहीं उठा सकती तो एक आम मतदाता जो राजनैतिक माफियागर्दी और सामंती गुडागर्दी का शिकार है वह भला बूथ पर क्यों जाएगा। और अगर चला भी गया तो वह निष्पक्ष वोट कैसे कर पाएगा। जो लोकतंत्र की सबसे आधारभूत सीढी होती है।
बात सिर्फ बिहार की ही नहीं है उत्तर प्रदेश में भी इन दिनों त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं और जैसा कि पहले और दूसरे चरण में हई चुनावी हिंसा में आम वोटरों को अपनी जान से हाथ धोना पडा,और जिन वोटरों की भी मौत इस चुनाव में हुई है, उनके बीवी और बच्चे आगे अनाथ होकर भुखमरी और मुफलिसी में ही जिएंगे। कुल मिलाकर आम वोटर के लिए यह चुनाव उनके और उनके बच्चों के लिए एक अभिशाप से ज्यादा कुछ नहीं बना। और सरकार ने आज तक एक पैसे की मदद पीडित परिवारों के लिए नहीं दी। कहने ज्यादा जरूरत नहीं है और मैं भी उत्तर प्रदेश से ही हूं और और इस पंचायत चुनाव में पोलिंग बूथ तक जाने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है। क्योकि मैं जानता हँ कि अगर बूथ पर मेरे लाइन मे लगने के दौरान बूथ पर गोली चली और किसी भी ओर की गोली से मै मारा गया मेरे बच्चे भूखों मर जाएंगे और सरकार सिर्फ लोकतंत्र का तमाशा करेगी। और एक पैसा मुवाबजा नहीं मिल सकेगा। और जब कोई सुरक्षा नहीं तो हम वोट देने क्यों जाएं? हां यह अलबत्ता होगा कि मेरा नाम भी बूथ लुटेरों में शामिल कर लिया जाएगा।
दरअसल आज भी हमारे नौकरशाह और राजनैतिक दल देश के आम आदमी को केवल अपने राजनैतिक हित साधने के औजार के बतौर प्रयोग करते चले आ रहे हैं और जिस तरह से राजनीतिक दलो के बीच आम बहस के मुद्दे गायब हुए, जनता ने भी चुनाव से किनारा कसना शुरू कर दिया है। घटते वोटिंग प्रतिशत का यह एक बडा कारण है।और नौकरशाही केवल अपना ही लाभ देखती है वह अपने लिए सुविधाओं के दरवाजे खुद खोल लेती है, लेकिन आम वोटर की कोई परवाह नहीं करती। आज जरूरत इस बात की आ गयी है कि आम वोटर को भी सरकारी कर्मचारियों की तरह फुल बीमा कवर दिया जाय ताकि आम वोटर भविष्य की चिंता छोड कर स्वस्थ दिलो दिमाग से पोलिंग बूथ पर अपना वोट कर सके। क्या सरकार इसके लिए तैयार हो रही है?
यदि बीमा करा दिया और सभी वोट करने लगे तो फिर पूंजीपतियों के भरोसे चुनाव जीतने वालों तथा धर्म के नाम पर देश को गुमराह करने वालों का क्या होगा?
निस्संदेह वोटरों को भी बिमा कवर मिलना chahie