अरूण पाण्डेय
आखिर दाल का खेल क्या था, हर बार, हर साल एक नयी चीज के दाम बढ जाते है, पहले प्याज सरकारों को खून के आंसू रूलाती रही , उसके बाद चाय से मिठास गायब हो गयी, फिर आलू के दाम आसमान छूने लगे और अब तिलहन रूला रही है। हर साल एक रोजमर्रा की चीज इतनी महंगी हो जाती है कि आम आदमी का जीवन प्रभावित होने लगता है।सरकार परेशान हो जाती है और यह काम सबसे पहले महाराष्ट्र से होता है । इस बार भी एैसा ही हुआ यानि इसका मतलब यह हुआ कि किसानों के सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले जो महाराष्ट्र में होते है उसका कारण उनका अपना राज्य ही है, जो जमाखोरी करता है और पूरे देश को प्रभावित करता है।
सरकार ने जो अब किया उसे पहले करना था लेकिन सरकार ने आनन फानन में विदेश से दाल आयात कर लिया । एक साल में पूरे देश में दाल की जो खपत है वह लगभग एकलाख बीस हजार टन के आसपास है और अब जबकि विदेश से भी दाल आ गयी है और चोरी की दाल भी बरामद हो गयी है। देश में दाल का इतना अधिक स्टाक होना परेशानी में डालने वाला है। अब जबकि कुछ ही दिनो बाद नयी दाल भी आ जायेगी तो इन दालो का क्या होगा। इस पर मंथन की जरूरत है और जिन लोगों ने जमाखोरी की है और हमेशा से किसी न किसी चीज की जमाखोरी कर सरकार को परेशान करते है जिनसे पूरा देश परेशान रहा उनके लिये आजन्म मिलने वाली सजा का प्रावधान करने के पहल की आवश्यकता है।
गौरतलब हो कि पिछले दिनों चीनी व प्याज के दामों पर काबू पाया, दालों के आसमान छूने लगे। दाम को काबू में लाने के लिए जमाखोरों के खिलाफ शुरू की गई तो कारवाई के तहत 13 राज्यों में अब तक 75, 000 टन के करीब दाल जब्त की गई है। केंद्र सरकार ने राज्यों से यह भी कहा है कि वह दाल मिलों, थोक विक्रेताओं और खुदरा व्यापारियों के साथ उचित दाम पर दाल बेचने के लिए बातचीत करें।मगर क्यों यह बात अभी भी समझ में नही आ रही है।जिन दालो पर सरकार का कब्जा होना था और उसे तत्काल बाजार में उतारना था,उसे कानूनी पचडों में नही फंसाना चाहिये था इससे समस्या जस की तस रही , होता यह है कि जब केाई चीज पकडी जाती है तो उसे जब तक मामला खत्म न हो , सील कर दिया जाता है जिसके कारण वह किसी काम की नही रह जाती और रखे रखे खराब हो जाती। इसका लाभ व्यापारी को मिलता है और अंदर ही अंदर वह खराब तंत्र का फायदा उठाकर सारी सामग्री बेंच देता है और कागजों में वह चीज खराब बताकर मामला को रफा दफा कर दिया जाता है। पिछली सरकारों ने इस प्रकिया को खूब बढाया दिया जिससे जमाखोरी बढी लेकिन कोई कानून इस बाबत सरकार ने नही बनाये कि पकडी गयी चीजें सीधे सरकार नीलाम कर उसे बाजार में उतारे और जमाखोरों को एक सबक भी मिले। उसे वापस छोडने का मतलब ही नही था फिर भी एैसा किया जा रहा हैं।जिसके कारण आज भी दाल के दाम आसमान छू रहें है।
राज्यों में गिरने लगे दालो के दाम-
वैसे तो पकडी गई दालों पर सरकार का कब्जा हो जाता है लेकिन राज्य का प्रभाव कम न हो इस लिये उन्हें ही बेचने का दायित्व दे दिया गया। यहां यह बता देना उचित होगा कि खुदरा बाजार में अरहर दाल का भाव 210 रुपए तक बढने के समाचार है। एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, राज्यों में जमाखोरों के खिलाफ छापेमारी जारी है। आवश्यक उपभोक्ता वस्तु अधिनियम के तहत केंद्रीय आदेश में संशोधन के बाद राज्यों में अब तक कुल 6,077 छापे मारे गए। विज्ञप्ति में कहा गया है कि जमाखोरों के खिलाफ छापों के बाद राज्यों से दाल के दाम में गिरावट का रुख आने की जानकारी मिली है।
फर्नडवीश को बदनाम करने की साजिश-
अब तक जब्त की गई 74, 846.35 टन दाल में से सबसे ज्यादा 46,397 टन महाराष्ट्र में जब्त की गई। इसके बाद 8, 755.34 टन कर्नाटक में, 4, 933.89 टन बिहार में, 4, 530.39 टन छत्तीसगढ़ में, 2, 546 टन तेलंगाना में, 2, 295 टन मध्य प्रदेश में और 2, 222 टन राजस्थान में जब्त की गई। कृषि वर्ष 2014-15 में दालों का घरेलू उत्पादन 20 लाख टन कम रहने से देशभर में दालों के दाम चढ़ गए। कमजोर और बेमौसम वर्षा की वजह से उत्पादन कम रहा। इसके अलावा वैश्विक बाजार में भी दालों की आपूर्ति सीमित रही है।यह भी दालों के दाम बढने का एक कारण रहा हैं।
क्या कहता है मंत्रालय-
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा, केंद्र ने राज्यों से कहा है कि वे दाल मिलों, थोक विक्रेताओं और खुदरा व्यापारियों के साथ बैठक कर खुदरा बाजार में उचित दाम पर दालें उपलब्ध कराने को कहें। मंत्रालय ने इसके साथ ही यह भी कहा कि कुछ राज्यों ने इस दिशा में पहल भी की है। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे एक संदेश में केंद्र ने कहा है कि कुछ राज्यों में राशन की दुकानों के जरिए उचित दाम पर दालों की बिक्री से इनके दाम बढने से रोकने में मदद मिली है। अन्य राज्यों को भी इस तरह के कदम उठाने पर विचार करने को कहा गया है।
अब इसके लिये क्या करेगी सरकार-
दालों की आसमान छूती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। दालों का आयात करने के साथ साथ 40, 000 टन दालों का बफर स्टॉक बनाने की दिशा में पहल की है। इसके अलावा जमाखोरी रोकने के लिए आयातकों, निर्यातकों, विभागीय स्टोरों और लाइसेंस प्राप्त प्रसंस्करणकर्ताओं को भी स्टॉक सीमा के दायरे में लाया गया है। सरकारी वक्तव्य में कहा गया है, दाल के दाम पर अंकुश के लिए कई उपायों के साथ साथ कुछ दाल का आयात भी किया गया है और राज्यों से कहा गया है कि वह खुदरा बाजार की महंगाई पर लगाम लगाने के लिए अपनी वितरण जरूरत के बारे में बताएं। कुछ राज्यों ने इसका जवाब दिया और अरहर दाल की मात्रा का उठाव किया है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कल दाल की खुदरा कीमत 210 रुपए किलो तक पहुंच गई थी। उड़द 190 रुपए किलो, मूंग दाल 130 रुपए, मसूर दाल 110 रुपए और चना दाल का भाव 85 रुपए किलो तक पहुंच गया। जिसे शीध्र ही काबू पाने की बात कही जा रही है लेकिन जमाखोरो को लेकर सरकार का रवैया अभी भी सुस्त है।
जिस देश में सिर्फ कुछ कोमोडीटीज के दाम बढ़ जाने से लोग चुनाव में अपना वोट देने का निर्णय बदल दे उस देश की जनता को मैं राजनितिक रूप से परिपक्व नही मानता। कृषि उत्पादनों में चक्रीय (cyclic) प्रभाव होता है। कुछ वर्षो के अंतराल पर कुछ अज्ञात कारणों से किसी फसल विशेस के उत्पादन में कमी आ जाती है, फलस्वरूप दाम बढ़ जाते है। जमाखोरों की भी चांदी हो जाती है। जमाखोरों और प्रकृति से निपटने का एक ही तरीका है की आप उस खाद्य वस्तु का उपयोग कम कर दे। बेचारे गरीब बाध्यतावश ऐसा करते भी है। लेकिन जो आर्थिक रूप से सक्षम है उन्हें भी ऐसा करना चाहिए। जमाखोरों की हवा निकल जाएगी। सब कुछ सरकार करेगी या यह बेशर्म जनता भी कुछ करेगी।