—विनय कुमार विनायक
कुणाल! तुम महारानी पद्मावती
व मगध सम्राट अशोक के लाल!
तुम्हारी दो आंखें थी खंजन जैसी
सुन्दर, हो गई थी तुम्हारा काल!
कुणाल नयनाभिराम थे इतने कि
विमाता; तिष्य हो गई थी बेहाल!
जैसे एक पूर्वजा उर्वशी अर्जुन को
देखकर मोहित हुई थी पूर्व काल!
कुणाल धर्मविवर्द्धन! तुम्हारी थी
विमाता के प्रति मर्यादा बेमिसाल!
विमाता तिष्यरक्षिता ने खेली थी,
तुम्हें दंड देने की, एक कूट चाल!
तुझे बना दिया गया था प्रांतपति
अशांत प्रांत गांधार का, तत्काल!
तुमने शीघ्र विद्रोह कुचल कर के,
तक्षशिला में शांति किया बहाल!
तुझे तक्षशिला में अधीयताम् हेतु,
पिताश्री ने राजाज्ञा दिया निकाल!
‘कुमार अधीयताम्’ को विमाते ने
‘कुमार अंधीयताम्’ की बिंदु डाल!
तक्षशिला में यूं अंधे हुए कुणाल,
सफल हुई विमाते की कपटचाल!
पिता को ज्ञात हुई पुत्र की दशा,
जब मगध में भटक रहा बेहाल!
कंचनमाला संग एक वीणावादक
गाते मधुर रागिनी में सुर ताल!
अपने पुत्र की स्वर लहरी सुनके
अशोक के हृदय में उठा भूचाल!
बोलो पुत्र, परिचय दो,कहो कैसे?
किसने किया तुम्हें ऐसा बदहाल!
चन्द्रगुप्त प्रपौत्र, बिन्दुसार पौत्र
अशोक सुपुत्र,मैं युवराज कुणाल!
विमाता तिष्यरक्षिता को माफी
दें,पर मैं काकिणी हीन कंगाल!
मैं याचक नहीं, रणवीर क्षत्रिय,
चाहत नहीं मुझे मिले टकसाल!
मगर पुश्तैनी अधिकार चाहिए
सम्प्रति को राजा करो बहाल!
सम्राट अशोक ने छोड़ी गद्दी,
पौत्र को घोषित किया भूपाल!
हर कोई सुन्दर हो कुणाल सा,
सबका चरित्र हो कुणाल जैसा!
सुन्दरता देह नहीं आंखों में है,
सबमें सुन्दरता है मिसाल का!