पिछले कुछ दिनों से जम्मू कश्मीर फिर से चर्चा में है । जम्मू संभाग के दस जिलों में से आठ में तो कर्फ़्यू लगाना पड़ा । जगह जगह सेना फ़्लैग मार्च निकाल रही है । किश्तवाड शहर में तो नौ अगस्त को ईद के दिन हिन्दुओं की सारी की सारी दुकानें जला दी गईं । दिन भर यह अग्निकांड होता रहा और राज्य के गृह राज्य मंत्री वहीं बैठे तमाशा देखते रहे । कुछ दिन पहले रामबन के धर्म संगलदान गाँव से सीमा सुरक्षा बल को हटवाने के लिये क़ुरान शरीफ़ के अपमान की कहानी प्रचारित की गई । रामबन और किश्तवाड की घटनाओं के पीछे के षड्यंत्र और उसकी रणनीति को जाने बिना इन घटनाओं की तह तक नहीं पहुँचा जा सकता । फ़ारूक़ अब्दुल्ला के वक़्त जम्मू में एक आन्दोलन चला था कि जम्मू संभाग को एक अलग राज्य बना दिया जाये ताकि वह कश्मीर के राजनैतिक षड्यंत्रों से परे रह कर अपना विकास कर सके । फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने उसी समय से अपने पिता महरूम शेख अब्दुल्ला की तरह इस शुद्ध प्रशासनिक प्रश्न को साम्प्रदायिक रंग देना शुरु कर दिया था । उन्होंने कहना शुरु कर दिया कि यदि जम्मू को अलग राज्य बनाया गया तो डोडा , किश्तवाड , रामबन जैसे जिलों को कश्मीर राज्य में शामिल किया जाये । तब जम्मू कश्मीर राज्य के भूगोल को जानने वाले विद्वान फ़ारूक़ की इस मांग पर हैरान थे , क्योंकि ये ज़िले भौगोलिक दृष्टि से जम्मू संभाग के अंग हैं । उसके बाद फ़ारूक़ ने जो कहा , उससे दिल्ली में बैठे उनके समर्थक भी हैरान रह गये थे । फ़ारूक़ ने कहा कि ये जिले इसलिये कश्मीर में आने चाहिये , क्योंकि इनमें मुस्लिम बहुसंख्यक हैं । अभी तक जम्मूसंभाग और कश्मीर संभाग को लेकर चर्चा विशुद्ध रुप से भौगोलिक और प्रशासनिक आधारों पर हो रही थी , लेकिन फ़ारूक़ ने इस सारे प्रश्न को मज़हबी रंग देना शुरु कर दिया । नैशनल कान्फ्रेंस के लिये यह कोई नई बात नहीं थी , बल्कि उसकी राजनीति का आधार इसके संस्थापक प्रधान शेख अब्दुल्ला के समय से ही कट्टर साम्प्रदायिकता रहा है । इस पार्टी की हर पॉलिसी हिन्दु और मुसलमान से ही शुरु होती है और वहीं पर ख़त्म होती है ।
जम्मू कश्मीर में अगले साल चुनाव होने वाले हैं । उसी को ध्यान में रखते हुये , नैशनल कान्फ्रेंस फिर अपने पुराने शुगल पर उतर रही है , हिन्दु मुसलमान को आपस में लड़ाना । डोडा और किश्तवाड में मुसलमान बहुमत में है । लेकिन यहां के मुसलमानों में दो समूह हैं । एक समूह डोगरा मुसलमानों का जो ज्यादातर राजपूत हैं और दूसरा समूह कश्मीरी मुसलमानों का , जो कभी कश्मीर से आकर यहां बस गये थे । नैशनल कान्फ्रेंस डोगरा मुसलमानों पर ज्यादा विश्वास नहीं कर सकती और न ही करती है क्योंकि जब कभी जम्मू संभाग के सामूहिक हितों का प्रश्न आता है तो डोगरा मुसलमान भी हिन्दु डोगरा के साथ खडे होते हैं । पचास के दशक में जम्मू में चले प्रजा परिषद आन्दोलन में डोगरा मुसलमानों ने भी भाग लिया था । गुज्जर तो वैसे भी कश्मीरी मुसलमानों के साथ खडे नहीं होते । गुज्जरों के हित अन्तर्राजीय हैं , क्योंकि वे पंजाब , हरियाणा , हिमाचल तक फैले हुये हैं और उनकी रिश्तेदारियां भी इन राज्यों में होती रहती हैं । इस परिप्रेक्ष्य में नैशनल कान्फ्रेंस को अपनी आगामी चुनावी रणनीति बनानी है । नैशनल कान्फ्रेंस का आधार कश्मीरी मुसलमान ही हैं । लेकिन अब उसमें हिस्सा बंटाने के लिये महबूबा मुफ्ती की पी.डी.पी भी मैदान में है । कश्मीर में सिकुड रहे राजनैतिक आधार की भरपाई कहां से की जाये , यही नैशनल कान्फ्रेंस की मुख्य चिन्ता है । यह पूर्ति बनिहाल की जवाहर सुरंग के पार के उन्हीं मुसलमानों से हो सकती है जो शताब्दियों पहले डुग्गर प्रदेश में आ बसे थे । नैशनल कान्फ्रेंस को शायद कहीं न कहीं यह विश्वास है कि मुसलमान आक्रामक होगा तो शायद हिन्दु , कश्मीर की तरह यहां से भी भाग जाये । नहीं भागेगा तो कम से कम , जब उस पर आक्रमण होगा तो उसकी हिम्मत तो समाप्त हो ही जायेगी । इस झगड़े से मुसलमान वोटों का ध्रुवीकरण हो जायेगा और इन जिलों में मुस्लिम वोटों के दूसरे दावेदार हाशिये पर चले जायेंगे । नैशनल कान्फ्रेंस के प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने के लिये मुसलमानों के ये आक्रमण अत्यन्त सहायक हो सकते हैं । लगता है अपनी इस रणनीति के तहत , नैशनल कान्फ्रेंस ने पहला प्रयोग किश्तवाड में किया । इसी कारण पार्टी के वरिष्ठ नेता सज्जाद अहमद किचलू ईद से तीन दिन पहले ही किश्तवाड में डेरा जमा कर बैठ गये । नैशनल कान्फ्रेंस की प्रयोगस्थली के इन जिलों में रहने वाले मुसलमानों में बहुसंख्यक कश्मीरी मुसलमान ही हैं । जिस समय ये बदबख्त हालत में यहाँ आये थे , उस वक़्त जम्मू के डोगरों ने मानवीय आधार पर इनको डुग्गर क्षेत्र में बसाया ही नहीं वल्कि हर प्रकार से इनकी सहायता भी की । लेकिन यही कश्मीरी मुसलमान आज उन्हीं डोगरों के घरों व दुकानों को , केवल साम्प्रदायिक कारणों से ,जलाते रहे और राज्य के राज्य गृह मंत्री चुपचाप तमाशा ही नहीं देखते रहे बल्कि बहुत ही होशियारी से पुलिस को निष्क्रिय बनाने में जुटे रहे । शायद उमर अब्दुल्ला को अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि नैशनल कान्फ्रेंस के इस राष्ट्रघाती प्रयोग की डोगरों में इतनी तीव्र प्रतिक्रिया होगी । किश्तवाड में शुरु हुये नैशनल कान्फ्रेंस के इस प्रयोग के खिलाफ सारा जम्मू संभाग सड़कों पर उतर आया । प्रतिक्रिया इतनी तीव्र थी कि दस में से आठ जिलों में कर्फ़्यू लगाना पड़ा और जम्मू सेना के हवाले करना पड़ा ।
जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवादी संगठनों की रणनीति चाहे अलग हो , लेकिन फ़िलहाल उनको नैशनल कान्फ्रेंस की यह फिरकापरस्त राजनीति सबसे ज़्यादा रास आ रही है । यह ध्यान रखना चाहिये कि आम तौर जब किन्हीं स्थानीय कारणों से दो समुदायों में झगड़ा होता है या फिर जम्मू कश्मीर की विशेष परिस्थिति में मुसलमानों की भीड़ हिन्दुओं पर आक्रमण करती है तो गाली गलौज भी स्थानीय विषयों तक ही सीमित होता है । लेकिन किश्तवाड में मुसलमानों की जो भीड़ हिन्दुओं की सम्पत्ति जला रही थी और गोलियाँ चला रही थी , वह पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे ही नहीं ,उसके झंडे भी फहरा रही थी । पाकिस्तान का समर्थन करने की अधीरता में भारत विरोधी नारे भी लगा रही थी । इसे मरहले पर पाकिस्तान समर्थक देशी और विदेशी आतंकवादियों की भूमिका प्रारम्भ होती है । आक्रमण से हिन्दु आतंकित होंगे , यह इस प्रकार के कांडों का आतंकवादियों की नज़र में मात्र अतिरिक्त लाभ है । आतंकवादियों की असली समस्या है , ग्राम सुरक्षा समितियां । आतंकवाद और आतंकवादियों का मुक़ाबला करने के लिये सरकार ने जब अपनी लाचारी प्रकट कर दी थी या फिर किसी गहरी नीति के कारण चुप रहना श्रेयस्कर समझा था , तब गांवों के लोगों ने अपनी रक्षा स्वयं करने का संकल्प लिया था । तब गाँवों में इन समितियों की स्थापना हुई थी और इनके सदस्यों को हथियार भी मुहैया करवा दिये गये थे । इन सुरक्षा समितियों ने अनेक स्थानों पर आक्रमणकारी आतंकियों का बहादुरी से मुक़ाबला किया था और राज्य में आतंकवाद को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । अभी भी आतंकवादी इन ग्राम सुरक्षा समितियों को अपने रास्ते का रोड़ा समझते हैं । किश्तवाड के उपद्रव के बाद , हुर्रियत कान्फ्रेंस के गिलानी , जम्मू कश्मीर मुक्ति मोर्चा के मोहम्मद यासीन मलिक और श्रीनगर की जामा मस्जिद के मीरवायज का तुरन्त अभियान शुरु हो गया कि ग्राम सुरक्षा समितियाँ समाप्त कर उनके हथियार ज़ब्त कर लेने चाहिये । यही मांग आतंकवादियों की है । यदि किश्तवाड के आसपास के गाँवों में ग्राम सुरक्षा समितियाँ न होतीं तो न जाने इस पूरे कांड में कितने हिन्दु मारे जाते । अब सरकार ग्राम सुरक्षा समितियों की सूचियाँ तैयार कर रही है , ताकि उनसे हथियार वापिस लिये जा सकें । मक़सद शायद यही होगा कि जब अगला आक्रमण होगा तो कोई बच न पाये । इस बार घर संहार अगली बार नर संहार ।
इस बार पाकिस्तान के दिशा निर्देश में चल रहे आतंकवादी संगठनों ने लगता है , अपनी रणनीति बदल ली है । रामबन और अब किश्तवाड में हुई घटनाएँ इसका स्पष्ट संकेत देती हैं । इन दोनों स्थानों पर हुई घटनाओं में भीतर ही भीतर एक तारतम्यता देखा जा सकता है । आतंकवादियों के रास्ते में सब से बड़ी बाधा कौन सी है ? स्पष्ट ही सुरक्षा बल और ग्राम सुरक्षा समितियाँ । इनको रास्ते से कैसे हटाया जाये या फिर किसी तरह इनकी मार्क शक्ति को कम किया जाये ? इससे पहले आतंकवादी इन दोनों से ख़ुद भिड़ते थे , लेकिन नई रणनीति में वे स्वयं पीछे हैं और आम मुसलमान को आगे किया हुआ है । सामान्य मुसलमानों को आगे कर उन्हें सुरक्षा बलों से भिड़ाने के लिये कोई बहाना तो चाहिये । राज्य में जिस प्रकार का उत्तेजित वातावरण है , उसमें बहाने तलाश करने में कोई ज़्यादा मशक़्क़त नहीं करनी पड़ती । रामबन के संगलदान में किसी मोहम्मद लतीफ़ से सुरक्षा बलों द्वारा क़ुरान शरीफ़ के अपमान की कहानी बनाई लेकिन किश्तवाड में तो उसकी ज़रुरत भी नहीं पड़ी । किश्तवाड में मुसलमानों का एक समूह पिछले कुछ दिनों से हिन्दुओं पर हमले का आधार तैयार कर रहा था । कुछ दिन पहले मंदिर में मूर्ति स्थापना हेतु पुछाल गाँव से निकली कलश यात्रा को लेकर संग्रामभाटा गाँव में कुछ लड़कों ने आपत्ति की थी । इस झगड़े में एक मुसलमान लड़के आतिल को मामूली चोटें आईं थीं । लेकिन साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये हिन्दुओं ने कलश यात्रा का मार्ग बदल लिया । परन्तु उसी दिन जब कुलीद गाँव का रणमीत सिंह परिहार अपने गाँव आ रहा था तो संग्राम भाटा में मुसलमान युवकों ने उसे रोक लिया और पीटते पीटते मरा समझ कर छोड़ दिया । उसके मोटर साईकिल को आग लगा दी । रात्रि को अनेक गांवों में हिन्दुओं के घरों पर पथराव किया जाता था । हफ्ता दस दिन पहले मुसलमानों के गांवों में एक सुसंगठित ग्रुप द्वारा यह अफवाहें फैलाई जा रही थीं कि मुसलमानों के गांवों को जलाने की धमकियां मिल रही हैं । यह घटना उदाहरण के लिये है । इस इलाक़े में पिछले लगभग एक मास से हिन्दुओं को मनोवैज्ञानिक तरीक़े से घेरने की कोशिश हो रही थी और ज़ाहिर है इसके पीछे कोई संगठित ग्रुप ही काम कर रहा था । लेकिन ताज्जुब है कि राज्य का गुप्तचर विभाग , सतर्कता विभाग या तो सोया रहा या फिर उसने जान बूझ कर चुप रहना उचित समझा । किश्तवाड की घटनाओं के इन संकेतों को समझ कर सरकार ने हिन्दुओं पर होने वाले आक्रमणों को रोकने की योजना क्यों नहीं बनाई यह आश्चर्य जनक है । लगता है जम्मू कश्मीर के आतंकवादी संगठनों ने डुग्गर क्षेत्र के उन जिलों में से , जिनमें कश्मीरी मुसलमानों का बहुमत है , हिन्दुओं को निकालने के लिये माओवादी रणनीति अख़्तियार की है । राज्य के आतंकवादी संगठनों ने स्वयं को दो समूहों में बांट लिया है । भूमिगत समूह और राजनैतिक समूह । यह राजनैतिक समूह सामान्य राजनैतिक शब्दावली का प्रयोग करते हुये आतंकवादियों के उद्देश्य की पूर्ति में सक्रिय रहता है । इस बार जम्मू संभाग , ख़ासकर डोडा , रामबन और किश्तवाड जैसे जिलों में, जहाँ के मुसलमानों में डोगरा मुसलमान अल्पमत में हैं और कश्मीरी मुसलमान बहुमत में हैं , हिन्दुओं को निकालने की योजना बन रही है ।नैशनल कान्फ्रेंस को उससे राजनैतिक लाभ मिलेगा और आतंकवादियों का राज्य को निज़ाम-ए-मुस्तफ़ा बनाने में सहायता मिलेगी । क्या यह किसी गहरी साज़िश का हिस्सा नहीं लगता कि जब आतंकवादी अपने राजनैतिक ग्रुप से मिल कर जम्मू संभाग में हिन्दुओं पर क़हर बरसा रहे हैं तो पाकिस्तान लगातार सीमा पर गोलीबारी कर रहा है ? यह ठीक है कि मौक़े पर ही पकडे जाने की चर्चा तेज होने की बजह से राज्य के गृह मंत्री सज्जाद अहमद किचलू ने त्यागपत्र दे दिया है , लेकिन जब तक सारे षड्यंत्रकारी पकडे नहीं जाते तब तक सरकार की नीयत पर संदेह बना ही रहेगा । इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये ज़रुरी है कि
१ इस बात की जाँच की जाये कि किचलू ने इस कांड से पहले के सात दिनों में किस किस से बात की । आसपास के मुस्लिम बहुमत वाले गाँवों में उनकी किसने सामान्य से ज़्यादा लम्बी बातचीत हुई ।
२ अग्निकांड के दौरान किचलू की फ़ोन पर किन किन से बातचीत हुई ।
३ संग्राम भाटा व हुल्लार गाँव में भीड़ को किश्तवाड के हिन्दुओं पर हमला करने के लिये किस ने एकत्रित किया । ज़ाहिर है यह काम कुछ गिने चुने कमिटिड समूह का ही हो सकता है । क्या गुप्तचर विभाग को इसका पता था ? यदि पता था तो वह चुप क्यों रहा ?
४ पुलिस विभाग के कौन कौन से लोग इन षड्यंत्रकारियों से मिले हुये थे ?
उमर अब्दुल्ला जिस न्यायिक जाँच का छुनछुना देकर सज्जाद अहमद किचलू को बचाना चाहते हैं , उससे लोगों का ग़ुस्सा शान्त नहीं होगा । गहराई से किचलू की भूमिका की जाँच करनी पड़ेगी तभी दूध का दूध और पानी का पानी होगा । कहीं उमर इस बात से तो नहीं डर रहे कि यदि सचमुच किचलू पर सख़्ती की गई तो वह इतना उगल देगा कि उसकी दुर्गन्ध की चपेट में कई आ जायेंगे । लेकिन अब तक नैशनल कान्फ्रेंस और आतंकवादी संगठनों को इतना तो समझ आ ही गया होगा कि डुग्गर इलाक़े में १९९० का कश्मीर बनाना इतना आसान नहीं है । आमीन !
ज़रा उमर अब्दुल्ला की बातों पर ध्यान दें. दो दिन पहले उसने कहा
“भारत हमें अपना अंग भी नहीं समझता है.” वहां हिन्दू पिट रहें हैं
और कसूरवार भारत है. चोरी और सीनाजोरी. जम्मू को अलग
पदेश बनाना जरूरी है.
यह निश्चित रूप से हिन्दुओं के खिलाफ साजिश है. कांग्रेस पार्टी इस साजिश का हिस्सा है. इस पार्टी ने सर्कार को समर्थन दे रखा है. कांग्रेस पार्टी हिन्दुओं को हिन्दुसतना से अंतिम सांसें गिनते हुए देखना चाहती है. इसके बाद कांग्रेस को भंग कर दिया जायेगा और कठमुल्लों की सरकार सत्ता में आएगी.