ताकि बचा रहे सबका मन मंदिर

—–विनय कुमार विनायक
निठल्ला नारद ही हमेशा
नारायण-नारायण कहता,
नारद के हाथों जब थमा दी जाती
तेल की कटोरी या आटे-दाल की बोरी
तो तुलाधार बनिया या
सधना कसाई की तरह
रामो जी राम एकबार भी नहीं कहता!

सर्वविदित है हर धर्म के साथ जुड़ी होती
धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की कामना!
वैसा भी धर्म क्या जिससे हो अर्थ की हानि,
कर्म में व्यवधान,मोक्ष प्राप्ति के बजाय
असमय मरकर स्वीकारनी पड़े प्रेत योनि!

एक मंदिर या मस्जिद बनाने के पहले
जहां ढह जाते हजारों मन-मंदिर
वहां बेईमानी है कहना
कि मंदिर-मस्जिद वहीं बनाएंगे!
किसी ईश्वर ने नहीं कहा
कि हम रहते हैं मंदिर या मस्जिद में
किसी अवतार-पैगम्बर-देवदूत ने नहीं कहा
कि हम रहेंगे किसी मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर में!

अवतार-मसीहा-पैगम्बर युगानुसार जन्म लेते
पैदा करते हैं एक युगधर्म
जो परिस्थिति के बदलते ही उलट-पलट जाता!
फिर बदली परिस्थिति में कितना तर्क संगत है
पूर्व के बाह्याचरण को पालना?

राम ने मारा था रावण को या नबी के
वलीअहद ने छेड़ा जिहाद अपने युगधर्मानुसार
जो आज जायज नहीं किसी के लिए
राम बनकर रावण को मारना
या जेहादी बनकर विधर्मी का गला उतारना!

राम या अवतार-पैगम्बर एक राजधर्मसत्ता थे
और आज संख्या गणित की सत्ता है
यह युग है एक से गिनती गिनने का
हर एक जीवन को बचाने का
मनुज को मनुज बनाने का!

यह युग नहीं उलटी गिनती गिनने का,
यह समय नहीं परशुराम बन जाने का
इक्कीसबार जाति संहार का कसम खाने का!
अस्तु; एक मंदिर बनाने के पहले बेहतर है
अनेक मन मंदिर को बचाना!

मंदिर जो मिला है हर एक को ईश्वर से
मंदिर जो नंगा है उनकी वजह से
जिनकी योग्यता है एकमात्र पोशाक
खादी का कुर्ता/सफेद लिबास!

लिबास जो मिटा देता है
अनपढ़ और पढ़े-लिखे का अंतर
पोशाक जो साजिश करता
आत्मा को नंगा करने का
निठल्ले नारद को आठोयाम पुजारी बनाने का
ईश्वर को मुट्ठी में कैद करने-कराने का
जरुरत है उनको बेनकाब करना,
ताकि बचा रहे सबका अपना-अपना मंदिर!

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