देश में पढे लिखे भिखारी 

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अनिल अनूप 
भीख मांगते लोगों के बारे में अगर आपकी भी यही धारणा है कि वे अशिक्षित और लाचार होने की वजह से मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं तो ध्यान दें कि एक रिपोर्ट के अनुसार देश में बड़ी संख्या में डिग्री और डिप्लोमा वाले भिखारी हैं.
भारत में सड़कों पर भीख मांगने वाले लगभग 78 हजार भिखारी शिक्षित हैं और उनमें से कुछ के पास प्रोफेशनल डिग्री भी है. यह चौकाने वाली बात सरकारी आंकड़ों में सामने आई है. 2011 की जनगणना रिपोर्ट में “कोई रोजगार ना करने वाले और उनके शैक्षिक स्तर” का आंकड़ा हाल ही में जारी किया गया है. इसके अनुसार देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं. इनमें से लगभग 79 हजार यानि 21 फीसदी साक्षर हैं. हाई स्कूल या उससे अधिक पढ़े लिखे भिखारियों की संख्या भी कम नहीं है. यही नहीं इनमें से करीब 3000 ऐसे हैं जिनके पास कोई न कोई टेक्निकल या प्रोफेशनल कोर्स का डिप्लोमा है. और इनमें से ही कुछ के पास डिग्री है और कुछ भिखारी तो पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं.
भिखारियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी के चलते भारत के शहर बदनाम हैं. लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में सिर्फ एक लाख पैंतीस हजार लोग ही भीख मांग कर अपना गुजारा चलाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भीख मांग कर जीवनयापन करने वालों की संख्या लगभग दो लाख सैंतीस हजार है. भारत की विशाल आबादी को देखते हुए भिखारियों की यह संख्या कम ही कही जाएगी. एक अन्य सरकारी आंकड़े के अनुसार भीख मांगने वालों में 40 हजार से ज्यादा बच्चे भी शामिल हैं. वैसे देश के कई राज्यों में भीख मांगने पर प्रतिबंध है.
क्यों मांगते हैं भीख?
आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के रहने वाले 27 साल के अयप्पा (बदला हुआ नाम) एक शिक्षित भिखारी हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. काम की तलाश में मुंबई आने पर काम तो मिला लेकिन शोषण ज्यादा हुआ. बंधुआ मजदूर जैसी स्थिति से छुटकारा पाकर भीख से काम चलाते हैं. अपनी कमाई के बारे में कुछ भी बताने से इनकार करने वाले अयप्पा अपने घरवालों की आर्थिक मदद भी करते है.
भारत में सड़कों पर भीख मांगने वाले लगभग 78 हजार भिखारी शिक्षित हैं और उनमें से कुछ के पास प्रोफेशनल डिग्री भी है. यह चौकाने वाली बात सरकारी आंकड़ों में सामने आई है. 2011 की जनगणना रिपोर्ट में “कोई रोजगार ना करने वाले और उनके शैक्षिक स्तर” का आंकड़ा हाल ही में जारी किया गया है. इसके अनुसार देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं. इनमें से लगभग 79 हजार यानि 21 फीसदी साक्षर हैं. हाई स्कूल या उससे अधिक पढ़े लिखे भिखारियों की संख्या भी कम नहीं है. यही नहीं इनमें से करीब 3000 ऐसे हैं जिनके पास कोई न कोई टेक्निकल या प्रोफेशनल कोर्स का डिप्लोमा है. और इनमें से ही कुछ के पास डिग्री है और कुछ भिखारी तो पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं.
भिखारियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी के चलते भारत के शहर बदनाम हैं. लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में सिर्फ एक लाख पैंतीस हजार लोग ही भीख मांग कर अपना गुजारा चलाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भीख मांग कर जीवनयापन करने वालों की संख्या लगभग दो लाख सैंतीस हजार है. भारत की विशाल आबादी को देखते हुए भिखारियों की यह संख्या कम ही कही जाएगी. एक अन्य सरकारी आंकड़े के अनुसार भीख मांगने वालों में 40 हजार से ज्यादा बच्चे भी शामिल हैं. वैसे देश के कई राज्यों में भीख मांगने पर प्रतिबंध है.
आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के रहने वाले 27 साल के अयप्पा (बदला हुआ नाम) एक शिक्षित भिखारी हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. काम की तलाश में मुंबई आने पर काम तो मिला लेकिन शोषण ज्यादा हुआ. बंधुआ मजदूर जैसी स्थिति से छुटकारा पाकर भीख से काम चलाते हैं. अपनी कमाई के बारे में कुछ भी बताने से इनकार करने वाले अयप्पा अपने घरवालों की आर्थिक मदद भी करते है.
जिस देश में दान की एक बड़ी गौरवशाली और अद्वितीय परमपरा रही हो उस देश में अगर लाखों लोग सुबह सुबह सड़को पर भीख मांगने के लिए निकल पड़े तो आप स्वय ही अंदाजा लगा सकते हैं कि परिद्रश्य कैसा होगा. एक ऐसा द्रश्य जिसे न तो कोई देश से आने वाला सैलानी देखना पंसद करेगा और न ही हम भारत के लोग।
भीख मांगने के प्रति  रूझान
भिखारी दिन में कमाता हैं और रात में मस्ती कर सारा पैसा उड़ा देता है. बिना मेहनत किए ही जब मौज मस्ती के लिए पैसा आसानी मिल जा रहा है तो कामचोर लोगों में इसके प्रति रूझान भी बढ़ रहा है। यही वजह है कि भीख मांगना आज एक प्रकार का धंधा बन गया हैं।
धंधा बनने से इसमें कुछ गिरोहों भी सक्रिय हो गए हैं, जो इसको संगठित रूप देकर लोगों से भीख मंगवाने का कार्य कर रहे हैं. इस गिरोह में अपंग लोगों और बच्चों का भी खूब इस्तेमाल किया जाता है. गिरोह में शामिल लोग बच्चे का अपहरण कर उनसे भीख मंगवाते हैं.यदि बच्चे भीख नहीं मांगते हैं तो उन्हें मारा पीटा जाता हैं. बच्चो का अपहरण कर उन्हें विकलांग बनाकर उनसे भीख मंगवाई जाती हैं. दरअसल, यह एक बिना पूंजी का धंधा हैं, जिसमें बिना कोई पैसा लगाए पैसा कमाया जाता हैं ।
लेकिन इन तमाम बातों के अलावा भिक्षावृत्ति भारत के माथे पर ऐसा कलंक है जो हमारे आर्थिक तरक्की के दावों पर सवाल खड़ा करता है. भीख मांगना कोई सम्मानजनक पेशा नहीं बल्कि अनैतिक कार्य और सामाजिक अपराध है. खासकर जब किसी गैंग या माफिया द्वारा जबरन बच्चों, महिलाओं या किसी से भी भीख मंगवायी जाती है तब यह संज्ञेय कानूनन अपराध की श्रेणी में आ जाता है.
लिहाजा अब समय आ गया है कि भीख मांगने को जिस प्रकार गिरोह बनाकर संगठित रूप से अंजाम दिया जा रहा है उसको देखते हुए अब इन भिखारियों पर सख्ती किए जाने की आवश्यकता है. निकम्मे और कामचोर बने बैठे इन भिखारियों को किसी न किसी काम में लगाए बिना देश का कल्याण संभव नहीं है. सामाजिक चेतना को बढ़ावा देने साथ साथ बेरोजगारी, गरीबी, आदि के उन्मूलन के अलावा इसके निवारण के लिए सरकार को भिखारियों के गिरोहों के खिलाफ कड़ी कारवाई करनी चाहिए.
सरकार के आंकड़े 
भारत एक विकासशील देश है और अभी भी लगभग 40 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे है। देश में इस वक्त कुल 413760 भिखारी हैं जिनमें 221673 भिखारी पुरुष और बाकी महिलाएं हैं। भिखारियों की इस लिस्ट में पश्चिम बंगाल सबसे आगे है। वहीं दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश और तीसरे नंबर पर बिहार है। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलौत ने लोकसभा में भिखारियों की संख्या का डेटा पेश किया।
डाटा के अनुसार भारत में चार लाख 13 हजार 670 भिखारी हैं। दो लाख 21 हजार 673 पुरुष हैं, जबकि एक लाख 91 हजार 997 महिलाएं हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में भिखारियों और बेघरों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है। 81 हजार भिखारी सिर्फ पश्चिम बंगाल में रहते हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 65838 भिखारी हैं इनमें 41859 पुरुष और 23976 महिलाएं है। वहीं बिहार में 29723 भिखारी हैं इनमें 14842 पुरुष और 14881 महिलाएं है। लेकिन एक ऐसी जगह है जहां भिखारियों की संख्या सबसे कम है, लक्षद्वीप में महज दो भिखारी हैं।।
संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार दादर नगर हवेली में 19, दमन और दीयू में 22 और अंडमान और निकोबार द्वीप पर सिर्फ 56 बेघर हैं। देश की राजधानी में दो हजार 187 भिखारी हैं। वहीं असम, मणिपुर और पश्चिम बंगाल में महिला भिखारियों की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। एक प्रश्न के जवाब में गहलोत ने कहा कि इन भिखारियों को उनकी क्षमतानुसार अनुसार रोजगार दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सर​कार इस तरह के बेघर और बेसहारा भिखारियों के हर संभव मदद का प्रयास कर रही है।
वही पिछड़े वर्गों के लिए काम करने वाली एक संस्था ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) से अपील की है कि खानाबदोश, भिखारियों, घुमंतू जाति और अनधिसूचित जनजातियों सरीखी श्रेणियों को अन्य पिछड़ा वर्ग के ‘अ’ समूह में शामिल करें। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को उप-समूहों में विभाजित करने के लिए एक आयोग का गठन किया था, ताकि समुदाय के सबसे पिछड़े लोग आरक्षण से अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें। बैकवर्ड क्लासेस (बीसी) कल्याण संघ के अध्यक्ष आर.कृष्णैया ने इस संबंध में एक पत्र भी लिखा है।

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