
थप्पड़ ने लप्पड़ को मारा,
लप्पड़ ने घूँसे को।
घूँसा अब क्या करे बेचारा,
पीट दिया ठूंसे को।
ठूंसेजी को वहीं पास में,
मुक्का पड़ा दिखाई।
बिना बिचारे उस मुक्के की,
कर दी खूब धुनाई।
सबको लड़ता देख वहाँ पर,
बुलडोज़र सर आये।
मार- मार उन्हें भगाया,
मौका बिना गंवाए।
तभी दौड़कर चांटा आया
थप्पड़ को समझाया।
लप्पड़जी पर व्यर्थ आपने,
अपना हाथ चलाया।
आपस में ही लड़ जाने से,
किसका हुआ भला है।
रहे गुलामी में सदियों,
ये ही परिणाम मिला है।