
—विनय कुमार विनायक
खत्म हुआ आदमियत
सब कुछ हो गया पैसा,
मिला नहीं अवैध पैसा
कलतक जो अपना था,
अब हो गया ऐसा-वैसा!
सभी जानता पैसा अना
फना होनेवाला असासा,
पास होने पर अहसास
दिलाता है अच्छाई का,
आदमी बुरा बिना पैसा!
पैसा पाकर जैसा-तैसा
आदमी समझने लगता
अपने को ऐसा, मानो
पैसा ही सबकुछ होता,
ईश्वर से उपर है पैसा!
पैसों में परख नहीं है
आदमियत इंसान का,
सबकुछ खरीदता पैसा,
पर मानव की सच्चाई
खरीद नही पाता पैसा!
पैसा नही रचना कोई
ईश्वर की सृष्टि की,
बिना पैसों का जीवन
कैसे पार लग जाता है
भू के बाकी जीवों का?
—विनय कुमार विनायक