जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं… वैसे वैसे सियासी पारा भी चढ़ता जा रहा है…कांग्रेस हो या बीजेपी…पीएम पद को लेकर अभी से खींचतान शुरू हो गई है… कांग्रेस में तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साफ कर चुके हैं कि वे राहुल गांधी नेतृत्व मे काम करने को तैयार हैं… लेकिन दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी में जबरदस्त उथल पुथल चल रही है…आडवाणी है कि हार मानने को तौयार नहीं हैं…वे कभी नहीं चाहते कि पीएम इन वेटिंग का टिकट कोई और छीन ले… लेकिन समय बड़ा बलवान होता है…आडवाणी के साथ भी यही हुआ… आडवाणी कभी बीजेपी के नंबर दो थए…अटल के बाद पार्टी में उन्ही की सबसे ज्यादा सुनी जाती थी.. बीजेपी के लौहपुरुष आडवाणी ने ही पार्टी को 2 लोकसभा सीटों से लेकर 182 सीटों के आंकडे तक पहुंचाया था…लेकिन 2004 के लोकसभा चुनाव ने आडवाण की तकदीर ही बदल दी… बीजेपी का इंडिया शाइंनिंग फ्लॉप रहा… पार्टी को करारी हार का सामन करना पड़ा और पार्टी सतिता से बेदखल हो गई…इसके बाद पार्टी में अध्यक्ष पद को लेकर घमासान हुआ…तो आडवाणी ने अध्यक्ष पद छोड़ना स्वीकार कर लिया… जैसे तैसे पांच साल कट गए…बीजेपी के स्टॉलवार्ट ने पीएम इन वेटिंग की चिकट भी कटाया और एनडीएम की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार भी घोषित हुए… लेकिन आडवाणी की उम्मीदों पर तब पानी फिर गया जब 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कल्याणकारी योजनाओं और लुभावने वादो के दम पर फिर से सत्ता में आ गई…और आडवाणी का सपना एख बार फिर से टूटकर रह गया…यह हार आडवाणी के सियासी करियर को गर्त मे ले जाने के लिए काफी थी… धीरे धीरे पार्टी में ही आडवाण की पकड़ कमजोर होती गई…लोकसभा और राज्यसभा में आडवाणी ने अपने चहेतो को नेता प्रतिपक्ष तो बनवा दिया लेकिन यहीं से उनकी मुखालफत शुरू हो गई…
पार्टी के कई नेता खुलकर आडवाण के साथ हौं लेकिन दूसरी पांत के अधिकतर नेता अब आडवाणी को आशीर्वाद देने लायक ही समझते हैं…और उन्हें सक्रिय राजनीति से अलग करना चाहते हैं… औऱ इसके लिए पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोदी नाम के तुरुप के इक्के को आगे किया है…हालांकि राजनाथ इस तुरुप के इक्के के दम पर ही बीजेपी को स्त्ता में वापस लाना चाहते हैं… लेकिन यही इक्का आडवाणी की परेशान का कारण बना है… हालांकि यह दीगर बात है कि कभी नरेंद्र मोदी आडवाणी के चेले रहे थे और उन्हें आडवाणी की पूरी शह थी… 2002 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में गुजरात दंगों की गूंज रही थी… उस समय अटल बिहारी वाजपेई ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कड़ा संदेश दे दिया था कि वे नैतिकता के आधार पर पद छोड़ें…मोदी भी बैठक में आकर इस्तीफे की पेशकश करने का मन बना चुके थे….इसका दबाव उके चेहरे पर साफ देखा जा रहा था….लेकिन तब आडवाणी उनकी ढाल बने,…और रातोंरात ऐसी सेटिंग की कि मोदी की कुर्सी बच गई… उस वक्त तक मोदी आडवाणी को ही अपना मेंटर मानते थे….लेकिन 11 साल बाद हालात एकदम जुदा हैं…आज पीएम पद की उम्मीदवारी पर मोदी और आडवाणी में तलवारें खिंची है…
2013 में मोदी के बढ़ते कद से आडवाणी को एहसास हो गया था कि अब पीएम पद के लिए मोदी उनसे काफी आगे निकल गए हैं….लिहाजा आडवाणी ने शिवराज चौहान को मोदी से बेहतर बताकर उनका तोड़ ढूंढने की कोशिश की…. जून 2013 में गोवा में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी को कैंपेन कमेटी का चीफ बनाने की चर्चा चली तो आडवाणी बीमारी का बहाना बनाकर बैठक से किनारा कर गए…आडवाणी की पूरी टीम भी गोवा नहीं गई…हालांकि सुषमा स्वराज बैठक के आखिरी दिन मौजूद रही… राजनाथ और दूसरे नेता आडवाणी की मान मनौव्वल में लगे रहे लेकिन वे गोवा नहीं गए…. 9 जून 2013 को जैसे ही मोदी को कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष घोषित किया गया… आडवाणी नाराज हो गए…बीजेपी का महारथी अब ये बात समझ गया था कि जब पार्टी अध्यक्ष और दूसरी पांत के नेता खुलकर मोदी क साथ हैं तो हठधर्म अपनाने से ज्यादा बेहतर ये होगा कि किसी पार्टी नेताओं को इमोशनली ब्लैकमेल किया जाए…आडवाणी अचानक से कोपभवन मे चले गए…उन्होंने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया…हालांकि राजनाथ ने आडवाणी को मनाने में पूरा जोर लगाया और रूठे लाल एक बार फिर से मान गए… इसके बाद आडवाणी और मोदी तीन बार बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में आमने सामने आ चुके हैं लेकिन दोनों में दूरियां साफ दिखती रही हैं…
इस बी मोदी का जादू लोगों के सिर चढ़ने लगा था…रैलियों और सभाओं में उमड़ती भीड़ से बीजीप को मोदी में कुशल नेतृत्व की उम्मीद दिखने लगी…लिहाजा आरएसएस ने भी मोदी को पीएम प्रोजेक्ट किए जाने के लिए एजेंटा साफ कर दिया… मगर आडवाणी अब भी अपने आंसू घुट घुट कर पीते रहे…संघ नेताओं से मुलाकात के दौरान भी आडवाणी को साफ संकेत दे दिया कि वे मोदा के लिए 7 आरसीआर का रास्ता साफ करें… संघ औऱ बीजेपी ने 13 सितंबर 2013 को संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाने और इस मीटिंग में पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर मोदी के नाम का एलान करने का फैसला किया…तो फिर से आडवाणी ने इमोशनल ब्लैकमेलिंग का सहारा लिया…आडवाणी फिर से कोपभवन मे चले गए… और संसदीय बोर्ड की बैठक में न आने के संकेत दिए.. आडवाणी नहीं चाहते कि 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहेल मोदी के नाम का ऐलान हो… .हालांकि ये भी खबरें आ रही हैं आडवाणी को मनाने के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया गया है कि मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित किया जाए…और कैंपेन कमेटी की मान आडवाणी के चहेते जेटली या सुषमा को सौंप दी जाए… फिलहाल राजनाथ सिंह और अन्य नेताओं ने आडवाणी को मनाने की कोशिश कर रहे हैं….कि आखिरी बार आडवाणी किसी तरह मोदी के नाम पर सहमत हो जाएं तो पार्टी चुनाव के दौरान सीना ठोककर जनता के बीच जा सकती है…
पंकज कुमार नैथानी