15 अगस्त सिर्फ जश्न का नहीं आत्ममंथन का भी दिन

भारत हर वर्ष 15 अगस्त को अपना स्वाधीनता दिवस मनाता है।
यह दिन जहां हमारे आजाद होने की खुशी लेकर आता है, वहीं इसमें भारत के खण्ड खण्ड होने का दर्द भी छिपा होता है।
वक्त के गुजरे पन्नों में भारत से ज्यादा गौरवशाली इतिहास किसी भी देश का नहीं हुआ।
लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप से ज्यादा सांस्कृतिक राजनैतिक सामरिक और आर्थिक हमले भी इतिहास में शायद किसी देश पर नहीं हुए।
और कदाचित किसी देश के इतिहास के साथ इतना अन्याय भी कहीं नहीं हुआ।
वो देश जिसे इतिहास में ‘विश्व गुरु‘ के नाम से जाना जाता हो, उस देश के प्रधानमंत्री को आज आत्मनिर्भर भारत का नारा देना पड़ रहा है।
‘सोने की चिड़िया‘ जैसे नाम जिस देश को कभी दिया गया हो, उसका स्थान आज विश्व के विकासशील देशों में है। शायद हमारा वैभव और हमारी समृद्धि की कीर्ति ही हमारे पतन का कारण भी बनी।भारत के ज्ञान और सम्पदा के चुम्बकीय आकर्षण से विदेशी आक्रमणता लूट के इरादे से इस ओर आकर्षित हुए।वे आते गए और हमें लूटते गए।हर आक्रमण के साथ चेहरे बदलते गए लेकिन उनके इरादे वोही रहे वो मुठ्ठी भर होते हुए भी हम पर हावी होते गए
हम वीर होते हुए भी पराजित होते गए क्योंकि हम युद्ध कौशल से जीतने की कोशिश करते रहे
और वे जयचंदों के छल से हम पर विजय प्राप्त करते रहे हम युद्ध भी ईमानदारी से लड़ते थे और वे किसी भी नियम को नहीं मानते थे इतिहास गवाह है, हम दुशमनों से ज्यादा अपनों से हारे हैं  

जो देश अपने खुद की गलतियों से नहीं सीखा पाता वो स्वयं इतिहास बन जाता है हमें भी शायद अपनी इसी भूल की सज़ा मिली जो हमारी वृहद सीमाएं आज इतिहास बन चुकी हैं।
वो देश जिसकी सीमाएं उत्तर में हिमालय दक्षिण में हिन्द महासागर पूर्व में इंडोनेशिया और पश्चिम में ईरान तक फैली थीं ,आज सिमट कर रह गईं और इस खंडित भारत को हम आजाद भारत कहने के लिए विवश हैं।
अखंड भारत का स्वप्न सर्वप्रथम आचार्य चाणक्य ने देखा था और काफी हद तक चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर इसे यथार्थ में बदला भी था। तब से लेकर लगभग 700 ईसवी तक भारत ने इतिहास का स्वर्णिम काल अपने नाम किया था। लेकिन 712 ईस्वी में सिंध पर पहला अरब आक्रमण हुआ फिर 1001 ईस्वी से हमूद गजनी , चंगेज खान ,अलाउद्दीन खिलजी ,मुहम्मद गलक ,तैमूरलंग , बाबर और उसके वंशजों द्वारा भारत पर लगातार हमले और अत्याचार हुए।
1612 ईस्वी में जहाँगीर ने अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने की इजाज़त दी।
यहाँ इतिहास ने एक करवट ली और व्यापार के बहाने अंग्रेजों ने पूरे भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। लेकिन इतने विशाल देश पर नियंत्रण रखना इतना आसान भी नहीं था यह बात उन्हें समझ में आई 1857 की क्रांति से । इसलिए उन्होंने “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाते हुए धीरे धीरे भारत को तोड़ना शुरू किया।
1857 से 1947 के बीच अंग्रेजों ने भारत को सात बार तोड़ा ।
1876 में अफगानिस्तान
1904 में नेपाल
1906 में भूटान
1914 में तिब्बत
1935 में श्रीलंका
1937 में म्यांमार
1947 में बांग्लादेश और पाकिस्तान
लेकिन हम भारतवासी अंग्रेजों की इस कुटिलता को नहीं समझ पाए कि उन्होंने हमारे देश की भौगोलिक सीमाओं को ही नहीं तोड़ा, बल्कि हमारे समाज, हमारी भारतीयता, इस देश की आत्मा को भी खण्डित कर गए। 
जाते जाते वे इस बात के बीज बो गए कि भविष्य में भी भारत कभी एक न रह पाए।बहुत ही चालाकी से वे हिन्दू समाज को जाती क्षेत्र और दल के आधार पर जड़मूल तक विभाजित कर गए।
जरा सोचिए कि क्यों जब हमसे आज हमारा परिचय पूछा जाता है तो हमारा परिचय ब्राह्मण बनिया ठाकुर मराठी कायस्थ दलित कुछ भी हो सकता है लेकिन भारतीय नहीं होता ?
अंग्रेजों के इस बीज को खाद और पानी दिया हमारे नेताओं ने जो देश के विकास की नहीं वोट बैंक की राजनीति करते आ रहे हैं।
जब इक्कीसवीं सदी के इस ऊपर से, एक किन्तु भीतर ही भीतर विभाजित भारत की यह तस्वीर अंग्रेज देखते होंगे तो मन ही मन अपनी विजय पर गर्व महसूस करते होंगे।
हम भारत के लोग 15 अगस्त को किस बात का जश्न मनाते हैं?
आजादी का?
लेकिन सोचो कि हम आजाद कहाँ हैं?
हमारी सोच आज भी गुलाम है !
हम गुलाम हैं अंग्रेजी सभ्यता के जिसका अन्धानुकरण हमारी युवा पीढ़ी कर रही है।
हम गुलाम हैं उन जातियों के जिन्होंने हमें आपस में बाँटा हुआ है और हमें एक नहीं होने देती ।
हम गुलाम हैं अपनी सरकार की उन नीतियों की जो इस देश के नागरिक को उसके धर्म और जाति के आधार पर आंकती हैं उसकी योग्यता के आधार पर नहीं
हम गुलाम हैं उस तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के जिसने हमें बाँटा हुआ है धर्म के नाम पर
हम गुलाम हैं हर उस सोच के जो हमारे समाज को तोड़ती है और हमें एक नहीं होने देती।
हम आज भी गुलाम हैं अपने निज स्वार्थों के जो देश हित से पहले आते हैं।
अगर हमें वाकई में आजादी चाहिए तो सबसे पहले अपनी उस सोच अपने अहम से हमें आजाद होना होगा जो हमें अपनी पहचान “केवल भारतीय” होने से रोक देती है।
हमें आजाद होना पड़ेगा उन स्वार्थों से जो देश हित में रुकावट बनती हैं।
अब वक्त आ गया है कि हम अपनी आजादी को भौगोलिक अथवा राजनैतिक दृष्टि तक सीमित न रखें।
हम अपनी आज़ादी अपनी सोच में लाएँ । जो सोच और जो भौगोलिक सीमाएं हमें अंग्रेज दे गए हैं उनसे बाहर निकलें।
विश्व इतिहास से सीखें कि जब जर्मनी का एकीकरण हो सकता है, जब बर्लिन की दीवार गिराई जा सकती है, जब इटली का एकीकरण हो सकता है, तो भारत का क्यों नहीं?
चन्द्रशेखर आजाद भगतसिंह सुखदेव महारानी लक्ष्मीबाई मंगल पांडे रामप्रसाद बिस्मिल सुभाष चंद्र बोस अश्फाकउल्लाह खान ने अपनी जान अखंड भारत के लिए न्योछावर की थी खण्डित भारत के लिए नहीं।
जिस दिन हम भारत को उसकी खोई हुई अखंडता लौटा देंगे उस दिन हमारी ओर से हमारे वीरों को सच्चे श्रद्धांजलि अर्पित होगी। 

डॉ नीलम महेंद्र 

1 COMMENT

  1. भारत की अखंडता के प्रति डॉ. नीलम महेन्द्रा जी द्वारा लिखी गद्य-कविता सचमुच उस महान सभ्यता व संस्कृति का दृष्टिपात करती है जिसकी कल्पना प्रायः सामान्य इंडियन अपने ह्रदय में संजोए अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण करता रहा है| कोहलू के बैल की तरह इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा १८६१ और १९४७ के बीच पारित अधिनियमों के घुमावदार पथ पर चलता गिरता सामान्य इंडियन आज भी इस इंडिया में ही जोता गया है| तिस पर विडंबना यह है कि जब रक्तरंजित इंडिया-विभाजन के पश्चात अलग पाकिस्तान बन गया और समय बीतते मुक्ति युद्ध के उपरान्त मार्च २६, १९७१ को पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र बांग्लादेश भी बना; इस बीच हमारे पड़ोसी देश, बर्मा से म्यान्मार व सीलोन से श्री लंका बन गए, आज वैश्विकता व उपभोक्तावाद के चलते इनक्रेडिबल इंडिया प्राचीन भारतीय सभ्यता व संस्कृति को केवल अजायबघर बनाए हुए है|

    देश में सकारात्मक राजनीतिक वातावरण में आज क्यों न हम पहले इंडिया को भारतवर्ष के नाम में परिवर्तित करने की मांग करें ताकि उपयुक्त राष्ट्रवाद पर आधारित समाज के सभी क्षेत्रों में राष्ट्र हित विकास-उन्मुख कार्यकलाप द्वारा भारतीय नागरिक स्वच्छ सुन्दर सशक्त व समृद्ध भारतवर्ष का पुनर्निर्माण कर पाएं|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

15,439 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress