कारगर नहीं हुए कालाधन पर लगाम के कानून

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anu ji
प्रमोद भार्गव
राजग सरकार ने विदेशों में जमा कालेधन को देश में लाने और देश के भीतर कालाधन पैदा न हो इस मकसद की भरपाई के लिए कारगर कानूनी उपाय किए पिछले साल दो कानून बनाकर किए थे। बावजूद न तो कालाधन वापस आया और न ही बनने से रुक पाया। इससे साफ होता है कि ये कानून हाथी के दांत साबित हो रहे हैं। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से होती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मन की बात‘ कार्यक्रम में कालेधन के कुबेरों से कहना पड़ा है कि 30 सितंबर तक यदि कालाधन घोषित नहीं किया गया तो कठोर कार्यवाही की जाएगी। हालांकि इस तरह की चेतावनियां मोदी समेत वित्तमंत्री अरुण जेटली कई मर्तबा दे चुके हैं, लेकिन इन मोटी खाल वाले कुबेरों पर कोई असर नहीं पड़ा। इस बार भी लगता तो यही है कि मोदी की यह हुंकार महज नक्कार खाने की तूती साबित होगी।
मोदी सरकार ने इस नाते एक तो ‘कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और आस्ति विधेयक-2015‘ को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया था। दूसरे देश के भीतर कालाधन उत्सर्जित न हो,इस हेतु ‘बेनामी लेनदेन;निषेध विधेयक को मंत्रीमण्डल ने मंजूरी दी थी। ये दोनों विधेयक इसलिए एक दूसरे के पूरक माने जा रहे थे, क्योंकि एक तो आय से अधिक काली कमाई देश में पैदा करने के स्रोत उपलब्ध हैं, दूसरे इस कमाई को सुरक्षित रखने की सुविधा विदेशी बैंकों में हासिल है। लिहाजा कालाधन फल फूल रहा है। दोनों कानून एक साथ वजूद में आने से यह उम्मीद जगी थी कि कालेधन पर कालांतर में लगाम लग जाएगा।
विधेयक में सरकार ने कालाधन अघोषित विदेशी आय एवं जायदाद और कर आरोपण-2015 कानून बनाकर कालाधन रखने के प्रति उदारता दिखाई थी। क्योंकि इसमें विदेशों में जमा अघोषित संपत्ति को सार्वजानिक करने और उसे देश में वापस लाने के कानूनी प्रावधान हैं। दरअसल कालेधन के जो कुबेर राष्ट्र की संपत्ति राष्ट्र में लाकर बेदाग बचे रहना चाहते हैं,उनके लिए अघोषित संपत्ति देश में लाने के दो उपाय सुझाए गए हैं। वे संपत्ति की घोषणा करें और फिर 30 फीसदी कर व 30 फीसदी जुर्माना भर कर शेष राशि का वैध धन के रूप में इस्तेमाल करें। विदेशों में जमा संपत्ति को वैध करने का अधिकतम समय दो माह और छह माह की समय-सीमा,कर व जुर्माना चुकाने की दी गई है। किंतु अवधि समाप्त होने के बाद कोई व्यक्ति विदेश में जमा संपत्ति के साथ पकड़ा जाता है,तब वह कठोर दण्ड का भागीदार होगा। उसे 30 प्रतिशत कर के साथ 90 प्रतिशत अर्थ-दंड भरना होगा और आपराधिक अभियोग का सामना भी करना होगा। गोया,विधेयक में प्रावधान है कि विदेशी आय में कर चोरी प्रमाणित हाती है तो 3 से 10 साल की सजा के साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी प्रकृति का अपराध दोबारा करने पर तीन से 10 साल की कैद के साथ 25 लाख से लेकर एक करोड़ रुपए तक का अर्थ-दण्ड लगाया जा सकता है। जाहिर है,कालाधन घोषित करने की यह कोई सरकारी योजना नहीं थी। अलबत्ता अज्ञात विदेशी धन पर कर व जुर्माना लगाने की ऐसी सुविधा थी, जिसे चुका कर व्यक्ति सफेदपोष बना रह सकता है। ऐसा ही उपाय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने देशी कालेधन पर 30 प्रतिशत जुर्माना लगाकर सफेद करने की सुविधा दी थी। इस कारण सरकार को करोड़ों रुपए बतौर जुर्माना मिल गए थे,और अरबों रुपए सफेद धन के रूप में तब्दील होकर देश की अर्थव्यस्था मजबूत करने के काम आए थे।
देश में कालाधन उत्सर्जित न हो,इस हेतु दूसरा कानून बेनामी लेनदेन पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। यह विधेयक 1988 से लंबित था। इस संशोधित विधेयक में बेनामी संपत्ति की जब्ती और जुर्माने से लेकर जेल की हवा खाने तक का प्रावधान है। साफ है,यह कानून देश में हो रहे कालेधन के सृजन और संग्रह पर अंकुश लगाने के लिए था। मोदी सरकार ने फरवरी में 2015-16 का बजट प्रस्ताव पेश करते हुए बेनामी सौदों पर अंकुश की दृष्टि से नया व्यापक विधेयक पेश करने का प्रस्ताव संसद में रखा था। बेनामी सौदा निशेध अधिनियम मूल रूप से 1988 में बना था। लेकिन अंतर्निहित दोशों के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। इससे संबंधित नियम पिछले 27 साल के दौरान नहीं बनाए जा सके। नतीजतन यह अधिनियम धूल खाता रहा। जबकि इस दौरान जनता दल,भाजपा और कांग्रेस सभी को काम करने का अवसर मिला। इससे पता चलता है कि हमारी सरकारें कालाधन पैदा न हो,इस पर अंकुश लगाने के नजरिए से कितनी लापरवाह रही हैं। हालांकि 2011 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे द्वारा मुहिम चलाई गई थी। इस मुहिम के मद्देनजर संप्रग सरकार इस विधेयक को संसद में लाई थी। किंतु इसे वित्त मंत्रालय से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। समिति ने जून 2012 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। लेकिन घपलों और घोटालों से घिरी डाॅ मनमोहन सिंह सरकार अपने शेष रहे कार्यकाल में इस विधेयक को संसद में पेश करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। परिणामस्वरूप विधेयक की अवधि 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही खत्म हो गई थी। सबकुल मिलाकर मोदी सरकार यह जताने में तो सफल रही कि वह कालेधन की वापसी के लिए प्रतिबद्ध है। क्योंकि इस सरकार ने शपथ-ग्रहण के बाद केंद्रीय-मंत्रीमडल की पहली बैठक में ही विशेष जांच दल के गठन का फैसला ले लिया था। हालांकि यह पहल सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर की गई थी। लेकिन यही निर्देश न्यायालय संप्रग सरकार को भी देती रही थी,बावजूद वह एसआईटी के गठन को टालती रही थी। इसके बाद राजग सरकार ने 8 ऐसे धन-कुबेरों के नाम भी उजागर किए, जिनका कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है। कालाधन वापसी की इन कोशिशों से सहमति जताते हुए,स्विट्जरलैंड ने भी भारत की इस लड़ाई में सहयोग करने का भरोसा जताया है। पिछले साल भारत यात्रा पर आए स्विट्जरलैंड के आर्थिक मामलों के मंत्री जे एन शनैडार एम्मान ने दिल्ली में कहा था कि हमारी संसद शीघ्र ही उन कानूनों में संशोधन पर विचार करेगी,जिनमें स्विस बैंक खातों की जांच चुराई गई जानकारी के आधार पर की जा रही है।
ये जानकारियां स्विट्जरलैंड के यूबीए बैंक के सेवानिवृत् कर्मचारी ऐल्मर ने एक सीडी बनाकर जग जाहिर की थीं। इस सूची में 17 हजार अमेरिकियों और 2000 भारतीयों के नाम दर्ज हैं। अमेरिका तो इस सूची के आधार पर स्विस सरकार से 78 करोड़ डाॅलर अपने देश का कालाधन वसूल करने में भी सफल हो गया है। ऐसी ही एक सूची 2008 में फ्रांस के लिष्टेंस्टीन बैंक के कर्मचारी हर्व फेल्सियानी ने भी बनाई थी। इस सीडी में भी भारतीय कालाधन के जमाखेरों के नाम हैं। ये दोनों सीडियां संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान ही भारत सरकार के पास आ गई थीं। इन्हीं सीडियों के आधार पर सरकार कालाधन वसूलने की कार्रवाई को आगे बढ़ा रही है। इसलिए सीडी में दर्ज खातेधारियों के नाम सार्वजानिक करने की मांग भी संसद में गूंजती रही है। लेकिन सरकार भारतीय उद्योग संगठन के दबाव में सूची से पर्दा नहीं उठा रही है। इस बावत संगठन का तर्क है कि इन खाताधारियों के नाम उजागर करने के बाद यदि उनकी आय के स्रोत वैध पाए गए तो उनके सम्मान को जो ठेस लगेगी,उसकी भरपाई कैसे होगी ? क्योंकि विदेशी बैंकों में खाता खोलना कोई अपराध नहीं है,बशर्ते रिर्जव बैंक आॅफ इंडिया के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया हो ? रिर्जव बैंक आयकर नियमों का पालन करते हुए प्रत्येक खाताधारी को एक साल में सवा लाख डाॅलर भेजने की छूट देता है। बहरहाल दो नए विधेयक पारित होने और धन कुबेरों को चेतावनी देने के बावजूद कालाधन न तो विदेशी बैंकों से वापस आ रहा है और न ही नया कालाधन बनने पर लगाम लग रही है। जाहिर है, दोनों ही कानून हाथी के दांत भर है।

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  1. मैं प्रायः प्रमोद भार्गव जी के लेख पढ़ता हूँ| हाल ही के दिनों में नकारात्मक लय में प्रस्तुत उनके लेख पढ़ते मैं सोचता हूँ कि उन्हें अतीत के कुशासन फलस्वरूप देश की तीव्र दुर्गति की स्थिति के प्रति सतर्क होते अपनी रचनाओं में सकारात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहिए| भार्गव जी का निबंध, “कारगर नहीं हुए कालाधन पर लगाम के कानून” असामयिक और निर्णयात्मक होते भारतीय राजनीति में राष्ट्रद्रोही तत्वों को लाभान्वित करता मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय शासन पर सीधा प्रहार है क्योंकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भ्रष्टाचार और अराजकता सदैव देश के नीतियों, नौकरशाही परम्पराओं, राजनीतिक विकास, और सामाजिक इतिहास में निहित प्रमाण हैं कि काले धन पर लगाम के कानून बन जाने के पश्चात भी उनका पूर्णतया प्रवर्तन न हो पाना भारतीय चरित्र में घोर पतन की ओर संकेत करता है| बुद्धिजीवियों को सरकार के साथ मिल भारतीयों में राष्ट्रप्रेम जगाते उनके मन में कर्म व आत्मविश्वास की दृढ़ता पैदा करनी होगी ताकि सभी नागरिक यथायोग्य योगदान देते भारत को उज्ज्वल बना पाएं|

  2. इस प्रकार के टोटकों से कुछ नहीं होगा! काले धन की समस्या के समाधान हेतु सबसे पहले यह समझना होगा की विदेशी बैंकों में कालाधन कैसे पहुंचा? समाजवाद के नाम पर इस देश में एक ओर तो धनी होना ही एक गुनाह जैसा हो गया! उन्हें राजनितिक मंचों से बढ़चढ़ कर गालियां दी गईं! और दूसरी ओर राजनीती में बढ़ते धन के प्रभाव के कारण उन्ही धनियों से राजनितिक चंदे के नाम पर मोटी उगाहीयाँ की गयी! कोई चार दशक पूर्व (१९७४ में ) तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने आर्थिक अपराधियों के विरुद्ध जंग छेड़ दी थी! उसकी पृष्ठ भूमि में कश्मीर के एक पत्रकार शमीम अहमद शमीम द्वारा तस्कर हाजी मस्तान का वह इंटरव्यू था जिसमे उसने कांग्रेसी सांसद ( जो घोर वामपंथी माने जाते थे) श्री के.आर.गणेश के लिए कहा था कि,” वो साला काला लम्बू, दिन के उजाले में हमें गालियां देता है और रात में कटोरा लेकर आ जाता है कि मस्तान साहब पैसा दे दो! करोड़ों तो दे चूका हूँ औ कितना दूँ?” इस इंटरव्यू से चिढ़कर इंदिरा जी ने तस्करों को जेल में डाल दिया! (अच्छा किया).सब प्रकार के करों को मिलाने पर कई मामलों में तो कुल आय से भी अधिक कर का भार पड़ने लगा! ऐसे में कमाने वालों को कर चोरी ही आसान रास्ता दिखाई पड़ा!हमारी दोषपूर्ण कर प्रणाली ने ही कालेधन की अर्थव्यवस्था को जन्म दिया और भ्रष्ट राजनीती ने उसे पाला पोसा!कुल कितना काला धन भारतीयों का विदेशी बैंकों अथवा देश के भीतर है इसका कोई ठोस आकलन आज तक नहीं हो पाया है! क्या सरकार को अपनी राजस्व गुप्तचर, आर्थिक अपराध जांच विभाग और कुछ विदेशी एक्सपर्ट ग्रुप्स के माध्यम से काले धन की थाह नहीं लेनी चाहिए थी!यह तो सही है की २६ मई २०१४ को शपथ लेने के फ़ौरन बाद मोदी सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ही काले धन की जांच के लिए एस आई टी का गठन कर दिया गया था! लेकिन वो भी अभी तक पिछले पच्चीस महीनों में कुछ भी करने में नाकाम रही है!ऐसे में सरकार की साख को बट्टा लगना लाज़िमी है! दिक्कत ये है कि हमारे वित्त मंत्री जी एक ईमानदार व्यक्ति हैं! लेकिन इस मामले में वो नाकाम साबित हो रहे हैं! और उनके मंत्रालय में कुछ अधिकारी भी यदा कदा गलत निर्णय करके अपराधियों को बचाते हुए नज़र आते हैं! नेशनल हेराल्ड का मामला भी ऐसा ही एक मामला है! जिसमे एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी ने पहले तो मामले को बन्द करने की ही रिपोर्ट लगा दी थी! लेकिन डॉ.सुब्रमण्यम स्वामी जी की सजगता से वो ऐसा नहीं कर पाया!स्वामी जी ने काले धन को वापिस लाने के बारे में कुछ रास्ते बताये हैं! क्या वित्त मंत्री जी ने अपने अहम से ऊपर उठकर कभी डॉ.स्वामी जी को चाय पर बुलाकर उनसे रास्ते बताने को कहा? नहीं!तो ऐसे में कैसे कुछ होगा यह सोचने का काम अब प्र.म. मोदी जी का है! सफलता का श्रेय उन्हें मिलेगा तो असफलता का ठीकरा भी तो उन्ही पर गिरेगा!

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