भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी.एस. ठाकुर की खीझ

जस्टिस टी.एस. ठाकुर

 

जस्टिस टी.एस. ठाकुर
जस्टिस टी.एस. ठाकुर

स्वतन्त्रता दिवस के पावन अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधान मन्त्री ने अपने संबोधन में जजों के रिक्त पदों के भरने के विषय में कुछ नहीं कहा; भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी.एस. ठाकुर इससे बहुत नाराज हैं। उन्होंने उसी दिन कानून मन्त्री और प्रधान मन्त्री पर कटाक्ष भी किया। अपनी बात कहने का यह कोई उपयुक्त अवसर नहीं था। इसमें उनकी कुण्ठा साफ झलक रही थी। न्यायपालिका में उपर से नीचे तक भयंकर भ्रष्टाचार व्याप्त है। पैसे वालों और पहुंच वालों के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से मनमाफिक फैसले लेना अब आम बात हो गई है। आतंकी याकूब मेनन के लिए सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुल सकता है लेकिन बुलन्द शहर के रेप विक्टिम का संज्ञान भी नहीं ले सकता। लालू यादव, जय ललिता, कन्हैया और सलमान खान उंगलियों पर न्यायालय को नचा सकते हैं, लेकिन साध्वी प्रज्ञा को जांच एजेन्सी की अनुशंसा के बाद भी ज़मानत नहीं मिल सकती। अब तो सुप्रीम कोर्ट कानून भी बनाने लगा है। भारत का क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड एक स्वायत्तशासी संस्था है जो स्थापित नियम कानूनों के हिसाब से बनी है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश से उसकी कार्य पद्धति की जांच करवाई और उसके संचालन के लिए खुद ही नियम भी बना दिए। यह काम विधायिका यानी संसद का था। लेकिन मुख्य न्यायाधीश के अहंकार ने सुप्रीम कोर्ट को विधायिका का रूप दे दिया। BCCI ने सुप्रीम कोर्ट में उसके पूर्व निर्णय के खिलाफ अपील की है जिसमें यह आग्रह किया गया है कि चूंकि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर BCCI के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं, इसलिए उन्हें सुनवाई करने वाली पीठ में न रखा जाय। स्वतन्त्र भारत के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जब वादी ने अपने प्रतिवेदन में मुख्य न्यायाधीश की निष्पक्षता पर साफ-साफ उंगली उठाई हो।
जब मैं पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का मुख्य अभियन्ता (प्रशासन) था, तो एक केस के सिलसिले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में गया था। उसमें मेरे सिवा, मेरे एम.डी, पश्चिमांचल के एम.डी, उत्पादन निगम के अध्यक्ष और पारेषण के एम.डी. भी तलब किए गए थे। हमलोग पूरी तैयारी से दिन के पौने दस बजे ही कोर्ट में पहुंच गए थे, लेकिन न्यायाधीश महोदय दिन के साढ़े ग्यारह बजे कोर्ट में पहुंचे। मई का महीना था। गर्मी के कारण बुरा हाल था। उनके कोर्ट में बैठने की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। हमलोग खड़े होकर अपनी बारी का इन्तज़ार कर रहे थे कि अपराह्न के डेढ़ बज गए। जज साहब लंच के लिए उठ गए। हमलोग गर्मी में ही मरते रहे। फिर जज साहब शाम के चार बजे प्रकट हुए और हमलोगों के केस की सुनवाई पांच बजे तक हुई, फिर अगली तारीख पड़ गई। कोर्ट का काम करने का समय खत्म हो चुका था, अतः जज साहब उठे और अपने घर चले गए। जिन मामलों की सुनवाई नहीं हो पाई थी, उन्हें अगली तारीख मिल गई। न्यायालयों में पेन्डिंग मामलों का एक कारण जजों की कमी तो है, लेकिन यह प्रमुख कारण नहीं है। कोर्ट में गर्मी की छुट्टियों से लेकर न जाने कितनी छुट्टियां होती हैं, हिसाब लगाना मुश्किल है। फिर जजों के काम करने की अवधि औसतन दो से तीन घंटे है। इसपर किसी का नियंत्रण नहीं है। मोदी जी भी कुछ नहीं कर सकते। इस लेख को लिखने के कारण मुझे भी अवमानना के मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है।
मोदी सरकार ने आते ही जजों की नियुक्ति के लिए गठित वर्तमान कालेजियम की त्रुटियों पर ध्यान दिया और संसद से एक बिल पास कराया जिसमें नए कालेजियम की व्यवस्था थी जिसमें जजों की नियुक्ति के लिए केन्द्रीय विधि मन्त्री और विपक्ष के नेता की भी सहभागिता और सहमति आवश्यक थी। बिल पर राष्ट्रपति के भी दस्तखत हो गए थे। नियमानुसार बिल कानून का रूप ले चुका था, परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर इसे रद्द कर दिया। एक प्रश्न चिह्न खड़ा हो गया कि संसद बड़ी है या सुप्रीम कोर्ट? सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान कालेजियम को पुराने स्वरूप में बनाए रखने का निर्णय सुना दिया। इस तरह सुप्रीम कोर्ट देश के राष्ट्रपति और जनता द्वारा चुनी गई संसद से भी बड़ा हो गया। दरअसल वर्तमान कालेजियम सिस्टम में जजों की नियुक्ति के संबन्ध में मुख्य न्यायाधीश को अपार अधिकार मिला हुआ है। कालेजियम में जजों के अतिरिक्त कोई दूसरा सदस्य नहीं हो सकता और कालेजियम सदस्य के रूप में जजों के चुनाव में मुख्य न्यायाधीश की ही चलती है। हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति के लिए न कोई टेस्ट होता है और न कोई इन्टर्व्यू। परिवारवाद, जान-पहचान और अन्य साधनों से कालेजियम के सदस्यों को प्रभावित करके उनका समर्थन हासिल करना ही एकमात्र अर्हता है। नियुक्ति में पारदर्शिता का सर्वथा अभाव रहता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश के संबन्ध में एक सूचना प्रस्तुत है। श्री टी.एस. ठाकुर, मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के पिताजी श्री देवी दास ठाकुर जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के जज थे। हमारे मुख्य न्यायाधीश के छोटे भाई श्री धीरज सिंह ठाकुर इस समय जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं। ऐसा वंशवाद या परिवारवाद हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, कांग्रेस या समाजवादी पार्टी में ही देखने को मिल सकता है। यह सब जजों की नियुक्ति के लिए मौजूद वर्तमान कालेजियम की देन है। जो एक दिन के लिए भी सेसन कोर्ट या लोवर कोर्ट में जज नहीं रहा, वह सीधे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का जज बन सकता है। जस्टिस ठाकुर को यह डर है कि मोदी जी वर्तमान कालेजियम सिस्टम को भंग करने का कोई न कोई तरीका निकाल लेंगे इसीलिए वे प्रधान मन्त्री और विधि मन्त्री से खिझे रहते हैं। अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड में केन्द्रीय सरकार के विरोध में आया निर्णय तो एक बानगी है; आगे-आगे देखिए होता है क्या?
हमें तो इतना ही कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद उच्च संवैधानिक पद है, इसकी गरिमा का ध्यान मुख्य न्यायाधीश को रखना चाहिए। उन्हें केजरीवाल की तरह बयान देने से बचना चाहिए।

22 COMMENTS

  1. आज जब उन्नीस प्रकाशित और एक या दो अप्रकाशित टिप्पणियों(अप्रकाशित इसलिए कि मेरी एक या दो टिप्पणियां नहीं प्रकाशित हुई है.) पर नजर डालता हूँ,तो मुझे यह सोचना पड़ रहा है कि श्री विपिन किशोर सिन्हा जी का यह आलेख लिखने का असली मकसद क्या था? वे न्यायपालिका की अव्यवस्था को सामने लाना चाहते थे या इसी बहाने अरविन्द केजरीवाल पर कुछ कहना चाहते थे? अगर उनका उद्देश्य न्यायपालिका के बारे में कुछ कहना था,तो बीच में अरविन्द केजरीवाल का उल्लेख क्या इस आलेख के अनुरूप था? उससे पूरा ध्यान ही इस आलेख के असली उद्देश्य से हट गया. कहीं कहीं तो ऐसा हो गया कि कुछ लोग लगे हाथों मेरे पीछे भी बुरी तरह पड़ गए. ऐसे सिन्हा जी अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध इतना लिख चुके हैं कि लगता है कि अरविन्द केजरीवाल से पीछा छुड़ाना उनके लिए कठिन सिद्ध हो रहाहै.

    • पहले लालू और दिग्विजय बकवास के लिए जाने जाते थे, लेकिन आज की तारीख में केजरीवाल के सामने सब फीके पड़ गए हैं. इसलिए जब कोई बकवास करता है तो केजरीवाल की याद सबसे पहले आती है. सच्ची बात आपको चुभती है, तो इसमें मेरा क्या कसूर? वैसे कल संदीप कुमार की सीडी प्रकरण के बाद आपकी और आपियों की बोलती बंद हो जानी चाहिए. मुझे दुःख है की आप जैसा बुजुर्ग भी बलात्कारियों, व्यभिचारियों और भ्रष्टाचारियों के सरगना केजरीवाल का आँख बंद करके समर्थन करता है. आपका नेता अन्ना आन्दोलन की नाजायज पैदाइश है. उसके समर्थन के पूर्व अपनी बुद्धि का कुछ तो इस्तेमाल करिए.

      • आपको “केजरीवाल के नगीने’ मैं इसका उत्तर दे चूका हूँ.

  2. आदरणीय रमश सिंह जी
    मेरे बारे में कुछ जानने की जो अनिच्छा आपने प्रकट की है वह स्वागत योग्य है.निश्चिन्त रहिये मुझे भी अपने बारे में बताने की भी कोई इच्छा नहीं है .सच पूछिए तो बताने योग्य कुछ है भी नहीं .यह तो स्पष्ट है कि मैं प्रवक्ता के पाठकों में से एक हूँ और यदा कदा अपने विचार टिप्पणियों के माध्यम से प्रकट करता रहा हूँ किन्तु ऐसा लगता है की आप जैसी महान विभूतिके विषय में आवश्यक ज्ञान से वंचित हूँ . सब से पहले तो आपका कुछ विचित्र सा नाम ही एक पहेली सा लगता है. कहीं यह रमेश या रामेश्वर का तद्भव स्वरुप तो नहीं है.वैसे तो ऐसा कोई नियम नहीं है की प्रत्येक नाम का कोई अच्छा अर्थ हो.मेरे ज्ञान की जो दूसरी कष्टकारी कमी है वह आपकी विस्मयकारी योग्यताओं क्षमताओं तथा अनुभवों के विषय में है .आपने मेरी एक टिप्पणी से मेरे ज्ञान का उचित आकलन कर लिया. मैंने प्रवक्ता के लेखकों की सूची कई बार देखीपर आपका नाम नहीं मिला .कृपया प्रवक्ता के उन अंकों की सूचना दें जहाँ आपके लेख छपे हों.आपकी इसी क्रम की टिप्पणियोंसे ऐसा लहता है कि आप विभिन्न क्षेत्रों में जैसे इन्जीनिएर ,साहित्यकार, राजनेता,आन्दोलनकारी आदि में कार्यरत हैं और कुछ समय मलेशिया तथा अन्य देशों में निवास कर चुके हैं .आपका शायद यह भी दृढ़ विश्वास है कि आप जिस किसी को जो चाहे कह सकते हैं पर वे सब लोग जो आपसे भिन्न मत रखते हैं ग़लती करते हैं और उनमें से कुछ तो गंभीर मानसिक व्यधिओं से ग्रसित हो सकते हैं.केजरीवाल जी के विषय में जो वृहद् सामग्री उपलब्ध है उसे देखने के बजाय आँख बंद करना श्रेयस्कर है.

    • सर्व प्रथम मैं रमेश नहीं हूँ.प्रवक्ता.कॉम के लिए मैं आर.सिंह हूँ.अगर आप आर.सिंह पर ढूंढने का कष्ट करते,तो मेरे लेखन के साथ मेरा संक्षिप परिचय भी आपको मिल जाता. मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूँ.मैं भारत की १२५ करोड़ की जनसँख्या का एक हिस्सा मात्र हूँ.आपने एक मुखौटे(इंसान) के आधार पर मेरे बारे में जो धारणा बनाई थी,उससे मुझे बुरा लगना स्वाभाविक था.मैंने जिंदगी के ७५ वर्ष देखे हैं और ज्यादातर खुली आँखों से देखे हैं. मैं जरा सोच समझ कर लिखता या बोलता हूँ,अतः उसके लिए मुझे खेद प्रकट करने की आदत तो नहीं है,पर अगर आपको मेरी टिपण्णी बुरी लगी है,तो मुझे अफ़सोस है. आपकी एक टिपण्णी ने नहीं ,बल्कि आपके मुखौटे (इंसान) पर पूर्ण विश्वास ने वह टिपण्णी लिखने के लिए बाध्य किया था.अगर आप इस दृष्टि कोण से देखेंगे तो शायद समझ पाएंगे. खैर, अगर आपके पास समय होतो देखिये मैंने क्या लिखा है.

  3. इसी प्रसंग से मिलता जुलता एक अनुभव मेरा भी है! एक मामले में याचिकाकर्ता को नीचे के स्टार से कोई राहत नहीं मिली थी! जबकि उस मामले में निहित विधिक बिंदु पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अनेकों निर्णय याचिकाकर्ता के पक्ष में थे और वादी की विशेष अनुज्ञा याचिका में उन न्याय निर्णयों का हवाला देते हुए यह अनुरोध किया गया था कि उक्त न्यायनिर्णयों के परिप्रेक्ष्य में उच्च न्यायालय का निर्णय ‘जजमेंट परिन्कुरियम’ होने के कारन अनुचित है! पहली पेशी पर याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने का निर्णय होना था! माननीय न्यायमूर्ति महोदय ने अधिवक्ता से पूछा कि इस मामले में कितने निचले अदालतों का फैसला याची के पक्ष में है? वकील साहब ने कहा कि कहीं से भी याची को न्याय नहीं मिला है इसीलिए तो वह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष आया है! लेकिन माननीय न्यायमूर्ति महोदय ने कुछ नहीं सुना और याचिका ख़ारिज करदी! बेचारा याची!

  4. एक प्रसंग याद आ गया! १९८९ या १९९० में आर्थिक गुप्तचर विभाग द्वारा देश के एक उद्योगपति (ललित मोहन थापर) के विरुद्ध कार्यवाही करके उसे गिरफ्तार कर लिया! सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत आधी रात को एक विशेष बेंच बैठाई और ललित मोहन थापर को जमानत पर रिहा करने का आदेश जारी कर दिया! इस पर उस समय के प्रखर पत्रकार श्री अरुण शौरी ने एक लेख इन्डियन एक्सप्रेस में लिखा जिसमे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असाधारण रूप से आधी रात को बेंच गठित करके उद्योगपति को जमानत देने के बारे में कुछ तथ्य दिए थे! श्री शौरी ने लिखा था कि उस छापे में एक डायरी भी पकड़ी गयी थी जिसमे उद्योगपति द्वरा कुछ विशेष वीडियो कैसेट्स कुछ लोगों को देने का ब्यौरा अंकित था! कहने कि आवश्यकता नहीं है कि वो कैसेट्स पोर्न फिल्मों के थे! और उस डायरी में ऐसी कैसेट्स प्राप्त करने वाले महानुभावों में कुछ सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्तिगण भी थे!और उस उद्योगपति के इस उपकार का बदला चुकाने के लिए ही आधी रात को विशेष अदालत गठित करके उसे जमानत पर रिहा किया गया था!जबकि एक आम आदमी तो इस प्रकार के फेवर कि सोच भी नहीं सकता है!

  5. विपिन किशोर सिन्हा जी ,ऐसे तो आप उम्र के लिहाज से मुझसे बहुत छोटे हैं,पर इतने छोटे भी नहीं हैं कि आपके लेखन में अपरिपक्वता झलके.आपने जजों की नियुक्ति,उनके सदाचारिता वगैरह इत्यादि केबारे में बहुत कुछ लिखा है. उससे सहमत या असहमत हुआ जा सकता है,पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी कि हर समय आप जैसे लोगों के दिमाग में यह अरविन्द फोबिया क्यों छाया रहता है?कही यह किसी गंभीर बीमारी का तो लक्षण नहीं है?

    • धन्य हो सिंह साहब! केवल ‘केजरीवाल की तरह बयान देने से बचने की सलाह देने मात्र से ही आपको पूरा लेख ‘अरविन्द फोबिया’ से ग्रस्त दिखा! लेख की अन्य कोई बात पर आपने विचार करना या अपनी राय देना उचित नहीं समझा! क्या अरविन्द शब्द कोई ऐसा शब्द है जिस पर कोई अपनी स्वतंत्र राय भी नहीं दे सकता?फिर किस आधार पर आप लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी की बातें करते हैं?

      • इस विविधतापूर्ण देश में आलोचक भी नाना प्रकार के पाए जाते हैं . केजरीवाल भक्तों के भी बिना ढूंढे यदा कदा प्रकट हो जाने पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए

        • जे पी शर्मा जी, वो तो ठीक है परन्तु ये यदा कदा प्रकट होने वाले भक्तों में से नहीं हैं| मेरा विश्वास है कि रमश सिंह जी की मनोवृति देखते मैं कहूँगा कि इन्होंने दो तीन वर्ष पहले नए उत्साह में स्वयं आआपा के साथ पत्राचार किया था और इस प्रकार इन्हें भक्त बने पैदल चलते नहीं बल्कि “राजनीति के नए वाहन” पर कर्ता-धर्ता बना बिठला लिया गया था| विडंबना तो यह है कि राष्ट्रवादी श्री नरेन्द्र मोदी जी के भारतीय राजनैतिक क्षितिज पर उजागर होते उनका अभिनंदन न कर रमश सिंह जी अरविन्द की लय में उन्हें व उनके नेतृत्व में बीजेपी को कोसने लगे हुए हैं| प्रवक्ता.कॉम पर विभिन्न विषयों पर बीसियों टिप्पणियों और उन पर प्रतिक्रियाओं द्वारा रमश सिंह जी के साथ स्वयं मेरे संवाद को देखते मुझे कोई आश्चर्य न होगा कि प्रवक्ता.कॉम पर उनका कोई लेख प्रकाशित न हो पाया हो|

          • इंसान जी
            रमश सिंह जी के बारे में आवश्यक जानकारी देने के लिए अनेक धन्यवाद .कुछ कारणों से काफी समय से मैं नियमित रूप से प्रवक्ता पर ध्यान नहीं दे पाया .किन्तु इन के आराध्य केजरीवाल जी के बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिलती रही है.दिल्ली चुनाव में उनकी जीत के बाद मुझे ईमेल द्वारा एक निमंत्रण प्राप्त हुआ.भेजनेवाले कोई मुसलमान सज्जन थे जो मुझे शिकागो मे फ्रेन्ड्स ऑफ़ आम आदमी पार्टी की दिल्ली में विजयी होने के उपलक्षय में आयोजित समारोह में सम्मिलित होने के लिए बुला रहे थे.
            देखिये केजरीवाल जी के समर्थक कहाँ कहाँ विद्यमान हैं.

          • जे.पी. शर्मा जी,आप कौन हैं,मैं नहीं जानता और न जानने की आवश्यकता समझता हूँ.पर एक बात मैं अवश्य कहूँगा कि आप मुखौटे वाले इंसान की जानकारी पर मेरे बारे में धारणा बनाने बैठ गए,इससे आप की विद्वता और ज्ञान का कुछ अनुभव तो मुझे अवश्य हो गया.हो सकता हैं कि इसके बाद बाद अपनी डिग्री और उपलब्धियां गिनाने बैठ जाएँ,पर मुझ पर उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.रह गयी बात आराध्य कि,तो अरविन्द केजरीवाल बेचारे मेरा आराध्य क्या बनेंगे?हाँ यह सही है कि मैं उनको एक योग्य युवा नेता अवश्य मानता हूँ,पर वे या यहाँ तक की उनकी पार्टी जो भी कहे,वह मेरे लिए ब्रम्ह वाक्य हो,ऐसा संभव नहीं है.ऐसे भी मैं नास्तिक हूँ.मेरा कोई क्या आराध्य बनेगा?

          • आप जैसे लोग इंसान के मुखौटे में अपने को छिपाये हुए न जाने अपने आप को क्या समझते है?कोई आपके कहने और समझने से राष्ट्रवादी नहीं बन जाता और न हीं उसके समर्थक. मैं प्रवक्ता.कॉम में क्या लिखता रहा हूँ,यह आपने पढ़ा भी नहीं और लगे अपना राग अलापने.मैं तो नमो के पोर्टल पर भी लिखता रहता हूँ. जब गंगा की सफाई के लिए केंद्र सरकार नेउच्चतम न्यायालय में पहला शपथ पत्र प्रेषित किया था, जिसमे गंगा की सफाई अठारह वर्षों में करने की बात कही गयी थी,जिसे उसने अस्वीकार कर कर दिया था,तो मैंने गंगा की सफाई पाँच वर्षों से कम में करने की पेश कश की थी,जिसको सम्बद्ध मंत्रालय ने प्राप्ति स्वीकृति की सूचना भी दी थी.बाद में तो दूसरा शपथ पत्र चार वर्षों में गंगा की सफाई के लिए दिया गया और मुझे अपनी बात आगे बढ़ाने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई. ऐसी बहुत सी बातें हैं,जिसमें मेरा अपना स्वतन्त्र मत है,जो कभी कभी किसी दल के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता,पर भैस के आगे वीन बजाने से क्या लाभ?

          • Mr. Insaan I generally avoid discussion with you,but let it be known to you that I was part of not only Anna Aandolan but JP Aandolan too.On this topic my .writings are also available with Pravkakta.com. If you are really thinking that I am Fekoo like your AAradhya,then please go through those articles,otherwise go on doing GALTHETHARI.

          • रमश सिंह जी, राष्ट्रवादी देव-पुरुष के लिए अपमानजनक शब्द कहते आपको मैं अगस्त १३, २०१३ के दिन भड़ास४मीडिया पर प्रकाशित अपनी निम्नलिखित टिप्पणी में देखता हूँ|

            “चारों शंकराचार्य मुझसे संवाद में जीत कर दिखाएं : उदित राज

            इंसान

            उदित राज चारों शंकराचार्यों से संवाद करने से पहले ही हार चुके हैं! ऐसा घमंड और मन में शंकराचार्य के प्रति घोर अपमान उदित राज में तीव्र दुर्बलता के प्रतीक हैं| ऐसे दुर्बल चरित्र वाले लोग भारतीय समाज को सदैव क्षति ही पहुंचाते रहे हैं| यदि ये लोग दलित, आदिवासी एवं अनुसूचित जाति का ठीक से नेतृव कर पाते तो आज तथाकथित स्वतंत्रता के पैंसठ वर्षों बाद इन लोगों की ऐसी दुर्दशा कदापि न होती| दलित आन्दोलन केवल एक चतुर योजना है जो केवल उदित राज जैसे लोगों को लाभान्वित कर समाज में अनैतिकता व अन्य विकारों को जन्म देती है| जन जातियों से ऊपर उठ प्रत्येक व्यक्ति एक सम्मानित भारतीय नागरिक होना चाहिए जो अपनी योग्यता अनुसार आर्थिक व सामाजिक गतिविधियों में लिप्त देश को अपना व्यापक योगदान दे पाये|”

          • आपने मुझे संबोधित कर यह क्यों लिखा ,यह मेरे समझ से बाहर है.पर अभी तक मुझे बिना जाने आप जो अनाप सनाप लिखते रहते हैं,लगता है यह उसी की आगे की कड़ी है. आप कही यह तो नहीं कहना चाहते कि आप उन शंकराचार्यों के तुल्य हैं,तो यह भी सुन लीजिये कि मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. खैर आप जैसे इंसान(?) से न उलझना ही शायद बेहतर विकल्प है.

      • आपने अच्छी बात कही कि मुझे अन्य कोई चीज इस लेख में दिखी नहीं. दिख तो बहुत कुछ रहा था,पर अंत आते आते सिन्हा जी ,पर केजरीवाल हावी हो गए,तो मुझे भी वहीँ से आरम्भ करना पड़ा.बात फिर आती है अभिव्यक्ति की आजादी पर,तो मेरे जैसे साधारण जन की क्या विसात कि मैं उसको रोक सकूं.पर अब तो प्रवक्ता.कॉम में उसकी भी कमी दिखने लगी.मेरी कहानी इसलिए प्रकाशित नहीं हुई,क्योंकि उस कहानी का नायक बड़ा अफसर बनने के बाद अपनी देहात वाली पत्नी को भूल गया,जबकि पचास और साठ के दशक में बहुत लोग ऐसा कर चुके थे कुछ गण मान्य व्यक्ति प्रवक्ता.कॉम के साथ जुड़े हैं.अगर मैं उनके विचारों के विरुद्ध कुछ टिपण्णी देता हूँ,तो वह भी प्रकाशित नहीं होता.मैं जब प्रवक्ता.कॉम के साथ जुड़ा था,तो मुझे इसीलिये पसंद किया जाता था कि मैं बेबाक लिखता हूँ,पर आज वैसा लिखना भी बहुतों को नागवार गुजरने लगा है.एक आलेख पर तो मुझे यहां तक कह दिया गया था कि क्या मलेसिया से वापस नहीं लौटना है? ऐसे न्यायपालिका भी आज की हालात केलिए काम दोषी नहीं है,पर मेरे विचार से वर्तमान मुख्य न्यायाधीश उनमें सबसे कम दोषी हैं.

  6. Aadarniya Sinha ji ne nidar hokar bharat men nyaypalika ke sheersh padadhikari kee manovritti par prakash daala hai.Kintu saari baaten unhon ne nahin kahi.Spasht hai ki hamari nyaypalika apne aap ko sarv shaktiman tatha sarvguna sampanna samajhti hai.is desh kee janata ko kaisa nyay mil raha hai yah unke liye chinta ka vishay nahin hai.shayad yah hamare samaj ke sabhi sansthanon men ayee girawat ka hee pratibimb hai.Pata nahin ki hum kabhi is se ubar payenge ya nahin

  7. एक अज्ञात दृष्टिकोण (मेरे लिए) प्रस्तुत करता आलेख, जो प्रवक्ता को भी अनोखापन अर्पण करता है। विपिन किशोर सिन्हा जी का वैयक्तिक अनुभव जिन तथ्यों को उजागर करता है, चिन्ताजनक है। मोदी जी चतुराई से कोई रास्ता निकालेंगे, देश का कल्याण लक्ष्य में रखकर। ईश्वर करे, ऐसा ही हो। —-विपिन जी को अपना दृष्टिकोण और तथ्यात्मक घटना का वृत्त विशद करने के लिए, धन्यवाद। जय भारत।

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