—विनय कुमार विनायक
मनुष्य का ज्ञान हमेशा
अपने माँ-पिता के ज्ञान से कम होता
मनुष्य उम्र के साथ-साथ
आवश्यकतानुसार ज्ञान अर्जन संवर्धन करता
ज्ञान न तो शत प्रतिशत अर्जित होता
और न पूर्णतः संचित संवर्धित होता
बल्कि समय के साथ ज्ञान विस्मृत होते जाता
किन्तु ज्ञान अनुभव रुप में आजीवन स्मृत रहता
मनुष्य सदा ज्ञान के
स्मरण विस्मरण के दौर से गुजरते रहता
मगर अनुभव की जमा पूंजी
हमेशा व्यक्ति को अपने माँ-पिता से कम होती
हो सकता है मनुष्य अपने माता-पिता से
कुछ अधिक अर्जित कर ले शिक्षा की डिग्रियाँ
मगर हर डिग्री परीक्षा से
दो चार छः माह पूर्व के ज्ञानार्जन से ही मिली होती
और आगे दो चार छः माह होने तक
वो विशेष अर्जित ज्ञान विस्मृत होकर सामान्य रह जाता
किन्तु उसी आभासी ज्ञान की वजह से
मनुष्य प्रतिभासंपन्न होने का दंभ भरता
ज्ञान को कुछ लंबे काल तक अर्जित करने का दो उपाय है
एक श्रुति स्मरण परम्परा दूसरा लेखन विधि
दोनों ही कालबद्ध परिवर्तनकामी होता
श्रुति स्मरण शक्ति में संपूर्ण ग्रहणशीलता नहीं होती
और पूर्व काल का लिखित ज्ञान समय के साथ अप्रासंगिक हो जाता
एकमात्र अनुभव के रुप में संचित ज्ञान ही हमेशा मानव के काम आता
और अनुभव ऐसा है कि मानव को समय गुजरने पर ही हासिल होता
अस्तु माँ-पिता का संचित अनुभव ही अगली पीढ़ी के लिए जीवनदायी होता
मनुष्य को आरंभ में हर मानवीय गुण में अधिक तीव्रता होती
जो समय के साथ कम होते जाता जिसका समय पूर्व उन्हें ज्ञान नहीं होता
कमसिन अनुभवहीन व्यक्ति अपने गुण के प्रदर्शन में विश्वास करता
छुटपन में वासना की अधिकता होती और अक्सर वे अंधे प्यार में गिर जाता
उन्हें समय पूर्व ज्ञात नहीं होता कि वासना धीरे-धीरे कम होने लगती
आरंभ में मनुष्य देह में पाशविक शक्ति की अधिकता होती
हर कार्य में गतिशीलता होती दुर्घटना का अनुभव नहीं होता
और दुर्घटना घट जाती तो जीवन या तो मर जाता या बच जाता
सात्विक भाव तो उम्र गुजर जाने के बाद ही आता और अनुभव पाता
उसी अनुभव के कारण माँ-पिता अपनी संतान से अधिक ज्ञानी होता! —विनय कुमार विनायक