रजनीकांत राजनीति की एक नई सुबह 

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– ललित गर्ग-


नयावर्ष प्रारंभ होते ही सुपर स्टार रजनीकांत ने सबको चैका दिया। उनकी राजनीति में आने की घोषणा ने जहां राजनीति के क्षेत्र में एक नयी सुबह का अहसास कराया वहीं राजनीति को एक नये दौर में ले जाने की संभावनाओं को भी उजागर किया है। रविवार को रजनीकांत ने कहा कि उनकी पार्टी का नारा होगा- ‘अच्छा करो, अच्छा बोलो तो अच्छा ही होगा।’ इस एक वाक्य से उन्होंने जाहिर कर दिया कि फिल्मी संवाद सिर्फ रुपहले बड़े पर्दे पर ही धमाल नहीं करते, बल्कि आम जनजीवन में भी वे नायकत्व को साकार होते हुए दिखा सकते हैं। रजनीकांत की घोषणा राजनीति में एक नये अध्याय की शुरुआत कही जायेगी।
रजनीकांत ने नया साल के संकल्प के रूप में अपने लिए नई भूमिका चुन ली है। वे अब राजनीति करेंगे, कहा जा सकता है कि राजनीति में मूल्यों का एवं संवेदनाओं का दौर शुरु होगा। स्वयं का भी विकास और समाज का भी विकास, यही समष्टिवाद है और यही धर्म है और यही राजनीति भी होना चाहिए। लेकिन हमारी राजनीति का दुर्भाग्य रहा है कि वहां निजीवाद हावी होता चला गया। निजीवाद कभी धर्म नहीं रहा, राजनीति भी नहीं होना चाहिए। जीवन वही सार्थक है, जो समष्टिवाद से प्रेरित है। केवल अपना उपकार ही नहीं परोपकार भी करना है। अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी जीना है। यह हमारा दायित्व भी है और ऋण भी, जो हमें अपने समाज और अपनी मातृभूमि को चुकाना है और यही राजनीति की प्राथमिकता होनी चाहिए। संभवतः रजनीकांत राजनीति की इसी बड़ी जरूरत को पूरा कर एक नया इतिहास लिख दे।
तमिलनाडू की राजनीति में फिल्मी सितारों का चमकना नया नहीं है। दशकों से इस राज्य में सिनेमा से जुड़ी हस्तियां राज करती रही हैं। यह अलग बात है कि ये सितारे राज्य की व्यवस्था में कोई बड़ा परिवर्तन लाने में नाकाम ही रहे हैं। राष्ट्र की जगह व्यक्तिपूजा को ही वहां की राजनीति ने बढ़ाया दिया है। अब रजनीकांत अपने राजनीति के अध्याय को क्या शक्ल देते हैं, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना तय है कि राजनीति में कुछ नया, कुछ शुभ घटित होगा।
तमिलनाडु की राजनीति दशकों से अन्नाद्रमुक और द्रमुक के दो धू्रवों में बंटी रही है। पर इसका यह अर्थ नहीं कि किसी तीसरे धू्रव के लिए कोई संभावना नहीं थी। फिल्म अभिनेता विजयकांत ने तीसरी संभावना को उजागर किया था। रजनीकांत हमेशा विजयकांत से बड़े अभिनेता हैं, और लोकप्रियता में तो उनका कोई सानी नहीं है। तमिलनाडु की राजनीति में सिनेमा के सितारों को मिली कामयाबी के इतिहास को देखते हुए रजनीकांत की नई भूमिका को लेकर लोगों में स्वाभाविक ही काफी उत्सुकता है। निश्चित ही राजनीति के परिप्रेक्ष्य में कुछ सकारात्मक घटित होगा।
हालांकि अभी तक रजनीकांत ने अपनी पार्टी के नाम और नीतियों की घोषणा नहीं की है। इसमें उन्हें कुछ वक्त लग सकता है। मगर उन्होंने इतना जरूर साफ किया है कि तमिलनाडु में राजनीति में भी आध्यात्मिकता को प्राथमिकता दी जायेगी। उनके राजनीति में आने से बीजेपी के तमिल नेता बहुत उत्साहित दिख रहे हैं क्योंकि बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की धारा के साथ उनकी नजदीकी सर्वविदित है। उन्हें आशा है कि रजनीकांत की मदद से शायद वह तमिलनाडु में अपना आधार बनाने में कामयाब हो जाए, जो दो दशक लंबी कोशिशों के बावजूद अब तक बन नहीं पाया है। रजनीकांत के राजनीति में आने से ऐसे अनेक परिदृश्य एवं परिणाम सामने आयेंगे।
रजनीकांत का सिनेमा का सफर ऐतिहासिक एवं यादगार रहा है। उन्होंने पर्दे पर अनेक क्रांतियां घटित की है, अनेक रचनात्मक आयाम पर्दे पर जीये हैं, पर्दे के नायकत्व के वे बादशाह हैं, अब एक नयी पारी के लिये वे तैयार हुए है, जो अधिक जनोपयोगी है, अधिक प्रासंगिक है, राष्ट्र की अपेक्षा के अनुरूप है। जैसाकि परशुराम ने भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र देते हुए कहा था कि वासुदेव कृष्ण! तुम बहुत माखन खा चुके, बहुत लीलाएं कर चुके, बहुत बांसुरी बजा चुके, अब वह करो जिसके लिए तुम धरती पर आये हो। परशुराम के ये शब्द जीवन की अपेक्षा को न केवल उद्घाटित करते हैं, बल्कि जीवन की सच्चाइयों को परत-दर-परत खोलकर रख देते हैं। रजनीकांत के लिये भी परशुराम के कहे शब्द प्रासंगिक हैं। रजनीकांत! बहुत पर्दे का जीवन जी लिया अब कुछ यथार्थ जी लो, कुछ देश के लिये कर दिखाओ।
रजनीकांत ने समय की आवाज को सुना, देश के लिये कुछ करने का भाव उनमें जगा, उन्होंने सच को पाने की ठानी है, यह नये भारत को निर्मित करने की दिशा में एक शुभ संकेत हैं। अक्सर हम चिन्तन के हर मोड़ पर कई भ्रम पाल लेते हैं। कभी नजदीक तथा कभी दूर के बीच सच को खोजते रहते हैं। इस असमंजस में सदैव सबसे अधिक जो प्रभावित होती है, वह है हमारी युग के साथ आगे बढ़ने की गति। राजनीति में यह स्वीकृत तथ्य है कि पैर का कांटा निकालने तक ठहरने से ही पिछड़ जाते हैं। प्रतिक्षण और प्रति अवसर का यह महत्व जिसने भी नजर अन्दाज किया, उसने उपलब्धि को दूर कर दिया। नियति एक बार एक ही क्षण देती है और दूसरा क्षण देने से पहले उसे वापिस ले लेती है। वर्तमान भविष्य से नहीं अतीत से बनता है। रजनीकांत को शेष जीवन का एक-एक क्षण जीना है- अपने लिए, दूसरों के लिए यह संकल्प सदुपयोग का संकल्प होगा, दुरुपयोग का नहीं। बस यहीं से शुरू होता है नीर-क्षीर का दृष्टिकोण। यहीं से उठता है अंधेरे से उजाले की ओर पहला कदम।
तमिलनाडु में लम्बे दौर से द्रमुक के मूल सिद्धान्तों की राजनीति ही चली आ रही है, नास्तिकता की राजनीति। एम.जी. रामचन्द्रन हो या जयललिता-इन्होंने भले ही कुछ बदलाव के दृश्य उपस्थित किये हो। रजनीकांत द्वारा राजनीति में प्रवेश करने की घोषणा से द्रमुक के मूल सिद्धान्तों की जगह एक नयी सोच को आकार लेने का अवसर मिलेगा। इस राज्य की आने वाली राजनीति में यह किस प्रकार संभव होगा? यह तो अभी साफ-साफ कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन पहली नजर में रजनीकांत में यह योग्यता और क्षमता है कि उनकी लोकप्रियता पिछले अभिनेता से राजनेता बने ‘एम.जी.आर.’ व ‘जयललिता’ का रिकार्ड तोड़ सकती है क्योंकि उन्होंने अपनी अभिनय कला से तमिलनाडु के युवा वर्ग को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।
महानायक की छवि रखने वाले रजनीकांत के लिए राजनीति में आने की घोषणा को किसी फिल्मी ‘क्लाईमेक्स’ में नायक के आने के समान ही देखा जा रहा है। उनकी राजनीतिक सफलता पर अभी कोई निर्णायक घोषणा करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि उनका राजनीतिक सफर निष्कंटक नहीं कहा जा सकता। उन्हें कड़ी टक्कर नहीं मिलेगी, यह मानना भी भूल हो सकती। क्योंकि उन्हें निश्चित रूप से श्री एम. करुणानिधि की द्रमुक पार्टी कड़ी टक्कर दे सकती है। भले ही यह पार्टी फिलहाल परिवारवाद के घेरे में घिरी हुई है मगर इसकी मूल विचारधारा तमिलवासियों से दूर नहीं हो सकती जो कि सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई की है। इतना निश्चित है कि अन्नाद्रमुक का अब कोई भविष्य नहीं है क्योंकि इसकी जड़ ही सूख चुकी है। इन प्रान्तीय राजनीति की चुनौतियों से संघर्ष के साथ-साथ रजनीकांत पर एक जिम्मेदारी है कि वे देश की राजनीति को भ्रष्टाचार एवं अपराधमुक्त करने की दिशा में कोई सार्थक पहल भी करेें।

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