अतुल तारे
हम सबने स्वामी विवेकानंद को नहीं देखा है। जाहिर है उनका विश्व विख्यात व्याख्यान भी नहीं सुना है। श्री नरेन्द्र मोदी, श्री नरेन्द्र मोदी है। स्वामी विवेकानंद नहीं है। पर यह मानना होगा कि श्री मोदी के आदर्श वाकई स्वामी विवेकानंद है और वे उनके आदर्श अनुयाई होने का हक रखते हैं। अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करने वाले श्री नरेन्द्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं है।
यह गौरव भारत को पहले भी प्राप्त हो चुका है, पर बीती रात 48 मिनट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक नए इतिहास का सृजन कर रहे थे, विश्व के राजनीतिक मंच पर एक नई धुन प्रस्तुत कर रहे थे, यह एक अकाट्य सत्य है। प्रधानमंत्री श्री मोदी की विदेश यात्राओं को गाहे-बगाहे निशाने पर लेने वाले विपक्ष को, बुद्धि का अपच रखने वाले, दम तोड़ते वामपंथियों को चाहिए कि वे देश हित में अपनी अब तक की बेबकूफियों पर थोड़ा शर्मसार हो। लिखना प्रासंगिक होगा कि यह वही नरेन्द्र मोदी हैं, जिसे अमेरिका ने आने से मना कर दिया था। आज नरेन्द्र मोदी अमेरिका में एक आकर्षण का केन्द्र हैं तो वह यंू ही नहीं हैं। 48 मिनट के भाषण में 72 बार तालियों और 9 बार खड़े होकर सम्मान सिर्फ राजनीतिक सहृदयता नहीं है, यह मोदी का जादू है। यह विश्व मंच पर भारत की धमाकेदार दस्तक का परिणाम है जिसे आज अमेरिका महसूस कर रहा है। नि:संदेह देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों ने भी अपने स्तर पर भारत का मजबूती से पक्ष रखने का प्रयास किया ही होगा पर नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति परम्परागत विदेश नीति पर एक गरमागरम तड़का भी है यह मानना होगा।
आज भारत याचक की मुद्रा में नहीं है, यह श्री मोदी ने साबित किया है। अमेरिका हो या राशिया, चीन हो या अरब देश मोदी ने हर जगह भारतीय मूल के निवासियों से भावनात्मक सांस्कृतिक तार जोड़े हैं, वहीं उन्होंने वहां के राष्ट्राध्यक्षों को यह एहसास भी कराया है कि भारत का उदय विश्व के क्षितिज पर दमकते सूर्य की तरह है और अगर हमें आपकी जरूरत है तो आपका रास्ता भी हमारे बगैर आसान नहीं है। पड़ौसी देशों की ही बात करें तो आज पाकिस्तान जिस कदर अलग-थलग पड़ रहा है, दुनिया देख रही है। चीन अपनी कारगुजारियों से बाज नहीं आया है पर उसे उसकी हदें भी पहली बार समझ में आई हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल ही की अमेरिकी यात्रा के दौरान भारत का परमाणु आपूर्ति राष्ट्रों के समूह का सदस्य बनने का रास्ता साफ होना ऐतिहासिक उपलब्धि है और यह एक दिन की मेहनत नहीं है।
नरेन्द्र मोदी ने इसकी नींव अपने शपथ ग्रहण के दिन ही रख दी थी जब उन्होंने एक साथ पड़ौसी राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर विश्व को संदेश दे दिया था कि भारत की अनदेखी अब संभव नहीं।
नरेन्द्र मोदी की हाल ही की अमेरिकी यात्रा के दौरान संयुक्त सत्र में सम्बोधन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कार्यकाल पूर्ण हो रहा है। श्री मोदी ने ठीक इसके पहले अमेरिका में अपनी प्रभावी उपस्थिति से नए राष्ट्राध्यक्ष को भी एक संदेश दे दिया है। अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों की देह भाषा कला यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि वे श्री मोदी को सिर्फ इसलिए नहीं सुन रहे क्योंकि यह उनका राजनीतिक दायित्व है, अपितु वे भारत के बढ़ते प्रभाव को महसूस भी कर रहे हैं, वे नरेन्द्र मोदी को एक करिश्माई नेता के रूप में भी देख रहे हैं। अमेरिका यह समझ रहा है कि अगर दक्षिण एशिया में उसे चीन की साम्राज्यवादी आकांक्षाओं पर अंकुश लगाना है तो भारत को उसे बराबरी का स्थान देना ही होगा और श्री मोदी यह नस पकड़ चुके हैं, वहीं अमेरिका यह भी समझ रहा है कि पाकिस्तान को नंगा करने में भारत सफल है और उसके जितने कपड़े उतर रहे हैं वह उसी के दिए हुए हैं। जाहिर है, श्री मोदी ने 48 मिनट सिर्फ अमेरिकन कांग्रेस को ही सम्बोधित नहीं किया उन्होंने अमेरिका की धरती से भारत की विश्व गगन में ऐसी गंूज पैदा की कि दुनिया समझ ले कि भारत अब एक उभरती हुई समृद्ध एवं संभावनाशील ताकत है और उसका हाथ थामकर ही उसका अपना और विश्व का कल्याण संभव है। ध्यान से विचार करें तो श्री नरेन्द्र मोदी का भाषण सिर्फ एक प्रधानमंत्री का राजनैतिक या कूटनीतिक भाषण नहीं था। श्री मोदी अपने विचारों से वही प्रगट कर रहे थे जो भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म का आधार है। स्वामी विवेकानंद ने धर्म संसद में यही किया था आज उनके शिष्य वहीं पर माँ भारती का गौरव बढ़ा रहे हैं, क्या यह सुखद आश्वस्ति नहीं है?