अपनी ही आस्तीन में एक सांप है पला…..

इक़बाल हिंदुस्तानी

है रहनुमा मेरा वो मेरे साथ ही चला,

रहज़न नहीं मिला कोई किसने मुझे छला।

 

औरों को रोशनी मिले वो इसलिये जला,

इंसान वो लगा मुझे दुनिया से यूं भला।

 

झूठा ना फ़रेबी है मगर आइना है वो,

इंसान वो ज़माने को यूं ही तो है खला।

 

रोता किसी को देखकर जो हंस दिया सदा,

इंसान था वो आदमी कैसे कहूं भला।

 

गै़रों में मत तलाशिये मसलों का हर सबब,

अपनी ही आस्तीन में एक सांप है पला।

 

मुश्किल से जो डरें नहीं तूफ़ान से लड़ें,

जलसा था ऐसे लोगों का तूफ़ान यूं टला।

 

जिस घर से आग बरसी थी पहले फ़साद की,

इस बार गांवभर में अकेला वो घर जला।

 

 

साया ज़रूरी मुझ से भी शायद किसी को हो,

हिंदोस्तानी इसलिये ही ध्ूाप मंे चला।।

 

 

नोट-रहज़न-लुटेरा, रहनुमा- नेता, फ़रेबी-धोखेबाज़, खला- चुभा,

मसला-समस्या, फ़साद-दंगा, सबब-कारण।।

 

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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