पीछे डर आगे विरान है,
वंचित का कैद आसमान है
जातीय भेद की,
दीवारों में कैद होकर
सच ये दीवारे जो खड़ी है
आदमियत से बड़ी है । .
कमजोर आदमी त्रस्त है
गले में आवाज़ फंस रही है
मेहनत और
योग्यता दफ़न हो रही है ,
वर्णवाद का शोर मच रहा है
ये कैसा कुचक्र चल रहा है।
साजिशे रच रहा आदमी
फंसा रहे भ्रम में ,
दबा रहे दरिद्रता और
जातीय निम्नता के दलदल में ,
बना रहे श्रेष्ठता का साम्राज्य
अट्ठहास करती रहे ऊचता।
जातिवाद साजिशो का खेल है
अहा आदमियत फेल है ,
जमीदार कोई साहूकार बन गया है
शोषित शोषण का शिकार हो गया है।
व्यवस्था में दमन की छूट है
कमजोर के हक़ की लूट है।
कोई पूजा का तो
कोई नफ़रत का पात्र है
कोई पवित्र कोई अछूत है
यही तो जातिवाद का भूत है।
ये भूत अपनी जहा में जब तक
खैर नहीं शोषितो की
आज़ादी जो अभी दूर है ,
अगर उसके द्वार पहुचना है
पाहा है छुटकारा
जीना है सम्मानजनक जीवन
बढ़ना है तरक्की की राह
गाड़ना है
आदमियत की पताका तो
तलाशना होगा और
आसमान कोई ………..डॉ नन्द लाल भारती