सुरेश हिन्दुस्थानी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंद करने के ऐतिहातिक पराक्रम पर गौर किया जाए तो यह कालाधन जमा करने वालों के लिए सर्जीकल स्ट्राइक जैसा कदम कहा जा सकता है। इससे जहां एक ओर देश के अंदर कोहराम जैसी हालत निर्मित हुई है, वहीं पड़ौसी देश पाकिस्तान की भी रातों की नींद हराम हो गई है। इतना ही नहीं सीमा पर जिस प्रकार से आतंकी गतिविधियों के माध्यम से कहर बरपाया जाता था, नोट बंद होने के बाद उस पर लगाम सी लगती हुई दिखाई दे रही है। इसलिए यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि केन्द्र सरकार ने एक तीर से कई निशानों पर प्रहार किए हैं। वर्तमान में आतंकवादियों के आका पूरी तरह से कंगाल हो गए हैं। पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार से कराह रही जनता द्वारा मोदी के कदम की व्यापक सराहना की जा रही है। पाकिस्तान के मीडिया जगत में तो यह कहा जाने लगा है कि अब भाारत की अर्थ व्यवस्था को सुधरने से कोई ताकत रोक नहीं सकती। हालांकि जिस प्रकार की खबरें सुनी जा रहीं हैं, उसके मुताबिक आतंकियों ने नए सिरे से विचार करना शुरु कर दिया है।
केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा पांच सौ और एक हजार रुपए को बंद करने के निर्णय से देश का जनमानस खुश दिखाई दे रहा है। केन्द्र सरकार का यह निर्णय देश में गहराई तक व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने का अभूतपूर्व कदम है। हम जानते हैं कि देश में भ्रष्टाचार के रुप में कमाया हुआ करोड़ों रुपए का धन है। मोदी सरकार ने कई बार इस बात के लिए देश के नागरिकों को आगाह किया था कि उनके पास अगर काला धन है तो उसको उजागर करदे, इस आहवान के बाद कई लोगों ने काला धन उजागर कर दिया, लेकिन सरकार के इस आहवान के बाद पूरी तरह से सफलता नहीं मिल पाई।
सरकार के नोट बंद करने का निर्णय वास्तव में काले धन के विरोध में अभूतपूर्व निर्णय है। इस निर्णय ने हालांकि देश में हलचल पैदा कर दी। चुनाव की तैयारी कर रहे कई लोगों के लिए मोदी का यह कदम तुषारापात जैसा है। हम जानते हैं कि चुनाव में लाखों करोड़ों रुपए का कालाधन खर्च होता है। जिन राजनीतिक दलों के मुखियाओं ने काला धन जमा करके रखा था, आज वे ही लोग मोदी के इस कदम का विरोध करने पर उतारु हैं। इन्हीं राजनीतिक दलों ने जनता को मुफ्त की सुविधाएं देकर उन्हें निकम्मा बनाकर रख दिया। कांगे्रस ने जनता के सरकारी खजाने से लोगों को सुविधाएं प्रदान कीं। आज देश की हालत ऐसी हो गई है कि जनता को मुफ्त में कोई चीज मिल रही हो तो वह उसके लिए कई दिनों तक लाइन में खड़े रह सकती है, जबकि देश को ताकत प्रदान करने वाले कदम पर यही स्वार्थी दल जनता को गुमराह करते हुए दिखाई देते हैं। वास्तव में हमारे राजनीतिक दलों के नेताओं को ऐसी स्थितियों में जनता को समझाने का काम करना चाहिए कि सरकार के इस कदम से देश को बहुत बड़ा लाभ मिलने वाला है। राजनीतिक दल जिस प्रकार से नोट बंदी को सरकार का जनविरोधी कदम बताने का प्रयास किया जा रहा है, उससे जनता को बचना चाहिए। क्योंकि स्पष्ट रुप से यह कदम जनविरोधी न होकर भ्रष्टाचार का विरोधी है। हम जानते हैं कि भ्रष्टाचार के कारण देश की जनता बहुत परेशान है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए हम सभी को सरकार के इस कदम का स्वागत करना चाहिए। इतना ही नहीं हम सभी को जनता को समझाने का काम भी करना चाहिए कि इससे जनता की हालत में सुधार होने वाला है।
देश के महापुरुष डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि देश में भ्रष्टाचार को समाप्त करना है तो दस वर्ष के अंदर नोट बदल देना चाहिए। राष्ट्र उत्थान की दिशा में उनका चिंतन कितना महान था। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व देश का राजनीतिक नेतृत्व वास्तव में देश हित की बातें ही सोचता था, भ्रष्टाचार का कहीं भी नामोनिशान नहीं था। उस समय के काल में राजनीति सेवा का माध्यम था। वर्तमान समय में देश के भीतर राजनीतिक अपराधीकरण और राजनीतिक भ्रष्टाचार जिस गति से बढ़ रहा है। उस पर रोक लगाने के राजनीतिक प्रयास भी नाकाफी ही साबित हुए। इतना ही नहीं कहीं कहीं राजनीतिक दल भी चुनाव के समय कालेधन का जमकर उपयोग करते हुए भी दिखाई देते हैं। केन्द्र सरकार द्वारा नोट बंद करने की कार्यवाही से निश्चित ही उन दलों पर बुरा प्रभाव पड़ा है, जिन्होंने आगामी समय में आने वाले चुनाव के लिए गलत रुप से कमाया हुआ धन जमा करके रखा है। हालांकि काली कमाई करने वाले लोग अपने धन को सफेद करने के लिए जुगाड़ भी कर रहे होंगे। सुना यह भी जा रहा है कि उनके प्रति समर्पित व्यक्तियों के माध्यम से कालेधन को सफेद करने का खेल भी शुरु हो गया है। कई बैंकों में शून्य राशि के खातों में भी रकम जमा करने की खबर मिल रही है। समाचार पत्रों की खबरों से भी इस बात की पुष्टि होती है, जिसमें जनधन योजना के तहत खोले गए खातों में अब राशि जमा होने लगी है। इस पर सरकार को ध्यान देना ही चाहिए, साथ ही आम जनता को भी जागरुकता का परिचय देना चाहिए।
जिन खातों में कभी कोई राशि जमा नहीं हुई, उसमें अगर अब राशि जमा हो रही है, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह राशि उनके पास कहां से आई। अगर यह राशि करोड़पति लोगों की है, तब तो और भी गंभीर सवाल है कि देश की सरकार कितना भी सुधार करने का प्रयास करे, लेकिन देश के भ्रष्ट लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। लेकिन स्वार्थी लोगों को यह भी विचार करना होगा कि विश्व के अन्य देशों में जिस प्रकार से राष्ट्रीय हितों के लिए समर्पण दिखाया जाता है, उस प्रकार का समर्पण भारत के संपन्न लोग क्यों नहीं दिखाते?
हमारे देश में जिस प्रकार से अच्छी बातों में विरोध की गुंजाइश तलाश करने की राजनीति की जाती है, वैसा विश्व के किसी भी देश में दिखाई नहीं देता। राजनेताओं द्वारा कई बार ऐसे स्वर बोले जाते हैं जैसे वह भारत देश के न होकर पाकिस्तान के निवासी हों। इस प्रकार के बयानों से देश के दुश्मनों को बढ़ावा मिलता है। पाकिस्तान द्वारा बार बार सीमा पर आतंक फैलाने के पीछे भी देश के लोगों का समर्थन मिलना माना जा सकता है। पांच सौ और एक हजार के पुराने नोट बंद होने से जहां पाकिस्तान में कोहराम की स्थिति है, वहीं पाकिस्तान के संरक्षण में पलने वाले आतंकी आका के क्रियाकलापों पर भी प्रभाव हुआ है। हम जानते हैं कि भारत की सेना द्वारा सर्जीकल स्ट्राइक की कार्यवाही के बाद भी पाकिस्तान की ओर से प्रतिदिन हमले जैसी कार्यवाही को अंजाम देकर भारत को नुकसान पहुंचाया जा रहा था, लेकिन जब से पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद किए गए हैं, तब से सीमा पर आतंकी कार्यवाही पर एक दम से विराम जैसे हालत निर्मित हो गए हैं। इसलिए भारत के जागरुक नागरिकों को यह समझना चाहिए कि इस कदम से भारत विरोधी देशों को झटका लगा है। वे देश भी अपने यहां पर मोदी जैसी कार्यवाही की मांग करने लगे हैं। इससे यह साबित होता है कि यह कदम पूरी तरह से भारत को मजबूत बनाने वाला कदम है। जिसे देश का व्यापक समर्थन मिलना चाहिए।
स्वर्ण तस्करी, बड़े नोट, आतंकियों का धन, आई.एन. जी.ओ, नव-उदित पार्टियां तथा पत्रकारों को एक वर्ग के बीच गहरी सांठ-गांठ है. बड़े नोटों की नोट बंदी ने उन सबको बेचैन कर दिया है.