-बीनू भटनागर-
माना कि यौवन के वो पल,
खो गये कुछ उलझनों में,
मैं वही हूं तुम वही हो,
फिर न क्यों जी लें कभी,
उन्माद के वो क्षण।
तुम मेंरे हो शांत सागर लक्ष्य मेंरा ,
मैं नदी बहती हुई तुमसे मिली थी,
बांहे फैला दो मै तो अब भी वही हूं।
तुम हो एक चट्टान संबल मेरा,
फिर नहीं क्यों बढ़के थामा हाथ मेरा।
भूल जाओ बालों में चांदी के जो तार हैं,
भूल जाओ कि अब हम पचास के उस पार है,
फिर से जी लो वो पल,
जो रेत में पानी की बूंदों से खो गये हैं।
आज भी वो मेंरे पल, तुम पर उधार हैं।