अधिकारों से दूर आज भी महिला अधिकार !

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women rightआने वाले मार्च की 8 तारीख को एक बार फिर से पूरा समाज महिलाओं के लिए बङी-बङी बातें करता दिखेगा और महिला दिवस पर महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश करने की बात कहीं जायेगी पर उसके बाद अगले ही दिन से दिनचर्या वापस वैसी ही हो जायेगी जैसी आम दिनों में होती हैं और वापस महिलाओं के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाने लगेगा जैसा अब तक होता आ रहा हैं । आज जब भी महिलाओं की स्थिति की बात की जाती हैं तो समाज कहता हैं कि आज महिलाएं सशक्त हो रही हैं और पुरुषों से कदम से कदम और कन्धें से कन्धे मिलाकर चल रही हैं परन्तु यें सारी बातें केवल सिक्के एक पहलू को दिखाती हैं और दूसरे पहलू को दबाने की कोशिश करती हैं लेकिन इस बात में भी विरोधाभास हैं क्योकि सिक्के के जिस पहलू को दिखाकर समाज अपने आप को आधुनिक साबित करने की कोशिश कर रहा हैं वे पहलू भी पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं हैं । समाज में जिस तरह से महिलाओं के सशक्त और आत्मनिर्भर पेश किया जा रहा हैं ,वे समाज की वास्तविकता से रुबरु नहीं करता हैं क्योकि जिन महिलाओं को सश्कत बताया जाता हैं । उनमे से अधिकांश महिलाएं शहरी हैं और शहरों में रहती हैं , जिस कारण उनमें शिक्षा का स्तर अच्छा होता हैं और वें अपने अधिकारों को समझती हैं और उसके हक में आवाज उठाने की क्षमता रखती हैं । परन्तु अपने अधिकारों के प्रति जागरुक महिलाओं के इस शहरी समूह की अवस्था भी कुछ अच्छी नहीं हैं , वे आज भी अपने कार्यक्षेत्र मे खुद को स्थापित करने के लिए अनेक परेशानियों को झेलती हैं । एक सर्वेक्षण के अनुसार 30 प्रतिशत महिलाएं साँफ्टवेयर इण्ङस्ट्री में एव 10 प्रतिशत महिलाएं सीनियर मैनेंजमेंट में कार्यरत हैं । भारत में किए गए एक अध्ययन से पता चलता हैं कि ऊँचे पदों पर महिलाओं की संख्या बहुत कम हैं । ह्मन रिसोर्सेज कंसल्टिंग और आउटसोर्सिग एओन हेविट इण्ङिया ने हाल में विभिन्न उधोगों की 200 से अधिक कम्पनियों का अध्ययन किया । भारत के काँलेज में आट्स , कामँर्स, इंजीनियरिंग संकाय में 40 प्रतिशत स्नातक महिलाएं हैं और अध्ययन से पता चलता हैं कि कम्पनियां महिला कर्मचारियों की भर्ती को व्यापारिक लाभ के रुप में देखती हैं। सूचना प्रौघेगिकी, आईटीईएस क्षेत्र में यह विशेष रुप से किया जाता हैं , जहाँ भर्ती के स्तर पर 30 प्रतिशत महिलाओं को चुना जाता हैं । रीटेल जाँब्स में भर्ती स्तर पर भी महिलाओं को वरीयता दी जाती हैं पर उत्पादन एंव सेल्स में महिलाओं का प्रतिशत 10 के आस- पास हैं । मध्यम स्तर के प्रबंधन में महिलाओं का अनुपात कम हो जाता हैं ( 6 सें 10 प्रतिशत आईटी क्षेत्र में) और वरिष्ठ प्रबन्धन में तो यह न्यूनतम हो जाता हैं ( 3 प्रतिशत सें भी कम ) । निदेशक बोर्ङ स्तर पर तो महिलाओं की मौजूदगी 1 प्रतिशत सें भी कम हैं । ऐसे में ये अकङें समाज की उस तस्वीर को उजागर कर रहे हैं जिसके बल पर समाज महिलाओं को आत्मनिर्भर साबित करने का भरसक झूठा प्रयास करता दिखता हैं । महिला पुरुषों की तुलता में एक दिन में 6 घण्टे से अधिक काम करती हैं । विश्व में काम के घण्टों में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान महिलाओं का हैं पर फिर भी महिलाओं केवल 1 प्रतिशत सम्पत्ति की मालिक हैं । ये आंकङे तो केवल शहरी महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट कर रहे हैं और शहरी महिलाओं की सशक्तिकरण की झूठी दलीलों को बेनकाब करते हुए समाज मे महिलाओं में सही स्थिति दिखाने का काम कर रहे हैं । ऐसे मे सोचना होगा जब ऐसी स्थिति शहरी महिलाओं की हैं तो ग्रामीण महिलाओं की स्थिति कैसी होती होगी ? आज भी ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया हैं और उनकी स्थिति आज भी वैसी ही बनी हुई हैं जैसी आजादी के समय थी । ग्रामीण महिलाओं की खराब स्थिति के पीछे का बङा कारण यह हैं कि ग्रामीण महिलाओं में आज भी शिक्षा का अभाव हैं और सरकार द्वारा इस क्षेत्र में किए जा रहे प्रयास जमीनी स्तर पर कम ही देखने को मिलते हैं । और अन्त में शिक्षा के अभाव में ग्रामीण महिलाओं को शोषण का शिकार होना पङता हैं । शिक्षा के अभाव के कारण न केवल ग्रामीण महिलाओं को शोषण का शिकार होना पङता हैं अपितु स्वास्थय सम्बन्धी समस्याओं का भी सामना करना पङता हैं और आधी से ज्यादा घरेलू हिंसा की घटनाओं में ग्रामीण महिलाओं को शारीरिक रुप से प्रतिपाङित किया जाता हैं । जिसके कारण उनके स्वास्थ पर प्रभाव पङना लाजमी हैं । आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में 3 मे सें 2 प्रसव घर पर ही होते हैं और तो और 43 प्रतिशत महिलाओं ही प्रशिक्षित स्वास्थकर्मी द्वारा ही प्रसव कराई जाती हैं । 1 लाख 25 हजार महिलाएं गर्भधारण के बाद मौत का शिकार हो जाती हैं । प्रत्येक वर्ष 1 करोङ 20 लाख लङकिया जन्म लेती हैं जिसमें से 30 प्रतिशत तो 15 वर्ष से पूर्व ही मर जाती हैं । ऐसे समाज द्वारा महिलाओं की सशक्तिकरण की दी जाने वाली दलीलें झूठी और खोखली नजर आती हैं । महिलाओं की वर्तमान स्थिति के लिए हम केवल समाज को ही दोष नहीं दे सकते हैं क्योकि समाज के साथ सरकार भी महिलाओं की स्थिति के लिए उतनी ही जिम्मेदार हैं जितना समाज हैं । सरकार की महिलाओं के प्रति संवेदनहीनता का अनुमान हम इसी बात से लगा सकते हैं कि अक्सर महिलाओं के प्रतिअत्याचार के लिए जाने जानी खाप पंचायत और पंचायतें को सरकार अप्रत्यक्ष रुप समर्थन देती हैं और इस पर पाबंदी लगाने के नाम पर चुपी साध लेती हैं । ऐसे में सरकार की संवेदनशीलता जब जमीनी स्तर ही सफल नहीं हो पा रही हैं तो हम कैसे उम्मीद करें कि सरकार समाज का महिलाओं के प्रति नजरिया बदलनें में सफल हो पाएगीं । सरकार में बङे पदों पर बैठे मन्त्री एंव विधायक अक्सर महिलाओं के पहनावें पर टिप्पणी करते हैं और बङे पदों पर बैठने के बावजूद भी अपनी छोटी सोच का परिचय देने सें नहीं चूकते हैं । सरकार में पक्ष या विपक्ष दोनों भले ही किसी मुद्दे पर एकसाथ सहमत न हों पर जब अपनी तनख्वाह की बात आती हैं तो दोनों अपने सारे गले-शिकवे भूलाकर आपस में भाई-भाई जैसा बर्ताव करने लगते हैं और ये आपसी भाईचारा तनख्वाहा के अतरिक्त एक और मुद्दे पर भी देखने को मिलता हैं , वह हैं महिला आरक्षण के विरोध में । चुनाव के समय जो महिलाएं लोकतन्त्र के पावन पर्व में सबसे ज्यादा उत्साह सें भाग लेती हैं और पुरुषों की तुलना में अधिक मात्रा में वोंट देकर अपने नागरिक होने का फर्ज अदा करती हैं और सरकार बनाने में महत्वपूर्ण में भूमिका निभाती हैं ,उन्ही के आरक्षण की मांग की सरकार ऐसी धज्जियां उङाती हैं कि महिला आरक्षण के पक्ष में पेश होने वाले बिल को फाङने से भी नहीं चुकते हैं । सरकार और समाज दोनो को यह सझना होगा कि केवल यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता के बल पर वे समाज में महिलाओं की स्थिति नहीं बदल सकते हैं और अगर सरकार को सही मायने को सशक्त एंव आत्मनिर्भर बनाना हैं तो उसे अपनी उन सारी योजनाओं को जिसमें महिलाओं की हित होने की बात कहीं जाती हैं , उन योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करना होगा और उसके क्रियान्वयन पर जोर देना होगा , साथ ही योजनाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक कमेटी का गठन करना चाहिए । जो इन सारी योजनाओं पर नजर बनाए रखे और सरकार को हर 3 महीनें पर अपनी रिपोर्ट सौपें । सरकार के साथ समाज को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए कि केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात कहने भर से वे आत्मनिर्भर नहीं बन जायेंगी । उसके लिए समाज को उनके साथ समानता का बर्ताव करना चाहिए और उन्हें सम्मान देना चाहिए क्योकि जब तक समाज ही पहल नहीं करेगा तब तक सरकार सें भी इस क्षेत्र में कोई व्यापक कार्य करने की उम्मीद करना बेईमानी होगी , क्योकि सरकार भी समाज सें ही चुनकर आती हैं । और अगर देश वाकई में विकास की तरफ बढना चाहता हैं तो उसें महिलाओं को पर्याप्त अवसर देना चाहिए और इसकी शुरुआत एकदम निचले स्तर से करनी होगी ।

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