सरबजीत सिंह की दर्दनाक मौत के बाद…

0
190

नरेश भारतीय

 

पाकिस्तान की जेल में बरसों तक यातनाएं भोगने और एक षड्यंत्र के तहत मृत्यु के मुख में धकेल दिए गए   भारतपुत्र सरबजीत सिंह को भारत ने राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी. उसके परिवार को केन्द्र और पंजाब की दोनों सरकारों ने प्रतिस्पर्धात्मक तरीके से भरपूर आर्थिक और अन्य सहायता देने की तत्परता दिखाई. परमेश्वर से प्रार्थना है कि सरबजीत की आत्मा को शांति मिले जो दुर्भाग्यवश उस दिन के बाद से उसे कभी नहीं मिली थी जिस दिन से उसने भारतीय पंजाब में अपने सीमावर्ती गाँव के निकट उस पार पाकिस्तानी पंजाब की तरफ अनजाने में अपने कदम आगे बढ़ा दिए थे. पड़ोसी ने उसे एक मामूली गलती मान कर वापस अपने गाँव लौटने में उसकी सहायता नहीं की. गिरफ्तार कर लिया और बाद में झूठा आरोप मढ़ कर एक अपराधी घोषित करके सलाखों के पीछे डाल दिया. कभी भारत के ही रहे समूचे पंजाब को दो टुकड़ों में बाँट दिए जाने के बाद से भारतमाता की संतप्त आत्मा को पाकिस्तान की तरफ से कभी शान्ति नहीं मिली. पाकिस्तान जो मज़हब की आड़ में एक अलग देश बन कर खड़ा हो गया था. वह अभी भी उसी कट्टरपंथ घृणा के आधार पर दुश्मनी बनाए रखने पर आमादा नज़र आता है जिसके आधार पर उसने भारत का अंगभंग किया था.

२३ वर्षों के लम्बे कारावास में सरबजीत के साथ किए जाने वाले अमानवीय व्यवहार, उसे मंजीतसिंह नाम के एक और व्यक्ति होने की लिखित स्वीकारोक्ति के लिए विवश किए जाने की पाकिस्तानी अधिकारियों की नाकाम कोशिशें, जासूसी का झूठा आरोप गढ़ कर उसे दी गई सज़ा, जेल में बेरहमी से की गई उसकी पिटाई, बेहतर इलाज के लिए उसे भारत को सौंपे जाने से इन्कार और उसकी मौत के असली कारण से पर्दा न हटाने की पाकिस्तान का हठधर्मिता. ये सब अंतिम क्षण तक प्रदर्शित उसकी धृष्टता और लगातार झूठ के बल पर मानवाधिकारों और अन्तराष्ट्रीय नियमों को धत्ता बताने वाले पाकिस्तान का सर्वविदित चरित्र है. इसके विपरीत सच यह भी है कि पिछले दो दशकों के दौरान सरबजीत को पाकिस्तान के शिकंजे से मुक्त कराने की दृष्टि से भारत की ओर से भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. भारत की शांत राजनायिकता कम से कम इस मामले में तो काम नहीं आई. सरबजीत के परिवार का दावा है कि वह अकेले उसकी रिहाई के लिए लड़ता रहा. देश के लोग दुहाई मचाते रहे. लेकिन पाकिस्तान के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. अब जेल में उस पर किए गए कातिलाना हमले के बाद उसकी गंभीर हालत की स्थिति में भी सांस रहते बेहतर इलाज के लिए भारत भेज दिए जाने की भारत के द्वारा की गईं मांगें ठुकरा दी गईं. मौत के बाद पोस्टमार्टम किया गया और सरबजीत की लाश भारत ले जाने की अनुमति दी गई.

अमृतसर मेडिकल कॉलेज में किए गए दूसरे पोस्टमार्टम के बाद वहाँ के एक वरिष्ठ अधिकारी श्री गुरजीत सिंह मान ने पत्रकारों के साथ बातचीत में कहा कि “सरबजीत के सिर पर गहरे ज़ख़्म के निशान मिले हैं और सिर की हड्डियां कई जगह से टूटी हुईं थीं. शरीर के कुछ महत्वपूर्ण अंग गायब थे. उसके शरीर में दिल और दोनों गुर्दे नहीं थे. कुछ पसलियां भी टूटी हुईं पाई गईं थीं.” इस सम्बन्ध में भारत सरकार को पाकिस्तान ने यदि कोई भी सही और पूरी जानकारी लाश के वहाँ किए गए पोस्टमार्टम के बाद दी तो दोनों रिपोर्टों में अंतर स्पष्ट हो गया होना चाहिए. शरीर के महत्वपूर्ण अंगों के गायब होने के इससे पहले भी कुछ मामले सामने आए हैं. पाकिस्तान की ऐसी हरकतें घोर अमानवीय होने के साथ साथ भारत के प्रति उसकी घृणा को जतलाती हैं. क्या इसे कोई भी देश स्वीकार करेगा? भारत विनम्र विरोध प्रकट करता है और पाकिस्तान उसकी उपेक्षा करता चला जाता है. विश्व की मानवाधिकार संस्थाएं पाकिस्तान में और पाकिस्तान के द्वारा किए जा रहे अमानवीय कृत्यों को रोकने में असमर्थ सिद्ध हुए हैं.

इस बीच जम्मू की जेल में हुई एक घटना पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है जिसमें एक पाकिस्तानी कैदी सनाउल्लाह एक भारतीय कैदी के द्वारा किए गए हमले में घायल हुआ है. इस घायल पाकिस्तानी कैदी को तुरंत उपचार उपलब्ध किया गया. हेलीकाप्टर से उसे चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में ले जाया गया. पाकिस्तान के अधिकारियों को ज्यों ही इस घटना की खबर मिली उन्होंने तुरंत भारतीय अधिकारियों से पूछताछ शुरू कर दी. उन्हें तुरंत समुचित जानकारी दी गई. तब पाकिस्तान ने उसके राजनायिकों को इस घायल कैदी से मिलने के लिए अनुमति मांगी. पांच पाकिस्तानी अधिकारियों को चंडीगढ़ जाने की अनुमति बिना देरी और हील हुज्जत के दे दी गई. उन्होंने डाक्टरों के साथ खुल कर बात की. पाकिस्तान की सरकार ने अपने इस नागरिक के साथ भेंट ही नहीं की बल्कि उसके परिवार को भी आश्वस्त किया है कि सनाउल्लाह को बेहतर इलाज के लिए इस्लामाबाद लाया जाएगा. भारत सरकार की ओर से कहीं भी कोई अवरोध उपस्थित नहीं किया गया. भारत मान्य अंतर्राष्ट्रीय नियमों का आदर करता है. अपने आप में यह सराहनीय है लेकिन यदि इसके ठीक विपरीत भारत को पाकिस्तान के हाथों ऐसे मामलों में सहयोग नहीं मिलता तो इसका गंभीरता के साथ समाधान किया जाना अब समय की आवश्यकता है.

पाकिस्तान का यह कहना है कि सनाउल्लाह पर हमला पाकिस्तान में सरबजीत पर किए गए हमले का बदला है. इसके पीछे उसके खुद का झूठ बोलता है जो सरबजीत पर किए गए कातिलाना हमले की पृष्ठभूमि में छुपा हुआ है. भारत सरकार का देश के प्रति कर्तव्य बनता है कि इसकी जड़ तक पहुंचे. दोनों देशों के बीच ऐसे मामलों में दो मापदंड काम नहीं कर सकते. पाकिस्तान में बंद भारतीय कैदियों के प्रति अपने व्यवहार और भारत के साथ उनके सम्बन्ध में सूचनाओं के सही आदान प्रदान में वहाँ की सरकार की कोताही को भारत सरकार कब तक बर्दाश्त करती रहेगी? दोनों देशों के बीच ऐसी व्यवस्था का कायम होना आवश्यक है जिससे एक दूसरे के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके जो इन दोनों देशों की जेलों में कैद हैं.

भारत में बहुधा मानवीय संवेदनाओं के सहारे राजनीति अपनी लक्ष्यसिद्धि के लिए सक्रिय होने लगती है. पाकिस्तान की कैद में एक निरपराध भारतीय नागरिक सरबजीत की मौत हो चुकी थी. उसके शव को भारत लाए जाने की प्रतीक्षा की जा रही थी. लेकिन इस बीच भारत के चुनावी माहौल में इसी को लेकर राजनीति गरमा चुकी थी. निरपराध सरबजीत के मामले में सही न्याय के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालने और उसे मुक्त कराने में असमर्थता का आरोप भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही एक दूसरे पर जम कर लगाया. सरबजीत का पार्थिव शरीर अग्नि की भेंट किए जाने तक भारत में दलगत राजनीति अपने रंग दिखाने से बाज़ नहीं आई. जिस तेज़ी के साथ परिवार को सहायता देने की सार्वजनिक घोषणाएं की गईं कांग्रेस सरकार के विरोध में उठे उसके स्वर मंद पड़ते चले गए. केन्द्र सरकार ने परिवार को २५ लाख रूपये देने की घोषणा पहले की और उसके जल्द बाद ही पंजाब सरकार ने एक करोड़ देने की. इससे परिवार को निश्चित ही सांत्वना मिली होगी. दिवंगत सरबजीत की बहिन उससे एक दिन पहले तक अपने भाई सरबजीत सिंह के मामले में केन्द्र सरकार की नाकामी के प्रति अपना गहरा असंतोष प्रकट कर चुकीं थी. प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के त्यागपत्र तक की मांग कर चुकीं थीं. इसके पश्चात उन्होंने उन्हीं के हाथ मज़बूत करने की बात ज़ोर देकर कही. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी दाह्संस्कार में शामिल हुए. उनके साथ केन्द्रीय गृहमंत्री शिंदे और अन्य अधिकारी परिवार से मिल चुके थे. अब पंजाब विधान सभा में सरबजीत को शहीद का दर्जा दिए जाने की घोषणा की गई है. ये सब सराहनीय पग हैं. लेकिन कितना अच्छा होता यदि पंजाब के छोटे से कस्बे भिखीविंड का यह साधारण भारतीय नागरिक सरबजीत अपने उन्हीं कदमों से चल कर जीवित अपने वतन सुरक्षित वापस लौट आता जिन पैरों पर वह भटकते हुए सीमारेखा पार कर गया था.

देश को छोड़ने से पहले जो सीमा रेखाएं अंग्रेजों ने भारत के मानचित्र पर खींच दी थी वे असली सीमाएं बन कर लाखों निरपराधों की निर्मम हत्याओं का कारण बनीं थीं. जिन्नाह की ज़िद पर मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने देने के प्रस्ताव को कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया था. भले इसे आज तक एक विवशता मान कर भुलाने का यत्न किया गया है लेकिन उस विवशता का भूत आज भी भारत के सिर पर मंडराता है. तब पंजाब और बंगाल के अंग भंग कर दिए गए थे. पाकिस्तान के अधिकार में गया बंगाल का एक भाग जब सत्तासंघर्ष में उससे संभल नहीं पाया तो  अलग हो कर बंगलादेश बन कर खड़ा हो गया. पश्चिमी पंजाब, सिंध और बुलोचिस्तान जो अब पाकिस्तान कहलाता है मज़हबी कट्टरता के साए तले राजनीतिक अस्थिरता से ग्रस्त है. अफगानिस्तान के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में और अन्यत्र तालेबान का पुन: उभार जारी है. पाकिस्तान की सेना में कट्टरपंथियों और भारत विरोधियों का प्रभुत्व है. इसकी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई अरसे से भारत विरोधी षड्यंत्र रचना में व्यस्त है. कश्मीर में घुसपैठ और भारत में हो रहे आतंकवादी हमलों में उसकी मुख्य भूमिका रहती है. इन स्थितियों में पाकिस्तान की लोकतंत्रीय सरकार बहुधा कठपुतली के तमाशे के और कुछ नहीं कर पाती. इसलिए भारत के द्वारा उसके साथ किए जाने वाले किसी भी समझौते का कोई महत्व लम्बे समय तक कभी भी नहीं रहता.

दुर्भाग्यवश भारत ऐसे पाकिस्तान के समक्ष हमेशा शांति की डुगडुगी बजाता नज़र आता है. शांति जो वह दिल से चाहता है. दोनों देशों के हित में भी यही है. लेकिन पाकिस्तान की राजनीति की जड़ में जब तक क्त्त्र्पंथी तत्वों के द्वारा भारत विरोध की निरंतर जमा की जाती खाद पड़ती रहेगी तब तक सरबजीत सरीखे जाने कितने और निरपराध भारतीय नागरिकों की जानें ऐसे पाकिस्तान के अस्तित्व में बने रहते जाएंगी. भारत की सरकार अनेक मामलों में पाकिस्तान का मुंह ताकती रह जाती है जैसा कि दुर्भाग्यवश सरबजीत के मामले में हुआ और फिर अपनी जनता के सामने सिर नहीं उठा पाती. पाकिस्तान की सरकार अपने लोगों के समक्ष अपना माथा ऊँचा रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियमों की उपेक्षा करते हुए भी हर जगह अपनी हर ज़िद मनवाने की हर संभव तरीके से चेष्ठा करती है जैसा कि उसने सनाउल्लाह के मामले में कर दिखाया है.

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here