सबके साथ सबका विनाश (भा १)

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डॉ. मधुसूदन

water 8(एक)
क्या, शीर्षक गलत है?

नहीं; चौंकिए नहीं, शीर्षक गलत नहीं है। अति अति गंभीर समस्या हैं।
भारत की जल समस्या मात्र गंभीर नहीं, अति गम्भीर ही नहीं, पर, अति अति गंभीर हैं। विश्वके जल विशेषज्ञ भी यही कहते हैं।
वैश्विक विशेषज्ञों की सामूहिक चर्चाओं, आयोजित गोष्ठियों, और वृत्तपत्रों के समाचारों के अनुसार, उसे सुलझाने का उचित समय भी निकल गया है। अब, किसी वंशवादी शासन को दोष देने में भी समय नष्ट न कीजिए। उससे भी समस्या का समाधान नहीं निकलेगा।
आज के आज भी युद्धस्तर पर, समस्या सुलझाने का प्रारंभ हो, तो  कम से कम दो  दशकों के बाद अच्छे परिणाम संभव है। पर इस समस्या को  मौलिक रीति से सुलझाना होगा। कहीं धरना देकर ऐसी समस्या मौलिक रीति से सुलझेगी नहीं। राजनीति ऐसी जीवन मरण की समस्या को लेकर नहीं करनी चाहिए। मेरे प्रिय भारत हितैषियों इस पर विचार करने का ही अनुरोध है। इतनी बिनती तो मुझे आप करने देंगे। आप अपना विरोध भी करे, पर, ठीक जानकारी के  उपरांत करे।

(दो)

विकास के सपने की  भ्रूणहत्त्या?

**यदि समस्या नहीं सुलझायी गई, तो भारत की विकास गाथा प्रारंभ होने से पूर्व ही समाप्त हो जाएगी। विकास के सपने की भ्रूणहत्त्या हो जाएगी।**
और *सबका साथ सबके विकास* में बाधा डालने वाले सभी इसके दोषी प्रमाणित होंगे।
“If this is not attended to, India’s growth story will completely go off the rails,” Mihir Shah said during an interview at the Global Water Summit 2012 conference in Rome.

(तीन) जल-युद्ध होंगे
 इस समस्या को सुलझाया नहीं गया, तो, जल-युद्ध होंगे। विभिन्न पडोसी राज्य आपस में लडेंगे। आंदोलन होंगे। परस्पर शत्रुता उभरेगी। जल यह अन्न से भी बढकर अति प्राथमिक आवश्यकता होती है। रोटी कपडा मकान से भी अधिक। हमारा बंधुभाव दाँव पर  लगेगा। रष्ट्रीय एकता दाँव पर लगेगी। भारत का सूर्य कई वर्षों के बाद ऊगने का प्रयास कर रहा है, उसका उदय होने से पहले ही अस्त हो जाएगा। आज जागने की आवश्यकता है। कल देर हो जाएगी।

(चार) जल संकट सुलझाइए या विकास भूल जाइए
जल संकट सुलझाइए या विकास भूल जाइए। भारत को रोम में कहा गया–कॅथरिन हॉर्नबी Solve water problems or forget growth, India told ROME | By Catherine Hornby
चावल से कंकड़ चुनकर फेंकने के बदले, सारे चावल को ना फेंको मेरे प्रिय भारत हितैषियों।
कंकड़ों को चुनकर बीना जा सकता है।

**There will be water conflicts, conflicts between users, across regions, they will become very serious and a threat to the democratic fabric itself,** he said, adding that neighboring Pakistan and Bangladesh faced similar challenges.

(पाँच) वैश्विक जल समस्या शिखर-संगोष्ठी
अप्रैल ३० -२०१२ में  वैश्विक जल समस्या पर आयोजित  शिखर-संगोष्ठी रोम नगर में सम्पन्न हुयी थी। 
(Reuters) – India’s economic growth and political stability are at stake in coming years if it does not change its approach to water management, a member of its natural resources planning commission told Reuters on Monday.
(रॉयटर्स ) –भारत की आर्थिक उन्नति और राजनैतिक स्थिरता दोनों, आगामी वर्षों में, दाँव पर लगेगी यदि भारत जल प्रबंधन का अपना अभिगम (पहुँच)  नहीं बदलता। प्राकृतिक संसाधन (योजना) आयोग ने रॉयटर्स को कहा।  मिहीर शाह को, शासन ने नयी जल संसाधन नीति निर्धारित करने का काम सौंपा था। यह उनका कहना है। इस क्षेत्र को निरन्तर पुनः पुनः परिपूरित करने की आवश्यकता है।
Mihir Shah, who has been asked by India’s government to come up with a new water resource strategy, said the sector needed to become more sustainable, efficient and focused on how water is used and how it reaches people.

(छः) शुद्धिकृत मलमूत्र पीने सिद्ध हो जाइए।
नहीं तो, शुद्धिकृत मलमूत्र पीने सिद्ध हो जाइए। हम नहीं तो, संभवतः हमारी अगली पीढी को ऐसा जल पीना पड सकता है। क्या, अगली पीढ़ी के लिए, हम ऐसी विरासत छोड़ना चाहते हैं? संभवतः हमें भी ऐसा शुद्धिकृत मलमूत्र पीना पड़े। और ऐसे जल का  शुद्धीकरण भी सस्ता नहीं होगा।
पर १५ जनवरी २०१५ को, बिल गेट्स ने ऐसा जल पीकर दिखाया; आप ने पढ़ा होगा ही।

(सात) युद्धस्तर पर क्रियान्वयन की आवश्यकता:
आज भी यदि, इस समस्या का समाधान और उसका क्रियान्वयन  युद्धस्तर की शीघ्रता से ना किया गया, तो, समस्या और भी जटिल हो सकती है।
देश की समस्या चक्रीय-वृद्धि करती रहेगी। गिरिवासी, वनवासी, अरण्यवासी, कुटिरवासी निर्धन प्रजा मरती रहेगी।

(आठ) बीमारियाँ, और सात लाख मौतें :
एक वैश्विक अनुमान के अनुसार, हर साल गंदे पानी और अन्य गंदगी से होने वाली बीमारियों से सात लाख बच्चों की मौत होती है। (यह आँकड़ा सारे विश्वका प्रतीत होता है। )
भारत की भी भारी जनसंख्या  आज ६७ वर्ष की स्वतंत्रता के बाद अशुद्ध जल पीने के कारण रोग पीड़ित है। और दुनिया में करीब दो अरब लोगों (पूरे विश्व की कुल जनसंख्या के ३५ प्रतिशत) को साफ-सफाई की बेहतर सुविधा न होने से गंदा पानी पीना पड़ता है।
भूगर्भ जल का स्तर पूरी दुनिया में गिर रहा है। पूरी दुनिया में जल संरक्षण के तरीकों पर बड़े शोध हो रहे हैं। कहा तो जा रहा है कि अगर हालात काबू में न आए तो तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा।

(नौ) जलाभाव से त्रस्त सूची: भारत ३ रे क्रम पर:
 भयंकर (उनका शब्द Scary) जलाभाव से त्रस्त सूची में भारत ३ रे क्रम पर है।
उनका विवरण वृत्त कहता है: Forget plastic bottles of mineral water, Forget rivers for swimming or water for bathing — many countries are facing water shortages so severe, millions are without running water in faucets.
भूल जाइए, बोतल का पानी। भूल जाइए नदियों और तालाबों में तैरना। ऐसी घोर जल समस्या आएगी, कि, आज की भाँति प्रतिदिन नियमित पानी से नहाना भी भूलना पड़ेगा। फिर भीगे  कपड़े से रगड़ के नहाने के दिन आयेंगे। कोख स्नान, अर्ध स्नान करने की नौबत आएगी। शौच के बाद कागजसे स्वच्छ अनुभव करने की आदत डालना होगी। आगामी वर्षों में ऐसे जल-संकट का सामना करना ही पड़ेगा। मैंने भारत में प्रवास करते समय, अनेक सार्वजनिक शौचालयों में अपर्याप्त जल का अनुभव किया है। हमारी महिलाओं के लिए तो  ऐसा जलाभाव, अतिशय  कठिन होता होगा।

(दस) मिलकर  नारा लगाइए
आधे लोग कहेंगे उच्च स्वर में *सब का साथ* और बचे हुए हाथ उठाकर बोलेंगे, ==>*सबका विनाश*
सबका साथ साथ सबका विनाश।
विश्वके नौ देशों की सूची में भारत ३ रे क्रम पर है। एक अन्य सूची के अनुसार भारत को (४० -८०) % जल संकट के वर्ग में डाला गया है। भारत भी गम्भीर जल-संकट से जूझेगा। पश्चिम भारत के अनेक  गाँवों में आज भी नल ही नहीं है। अनेक नगरों में पानी की समस्या है।
कुछ महानगरों में क्षरण (लिकेज) या चूने की समस्याएं भी हैं। मुम्बई महानगर में सुना है, कि, क्षरण को ही रोकने से जल समस्या का निराकरण हो सकता है।
अहमदाबाद में नर्मदा पर बाँध बन जाने से समस्या का अंत हो चुका है।

(ग्यारह) विघ्नकर्ता:
 ये विरोधी जन ,जाने-अनजाने विघ्नकर्ता सालियों जैसे हैं। कैसे? कुछ सालियों ने बहन के विवाह में, जिजाजी के जूते चुराए। और इतने सारे पैसे माँगे, कि, जिजाजी दे ही ना पाए। विवाह ही टूट गया। और विवाह सम्पन्न होकर बहना का घर बस ही न पाया।

5 COMMENTS

  1. माननीय मधु जी,

    इस जटिल समस्या की ओर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए धन्यवाद । समस्यापरिहार की दिशा में एक सुझाव – दूरदर्शन (TV) जनजाग्रति करने के लिए सर्वोत्तम माध्यम हो सकता है । जब मैं बच्चा था, तब दूरदर्शन पर नित्य दो विज्ञापन देखना मुझे याद है –

    १) “पढ़ना लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालों । पढ़ना लिखना सीखो, पढ़ना लिखना सीखो ।”
    २) “हम दो, हमारे दो”, “छोटा परिवार, सुखी परिवार” ।

    परिणाम आज देखता हूँ – घर का काम करने वाली, रिक्षा चलाने वाले आदि सभी आज अपने बच्चे को पढ़ाना चाहते हैं । कुछ लोगों के पास प्रायः आज भी साधन नहीं है, पर “माहौल” बन चुका है ! दूसरा, हिन्दू परिवारों में आज १०-१० बच्चे नहीं होते ! नहीं तो, कैसा भयङ्कर जनसङ्ख्या विस्फोट होता, कल्पना कीजिये !

    धन्यवाद,
    आपका मानव ।

  2. माननीय मधु जी,

    इस जटिल समस्या की ओर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए धन्यवाद । समस्यापरिहार की दिशा में एक सुझाव – दूरदर्शन (TV) जनजाग्रति करने के लिए सर्वोत्तम माध्यम हो सकता है । जब मैं बच्चा था, तब दूरदर्शन पर नित्य दो विज्ञापन देखना मुझे याद है –

    १) “पढ़ना लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालों । पढ़ना लिखना सीखो, पढ़ना लिखना सीखो ।”
    २) “हम दो, हमारे दो”, “छोटा परिवार, सुखी परिवार” ।

    परिणाम आज देखता हूँ – घर का काम करने वाली, रिक्षा चलाने वाले आदि सभी आज अपने बच्चे को पढ़ाना चाहते हैं । कुछ लोगों के पास प्रायः आज भी साधन नहीं है, पर “माहौल” बन चुका है ! दूसरा, हिन्दू परिवारों में आज १०-१० बच्चे नहीं होते ! नहीं तो, कैसा भयङ्कर जनसङ्ख्या विस्फोट होता, कल्पना कीजिये !

    धन्यवाद,
    आपका मानव ।

  3. माननीय मधु जी,

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    १) “पढ़ना लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालों । पढ़ना लिखना सीखो, पढ़ना लिखना सीखो ।”
    २) “हम दो, हमारे दो”, “छोटा परिवार, सुखी परिवार” ।

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    धन्यवाद,
    आपका मानव ।

  4. माननीय मधु जी,

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    १) “पढ़ना लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालों । पढ़ना लिखना सीखो, पढ़ना लिखना सीखो ।”
    २) “हम दो, हमारे दो”, “छोटा परिवार, सुखी परिवार” ।

    परिणाम आज देखता हूँ – घर का काम करने वाली, रिक्षा चलाने वाले आदि सभी आज अपने बच्चे को पढ़ाना चाहते हैं । कुछ लोगों के पास प्रायः आज भी साधन नहीं है, पर “माहौल” बन चुका है ! दूसरा, हिन्दू परिवारों में आज १०-१० बच्चे नहीं होते ! नहीं तो, कैसा भयङ्कर जनसङ्ख्या विस्फोट होता, कल्पना कीजिये !

    धन्यवाद,
    आपका मानव ।

  5. माननीय मधु जी,

    इस जटिल समस्या की ओर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए धन्यवाद । समस्यापरिहार की दिशा में एक सुझाव – दूरदर्शन (TV) जनजाग्रति करने के लिए सर्वोत्तम माध्यम हो सकता है । जब मैं बच्चा था, तब दूरदर्शन पर नित्य दो विज्ञापन देखना मुझे याद है –

    १) “पढ़ना लिखना सीखो, ओ मेहनत करने वालों । पढ़ना लिखना सीखो, पढ़ना लिखना सीखो ।”
    २) “हम दो, हमारे दो”, “छोटा परिवार, सुखी परिवार” ।

    परिणाम आज देखता हूँ – घर का काम करने वाली, रिक्षा चलाने वाले आदि सभी आज अपने बच्चे को पढ़ाना चाहते हैं । कुछ लोगों के पास प्रायः आज भी साधन नहीं है, पर “माहौल” बन चुका है ! दूसरा, हिन्दू परिवारों में आज १०-१० बच्चे नहीं होते ! नहीं तो, कैसा भयङ्कर जनसङ्ख्या विस्फोट होता, कल्पना कीजिये !

    धन्यवाद,
    आपका मानव ।

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