अमेरिका ट्रंप की दुकान है, क्या ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका की भलाई के लिए कोई कठोर कदम उठाते हैं तो उसमें कुछ बुराई नहीं है लेकिन आजकल उन्होंने विदेशों से आयात होने वाली चीजों पर भारी-भरकम टैक्स लगाकर बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। सबसे पहले उन्होंने चीन को सबक सिखाने की ठानी। चीनी चीजों पर जैसे ही उन्होंने ज्यादा तटकर ठोका, चीन ने अमेरिकी चीजों पर उनसे भी ज्यादा तटकर ठोक दिया। ईंट का जवाब पत्थर से मिला। चीन की अटपटी व्यापार नीति और काॅपीराइट नियमों के उल्लंघन के विरुद्ध अमेरिकी कार्रवाई जरुरी भी थी लेकिन भारत और यूरोपीय देशों ने अमेरिका का क्या बिगाड़ा था ? उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के कौन से नियमों का उल्लंघन किया था ? इन मुक्त और सही व्यापार करने वाले राष्ट्रों ने भी ट्रंप को शीर्षासन करवा दिया है। भारत ने अमेरिका को बेचे जाने वाली स्टील और एल्युमिनियम पर लगी 25 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की डयूटी के जवाब में उससे खरीदी जानेवाली 29 चीजों पर ऐसी और इतनी ड्यूटी की घोषणा कर दी है कि अमेरिका को अब घाटा होने लगेगा। अमेरिकी खरीदददार को अब अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी। भारतीय खरीददारों को भी यही भुगतना हेागा। इससे मुक्त विश्व-व्यापार की धारणा को गहरी चोट पहुंचेगी और दुनिया के उपभोक्ताओं को नई मंहगाई का शिकार होना पड़ेगा। हो सकता है कि चीजों का उत्पादन भी घटे। उसके कारण बेरोजगारी भी बढ़ेगी। अमेरिका के फायदे की नीयत से किया गया ट्रंप का यह काम अमेरिका का नुकसान ही करेगा। ट्रंप ने सत्तारुढ़ होने के बाद ऐसे कई कदम उठाए हैं, जो अमेरिका के विश्व-शक्ति होने की हैसियत को घटाते हैं। जैसे वीजा-नियमों में भारी फेर-बदल, कई संकटग्रस्ट क्षेत्रों से अमेरिकी फौजों की वापसी, कई राष्ट्रों को दी जानेवाली मानवीय सहायता पर रोक, सं.रा. संघ के कई कार्यक्रमों का बहिष्कार, प्रशांत क्षेत्र के संगठन का बहिष्कार, यूरोपीय संघ से मनमुटाव आदि ! ट्रंप दुनिया के सबसे संपन्न और सबल राष्ट्र अमेरिका को अपनी व्यक्तिगत दुकान की तरह चलाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी नीतियों से सारी दुनिया असमंजस में तो पड़ ही गई है, अमेरिका में भी उनका विरोध बढ़ता जा रहा है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि ट्रंप या तो बहुत भोले हैं या फिर बेहद अक्खड़ हैं। उन्होंने जैसा परमाणु-सौदा उ.कोरिया के किम से करते हुए व्यावहारिकता का परिचय दिया, वैसा ही यदि वे व्यापारिक मामले में भारत के साथ दें तो निश्चय ही भारत-अमेरिका संबंध नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। यदि ट्रंप अपनेवाली पर अड़े रहे तो अमेरिका और भारत के बीच अरबों-खरबों रु. तक बढ़नेवाले व्यापार की नई संभावना पर अच्छा असर नहीं पड़ेगा।

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