कांग्रेस भ्रष्टाचार की बजाये अन्ना से क्यों लड़ रही है ?
अन्ना के 11 दिसंबर के सांकेतिक आंदोलन से घबराई सरकार इस बार बताते हैं अपने चमचों से 10 दिसंबर से जंतर मंतर पर उनके खिलाफ जवाबी आंदोलन कराने की घटिया कवायद पर उतर आई है। कांग्रेस और यूपीए सरकार यह भूल रही है कि यह आंदोलन अन्ना नाम के एक बूढ़े या उनकी कोर कमैटी का नहीं बल्कि उनके नेतृत्व में इस देश की सवासौ करोड़ परेशान हाल जनता का है। अगर सरकार अभी भी भ्रष्टाचार से लड़ने को मज़बूत जनलोकपाल बिल पास न कर अन्ना और उनकी टीम से लड़ने का दुस्साहस और बेवकूफी जारी रखती है तो एक बात कान खोलकर सुनले कि अब बात जनता की सहनशीलता और समझ से बाहर जा रही है, ऐसा न हो कि इस बार जनता इतनी बड़ी संख्या और इतने गुस्से में सड़कों पर आये कि वह सरकार के काबू से बाहर हो जाये क्योंकि शरद पवार के गाल पर चांटा उसकी बानगी पहले ही पेश कर चुका है।
अन्ना ने भी आम जनता की तरह पहली प्रतिक्रिया में यही बेसाख्ता कह दिया था कि बस एक चांटा…. वास्तव में अगर आज फेसबुक, ब्लॉग और आरकुट पर सरकार लगाम लगाने की बात सोच रही है तो उसको मामले की तह में जाना चाहिये कि क्यों जनता अपने नेताओं और सरकार से इतनी नफरत और नाराज़गी रखती है कि चांटा मारने पर इंटरनेट पर गलत और गैर कानूनी होने के बावजूद कहती है कि गोली क्यों नहीं मारी ? हालांकि हम हिंसा का समर्थन नहीं करते लेकिन कपिल सिब्बल जैसे नादान मंत्रियों को यह ज़रूर सोचना चाहिये कि यह नौबत क्यों आई? वैसे तो यह एक चुटकुला है लेकिन इसमें एक हकीकत भी छिपी है। अन्ना ने सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल बनाने को आज जिस तरह से मजबूर कर रखा है अगर वह शादीशुदा होते तो सरकार उनको उनकी पत्नी से भिड़ा देती। और उनका अधिकांश समय अपने घर के मसले तय करने में ही गुज़र जाता। सरकार का मानना है कि अगर अन्ना शादी कर लेते तो यह आंदोलन कभी नहीं होता। और होता तो किसी कीमत पर कामयाब नहीं होता। सरकार के चमचे अन्ना की पत्नी के कान भर भरकर यह हालत पैदा कर देते कि जब भी अन्ना घर से अनशन को चलते तो उनकी पत्नी पूछती कहां जा रहे हो?
अकेले तुमको ही क्या पड़ी है भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनवाने का ठेका लेने की? इस केजरीवाल का साथ छोड़ दो नहीं तो देख लेना? वह ब्वॉयकट बाल वाली लड़की कौन है, वह बार बार आकर आपकी बगल में क्यों बैठ जाती है? जल्दी आओगे ना? अनशन स्थल पर पहुंचते ही फोन करना, समझे? कुछ काम घर पर भी कर लिया करो बाहर जाने की क्या ज़रूरत है? मैं भी साथ में चलूं? अच्छा बाहर जा ही रहे हो तो मेरे और बच्चो के लिये क्या लाओगे? दिल्ली में मेरी मौसी रहती है वो अचार देंगी लेते आना।
ऐसे ही भ्रष्टाचार के एक मामले में यूपी के बस्ती ज़िले में हक्कुल नाम के सपेरे ने पहले तहसील के चक्कर काट काटकर अधिकारियों से अपने सांप पालने के लिये ज़मीन की मांग की। वे उसे टहलाते रहे लेकिन जब उसे ज़मीन पट्टे पर देने के लिये भारी भरकम रकम मांगी गयी और वह नहीं दे सका तो उसने प्रशासन को सबक सिखाने के लिये तीन बोरों में भरे अपने सांप तहसील में लाकर छोड़ दिये। आज वहां दहशत की हालत यह है कि अनेक अधिकारी तो खुद वहां से तबादला कराकर डर की वजह से कहीं और तैनात हो गये हैं और कुछ खौफ़ की वजह से फरार हैं। कुछ छोटे सरकारी कर्मचारी हर रिकॉर्ड और हर फाइल के पीछे ज़रा सी भी आशंका होने पर सांप सांप चिल्लाने लगते हैं।
उधर सरकार के सामने दिक्कत यह है कि वह किसी को बस्ती की इस तीन बोरे सांप वाली तहसील में भेजना चाहती है तो कोई तैयार नहीं है। कुछ की हालत तो यह है कि नौकरी छोड़ने को तैयार हैं लेकिन वहां ड्यूटी को नहीं जा रहे। उधर हक्कुल के खिलाफ सार्वजनिक स्थान पर वन्य जीव छोड़कर दहशत फैलाने का आरोप लगाकर मुकद्मा तो दर्ज कर लिया गया है लेकिन तीन थानों की पुलिस भी उसको वीरप्पन की तरह से तलाश नहीं कर पा रही है। ऐसा नहीं है कि हक्कुल का कोई पता ठिकाना पुलिस को मिल नहीं रहा है बल्कि पुलिस उसके सांपों से इतना भयभीत है कि उसको जब भी कोई मुखबिर हक्कुल का पता देता है तो वह पहले यह पूछती है कि उसके पास अब कोई सांप तो बाकी नहीं है। जब यह पता चलता है कि उसके पास सबसे ख़तरनाक कोबरा अभी सुरक्षित हैं तो पुलिस शातिर बदमाश या वीआईपी नेता की तरह उसको पकड़ने के लिये मौके पर जाने से खौफ खाती है।
ऐसे ही अन्ना के आंदोलन को लेकर एक किस्सा और चर्चा में है। कुछ लोग रेल में सफर कर रहे थे। अचानक टीसी ने आकर टिकट चैक करने शुरू किये तो एक आदमी उसे देखकर भागने लगा। टीसी के साथ आई पुलिस और टीसी उसके पीछे भागे। उस आदमी के साथ साथ कुछ और लोग भी इधर उधर भाग खड़े हुए। पुलिस के पहले आदमी के पीछे भागने से वे अन्य लोग सुरक्षित बच निकले। इसके बाद कुछ दूर जाकर पहला आदमी पुलिस की पकड़ में आ गया। उससे जब बिना टिकट होने पर रसीद कटाने या जेल जाने को कहा गया तो वह अपनी जेब से टिकट निकालकर दिखाने लगा। उससे पूछा गया कि जब टिकट था तो वह भाग क्यों रहा था तो उसने जवाब दिया कि उसके और साथी बिना टिकट थे जो अब भाग चुके हैं।
बताया जाता है कि ऐसा ही काम आजकल हमारे पीएम मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार को लेकर कर रहे हैं वे खुद अलीबाबा चालीस चोर की तरह बेईमानों को बचा रहे हैं। एक लघुकथा से अपनी बात कहना चाहता हूं। एक राजा ने एक चोर को मामूली चोरी के आरोप में फांसी की सज़ा सुना दी थी। चोर से जब अंतिम इच्छा पूछी गयी तो उसने कहा कि उसको वह फांसी दे जिसने जीवन में कभी चोरी नहीं की हो। एक एक करके सब कभी न कभी अपनी चोरी को याद करके पीछे हटते गये। नतीजा यह हुआ कि खुद राजा भी बचपन में चोरी की बात याद करके इस काम को अंजाम देने लायक नहीं बचा तो चोर ने पूछा कि जब सभी चोर हैं तो उसको ही सज़ा क्यों दी जा रही है? यह सुनकर राजा ने उसको बरी कर दिया था। वास्तव में यह चोर बड़ा ही चतुर था। जिसने आज यही सवाल बारबार उठा रखा है कि अन्ना की टीम के लोग खुद पूरी तरह बेदाग़ नहीं हैं तो वे कैसे हमारे राजनेता से ईमानदारी की मांग कर सकते हैं।
ज़ाहिदे तंगनज़र ने मुझे काफ़िर समझा,
और काफिर ये समझते हैं मुसलमां हूं मैं।
सही लिखा है जी ! लेकिन कोंग्रेस सुधरने वाली नहीं है कारन ये विदेशो के सदयांत्रो की शिकार होचुकी है ये लोग देश भक्ति भूल चुके ह !इनके पापो की गुप्त केसीटे विदेशियों के पास है !ये ब्लेकमेल किये जा रहे है !अब इनकी देश्द्रोहिता लाइलाज हो गयी है !देश के इस नासूर का ओपरेशन ही करना होगा !देश को भगत सिंग जेसे युवको की कमी महसूस होने लगी है