अन्तराष्ट्रीय मंचों से पाक चीन का घेराव

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आसियान सम्मेलन, जी 20 और विएतनाम दौरे से एक बार फिर भारतीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश नीति की दहाड़ लगाई है और एक प्रकार से चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध ललकार की हैटट्रिक लगा दी है. पाकिस्तान के विरुद्ध अपनी आवाज को अन्तराष्ट्रीय मंच से बुलंद करते हुए नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे पर लाओस के वियनतियाने में हो रहे 14 वें आसियान सम्मेलन में कहा कि हमें उन लोगों के खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे जो आतंकवाद का इस्तेमाल हथियार की तरह करते हैं. केंद्र की पिछली यूपीए सरकार की “लुक ईस्ट” पालिसी को “एक्ट ईस्ट” पालिसी में बदलनें वाली एनडीए सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी के भाषणों और कृतित्व में यह बात स्पष्ट दिखने लगी है. नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की और संकेत करते हुए उसे सख्तीपूर्वक आतंक का निर्यातक देश बताया और इसके खतरे भी गिनाये. अपनी पाकिस्तान नीति की दृढ़तापूर्वक स्पष्ट करते हुए मोदी जी ने कहा कि पाकिस्तान और उसके जैसे आतंकवाद को सरंक्षण देनें वाले देश ही हैं जो विश्व अर्थव्यवस्था के एकीकरण, सुदृढ़ीकरण व तेजी में बड़ी बाधा बनें हुए हैं. नरेंद्र मोदी ने अपनी बात को स्पष्टता व मजबूती से रखते हुए आगे कहा कि अगर दक्षिण एशिया में शान्ति, समृद्धि व स्थायित्व लाना है तो ऐसे आतंक को प्रश्रय देनें वाले देशों व आतंक को को हर स्थिति में बेअसर करना होगा. भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति को लागू करने के बाद से ही आसियान देशों के प्रति खासा संवेदनशील रहा है. इसी संवेदनशीलता को आगे बढ़ाने व अपनें पूर्वोत्तर राज्यों को आसियान देशों से सीधे संपर्क में लाने के लिए आसियान देशों से सहयोग को आगे बढ़ाना चाहता है. भारत अपनी “एक्ट ईस्ट” नीति के तहत स्पष्ट तौर पर यह चाह रहा है कि प्राचीन व मध्य युग की तरह भारत के अपने पूर्वी पड़ोसी देशों से सम्बन्ध सुदृढ़, सुस्पष्ट व मधुर हों. यूरोपीय राजनैतिक व भौगोलिक ईकाइयों की तरह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में भी राजनैतिक, राजनयिक व सांस्कृतिक गठबंधन करवाना अब भारत व नरेंद्र मोदी का एक बड़ा लक्ष्य दिख रहा है. चीन की विस्तारवाद की नीति व पाकिस्तान की आतंकवाद को प्रश्रय की नीति इस राह में बड़ी बाधा है. 10 दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, ब्रुनेई, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, वियतनाम और थाईलैंड के नेताओं के मध्य अपने मंतव्य को नरेंद्र मोदी ने बखूबी रखा.
15 वर्षों बाद किसी भारतीय प्रधानमन्त्री की हो रही वियेतनाम यात्रा में भी मोदी ने पाकिस्तान व चीन के विरुद्ध अपनी विदेशनीति को स्पष्टता के साथ आगे बढ़ाया. चीन में हो रहे 4-5 सितम्बर के जी-20 सम्मेलन के ऐन पूर्व नरेंद्र मोदी ने अपना विएतनाम का दौरा रख कर एक विशिष्ट योजना का परिचय व अपनी कूटनीति का संकेत दे दिया है. दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की उत्तरोत्तर बढ़ती भूमिका का संकेत देती यह कूटनीति बहुत आगे तक जानें का लक्ष्य लिए हुए है. विएतनाम के लिए भारत सर्वोच्च 10 व्यापारिक साझेदारों में से एक है. 2013 में दोनों देशों के मध्य 5.23 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ जो गत वर्ष की तुलना में 32.8 प्रतिशत बढ़कर 2014 में 5.60 बिलियन डॉलर हो गया. इसमें भारत का निर्यात 3.1 बिलियन डॉलर और आयात 2.5 बिलियन डॉलर था. दोनों देशों के बीच 2020 तक 15 बिलियन डॉलर के व्यापार का लक्ष्य है. भारत वियतनाम में 111 प्रोजेक्ट में निवेश किए हुए है और इसमें करीब 530 मिलियन डॉलर की पूंजी लगी हुई है. व्यापारिक साझेदारी में टाटा का विएतनाम के साक्ट्रांग में लगनें वाले थर्मल पावर प्लांट सहित कई आयाम है जो उल्लेखनीय है किन्तु सबसे अधिक उल्लेखनीय है कि विएतनाम ने भारत को दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस के दोहन के लिए निवेश करने का पूरा अधिकार दे रखा है. वियतनाम का कहना है कि भारत जिस समुद्री इलाके में गैस दोहन कर रहा है वो वियतनाम के विशेष आर्थ‍िक क्षेत्र में आता है. हालांकि, चीन इस इलाके को विवादास्पद बताते हुए गैस दोहन को लेकर भारत को चेतावनी देता रहा है.
मोदी की अगुवाई में भारत की ‘ईस्ट पॉलिसी’ में वियतनाम अहम सामरिक हिस्सेदार है. पीएम मोदी के दौरे का मकसद व्यापार, डिफेंस और सिक्योरिटी समेत तमाम द्विपक्षीय संबंधों को और भी मजबूत करना है. इन सभी दृष्टि से विएतनाम आसियान में भारत के लिए समन्वयक की भूमिका निभा रहा है. यह सब स्वाभाविक भी है क्योंकि यह क्रम विएतनाम के शीत युद्ध वाले उसके गाढ़े समय में प्रारम्भ हुआ था; जब अमेरिकी सेना से लड़ रही वियतनाम की सेना को भारत ने इमोशनल और मोरल सपोर्ट किया था. समय बीतने के साथ-साथ दिल्ली व हनोई के मध्य दूरियां और कम होती गईं. जबकि उधर चीन व विएतनाम के मध्य 1970, 1980 और 1990 के दशक में युद्ध हो चुके हैं. दोनों के बीच दक्षिण चीन सागर को लेकर भी विवाद है. ऐसे में पीएम मोदी वियतनाम के जरिये चीन को घेरने की कोशिश में हैं जिससे चीन हड़बडाया हुआ है. चीन के सरकारी मीडिया ने बकायदा यह व्यक्तव्य जारी किया कि जी-20 के ऐन पूर्व मोदी के विएतनाम प्रवास का लक्ष्य चीन पर संयुक्त रूप से दबाव बनाना है. व्यक्तव्य में दक्षिण सागर के मुद्दे पर विएतनाम-चीन के बिगड़े वातावरण का भी उल्लेख है. नईदिल्ली- हनोई के इस संयुक्त प्रयास से बीजिंग में तनाव है. यद्दपि चीन का यह भी मानना है कि भारत चीन पर केवल मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहा है और भारत चीन पर सीधे व प्रत्यक्ष दबाव निर्मित करनें के विषय में सतर्कता बरतता रहा है तथापि इस सिलसिले में अमेरिका ने एशिया-प्रशांत की अपनी रणनीति को संतुलित करने के लिए भारत को अपनी ओर खींचे जाने का कोई प्रयत्न नहीं छोड़ा है.
अब देखना यह है कि लाओस, जी-20 व विएतनाम की तिहरी कूटनीति के सहारे मोदी अपनें परम्परागत प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को कहां तक समझा-साध पाते हैं और चीन को कहां तक संदेश दे पाते हैं?!

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