अपने ही बो रहे भाजपा की राह में शूल!

0
166

लिमटी खरे

भारतीय जनता पार्टी ने दो सीट से केंद्र में सरकार बनाने तक का सफर तय किया है। कई सूबों में भाजपा की सरकार रही है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक तक भाजपा के आला नेताओं का नियंत्रण पार्टी पर जबर्दस्त माना जा सकता है, किन्तु दूसरे दशक में भाजपा की अग्रिम पंक्ति को छोड़कर निचली पंक्तियों में उच्चश्रृखलता जमकर हावी होती दिख रही है। भाजपा को चाल चरित्र और चेहरा वाली आदर्श पार्टी माना जाता रहा है, किन्तु लगातार ही जिस तरह के कदमताल भाजपा की सरकार और उसके प्रतिनिधि करते दिख रहे हैं उसे देखकर यही लगने लगा है कि संगठन में अब आदर्श को बलाए ताक ही रख दिया गया है। ताजा मामला भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा का है, जिन्होंने नाथू राम गोडसे को एक बार फिर देशभक्त कहकर भाजपा के आला नेताओं को सोचने पर मजबूर करते हुए नई बस का आगाज कर दिया गया है।

भाजपा की भोपाल से संसद सदस्य साधवी प्रज्ञा का विवादों से गहरा नाता रहा है। उनके द्वारा बोली गई बातों पर अक्सर ही विवाद खड़े होते रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा ने नाथूराम गोड़से को लेकर लोक सभा में दिए गए बयान से सर्दी के मौसम में एक बार फिर सियासत में गर्मी महसूस की जा रही है। साध्वी प्रज्ञा के द्वारा दिए गए बयान पर किसी को हैरानी किंचित मात्र भी नहीं दिख रही है। वे अगर दीगर किसी जगह पर बयान देतीं तो ज्यादा शोर शराबा शायद ही होता, पर वे भूल गईं कि उनका बयान देश की सबसे बड़ी पंचायत में दिया जा रहा है, जहां दिए गए वक्तव्य को रिकार्ड में लिया जाता है, उसकी एक अहमियत होती है। यह अलहदा बात है कि उनके बयान को संसदीय कार्यवाही से विलोपित कर दिया गया है।

बुधवार को एसपीजी संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान डीएमके के सांसद ए. राजा के द्वारा दिए जा रहे वक्तव्य में जब उनके द्वारा संदर्भ में महात्मा गांधी और नाथू राम गोड़से का नाम लिया तो (संभवतः अति उत्साह में) साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के द्वारा उन्हें देशभक्त करार दे दिया गया। चूंकि मामला देश की सबसे बड़ी पंचायत के अंदर का था इस लिहाज से वहां हंगामा होना स्वाभाविक ही था। प्रज्ञा ठाकुर को बयान देने के पहले यह विचार अवश्य करना चाहिए था कि इतिहास में दर्ज एक अध्याय जिसमे महात्मा गांधी के हत्यारे के रूप में नाथू राम गोड़से को गुजरे जमाने की फिल्मों के खलनायक किरदारों के मानिंद ही याद किया जाता है, की मनमानी व्याख्या अब न तो की जा सकती है और ना ही कोई सहन ही करने की स्थिति में है।

इस पूरे घटनाक्रम के बाद प्रज्ञा ठाकुर को संसद की रक्षा सलाहकार समिति के हटाते हुए भाजपा ने संदेश देने का प्रयास अवश्य किया है कि इस तरह की बातों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। इसके पहले भी साधवी प्रज्ञा के द्वारा कही गई बातों पर विवाद हो चुके हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कदम उठाने में कहीं न कहीं देरी अवश्य की गई प्रतीत हो रही है, जिसके कारण भाजपा की भद्द भी पिटती दिख रही है। लगभग पांच माह पहले भी साध्वी प्रज्ञा के द्वारा नाथूराम गोड़से को देशभक्त करार दिया था, तब भी भाजपा शीर्ष नेतृत्व के द्वारा उन्हें चेताया गया था। इसके बाद भी उनके विचारों में शायद परिवर्तन नहीं आ सका, जिसकी परणिति बुधवार को संसद में दिखाई दी। भाजपा के द्वारा लोकसभा चुनावों में देश के हृदय प्रदेश से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव मैदान में उतारा था। साध्वी प्रज्ञा ने कांग्रेस के कद्दावर नेता राजा दिग्विजय सिंह को पराजित किया था। साध्वी प्रज्ञा चुनावों के पहले से ही चर्चित और विवादित बयान देती आई हैं। उन्हें रोकने की दिशा में संगठन के आला नेता भी ज्यादा फिकरमंद नहीं दिखे। हो सकता है साध्वी के इस व्यवहार को कुछ और नेता भी अंगीकार कर लें, अगर ऐसा हुआ तो निश्चित तौर पर यह भाजपा के लिए सरदर्द से कम साबित नहीं होने वाला।

आजादी के उपरांत सात दशकों में महात्मा गांधी को लेकर पाठ्य पुस्तकों से लेकर अन्य जगहों पर जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है उससे देश के हर नागरिक के मन में उनके प्रति अगाध श्रृद्धा की बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। महात्मा गांधी के संदर्भ में जितनी भी बातें लोगों को पता हैं, उनके अनुसार बापू के त्याग, तपस्या और बलिदान को न तो झुठलाया जा सकता है और न ही लोगों के दिलों से उन्हें विस्मृत ही किया जा सकता है। इस तरह से मनमानी व्यवख्या करने से साध्वी प्रज्ञा आखिर क्या साबित या स्थापित करना चाह रहीं हैं यह तो वे ही जानें पर इससे केंद्र सरकार के अनेक मंसूबों पर पानी फिरता दिख रहा है।

आजादी के उपरांत लगभग आधी सदी तक देश पर कांग्रेस का राज रहा है। कांग्रेस के राज में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल, इंदिरा गांधी आदि को लगातार ही महिमा मण्डित किया जाता रहा है। आज उमर दराज या बुजुर्ग हो रही पीढ़ी के दिल दिमाग में इन सारे नेताओं की छवि बहुत ही उजली, बेदाग और देश निर्माण करने वाले नेताओं की ही बनी हुई है। रातों रात इन नेताओं के कामों को विस्मृत शायद किसी कीमत पर नहीं किया जा सकता है। अगर कोई इस तरह की कवायद करेगा तो निश्चित तौर पर वह जनता के बीच खलनायक की छवि ही बनाता नजर आएगा।केद्र सरकार के द्वारा कांग्रेस के नेताओं को कांग्रेस के बजाए देश के नेताओं की छवि वाला बनाने के लिए एक के बाद एक प्रयास किए जा रहे हैं। गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा को लगवाकर भाजपा के द्वारा इन नेताओं पर कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त करने का तानाबाना चुपचाप बुना जा रहा था। लोगों के दिमाग में इन नेताओं की जिस तरह की छवि है उसके बाद भाजपा का इन नेताओं को पर्याप्त वजन, तवज्जो देने से लोगों में भाजपा की सकारात्मक छवि का संदेश भी जा रहा था, किन्तु प्रज्ञा ठाकुर जैसे जनप्रतिनिधियों की इस तरह की गलति के कारण भाजपा की छवि पर अगर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

Previous articleकिडनी के लिये योग थेरेपी का अनूठा केन्द्र
Next articleएड्स के घटते रोगी
लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here