भारत की भूमि का एक-एक कण खून से सींचा गया है। भारत की मिट्टी को वीर सपूतों ने अपने खून से सींचकर तैयार किया है। इस आजादी के लिए माताओं ने अपने वीर सपूतों को देश के ऊपर कुर्बान कर दिया। भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी देने वाले वीर क्रान्तिकारियों के हम सब ऋणी हैं। हम सब की यह जिम्मेदारी है कि हम सब मातृ भूमि के उन वीर सपूतों को सदैव याद रखें जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को त्याग दिया। जब-जब हम आजादी की लड़ाई के इतिहास के पन्नों को पलटकर देखतें हैं तब-तब पूरे शरीर का रक्त स्वयं ही तीव्र गति से संचार करने लगता है और शरीर के अंदर एक गजब की ऊर्जा का संचार होता है। देश के प्रत्येक नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह देश की आजादी के प्रति दिए गए बलिदानों को सदैव ही याद रखे।
ब्रिटिश भारत शासनकाल में 8 अप्रैल का दिन एक अहम दिन है। इतिहास साक्षी कि जब 8 अप्रैल को सदन की कार्यवाही शुरू होने वाली थी उससे कुछ मिनट पहले भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बिना किसी का ध्यान आकर्षित किए हुए काउंसिल हाउस में दाख़िल हो चुके थे उस समय उन्होंने ख़ाकी रंग की कमीज़ और हाफ़ पैंट पहन रखी थी उसके ऊपर उन्होंने सिलेटी रंग का चारखाने का कोट पहन रखा था जिसमें तीन बाहरी जेबें थीं और एक जेब कोट के अंदर थी उन दोनों ने ऊनी मोज़े भी पहन रखे थे भगत सिंह ने एक विदेशी फ़ेल्ट हैट लगाई हुई थी इसका उद्देश्य था कि भगत सिंह की ऊँची कद काठी और सुंदर व्यक्तित्व की वजह से कहीं उन्हें पहले ही न पहचान लिया जाए इस फ़ेल्ट हैट को लाहौर की एक दुकान से ख़रीदा गया था। इसमें मुख्य सहयोगी सदन का एक भारतीय सदस्य था जोकि उन्हें गेट पर पास देकर समय रहते वहाँ से ग़ायब हो चुका था। वह व्यक्ति कौन था इसकी भी चर्चा किसी समय करेंगें। लेकिन जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने हाउस में प्रवेश किया तो वहाँ उस समय दर्शक दीर्घा लोगों से खचाखच भरी हुई थी। उस समय सदन में सर जॉन साइमन के अलावा मोतीलाल नेहरू एन सी केल्कर और एम आर जयकर भी मौजूद थे। भगत सिंह को यह अच्छी तरह पता था कि उनके द्वारा फेंका जाने वाला बम इस विधेयक को क़ानून बनने से नहीं रोक पाएगा क्योंकि, नेशनल असेंबली में ब्रिटिश सरकार के समर्थकों की कमी नहीं थी और साथ ही वायसराय को क़ानून बनाने के असाधारण अधिकार मिले हुए थे।
8 अप्रैल को जैसे ही अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेल सेफ़्टी बिल पर अपनी रूलिंग देने खड़े हुए भगत सिंह ने असेंबली के फ़र्श पर बम लुढ़का दिया। उठते हुए धुएं के बीच स्पीकर विट्ठलभाई पटेल ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जैसे ही बम फटा ज़ोर की आवाज़ हुई और पूरा असेंबली हॉल अँधकार में डूब गया दर्शक दीर्घा में अफ़रातफ़री मच गई तभी बटुकेश्वर दत्त ने दूसरा बम फेंका दर्शक दीर्घा में मौजूद लोगों ने बाहर के दरवाज़े की तरफ़ भागना शुरू कर दिया बम फ़ेंकने के तुरंत बाद दर्शक दीर्घा से इंकलाब ज़िदाबाद के नारों के साथ पेड़ के पत्तों की तरह पर्चे नीचे गिरने लगे उसका मज़मून (शीर्षक) ख़ुद भगत सिंह ने लिखा था हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी के लेटरहेड पर उसकी लगभग 60 प्रतियाँ टाइप की गईं थीं। जब बम का धुआँ छँटा असेंबली के सदस्य अपनी अपनी सीटों की ओर लौटने लगे दर्शक दीर्घा में बैठे हुए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भागने की कोशिश नहीं की क्योंकि भगत सिंह ने ऐसा पहले से ही तय कर रखा था कि बम फेंककर भागना नहीं है। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त अपनी-अपनी जगह पर ही थे। हाउस में मौजूद पुलिसकर्मी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को देखकर डर रहे थे। इसलिए कोई भी पुलिस वाला उन्हें गिरफ्तार करने का साहस जुटाना तो दूर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के पास जाने का भी साहस नहीं जुटा पा रहा था। क्योंकि पुलिस को यह भय था कि कहीं भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के पास और बम अथवा किसी प्रकार का हथियार न हों। काफी देर तक पुलिस वाले दूर से ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को निहारते रहे। उसके बाद भगत सिंह ने स्वयं ही अपनी वो ऑटोमेटिक पिस्तौल निकाल कर दे दी जिससे उन्होंने साउंडर्स के शरीर में गोलियाँ दागी थीं। भगत सिंह को यह अच्छी तरह से पता था कि यह पिस्तौल साउंडर्स की हत्या में उनके शामिल होने का सबसे बड़ा सबूत है। लेकिन बिना किसी भय के भगत सिंह ने अपनी पिस्तौल निकालकर दे दी। उसके बाद पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया और अलग-अलग थानों में ले जाया गया भगत सिंह को मुख्य कोतवाली में और बटुकेश्वर दत्त को चाँदनी चौक थाने में पुलिस लेकर गई। इसके पीछे यह मुख्य कारण था कि इस बम काण्ड की गूँज पूरे देश में सुनाई दी थी। देश के क्रान्तिकारी पुलिस थाने पर हमला कर सकते हैं ऐसी ब्रिटिश पुलिस को गोपनीय सूचना मिली। इसलिए दोनों को एक जगह नहीं रखा गया।
भगत सिंह की पिस्तौल एवं पोस्टर के तार साउंडर्स की हत्या से सीधे जुड़ने लगे। इसके उसकी जाँच की गई साथ ही वहाँ की दीवारों पर चिपकाए गए पोस्टरों की भी जाँच की गई। साउंडर्स की हत्या और हाउस काण्ड दोनों में समानता दिखी। क्योंकि दोनों ही पोस्टरों को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने जारी किया था जिस पर पहला शब्द नोटिस था और दोनों का अंत इंकलाब ज़िदाबाद के नारे से होता था। यहीं से अंग्रेज़ों को साउंडर्स की हत्या में भगत सिंह के शामिल होने के पहले सुराग मिले जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ती गई उन पर शक पुख्ता होता चला गया यह बात साफ़ हो गई कि पर्चों और पोस्टर की इबारत भगत सिंह ने ही लिखी थी यह सही भी था दोनों को भगत सिंह ने अपने हाथों से लिखा था भगत सिंह पर भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के अंतर्गत हत्या के प्रयास का मुकदमा चलाया गया जिसमें आसफ़ अली ने भगत सिंह का मुक़दमा लड़ा आसफ़ अली के साथ अपनी पहली मुलाकात में भगत सिंह ने उनसे कहा कि वह चमन लाल को बता दें कि वे पागल नहीं हैं। हम सिर्फ़ इस बात का दावा करते हैं कि हम इतिहास और अपने देश की परिस्थितियों और उसकी आकाँक्षाओं के प्रति अति गंभीर हैं। इस घटना के बाद अंग्रेज़ सरकार ने जेल में ही अदालत लगाने का फ़ैसला किया यह जेल उस भवन में हुआ करती थी जहाँ इस समय मौलाना आज़ाद मेडिकल कालेज है।
खास बात यह है कि इस मुक़दमें में अंग्रेज़ों के वकील थे राय बहादुर सूर्यनारायण जोकि अंग्रेजों की ओर से मुकदमा लड़ रहे थे। तथा मुकदमे के जज थे एडीशनल मजिस्ट्रेट पी बी पूल। जब भगत सिंह को पहली बार अदालत में लाया गया तो उन्होंने मुट्ठियाँ भींच कर अपने हाथ ऊपर करते हुए इंकलाब ज़िदाबाद के नारे लगाए इसके बाद मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया था कि दोनों को हथकड़ियाँ लगा दी जाएं दोनों ने इसका कोई विरोध नहीं किया और वह लोहे की रेलिंग के पीछे रखी बेंच पर बैठ गए भगत सिंह ने यह कहते हुए कोई बयान देने से इंकार कर दिया कि उन्हें जो कुछ कहना है वो सेशन जज की अदालत में ही कहेंगे जब भगत सिंह को अदालत में बोलने की अनुमति दी गई तो उन्होंने अदालत से कहा कि उन्हें जेल में अख़बार मुहैया कराने के आदेश दिया जाए लेकिन अदालत ने उनका यह अनुरोध ठुकरा दिया।
ज्ञात हो कि 4 जून को यह मुक़दमा सेशन जज लियोनार्ड मिडिलटाउन की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया 6 जून को वीर सपूतों ने अपने वक्तव्य दिए 10 जून को मुकदमा समाप्त हुआ और 12 जून को फ़ैसला सुना दिया गया अदालत ने भगत सिंह और दत्त को जानबूझ कर विस्फोट करने का दोषी पाया जिससे लोगों की जान जा सकती थी उन दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई मुकदमें के दौरान अभियोग पक्ष के गवाह की भूमिका गंभीर थी जिसने गवाही दी उनका नाम सोभा सिंह था। सोभा सिंह ने न्यायालय को बताया कि उन्होंने भगत सिंह और बटुकेशवर दत्त को बम फैंकते हुए देखा था।