दूसरी लहर के हमले की बढ़ती रफ्तार की चिन्ता

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  • ललित गर्ग-

देश में कोरोना की दूसरी लहर से जुड़ी डराने वाली खबरों के बावजूद केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारें गहरी नींद में हैं, पिछली बार इस तरह के आंकड़ों के बीच सख्त पाबंदियां लगा दी गयी थी, पूरा देश लाकडाउन की स्थिति में था, प्रश्न है कि इस बार सरकारें उदासीन क्यों है? वे किस अनहोनी होने का इंतजार कर रही है? दूसरी लहर की तेज बढ़ोतरी तो तब भी नहीं देखी गई थी, जब पहली लहर में वायरस का कहर चरम पर था। जाहिर है, मामला पहली या दूसरी लहरों का नहीं है। बात यह है कि जिस वायरस को काबू में आया हुआ माना जाने लगा था, उसने यह दूसरा ऐसा हमला किया है, जो पहले से भी ज्यादा खतरनाक है, विनाशकारी है एवं डरावना है, जिसने सभी रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि अगले चार सप्ताह काफी खतरनाक होंगे। यदि कोरोना के संक्रमण की रफ्तार नहीं रुकी तो हालात पिछली लहर से ज्यादा खतरनाक हो जाएंगे। अमेरिका के बाद भारत दूसरा ऐसा देश बन गया है, जहां एक दिन में एक लाख से अधिक संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। राजधानी दिल्ली में बढ़ते मामलों को देखते हुए रात्रिकालीन कफ्र्यू लगा दिया गया है। सबसे चिंताजनक पहलु यह है कि महाराष्ट्र और दिल्ली से फिर मजदूरों का पलायन शुरू होने के संकेत मिलने लगे हैं। उत्पाद एवं व्यापार फिर से ठहराव के शिकंजे में जा रहा है।
कोरोना संक्रमण बेलगाम होने के कारणों में आम आदमी की लापरवाही के साथ-साथ सरकारी उदासीनता भी बड़ा कारण है। पांच राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार कोई सख्त कदम नहीं उठा पायी है। क्या आम जनता की जीवन-रक्षा से ज्यादा जरूरी है चुनाव? बच्चों की शिक्षा को रोका जा सकता है तो चुनावों को क्यों नहीं? कोरोना संक्रमण इसलिए भी बेकाबू हुआ क्योंकि ट्रेनों, बसों, सब्जी मंडियों, मन्दिरों, साप्ताहिक बाजारों आदि में लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग को छोड़ दिया और न ही मास्क का इस्तेमाल करते हैं। जिन्होंने मास्क पहन रखा है, वह भी महज दिखावे के लिए। उनके मास्क नाक के नीचे लटकते नजर आते हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने कोरोना मामलों में अचानक वृद्धि की वजह बड़ी-बड़ी शादियों, पार्टियां, स्थानीय निकाय चुनाव, बड़े प्रदर्शनों के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन ना करना शामिल है।’ चुनाव एवं किसान आन्दोलन में भी कोरोना के प्रशासनिक आदेशों की धज्जियां उड़ रही है। पिछले वर्ष तो हमारे पास वैक्सीन भी नहीं थी और सभी नियमों का पालन करने के कारण केस कम हो गए थे। अब तो देश में एक दिन में 70 लाख लोगों को टीका लगाने की उपलब्धियां हासिल की जा चुकी हैं। फिर भी अगर संक्रमण बढ़ रहा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं हमारी लापरवाही बड़ी वजह है और महामारी से जंग में यही सबसे बड़ी बाधा बन गई है।
भारतीय जीवन में कोरोना महामारी इतनी तेजी से फैल रही है कि उसे थामकर रोक पाना किसी एक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है। अभी अनिश्चितताएं एवं आशंकाएं बनी हुई है कि अगर सामान्य जनजीवन पर बंदिशें नहीं लगी तो कोरोना के बेकाबू होकर घर-घर पहुंच जाने का खतरा बढ़ने की संभावनाएं अधिक है। कोरोना संक्रमण के वास्तविक तथ्यों की बात करें तो हालात पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण एवं जटिल हुए हैं, अंधेरा घना हुआ है। कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिये लाॅकडाउन, बंदी और सामाजिक दूरी के पालन को लेकर सख्ती के उपाय पिछली बार की तरह सख्त करने होंगे। इस पर काबू पाने के लिए कोई नई, प्रभावी और व्यावहारिक रणनीति बनाने पर विचार होना चाहिए। राज्यांे के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है, जो कोरोना महाव्याधि का सर्वमान्य हल दे सके एवं सब कसौटियों पर खरा उतरता हो, तो क्या नेतृत्व उदासीन हो जाये? अब हमारे पास वैक्सीन है, उसे लगाने की रफ्तार तेज होनी चाहिए। निजी अस्पतालों में निःशुल्क वैक्सीन लगाने की व्यवस्था होनी ही चाहिए, ऐसे संकट में भी निजी अस्पताल धन कमाने में जुटे रहे तो उन पर अंकुश कौन लगायेगा? उन्हें राष्ट्र संकट के समय परोपकार के लिये आगे आने के लिये कौन विवश करेगा? यह काम भी सरकार को सख्ती से करना चाहिए।
राजधानी सहित अनेक राज्यों में नाइट कफ्र्यू लगाए जाने के बाद लोग फिर भयभीत हो चुके हैं। लेकिन स्थिति की विकरालता को देखते हुए कोरा नाइट कफ्र्यू पर्याप्त नहीं है, सोशल मीडिया पर एक सवाल उठ रहा है। ‘‘भीड़ तो दिन में होती है तो क्या कोरोना रात में ही आता है।’’ केवल यह मान लेना कि लोग रात को निकल कर होटल, रेस्त्राओं या बार आदि में पार्टी करते हैं तो ऐसी जगहों पर सतर्कता एवं सख्ती बढ़ाने की जरूरत है। लाॅकडाउन एवं अन्य सख्त कदम उठाने होंगे, निज पर शासन फिर अनुशासन के उद्घोष की तरह हर व्यक्ति को अपने स्तर पर संयम बरतना होगा। बच्चों की परीक्षाएं नजदीक हैं, लोग बच्चों को जोखिम में नहीं डालना चाहते।
बहरहाल, वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के साथ-साथ सरकारों एवं आम जनता को कतई निराश नहीं होना चाहिए। हमने पूर्व में भी कठिन समय को भी खुशनुमा बनाया हैं। हम जमीन पर धूल में सने होने के बाद भी खड़े हुए हैं। हम वास्तव में जो चाहते हैं, उसे प्राप्त कर खुद को हैरान कर सकते हैं। ये कल्पनाएं सुखद तभी है जब हम कोविड-19 की दूसरी लहर के साथ जीते हुए सभी एहतियात का पालन करें, सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करने और सार्वजनिक स्थानों के लिये जब भी निकले मास्क का प्रयोग जरूरी करें एवं अपना चेहरा ढके रखे। कुल मिलाकर सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल की स्थिति एवं अधिक से अधिक लंबा खींचने के उपाय से ही हम कोरोना से युद्ध को कम से कम नुकसानदायी बना सकते हैं। अब नवरात्र पर्व और बैसाखी पर्व आ रहा है। बीते वर्ष हमने देखा था कि नवरात्र-दीवाली आदि के बाद संक्रमण में तेजी आई थी। सतर्कता के साथ पर्व मनाना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी एवं प्राथमिकता भी है। समाज में वर्गभेद की दीवारों को तोड़ने वाले पर्वों को हमें सतर्कता की दीवारों के बीच मनाना होगा, जो समय की मांग है। यदि हमने लापरवाही बरती तो कोरोना का नई लहर पिछले वर्ष के मुकाबले कई गुना तेजी से फैल सकती है।
कई इलाकों में आंशिक लॉकडाउन लागू किया जा रहा है। कई राज्य बाहर से आने वालों पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाने का ऐलान कर रहे हैं। इन सबका मकसद यह बताया जा रहा है कि लोगों के स्तर पर देखी जा रही लापरवाहियों में कमी आए। मगर इन पाबंदियों का असर यह भी हो रहा है कि लगभग साल भर की सुस्ती के बाद बिजनेस गतिविधियों में जो तेजी दिखाई दे रही थी, वह दोबारा मंद पड़ने लगी है। गांवों से काम की तलाश में शहर लौटे मजदूरों के भी वापस गांवों का रुख करने के संकेत मिल रहे हैं। इसने कंपनी प्रबंधकों की चिंता बढ़ा दी है। लेबर की कमी अर्थव्यवस्था एवं उत्पाद में तेजी लाने की योजना पर पानी फेर सकती है। लेकिन जान है तो जहान है। हमारा संयम जागरूकता एवं अनुशासन ही कोरोना को जल्दी परास्त कर पायेगा।
अच्छा यही होगा कि हम इस राष्ट्र के लिए त्याग करें, एक बार फिर हम घरों में ही रहे और घर के भीतर रहकर अपने पर्वो एवं आध्यात्मिक अवसरों की आराधना करें। उन इलाकों में जाने से बचें जहां कोरोना तेजी से फैल रहा है। अगर हम कोविड-19 के नियमो का पालन करते हैं तो ही हम व्यवस्था पर सवाल उठाने के अधिकारी हैं। यदि हम खुद ही अपना बचाव नहीं कर रहे तो फिर व्यवस्था पर सवाल उठाना उचित नहीं। बढ़ते केस के बीच अस्पतालों में बेड की कमी होगी, स्थिति काफी चिंताजनक बन सकती है, इसलिए अभी लोगों को संयम से काम लेना होगा। महामारी को रोकने के लिए सरकार के साथ जनता की भागीदारी की जरूरत है।

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