शाहजहाँ की हिन्दू विरोधी नीति
जहाँगीर के बाद उसके पुत्र शाहजहाँ ने उसकी विरासत को संभाला । शाहजहाँ के शासनकाल में को भारत के कई वामपंथी इतिहासकारों ने स्वर्ण युग की संज्ञा दी है । यद्यपि उसमें ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे स्वर्ण युग कहा जा सके । जिस ताजमहल को शाहजहाँ के द्वारा अपनी पत्नी मुमताज के नाम से बनवाया गया बताया जाता है, वह भी एक कल्पना मात्र है । वास्तविकता यही है कि हिन्दू विरोध का उग्रवाद इस मुगल बादशाह की नसों में भी समाविष्ट था। शाहजहाँ की लम्पटता तो अपने पूर्ववर्त्ती मुगल बादशाह से भी कहीं अधिक थी ।क्योंकि उसने तो अपनी वासना की आग बुझाने के लिए अपनी ही बेटी जहांआरा को भी नहीं छोड़ा था । उसकी यह बेटी अपनी माँ मुमताज जैसी ही लगती थी।
वासना की आग में भूल गया ईमान।
मानवता बिसरा दई खो दिया सम्मान।।
कहते हैं कि अकबर ने अपने शासनकाल में यह नियम बना दिया था कि किसी भी मुगल शहजादी का विवाह नहीं किया जाएगा । इस कारण से सभी मुगल शहजादियाँ अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए दरबारियों और नौकर चाकरों तक से भी अवैध सम्बन्ध बना लिया करती थीं। बेटी जहाँआरा का किसी से प्रेम न हो ,इस बात का पूरा प्रबन्ध इस मुगल बादशाह ने कर दिया था । जिससे कि वह उसी की होकर रहे । लम्पट बादशाह की लम्पटता को जारी रखने में जहाँआरा भी पूरा सहयोग किया करती थी। वह हिनफू लड़कियों को अपने जाल में फंसाकर अपने लम्पट पिता और बादशाह शाहजहाँ के सामने ला दिया करती थी।
जहाँआरा की सहायता से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की पत्नी से कई बार बलात्कार किया था।
यह भी कहा जाता है कि शाहजहाँ के राजज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा कराकर बाप के हवाले कर दिया था। जिससे शाहजहाँ ने 58 वें वर्ष में उस 13 वर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। 13 वर्ष की उस मासूम ने इस लम्पट बादशाह की वासना का भरपूर विरोध किया था, पर उसकी एक भी न चली । बाप भी मन मसोसकर रह गया था ।
बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से उसकी वासना की शिकार बनने से स्वयं को बचाने के लिए अपने ही हाथों से अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था। सचमुच उस बच्ची का यह बहुत बड़ा साहस था। जिसने अपने सम्मान और शील की रक्षा के लिए जल्लाद बादशाहों के चंगुल से बचने के लिए इतना कठोर निर्णय ले लिया था।सौंदर्य के उपासक इस तथाकथित लम्पट बादशाह ने कितनी ही सुन्दरियों को नरक का जीवन जीने के लिए अभिशप्त कर दिया था। क्योंकि कहा जाता है कि उसके हरम में 8000 महिलाएं थीं। इनमें से अधिकांश महिलाएं हिन्दू परिवारों से थीं।
शाहजहाँ ने रख लिया था अपना नाम द्वितीय तैमूर
शाहजहाँ ने अपना नाम द्वितीय तैमूर भी रख लिया था। इसके पीछे उसका कारण केवल यही था कि वह तैमूर की क्रूरता व निर्दयता को अपना आदर्श मानता था और उसने उसी प्रकार के आचरण और व्यवहार को अपने जीवन का श्रंगार बनाकर उसे हिन्दुओं के प्रति व्यवहारिक जीवन में अपनाया था। अपने आपको द्वितीय तैमूर के नाम से पुकारने में उसे आनन्द आता था। इस तथ्य का पता हमें ‘दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया- डॉ. के.एस. लाल, 1992 पृष्ठ- 132 से चलता है।
जब हिन्दुओं की महिलाओं से मौज मस्ती करने को मजहब का अधिकार पत्र मिलता हो और जब उन्हें केवल अपनी खेती समझने का भूत सिर पर सवार हो तो यौवन में कौन ऐसा मुसलमान होगा जो इन सब चीजों का आनन्द लेना नहीं चाहेगा ? – निश्चय ही अपनी किशोरावस्था से ही शाहजहाँ हिन्दू अर्थात काफिरों के प्रति घृणा से पूर्णतया भर गया था।
इतिहासकारों ने लिखा है कि ”शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी पर अधिकार कर लिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं का भीषण नरसंहार किया था ।”
निश्चय ही शहजादा ने ऐसा कार्य काफिरों के नरसंहार करने में मिलने वाले आनन्द को अनुभव करने के लिए ही किया था। जिससे कि वह गाजी बन सके और उसे जन्नत में जाने का अधिकार प्राप्त हो सके।
उस समय भारत की यात्रा पर इटली से एक देला वैले नामक धनी व्यक्ति आया था। उसने बहुत कुछ ऐसे संस्मरण लिखे हैं ,जिनसे समकालीन इतिहास पर प्रकाश पड़ता है। उसने शाहजहाँ के बारे में लिखा है कि “शाहजहाँ की सेना ने भयानक बर्बरता का परिचय कराया था। हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित धन को दे देने के लिए विवश किया गया, और अनेकों उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग किया गया।”
(कीन्स हैण्ड बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड इट्स नेबरहुड, पृष्ठ २५)
‘बादशाहनामा’ में लिखा था-‘महामहिम शहंशाह महोदय की सूचना में लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र, बनारस में उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के पुनः निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं।
इस्लाम पंथ के रक्षक, शहंशाह ने आदेश दिया कि बनारस में और उनके सारे राज्य में अन्यत्र सभी स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है,उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए।
इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर दिया गया था।”
(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी, अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII, पृष्ठ 36)
“हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।”
(मध्यकालीन भारत – हरीश्चंद्र वर्मा – पेज-141)
”कश्मीर से लौटते समय 1632 में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है।
इतिहास के शोधार्थियों का निष्कर्ष है कि “शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया। प्रथम उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका।
तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को चुन लेने का विकल्प दिया गया। जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरूषों का सर काट दिया गया। लगभग चार हजार पाँच सौ महिलाओं को बलात् मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।”
(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल : आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन, पृष्ठ 312)
1657 में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी रखैल जहाँआरा के साथ
आगरा के किले में बन्द कर दिया । औरंगजेब ने एक आदर्श बेटे का भी फर्ज निभाया और अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने साथ 40 रखैलें रखने की इजाजत दे दी और दिल्ली आकर उसने बाप की हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर शेष सभी को उसने किले से बाहर निकाल दिया।
कहा जाता है कि औरंगजेब के द्वारा भगाई गई इन महिलाओं को उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से में शरण मिली, जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है। इस प्रकार जी0बी0 रोड का यह क्षेत्र शान्ति के पुजारी और स्वर्ण युग को भारत में स्थापित करने वाले शाहजहाँ की ही एक ऐसी देन है, जो उसके शासनकाल में नारियों की दयनीय स्थिति को आज भी स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है । इतिहासकारों ने जहाँ ताजमहल और लालकिले को बनाने का झूठा श्रेय शाहजहाँ को दिया है, वहाँ किसी ने भी इस सच को स्पष्ट करने का नैतिक साहस नहीं दिखाया कि जी0बी0 रोड पर जो कुछ आज तक होता रहा है वह भी शाहजहाँ की ही देन है।
जो बताते ताज को विरासत मुगलिया काल की,
बड़ी शान से लिखते कहानी जो किले लाल की।
कौन उनमें से लिखेगा – हालात जीबी रोड के ,
जहाँ नीलाम होती इज्जतें औरत के इकबाल की।।
शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 वर्ष की अवस्था में ‘द हिस्ट्री चैनल’ के अनुसार अत्यधिक कमोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण हुई थी।
राकेश कुमार आर्य