बुद्ध सेक्स के पहरेदार के रूप में

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क्या आप इस बुद्ध को पहचानते हैं।

मैं लाफिंग बुद्धा से वाकिफ़ नही था। दिल्ली में मुलाकात हुई, एक माल मे सजे हुए थे।

मैने सोचा धर्म का बाज़ार बुद्ध से कैसे सुशोभित हो रहा है।  वह तो आकांक्षाओं को लगाम देने पर जोड़ देते थे और बाज़ार आकांक्षाओं पर आश्रित व्यवस्था है।  बाज़ार एक कदम आगे बढ़ कर फ्यूचर ट्रेडिंग की बात कर रहा है। भला बुद्ध और फ्यूचर ट्रेडिंग एक साथ कैसे? मैने कभी भी-कहीं भी बुद्ध का हंसता हूआ फोटो नही देखा था। बुद्ध की प्रतिमा से संवेदना और करुणा हीं प्रवाहित होती देखी है। मानवी समाज की अत्यांतिक पीड़ा से परेशान बुद्ध ने दुःख से मुक्ति का मार्ग बतलाया। मानवता के प्रति असीम करूणा ने उसे सार्वदेशिक और सार्वकालिक बनाया।

बाज़ार,आकांक्षाओं और घर से भागा हूआ बुद्ध आज मौल में है। प्रगति मैदान के मेले में लाफ़िंग बुद्धा के खरिदारों की संख्या कम नही थी। तीरथराज के काउन्टरों पर अनेक लाफिंग बुद्धा पड़े थे। इतना भद्दा और इतना घटिया……पक्का बाज़ारू बनिए की तरह चर्बिदार तोंद और चेहरा था। मैनें तीरथजी से पुछा कि भाई-यह लाफ़िंग बुद्धा कहां का माल है? उन्होनें बताया कि यह चाइनिज उत्पाद है। चीन पर बौद्ध धर्म का बड़ा प्रभाव रहा है। महात्मा से लेकर माओ तक की वैचारिक गिरफ़्त से चीन आज बाहर हो गया है। चीन माओ को छोड़कर मार्केट पहूंच गया है। महात्मा अब उसे रास नहीं आ रहे, उसे माल ला चस्का लग गया है। महात्मा बुद्ध के इन अपरिग्रही चेलों को अब -वन टाईम बायर- चाहिए। चीन ने अपने डपिंग मार्केटिंग कान्सेप्ट मे बुद्ध को फिट कर दिया है।

महात्मा बुद्ध जिस देश में पैदा हुए उस देश ने भी उनका कम मज़ाक नहीं बनाया। बुद्ध को गाली देने और अपमानित करने के लिए समता विरोधियों नें बुद्ध को- बुद्धू – बना दिया। बिना श्रम किये समाज के संसाधनों का अधिकाधिक उपयोग करने वाले वर्ग का वर्चस्व बुद्ध के कारण ध्वस्त न हो जाये, इसलिए बुद्ध के बदले-बुद्धु शब्द इज़ाद हुआ। बुद्ध शब्द मनुवादिओं के लिए अब एक गाली था। हां ,चीन में बुद्ध तो लाफ़िंग करने वाले हैं। पर भारत का बुद्धु तो केवल स्मायलिंग वाले हैं। भारत में बुद्ध हंसते नही, केवल मुस्कुराते हैं। बुद्ध जयती पर जब परमाणु बम का विस्फ़ोट हुआ तो बुद्ध मुस्कुराए थे। अपने बौद्ध-अम्बेदकर पुण्यतिथि पर जबबाबरी मस्ज़िद गिराई गयी, तब भी बुद्ध मुस्कुरा रहे थे।

यह उफ़नता बाज़ार-वाद एक-एक का दुश्म्न हो चला है। बाज़ार भला अपने प्रतिरोधी विचार को क्यूं बर्दाश्त करे? बाज़ार तो निरंकुश और निर्दयी होता है। बाज़ार सेंसेक्स पर चलता है, सेनसेशन पर नही। असंवेदना की कोख से बाज़ार का जन्म होता है। स्वभाविक है की बाज़ार का टार्गेट बुद्ध होंगें। बुद्ध महल छोड़ते हैं, बाज़ार महल बनाता है। बुद्ध यशोधरा को छोड़ते हैं, बाज़ार यशोधरा को सजाता है। पुरी दूनिया ब्रेड और बेड के चक्कर में है।

क्या आप इस बुद्ध को पहचानते हैं।
क्या आप इस बुद्ध को पहचानते हैं।

इसके कितने अंतर्विरोध विकसित हुए हैं, यह नही कह सकते। समाज को इन अंतर्विरोधों से मुक्ति मिलती बुद्ध के दर्शन और विचार से, पर हम कनफ़्यूज्ड हैं। लाफिंग बुद्धा तो अब दिल्ली के बुद्धा गार्डन पहूंचा दिए गए हैं। बुद्धा गार्डेन को और सजाया जा रहा है। बुद्ध का प्रेम संदेश अब अय्यासी के झुरमुटों में उलझ गया है। अय्यासी के लिये बने इस पार्क को बुद्ध के नाम से क्यूं सजाया गया? लैला-मज्नु गार्डेन, सिरी-फरहाद, रोमियो-जुलियट के नाम पर इस पार्क को नामित किया जाता तो अच्छा था। इस पार्क मे बुद्ध सेक्स के पहरेदार के रूप में खड़े हैं।
बाज़ार कहता है, बुद्ध बनने के लिए सिद्धार्थ होना जरूरी है। कौन जाना चाहेगा बुद्ध के पास? कौन अपनी यशोधरा और कुणाल के मोह से मुक्त होगा? खैर बाज़ार की यात्रा जारी है। शायद बाज़ार बुद्ध को राजमहल के अंत:पुर में किसी यशोधरा के साथ रमण करता न दिखा दे। तब बाज़ार को लाफ़िंग बुद्धा के साथ साथ किसी विपींग बुद्धा को भी लांच करने की आवश्यकता पड़ेगी।

3 COMMENTS

  1. बहुत् उम्दा लॆखन का उदाहरन पॆश किया आपने, बधाई. सिर्फ ऎक छॊटी सी गलती यॆ हे कि बुद्ध कॆ पुत्र का नाम कुनाल् नही बल्कि राहुल(ऱाहुलभद्द) था.

  2. बहुत् अच्छा व्यङ्य् है आज् कॆ बाजार् पर् जॊ धरम् तक् कॊ बाजार् तक् मॆ ला दॆता है बॆच्नॆ कॆ लियॆ.

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