अर्पण जैन "अविचल"

अर्पण जैन "अविचल"

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लेखक - अर्पण जैन "अविचल" - के पोस्ट :

मीडिया विविधा

साहित्य प्रकाशन बनाम सोशल मीडिया का प्रभाव

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डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’   एक दौर था, जब साहित्य प्रकाशन के लिए रचनाकार प्रकाशकों के दर पर अपने सृजन के साथ जाते थे या फिर प्रकाशक प्रतिभाओं को ढूँढने के लिए हिन्दुस्तान की सड़के नापते थे, परंतु विगत एक दशक से भाषा की उन्नति और प्रतिभा की खोज का सरलीकरण सोशल मीडिया के माध्यम से […]

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मीडिया

वेब पत्रकारिता का चमकता भविष्य

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आज वेब-संस्करण चलाने बाली समाचार-पत्र और पत्रिकाओं की संख्या कम है. भविष्य में हर पत्र-पत्रिका ऑन-लाईन होगी. साथ ही साथ स्वतंत्र न्यूज पोर्टल की संख्या में भी वृद्धि होगी. पत्रिका ‘न्यूज वीक’ ने अपने प्रिंट संस्करण को बंद कर ऑनलाईन संस्करण जारी रखने का फैसला किया है. ‘जनसत्ता’के बारे में यह आसार लगाया जा रहा है कि समाचार-पत्र घाटे से बचने के लिए प्रिंट संस्करण बंद कर ऑन-लाईन से अपनी सेवा जारी रखेगा. बात स्पष्ट है कि जिस पत्र का लक्षित समूह उच्च वर्ग है और जिनके पास इंटरनेट आसानी से उपलब्ध है, वह धीरे-धीरे प्रिंट संस्करण बंद कर पूर्ण रूप से ऑन-लाईन हो जायेगा.

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राजनीति

मोदी युग की प्रचंडता और यूपी का चुनावी बहुमत

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दलित उत्थान में योगदान करनेवाले कई सामाजिक क्षत्रपों की मूर्तियां इतिहास के पन्नों से निकलकर 21वीं सदी में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है, तो यूपी में इसकी वजह मायावती ही है| हालांकि बीते शासनकाल में मूर्तियों और स्मारकों के निर्माण में बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार की वजह से ही उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी| अब तमाम विवादों और आरोपों को दरकिनार कर मायावती ने पांचवीं बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की गद्दी पर अपना दावा तो ठोका पर किस्मत के साथ-साथ खराब सोशल इंजीनियरिंग उन्हे ले डूबी |

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आर्थिकी राजनीति

500-1000 के नोट का चलन बंद

/ | 2 Comments on 500-1000 के नोट का चलन बंद

इन सब के पीछे कूटनीतिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा चाहे जो कुछ भी हो, किंतु प्रथम दृष्टया यह आदेश देश में जमा अघोषित नगदी के बारे में पता लगा कर आगामी कार्यवाही करना ही नज़र आ रहा है| भारत की अर्थव्यवस्था की उन्नति में देशवासियों का आय से अधिक खर्च न करने की मानसिकता भी कारगर है इसी को ध्यान में रखते हुई तिजोरियों में जमा अघोषित पूंजी को सामने लाने के लिए भी इस तरह का आदेश लाया जा सकता हैं इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं|

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मीडिया

पत्रकारिता : मानक नहीं मान्यता बदलना होगी

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आज के दौर में पत्रकारिता के मानक जो नये बन रहे है वो आने वाली पीढ़ी के साथ भी न्याय नहीं कर रहे है, वर्तमान की कलम ने भविष्य के अध्याय जो लिखने लगे है वो कालांतर में शर्म का विषय बन कर रह जाएँगे | अब तो कोई राजेंद्र माथुर , माखन लाल चतुर्वेदी नहीं बनना चाहता, कोई संघर्ष कर के अस्तिस्व नहीं बचना चाहता ...... हालात इतने बदतर होते जा रहे है की सोच कर भी सिहरन उठ जाती है ,किस दौर में आ गई पत्रकारिता , कैसे कैसे हालत बन गये , आख़िर क्या ज़रूरत थी मानको के साथ खिलवाड़ करने की , कौन सा अध्याय लिख आई ये पीढ़ी पत्रकारिता की अवधारणा में ?

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