कविता “आँखे, झरोखें और उष्मा” March 3, 2013 | Leave a Comment कुछ आँखें थी सपनों को भरे अपने आगोश में. कुछ झरोखें थे जो पलकों के साथ हो लेते थे यहाँ वहां. आँखें झरोखों से आती किरणों में अक्सर तलाशती थी उष्मा को. बर्फ हो गए सपनों के संसार में उष्मा की छड़ी लिए चल पड़ती थी आँखें और बर्फ से करनें लगती थी वो संघर्ष […] Read more » “आँखे झरोखें और उष्मा”
विश्ववार्ता रामसेतु मुद्दे पर फिर पलट रही केंद्र साकार February 25, 2013 | 2 Comments on रामसेतु मुद्दे पर फिर पलट रही केंद्र साकार भारत जैसे विशाल राष्ट्र मैं विवाद और विषय आते जाते रहते है और इनका उलझना सुलझना भी एक सामान्य प्रक्रिया है किन्तु जिस प्रकार से पिछले वर्षों मैं संस्कृति से जुड़े विषयों पर सरकार का रुख प्रगतिवादी होने के नाम पर भारतीयता और हिन्दुत्व का विरोधी होता जा रहा है वह एक बड़ी चिंता का […] Read more » रामसेतु मुद्दे पर फिर पलट रही केंद्र साकार
राजनीति अफजल कसाब की फांसी संघ विचार का विलंबित और आंशिक क्रियान्वयन ही तो है !!!! February 16, 2013 | Leave a Comment पूरी दुनिया के लोकतंत्र के मंदिर भारतीय संसद पर हमलें के आरोपी, आतंकवादी मोहम्मद अफजल को अंततः फांसी दे ही दी गई. फांसी का निर्णय केंद्र मैं बैठी कांग्रेसी सरकार ने लिया तो अवश्य किन्तु इसके पीछे मानसिकता और विचार कौन सा चल रहा था यह विचार किया जाना आवश्यक है. कहना न होगा कि […] Read more »
जन-जागरण भारत का इतिहास रहा है संत शक्ति से प्रेरणा लेनें का February 6, 2013 / February 6, 2013 | 2 Comments on भारत का इतिहास रहा है संत शक्ति से प्रेरणा लेनें का प्रवीण गुगनानी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चे यानि एन डी ए के घटक के तौर पर जनता दल यूनाइटेड जो कि पिछले दस वर्षों से भाजपा के साथ बिहार में अपना आधार विस्तारित करते हुए आज सत्ता सुख भोग रहा है को अचानक आवश्यक- अनावश्यक, उचित –अनुचित और बिना सोचे व्यक्तव्य जारी करनें की रपत पड़ गई […] Read more » संत शक्ति से प्रेरणा
राजनीति नरेन्द्र मोदी का नाम लेते से बिफरतें क्यों हैं नीतिश January 30, 2013 | Leave a Comment प्रवीण गुगनानी अपनी महत्वकांक्षाओं को ग्रहण लगता देखते देख याद आता है गठबंधन धर्म नीतिश जी को गठबंधन की राजनीति का चलन भारत में पिछले दो दशकों से ही परवान चढ़ा है लेकिन जिस प्रकार से भारतीय राजनीति ने गठबंधन के सहारे ने नित नये अनुभवों का खट्टा मीठा स्वाद चखा है उससे लगता नहीं […] Read more » नरेन्द्र मोदी नीतिश कुमार
शख्सियत युगपुरुष स्वामी विवेकानंद January 11, 2013 / January 11, 2013 | 1 Comment on युगपुरुष स्वामी विवेकानंद 12 जन. स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जयंती पर विशेष स्वामी विवेकानंद एक ऐसे युगपुरुष थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति और भारतीयता से सराबोर था. उनके सारे चिंतन का केंद्रबिंदु राष्ट्र और राष्ट्रवाद था. भारत के विकास और उत्थान के लिए अद्वित्तीय चिंतन और कर्म इस तेजस्वी संन्यासी ने किया. उन्होंने कभी सीधे राजनीतिक धारा में […] Read more »
जन-जागरण भारत और इंडिया के सन्दर्भ में क्या गलत कहा संघ प्रमुख नें?? January 6, 2013 / January 6, 2013 | 4 Comments on भारत और इंडिया के सन्दर्भ में क्या गलत कहा संघ प्रमुख नें?? दिल्ली के दामिनी गेंग रेप काण्ड के बाद पूरा देश अपनी बेटियों की चिंता में झुलस रहा है और नित नए और चित्र विचित्र चर्चा कुचर्चा के सत्रों पर सत्र चलते ही जा रहें हैं. निश्चित ही यह चर्चाएँ और बहसें एक जागृत और जिन्दा समाज की निशानी है. इसी क्रम में चर्चा में हिस्सा […] Read more » statement by sangh prmukh
राजनीति तारों को सुलझानें नहीं उलझानें आयें थे रहमान मलिक December 29, 2012 / December 30, 2012 | Leave a Comment पाकिस्तानी गृह मंत्री क्यों और क्या बोले बाबरी विध्वंस पर? भारत पाकिस्तान के साथ अपनें सम्बन्धों को जिस प्रकार अपनी छलनी पीठ पर ढो रहा है वह यहाँ के नागरिकों, विभिन्न समाजों, राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और पत्रकार बंधुओं आदि सभी के लिए एक सतत पीड़ादायक अध्याय रहा है. यह सतत पीड़ा और व्यथा का दौर और […] Read more »
कविता सम्प्रेषण और भंगिमाएं December 10, 2012 / December 10, 2012 | Leave a Comment सम्प्रेषण और भंगिमाएं दोनों की सीमाओं पर सतत निरंतर आँखों का सदा ही बना रहना और पता चल जानें से लेकर प्रकट हो जानें तक की सभी चर्चाओं पर सदा बना रहता है सूर्य. सूर्य के प्रकाश में भावों को भंगिमाओं में बदलनें की ऊर्जा मिलती तो है किन्तु परिवर्तन के इस प्रवाह में सम्प्रेषण […] Read more » . सम्प्रेषण और भंगिमाएं
कविता जो कह चूका गीत उसे भी न भूल जाओ December 8, 2012 / December 8, 2012 | Leave a Comment तुम्हे मेरे सपनो में अब भी देखा करता हूँ कभी भी यहाँ वहाँ पहले की ही तरह अब भी भटका करता हूँ .. नहीं होते हैं चलती साँसों मैं पेंच अब उस तरह के पर हर साँस से मैं गिरते फूलो को थामा करता हूँ.. साँसों से खयालो की डोर अब भी खिचती चली आती […] Read more »
कविता नदी का परिचय November 26, 2012 / November 26, 2012 | 1 Comment on नदी का परिचय गहराती हुई नदी में बन रहे थे पानी के बहुत से व्यूह नदी के किनारों की मासूमियत पड़ी हुई थी छिटकी बिटकी यहाँ वहां जहां बहुत से केकड़े चले आते थे धुप सेकनें. किनारों पर अब भी नहीं होता था व्यूहों का या गहराईयों का भान पर नदी थी कि हर पल अपना परिचय देना […] Read more »
राजनीति माफ़ी क्यों मांगें नरेन्द्र मोदी?? November 26, 2012 | 1 Comment on माफ़ी क्यों मांगें नरेन्द्र मोदी?? गुजरात के चुनाव जैसे जैसे निकट आते जा रहें है एवं चुनावी समर की सरगर्मियां बढती जा रही हैं वैसे वैसे ही अनेकों विश्लेषण और विचार प्रकट हो रहें हैं विशेषता है तो केवल यह की कोई भी व्यक्ति, नेता, समाचारपत्र या चैनल द्वारा नरेन्द्र मोदी को दो तिहाई बहुमत मिलनें में किसी भी प्रकार […] Read more » माफ़ी क्यों मांगें नरेन्द्र मोदी