भारत और इंडिया के सन्दर्भ में क्या गलत कहा संघ प्रमुख नें??

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दिल्ली के दामिनी गेंग रेप काण्ड के बाद पूरा देश अपनी बेटियों की चिंता में झुलस रहा है और नित नए और चित्र विचित्र चर्चा कुचर्चा के सत्रों पर सत्र चलते ही जा रहें हैं. निश्चित ही यह चर्चाएँ और बहसें एक जागृत और जिन्दा समाज की निशानी है. इसी क्रम में चर्चा में हिस्सा लेते हुए जब संघ प्रमुख मोहन जी भागवत ने बात कह दी कि “बलात्कार इंडिया में होते हैं भारत में नहीं” तब बड़ी विचित्र प्रतिक्रियाएं सामने आई. राजनीतिज्ञों और प्रेस के लोगों की प्रतिकिया अच्छी या बुरी हो सकती है यह सामान्य है किन्तु संघ प्रमुख के कथन पर जो प्रतिक्रियाएं आई हैं वे हद दर्जे की हास्यस्पद हैं. संघ प्रमुख हों या संघ का कोई और व्यक्ति जब वह कोई बात कहता है तो कांग्रेस के कुछ ठेकेदार नेता और मिडिया के कुछ चिर स्थाई असंतुष्ट और जन्मजात विघ्नसंतोषी कांग्रेसी सभी मिलकर उसके पीछे ऐसे लग जातें हैं जैसे बिल्ली के पीछे कुत्ते दौड़तें हैं यह सार्वजानिक भारतीय जीवन का एक सुस्थापित तथ्य हो गया है. भारत में संघ के प्रवक्ताओं और उनकें बयानों के प्रति इस प्रकार का रवैया कोई नया और अनोखा नहीं है किन्तु वर्तमान के दुखद परिप्रेक्ष्य में इस आचरण की अपेक्षा भारतीय समाज को नहीं थी.

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जब यह कहा कि बलात्कार इंडिया में होतें है भारत में नहीं तो क्या गलत कहा? कहना न होगा कि मोहन जी भागवत की इस बात से इस देश का बाल-आबाल, स्त्री-पुरुष, सामान्य- विशिष्ट, लेखक- पाठक, निर्धन-धनवान, उच्च- निम्न वर्ग आदि आदि सभी निस्संदेह सहमत और एकमत होंगें और हैं…. किन्तु इस देश में पिछलें कुछ वर्षों से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने सामजिक विषयों पर लाइव बहस के नाम पर जिस वितंडावाद को जन्म दिया है उसके चलते बहसें निष्कर्ष के लिए नहीं बल्कि केवल और केवल प्रपंच और एक वितंडे को जन्म देनें के लिए की जाती है. बहुत कम अवसरों पर ही और कुछ ही टीवी की बहसें सकारात्मक और परिणाम मूलक रह पाती हैं.

हाल ही में चली बहस के सन्दर्भ में यह बात पूछना प्रासंगिक है कि क्या कोई इससे असहमत है कि भारत में दो अलग अलग भारत अस्तित्व में है? क्या कोई इससे असहमत है कि हमारें इस सामान्य समाज के रूप जीवनयापन करता भारत और शाइनिंग इण्डिया वाला भारत एक बेहद अलग स्तर का जीवन जी रहा है?? क्या कोई इससे असहमत होनें की कल्पना भी कर सकता है कि गरीबी से ग्रस्त भारत में जहाँ लगभग चालीस करोड़ लोग एक समय के भोजन से वंचित रहते हैं वहां शाइनिंग इंडिया में भोजन पचाना और और उनकें जेब में पड़ी बेहिसाब दौलत को खर्च करकें ख़त्म करना ही लक्ष्य होता है??? ऐसे अनेक अकाट्य तर्क भारत और इण्डिया की बहस में दिए जा सकते हैं किन्तु उन्हें यहाँ प्रस्तुत करते हुए यहाँ यह चर्चा करना अधिक उपयोगी होगा कि संघ प्रमुख की बात किस परिप्रेक्ष्य में कही और उसके पीछे आशय कितना स्पष्ट और सदाशयी था! बड़ा ही दुखद आश्चर्य होता है जब सदाशय और निर्मल ह्रदय से कही जानें और समाज के लिए दिशामुलक बननें वालें व्यक्तव्यों को तुच्छ राजनीति के चलते छोटी और सीमित सोच वालें राजनीतिज्ञ और मीडिया अनावश्यक बहस में जानबूझ कर झौंक देता है. हमारें बढ़ते और विकासशील समाज और राष्ट्र के लिए यह अच्छा और शुभ संकेत नहीं हैं. सभी जानते हैं कि संघ प्रमुख का व्यक्तव्य पाश्चात्य सभ्यता और प्रतीकों के उपयोग से भारतीय समाज में आये मूल्य ह्रास और गिरावट के लिए कहा गया है. कुछ मीडिया संस्थानों नें मोहन जी की बात पर यह कुतर्क किया कि क्या बलात्कार की घटनाएं नगरीय क्षेत्रों में होती है ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं तब यह सुन-पढ़ कर उनकी आलोचना के लिये बहस करनें की मानसिकता उजागर हो गई है. संघ प्रमुख ने यह तो नहीं कहा कि इण्डिया केवल नगरों में है ग्रामों में नहीं! इण्डिया वहां वहां हैं जहां पाश्चात्य मूल्य और जीवन शैली जड़ें जमा चुकी है भारत वहां वहां हैं जहां पारंपरिक भारतीय मूल्य, आदर्श, परम्पराएं और रीति नीति अभी भी पूर्ण या अंश रूप में विद्यमान हैं. संघ प्रमुख के व्यक्तव्य का शुद्ध और शुद्ध आशय भारतीय मूल्यों और आदर्शों के प्रति आग्रह और सम्मान बनाएं रखनें का था जो पूर्ण सुस्पष्ट था. इस बात को एक सामान्य बुद्धि रखनें वाला भारतीय साफ़ साफ़ समझ भी रहा है और संघ प्रमुख के सन्देश को ग्रहण भी कर रहा है. भारत और इण्डिया के अंतर को स्पष्ट करनें के लिए एक कविता भी यहाँ घोर प्रासंगिक और पठनीय है-

 

भारत में गावं है,गली है, चौबारा है! इंडिया में सिटी है, मॉल है, पंचतारा है!

भारत में घर है, चबूतरा है, दालान है! इंडिया में फ्लैट है, मकान है!

भारत में काका- बाबा है, दादा-दादी है,! इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है!

भारत में बुआ-मोसी, बहन है! इंडिया में सब के सब कजिन है!

भारत में मंदिर, मंडप, चौपाल, पांडाल है! इंडिया में पब, डिस्को, डांस के हाल है!

भारत में दूध,दही,मक्खन,लस्सी है! इंडिया में कोक, पेप्सी, विस्की है!

भारत भोला भाला सीधा, सरल, सहज है! इंडिया धूर्त, चालाक, बदमाश, कुटिल है!

4 COMMENTS

  1. श्री आर सिंह ने अपनी टिप्पणी में लिखी गयी तीन बातों पर मुझे भी कुछ कहना है-
    श्री आर सिंह जी की टिप्पणी का अंश : 1-“हमारे आदरणीय मोहन भागवत जी तो कदापि उसका (भारत का) अंग नहीं हैं।”
    मेरी टिप्पणी : केवल मोहन भागवत जी ही क्यों जो परिभाषा भागवत जी ने दी है उसके अनुसार तो मैं भी इंडिया का वासी हूँ! ये बात सही है कि भारत दो हिस्सों में बंट गया है, जिसे भारत और इंडिया सांकेतिक रूप में समझकर भागवत जी की टिप्पणी को समझना होगा! संभवत: उनका आशय पश्चमी सभ्यता एवं संस्कृति के पोषकों को इंडिया वासी और देशी सभ्यता एवं संस्कृति को अपनाने वालों को भारत वासी कहा है! लेकिन भागवत जी के भारत में कितने ऐसे हैं जो खुशी-खुशी या विवशतावश भारत की सभ्यता एवं संस्कृति को अपनाये हुए हैं?
    2-“वास्तव में हमारी यही भोंडी और दोगली मानसिकता हमारे पतन का मुख्य कारण हैं।”
    मेरी टिप्पणी : सौ फीसदी सहमती!
    3-“सत्य यह है किबलात्कार एक ऐसी सामाजिक समस्या है, जिसका सम्बन्ध न अमीरी गरीबी से है और न शहर और गाँव से .इसका सीधा सम्बन्ध यदि किसी एक चीज से है तो वह है है शराब। इसका सीधा सम्बन्ध किसी से है तो वह शराब से है। पहले लोग शराब कम पीते थे तो बलात्कार कम होता था। जैसे-जैसे शराब की उपलब्धी बढ़ती गयी, लोग ज्यादा से ज्यादा उसकी और बढ़ते गए और उसी अनुपात में बलातार और अन्य जघन्य अपराधों में भी बढ़ोतरी होती गयी।”
    मेरी टिप्पणी : आंशिक सहमती! क्योंकि शराब एक मात्र कारण नहीं, बल्कि एक कारण है! भागवत जी की कथित देशी सभ्यता एवं संस्कृति की विचारधारा की समर्थक पार्टी भाजपा की पिछली वसुंधरा राजे की सरकार को आधुनिक राजस्थान को शराबी प्रदेश बनाने का श्रेय है! जिस पर भाजपा सहित सभी पार्टी सहमत हैं! वर्तमान राज्य सरकार ने भी शराब के कुछ ठेके कम करने के शिवा कुछ नहीं किया! सभी को शराब आय का बड़ा जरिया नज़र आता है, बेशक देश जाये भाड़ में? श्री सिंह साहब बलात्कार के मौलिक कारण भागवत जी कथित देशी सभ्यता एवं संस्कृति की विचारधारा की जड़ों में भी छिपे हुए हैं! जिन्हें देखने की उन्हें और उनके अंध भक्तों को फुर्सत नहीं है!

  2. न्यूजभारती से उद्धरितः
    डॉ. भागवत ने, पश्चिम की Contract theory का उदाहरण विवाह संस्कार से तुलना करते समय दिया था, जो भारत की परम्परा नहीं है।
    मूर्खों ने उसी को उद्धरित कर दिया। यह तो रेड जर्नलिज़म हुआ, यलो नहीं।
    मोहन जी ने कहा था।====>”पश्चिमी theory of social contract, कहती है, कि, पत्नी से पति का सौदा तय हुआ है। इसको आप लोग विवाह संस्कार कहते होंगे, लेकिन वह सौदा है,
    “….तुम मेरा घर संभालो मुझे सुख दो, मैं तुम्हारे पेट पानी की व्यवस्था करूँगा और तुमको सुरक्षित रखूँगा। और इसलिए उसपर चलता है, और जब तक पत्नी ठीक है तब तक पति contract के रूप में उसको रखता है, जब पत्नी contract पूर्ण नहीं कर सकती तो उसको छोड़ो। किसी कारण पति contract पूर्ण नहीं करता तो उसको छोड़ो। दूसरा contract करने वाला खोजो”…….”
    —पागल पन ओढकर पागलखाने जाने वाले “मिडिया” को क्या कहोगे? —-

  3. हमारे यहाँ साधारणतः दो ही तरह के लोग ज्यादा मुखर हैं,एक तो तथाकथित भारत के हिमायती और दूसरे वे जो पश्चिम की भोंडी नक़ल को सभ्यता की निशानी समझते हैं ,जिनको पहले तबके वाले तथाकथित इंडिया का प्रतिनिधि मानते हैं।पहले वाले तबके की नजर में भारत वाले गरीब हैं। हर तरह के साधनों से बंचितहैं।दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी उनके लिए भारी पड़ता है। वे उससे आगे सोच ही नहीं पाते ,अतः वे क्या किसी अपराध में मग्न होंगे? वे गाँव के वासी भी हो सकते हैं या शहर के भी।तुर्रा यह है कि ऐसा समझने वाले स्वयं उस भारत के हिस्सा नहीं हैं।जैसा कि हमारे आदरणीय मोहन भागवत जी तो कदापि उसका अंग नहीं हैं। यह सत्य नहीं है कि यह तबका इन सब अपराधों से ऊपर है,फिर भी हम अगर यह मान भी लें कि वहां इस तरह के अपराध नहीं होते,तो इसका मतलब यह हुआ कि जिसके पास दो जून की रोटी का जुगाड़ है,वे सब विचार धारा की विभिन्नताओं की बावजूद इंडिया के वासी हैं और वे सब इस अपराध के प्रवर्तक हैं।वास्तव में हमारी यही भोंडी और दोगली मानसिकता हमारे पतन का मुख्य कारण हैं। मोहन भगवत ज ी ने आगे बहुत कुछ कहा है,और हो सकता है कि उससे पुरुष मानसिकता को बहुत बढ़ावा भी मिला हो,पर सत्य यह है किबलात्कार एक ऐसी सामाजिक समस्या है जिसका सम्बन्ध न अमीरी गरीबी से है और न शहर और गाँव से .इसका सीधा सम्बन्ध यदि किसी एक चीज से है तो वह है है शराब।इसका सीधा सम्बन्ध किसी से है तो वह शराब से है।पहले लोग शराब कम पीते थे तो बलात्कार कम होता था।जैसेजैसे शराब की उपलब्धी बढ़ती गयी,लोग ज्यादा से ज्यादा उसकी और बढ़ते गए और उसी अनुपात में बलातार और अन्य जघन्य अपराधों में भी बढ़ोतरी होती गयी।

  4. ठीक कहा गुगनानी जी.भारत और इण्डिया वास्तव में दो विचार हैं.कहने को हमारा संविधान कहता है “इण्डिया देट इज भारत”.लेकिन इण्डिया और भारत दो अलग ध्रुव हैं. स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत भी कहा करते थे की इण्डिया और भारत अलग अलग हैं.हमारा बिका हुआ मीडिया संघ विरोधी, हिंदुत्व विरोधी और भारतीयता विरोधी मानसिकता से ग्रस्त है.मीडिया से जुड़े सभी पत्रकार बीके हुए तो नहीं हैं लेकिन उनमे अरुण शौरी अथवा उन्जैसे अन्य स्वाभिमानी लोगों जैसा साहस शायद कम हो गया है. संभवतः अपने जॉब के दबावों की मजबूरी होगी.वैसे भी इंटरनेट से मिली जानकारी के अनुसार भारतीय मीडिया पर इस समय या तो चर्च लॉबी का नियंत्रण है या कम्युनिस्ट और मुस्लिम लॉबी का. हिन्दू लॉबी अद्रश्य है.लेकिन इस देश की पहचान दुनिया के देशों में हिंदुत्व के कारण ही है.अतः हिन्दू व्यू पॉइंट से भी चीजों को देखने की आदत होनी चाहिए.दुर्भाग्य से देश में उच्च अध्ययन का ऐसा कोई संसथान नहीं है जहाँ हिन्दू दृष्टि से देश, काल, समाज और दुनिया की घटनाओं का अध्ययन किया जाता हो और कोई वैकल्पिक सोच विकसित करने का प्रयास होता हो. क्या जे.एन.यु. जैसा कोई संसथान देश में कहीं स्थापित नहीं हो सकता है? गुजरात को ही इस दिशा में पहल करते हुए स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के स्तर का एक विश्वविद्यालय खड़ा करना चाहिए.

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