गजल अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता December 22, 2013 | Leave a Comment अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता हर वक़्त एक सा तो मिज़ाज नहीं होता। हैरान होता है दरिया यह देख कर बहुत क्यूँ आसमां ज़मीं से नाराज़ नहीं होता। खिड़की खोल दी,उन की तरफ़ की मैंने अब परदे वालों का लिहाज़ नहीं होता। गुज़रा हुआ हादसा फिर से याद आ गया अब काँटा […] Read more » अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता
गजल तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती October 30, 2013 | 1 Comment on तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती सत्येंद्र गुप्ता तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती वक़त के हाथ की शमशीर नहीं बदलती। मैं ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी तलाशता रहा ज़िन्दगी , अपनी ज़ागीर नहीं बदलती। कितने ही पागल हो गये ज़ुनूने इश्क़ में मुहब्बत अपनी तासीर नहीं बदलती। प्यार ,वफ़ा,चाहत ,दोस्ती व आशिक़ी इन किताबों की तक़रीर नहीं बदलती। अपनी खूबियाँ, मैं किस के साथ बाटूं अपनों के ज़िगर की […] Read more » तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती
गजल हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता September 5, 2013 | 2 Comments on हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता उधार के सपनों से हिसाब नहीं होता। यूं तो सवाल बहुत से उठते हैं ज़हन में हर सवाल का मगर ज़वाब नहीं होता। शुहरत मेरे लिए अब बेमानी हो गई ख़ुश पाकर अब मैं ख़िताब नहीं होता। रात भर तो सदाओं से घिरा रहता हूँ मैं सुबह […] Read more » हर वक्त तो हाथ में गुलाब नहीं होता
गजल सत्येंद्र गुप्ता की गजले August 26, 2013 | 1 Comment on सत्येंद्र गुप्ता की गजले संग बीमार नहीं हुआ जाता टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता ! हज़ार कयामतें लिपटती हैं क़दमों से मगर फिर भी लाचार नहीं हुआ जाता ! बेशुमार धब्बे हैं धूप के तो दामन पर हम से ही गुनाहगार नहीं हुआ जाता ! रहमतें तो बरसती हैं आसमां से बहुत रोज़ के रोज़ साहूकार नहीं […] Read more »
गजल साहित्य बतियाँ July 5, 2013 | Leave a Comment तुम्हारे मुंह पर तुम्हारी बतियाँ हमारे मुंह पर हमारी बतियाँ बहुत मीठी मीठी सी लगती हैं उन की ऐसी खुशामदी बतियाँ ! तुम्हारे मुंह पर हमारी बतियाँ हमारे मुंह पर तुम्हारी बतियाँ सीना तक छलनी कर जाती हैं उन की ऐसी हैं कटारी बतियाँ ! कभी हैं शोला कभी हैं शबनम मरहम नहीं हैं उन […] Read more » बतियाँ
गजल साहित्य किसी को उस ने कबीरा बना दिया June 22, 2013 | 1 Comment on किसी को उस ने कबीरा बना दिया किसी को उस ने कबीरा बना दिया किसी को कृष्ण की मीरा बना दिया ! उसकी रहमतों का मै जिक्र क्या करूं मैं कांच का टुकड़ा था हीरा बना दिया ! किसी को खुशियों की सौगात दे दी किसी को दर्द का जज़ीरा बना दिया ! धूप और बारिश की दरकार जब हुई आसमा को […] Read more » किसी को उस ने कबीरा बना दिया
गजल साहित्य तेरे जाने के बाद ही शाम हो गई June 11, 2013 | Leave a Comment तेरे जाने के बाद ही शाम हो गई शब् पूरी अंधेरों के नाम हो गई ! मैक़दे की तरफ बढ़ चले क़दम ज़िंदगी ही फिर जैसे ज़ाम हो गई ! आँखों से आंसु बन बह गया दर्द उम्मीद मेरी मुझ पे इल्ज़ाम हो गई ! वक्त का फिर कभी पता नहीं चला रफ़्ता रफ़्ता उम्र […] Read more » तेरे जाने के बाद ही शाम हो गई
गजल गजल- सत्येन्द्र गुप्ता February 2, 2013 | Leave a Comment मन लगा यार फ़कीरी में क्या रखा दुनियादारी में ! धूल उड़ाता ही गुज़र गया तो क्या रखा फनकारी में ! वो गुलाब बख्शिश में देते हैं जब भी मिलते हैं बीमारी में ! फिर हिसाब फूलों का लेते हैं वो ज़ख्मों की गुलकारी में ! किस किस को समझाओगे कुछ नहीं रखा लाचारी में […] Read more »
गजल दास्ताने – दर्द हम किसको सुनाते November 28, 2012 / November 28, 2012 | Leave a Comment दास्ताने – दर्द हम किसको सुनाते पत्थरों के शहर में किसको बसाते ! आबे – हयात नहीं है पास में मेरे दो घूँट पानी की किसको पिलाते ! शहर चले गये थे कमाने के वास्ते लौट आये, शक्ल किसको दिखाते ! हवा बेवफ़ाई की ही बह रही थी क़सम वफ़ा की किसको […] Read more » gazal by satyendra gupta
गजल मुखलिसी– निस्वार्थता September 26, 2012 / September 25, 2012 | Leave a Comment तीर ने ना तलवार ने मारा – हमको तो ऐतबार ने मारा ! जिसको निशाने पर रखा था – उसके ही पलटवार ने मारा ! दुश्मन के जब गले लगे हम – फिर तो हमको प्यार ने मारा ! पहले दिल था मान जाता था – अब उसकी ही पुकार ने मारा ! कांच से […] Read more » gazal Satyendra Gupta
गजल हज़ार बहानो से बेरुख़ी अच्छी September 25, 2012 / September 25, 2012 | Leave a Comment हज़ार बहानो से बेरुख़ी अच्छी – हज़ार कोशिशों से बेबसी अच्छी ! आबरू पर आंच आने लगे तो – हज़ार जवाबों से खामुशी अच्छी ! रौशनी ग़र आँख में चुभने लगे – उजालों से फिर तीरगी अच्छी ! ताजमहल देख कर गुमां होता है – है प्यार की मिसाल कितनी अच्छी ! क्या जज्बा था […] Read more » gazal by satyendra gupta
गजल गजल:रात भर तेरी याद आती रही August 9, 2012 / August 8, 2012 | Leave a Comment रात भर तेरी याद आती रही बेवज़ह क़रार दिलाती रही। जैसे सहरा में चले बादे सबा सफ़र में धूप काम आती रही। दमकता रहा चाँद आसमां पे चांदनी दर खटखटाती रही। ऊंघता बिस्तर कुनमुनाता रहा तेरी ख़ुश्बू नखरे दिखाती रही। कितना मैं अधूरा रह गया था इसकी भी याद दिलाती रही। Read more » gazal Satyendra Gupta गजल:रात भर तेरी याद आती रही