विविधा दलित कब जी सकेंगे स्वछन्द जीवन ? May 6, 2014 | Leave a Comment -जगमोहन ठाकन- भले ही देश को आज़ाद हुए छह दशक से अधिक समय हो चुका हो, सरकार कितना ही दावा करे कि स्वंतत्र भारत में हर व्यक्ति को कानून के दायरे में अपने ढंग से जीने की स्वंतत्रता है, परन्तु वास्तविक धरातल पर आज भी दलित समुदाय पर वही पुराना दबंग वर्ग का कानून चलता […] Read more » दलित दलितों का जीवन
विविधा कहीं गलत लीक न बन जाये मीसा बंदी पेंशन का फैसला March 6, 2014 | 2 Comments on कहीं गलत लीक न बन जाये मीसा बंदी पेंशन का फैसला जग मोहन ठाकन हाल में राजस्थान की भाजपा सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर राज्य में वर्ष १९७५-१९७७ के दौरान मीसा एवं डी आई आर के अंतर्गत राज्य की जेलों में बंदी बनाये गए राज्य के मूल निवासियों को पेंशन दिए जाने सम्बन्धी “ मीसा एवं डी आई आर बंदियों को पेंशन नियम २००८ “ […] Read more » मीसा बंदी पेंशन
विविधा वोटर कार्ड हाथ में, सूची में नाम नदारद February 12, 2014 | Leave a Comment -जग मोहन ठाकन- हाल में संपन्न विधान सभा चुनावों में काफी लोग वोटर कार्ड होते हुए भी मतदाता सूची में नाम कटा होने की वजह से मतदान नहीं कर पाए ! अब भारतीय लोकतंत्र के पंचवर्षीय कुम्भ का शुरुआती दौर प्राम्भ हो चुका है ! विभिन्न पार्टियों ने अपने उमीदवारों की सूचियां बनाने का […] Read more »
व्यंग्य बैंगन का भुरता बनाम सत्ता का जहर February 9, 2014 | 1 Comment on बैंगन का भुरता बनाम सत्ता का जहर – जग मोहन ठाकन- गुरूजी प्रवचन करके जैसे ही घर पर लौटे तो देखा कि बाहर कचरादानी में ताज़ा बैंगन का भुरता मंद-मंद मुस्करा रहा है ! रसोई द्वार पर पत्नी को देखते ही गुरूजी ने पूछा – देवी जी , यह जायकेदार बैंगन की सब्जी और कचरा दान में ? क्या जल गई […] Read more » satire on indian politics बैंगन का भुरता बनाम सत्ता का जहर
व्यंग्य दयालु सरकार : नथ्थू खुश February 2, 2014 | Leave a Comment -जगमोहन ठाकन- जब से नमो ने बचपन में चाय की दुकान पर काम करने की बात स्वीकारी है तभी से नथ्थू की दुकान पर छुटभैये राजनितिक आशान्वितों की गर्मागर्म बैठकें बढ़ गयी हैं. हाल में सरकार द्वारा गैस सिलेंडर के दाम साढ़े बारह सौ रुपये तक बढ़ाकर पुनः एक सौ सात रुपए की कमी […] Read more » satire on government दयालु सरकार : नथ्थू खुश
राजनीति ‘हाथ’ में ‘झाड़ू’ January 25, 2014 / January 25, 2014 | Leave a Comment -जग मोहन ठाकन- सिर पर टोपी लाल, हाथ में रेशम का रूमाल, होये तेरा क्या कहना। आम नत्थू की खास चाय की दुकान पर यह गाना बज रहा था । मोहल्ले में घर की चाय से असंतुष्ट प्रबुद्धजनों का जमावड़ा रोज की तरह नत्थू की दुकान पर लगा हुआ था। चुनावों पर टिप्पणी पर […] Read more » 'हाथ' में 'झाड़ू' AAP Congress
व्यंग्य मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो October 14, 2013 | Leave a Comment जग मोहन ठाकन जब कृष्ण कन्हैया के मुख पर मक्खन लगा देख यशोदा पूछती है तो बाल गोपाल कहते हैं , ‘‘ मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो । ग्वाल बाल सब बैर पड़े हैं बरबस मुख लिपटायो ।’’ और मॉं यशोदा , यह मानकर कि चलो खाने पीने की चीज है , इधर उधर […] Read more »
कविता कविता-ठण्डी ठण्डी बौछारें September 24, 2013 / September 24, 2013 | Leave a Comment जग मोहन ठाकन भादों की तपती उमस में , सावन का एहसास दिलायें । फुहार बरसती बौछारें, ये ठण्डी ठण्डी बोछारें ।। उदास हुए ये गुवार के पत्ते मूंह लटकाये बाजर सिरटी । बौछारों की इक छुअन से खिल खिल जाये खेत की मिटटी। ऐसा सहलायें बौछारे , ये ठण्डी ठण्डी बौछारें ।। रातों भेजे […] Read more » ठण्डी ठण्डी बौछारें
राजनीति हरियाणा कांग्रेस में फूट का धुंआ August 28, 2013 / August 28, 2013 | Leave a Comment जग मोहन ठाकन चिंगारी कोर्इ सुलग रही है , उठ रहा है धुआं धुआं । है कौन हवा जो दे रहा , कभी यहां धुंआ कभी वहां धुआं । उपरोक्त पंकितयां वर्तमान में हरियाणा कांग्रेस के दामन बीच सुलग रही फूट की चिंगारी को एकदम सटीक परिभाषित कर रही हैं ।छोटे से प्रांत हरियाणा […] Read more » हरियाणा कांग्रेस में फूट का धुंआ
विविधा ढुल-मुल नीति के शिकार – हरियाणा के अतिथि अध्यापक August 23, 2013 | Leave a Comment जग मोहन ठाकन ” अतिथि देवो भव: ” के लिए प्रसिद्ध हरियाणा प्रदेश का शिक्षा विभाग जहां एक तरफ अतिथि अध्यापकों से छुटकारा पाने का रास्ता तलाश रहा है , वहीं प्रदेश के शिक्षा विभाग में कार्यरत लगभग पन्द्रह हजार अतिथि अध्यापक ”मान न मान मै तेरा मेहमान की शैली में आंदोलन का रुख अपनाये […] Read more » हरियाणा के अतिथि अध्यापक
गजल तेरी आहट August 8, 2013 | Leave a Comment जग मोहन ठाकन तेरी वक्रोक्ति को लबों की सजावट समझकर हम खिल खिलाते रहे मुस्कुराहट समझकर जब जब घण्टी बजी किसी भी द्वार की हम दौड कर आये तेरी आहट समझकर ना आना था , ना आये तुम कभी संतोष कर लिया तेरी छलावट समझकर […] Read more » तेरी आहट
गजल उलझे हुए सवालात July 19, 2013 | Leave a Comment जग मोहन ठाकन अजीब से हालात हैं , हम क्या करें ? उलझे हुए सवालात हैं , हम क्या करें ? एफ डी आर्इ विदेशी फंदा लग रहा , ये लोगों के ख्यालात हैं ,हम क्या करे ? धर्मों को उलझाकर कुछ न पा सके तो , तंत्र खुफिया को उलझात हैं,हम क्या करें? कुत्ता […] Read more » उलझे हुए सवालात