परिचर्चा विविधा अलहड़ जीवन की सृजन की पाठशाला ! मां की भूमिकाएं May 11, 2015 / May 11, 2015 | Leave a Comment -लक्ष्मी नारायण लहरे- समाज की परिकल्पना करना मां के बगैर अधूरा है । मां समाज की नींव है। शसक्त समाज की कुंजी है ,जो अपने सहजता ,सरलता ,अपनापन ,प्रेम ,स्नेह ,ममता की मीठी अनुभवों को जन्म देती है। मां मात्र एक शब्द नहीं है ,एक अनुभूति है जो परिभाषाओं से परे है । ऐसा एक […] Read more » Featured अलहड़ जीवन की सृजन की पाठशाला ! मां की भूमिकाएं मां माता मातृ दिवस
कविता मजदूर May 1, 2015 | Leave a Comment 1 मई मजदूर दिवस पर विशेष भले ही तन पर कपडे कम हैं नगे पैर, न भूख की चिंता ,न प्यास की फिर भी कमर ताने खडे हैं सुबह से शाम कर रहे काम इन्हे कहाॅ चैन है , ये तो मस्त हैं काम में ब्यस्त हैं दो -जून की रोटी के लिए बचपन से […] Read more » मजदूर मजदूर दिवस पर मजदूर दिवस पर विशेष
जरूर पढ़ें मीडिया आधुनिक जमाने की पत्रकारिता का जीवन जोखिम भरा ? April 22, 2015 / April 22, 2015 | 1 Comment on आधुनिक जमाने की पत्रकारिता का जीवन जोखिम भरा ? लक्ष्मी नारायण लहरे- लोकतंत्र के चैथे स्तंभ के खिलाफ लगातार दुर्भावनापूर्ण अभियान चल रहा है ? समाज की अंतिम व्यक्ति की लड़ाई लड़़ने वाला मीडिया चैक चैराहों से लेकर दफ्तर तक तृस्कार और अपमानजनक शब्दों का घूंट पी रहा है। यह बात किसी से छिपी नहींं है। मीडिया को कभी प्रोस्टीट्यूट तो कभी बिकाऊ […] Read more » Featured आधुनिक जमाने की पत्रकारिता का जीवन जोखिम भरा ? आधुनिक पत्रकारिता जर्नलिज्म पत्रकारिता
प्रवक्ता न्यूज़ समाज गीता की हत्या ! क्या कुंठित मानसिकता से ग्रस्त समाज लेगा सबक April 6, 2015 / April 11, 2015 | 1 Comment on गीता की हत्या ! क्या कुंठित मानसिकता से ग्रस्त समाज लेगा सबक सदियों से महिलाओं की स्थिति निम्न रही है यातनाएं भरी जीवन आज भी जी रही है। नारी की महत्वकांक्षा कहें या महत्ता पुरूष के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं फिर भी अपेक्षाओं के अनुरूप नारी जाति का सम्मान समाज में नही मिल पा रही है आज आजादी के बाद भी उपेक्षित का […] Read more » Featured गीता की हत्या ! क्या कुंठित मानसिकता से ग्रस्त समाज लेगा सबक भारतीय संस्कृति महिलाओं की स्थिति मुखाग्नि लक्ष्मी नारायण लहरे
शख्सियत छत्तीसगढ़- कर्मठ समाज सेवक रेशम लाल जांगडे August 20, 2014 | 2 Comments on छत्तीसगढ़- कर्मठ समाज सेवक रेशम लाल जांगडे -लक्ष्मी नारायण लहरे – छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता और देश की पहली लोकसभा के सांसद रह चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रेशम लाल जांगडे जी अपने जीवन में धन कमाने को अपना उद्देश्य कभी नहीं माना, अपितु अपने जीवन को समाज के लिए उपयोग किये अपने जीवन में यश, मान् सम्मान ही कमाया समाज में फैली […] Read more » छत्तीसगढ़- कर्मठ समाज सेवक रेशम लाल जांगडे रेशम लाल जांगडे
कविता प्रेम और केवल प्रेम … February 15, 2014 | Leave a Comment आज कुछ बात मन को हिलाकर रख दिया बीते लम्हों को उमंगित कर मजबूर कर दिया सोचा नहीं था मुलाकात होगी तुमसे आज ” गांवली ” पास जाकर यकीन हुआ … मेरा तुमसे मुलाक़ात होना प्यार भरा वो पल केवल प्रेम और केवल प्रेम था Read more » poem प्रेम और केवल प्रेम ...
विविधा अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति February 3, 2014 / February 3, 2014 | Leave a Comment अबुझमाड़ से लौटकर – युवा साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे अबुझमाड़ के ओरछा से बीजापुर तक 16 पत्रकारों की दल पदयात्रा कर सकुशल वापस आ गये। अबुझमाड में पत्रकारों ने जगह-जगह जनताना सरकार से मिलने की कोशिश की पर जनताना सरकार के करिंदे पत्रकारों से मिलने से बचते रहे और अबुझमाड़ में पत्रकारों के लिये […] Read more » Abujhmad naxal journalsits talk with naxals अबुझमाड़ में पत्रकारों की पदयात्रा नक्सलियों से संवाद की नयी क्रांति
कविता साहित्य न आयीं तू मेरे सपनों में , न आयीं तू मेरे नगमों में July 4, 2013 | Leave a Comment जलता रहा मैं दीपक बनकर ……… न जाने किस विश्वास पर दिन -रात मैं राह तकता रहा जलता रहा मैं दीपक बनकर ………. पर न आयीं तुम हवाएं बनकर जल गये मेरे अरमा सारे मन कि अगन प्यास बनकर रह गयी तन भी मेरे साथ न दिया मिट गये सपने सारे जल गये लम्हें प्यारे […] Read more » न आयीं तू मेरे नगमों में न आयीं तू मेरे सपनों में
कविता मैं शायर तो नही July 1, 2013 / July 7, 2013 | Leave a Comment शहर की और निकल पड़ा हूँ ….. मुझमें कोई खास बात नही है मुझमे कोई अंदाज नही है मैं एक अनजान हूँ अनपढ़ हूँ नही आता शब्दों को सहेजना फिर भी राही हूँ … पगड़ी में चलना सिखा शहर की गलियों से अनजान हूँ गाँव की गलियों […] Read more » मैं शायर तो नही
कविता साहित्य कैसे कहूँ June 27, 2013 | Leave a Comment बड़ी मुश्किल से मौका मिला दिल को सुकून मिला बरसों की एक आज मुलाक़ात हुई दूर बैठे देखता रहा .. करीब इतना बैठा की मन नही भरा कुछ मन में कशिश रह गई तेरे होंठो को छूने की तडप रह गई मौसम ,कुछ खास था यांदो की जज्बात था तुम ,अकेली थी पर ,डर का […] Read more » कैसे कहूँ
कविता साहित्य चलते -चलते June 18, 2013 / June 18, 2013 | Leave a Comment मौसम बदला ,तस्वीर बदली, बदल गया इंसान घर के आँगन में पल रहा जुल्म का पकवान नया ,सबेरा होता है रोज फिर भी नही बदला इंसान मन में अजीब लालसा ,लेकर जी रहा इंसान शिक्षा की कसावट बदली टाइप राईटर का ज़माना बदला कलम की स्याही बदली नेता की नेता गिरी गुरु जी की छड़ी […] Read more » चलते -चलते
कविता कविता: जिन्दगी – लक्ष्मी नारायण लहरे May 16, 2012 / May 16, 2012 | Leave a Comment आपना पन कहें या दोस्ताना अजीब चाहत है इस जीवन में सिर्फ संघर्ष भरी राहें है अपनों के बीच भी हम अकेले है एक -दुसरे के प्रेम से बंध कर स्वार्थ भरी जीवन जी रहे है जिन्दगी ….. की जंग में भाई -भाई को नहीं समझता माँ -बाप को नही पहचानते स्वार्थ ,भरी जीवन जी […] Read more » कविता कविता - जिन्दगी जिन्दगी लक्ष्मी नारायण लहरे