राकेश कुमार आर्य

राकेश कुमार आर्य

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उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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लेखक - राकेश कुमार आर्य - के पोस्ट :

विविधा

गांधीवाद की परिकल्पना -4

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जहां तक उनकी अहिंसा नीति का प्रश्न है तो इस गांधीवादी अहिंसा की तो परिभाषा ही बड़ी विचित्र है। यदि एक ओर उन्होंने अपनी पत्नी को डॉक्टर से इंजेक्शन न लगवाने का कारण इसमें हिंसा होना बताया था तो दूसरी ओर उनकी अहिंसा का हृदय हिंदू हत्याओं की हो रही भरमार को भी देखकर कभी पिघला नहीं। अपितु मुस्लिमों के हाथों मरने के लिए उन्हें अकेला छोड़ दिया गया। हमारी अनाथ और असहाय माताओं, बहनों और ललनाओं पर किये गये मुस्लिमों के अमानवीय अत्याचारों को देखकर भी उनका हृदय द्रवित नही हुआ था, क्या इसलिए कि वे अहिंसा प्रेमी थे?

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विविधा

गांधीवाद की परिकल्पना – 3

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राष्ट्र की युवा पीढ़ी बुद्घिजीवी और निर्माणात्मक सोच के अच्छे लोग गांधीवादियों से ऐसा पूछें-यह आज की राजनीति का यक्ष प्रश्न है, अन्यथा गांधीवाद का यह रामराज्य का कथित सपना इस राष्ट्र को बहुत देर तक छलता रहेगा। क्योंकि गांधीजी के कुछ आदर्शों की हत्या करके भी कुछ लोग उन्हें मात्र इसलिए जीवित रखना चाहते हैं कि उनके आदर्शों के नाम पर उनकी राजनीतिक दुकानदारी चलती रहे। अब यह इस देश की जनता को देखना है कि वह इन राजनीतिक नायकों के झांसे में कब तक और कहां तक आती है? वास्तव में गांधीजी का रामराज्य का सपना भी उनका मौलिक चिंतन नहीं था।

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लेख साहित्‍य

मुगल वंश से पहले ही हो गया था कश्मीर का पीड़ादायक धर्मांतरण

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हैदरशाह का विश्वास पात्र भ्रत्यपूर्ण नामक एक नापित था। वह लोगों का अंग विच्छेद करवा देता था, यह उसके लिए एक साधारण बात हो गयी थी। उसने ठक्कुर आदि जैनुल आबेदीन के विश्वासपात्रों को आरों से चिरवा दिया था। राह चलते लोगों को अनायास पकडक़र पांच-पांच, छह-छह को एक साथ सूली पर चढ़वा दिया। वैदूर्य और भिषग को दूषक तथा परपथगामी जानकर हाथ, नाक और ओष्ठ पल्लव कटवा दिये। शिख, नोनक आदि संभ्रांत पांच छह व्यक्तियों की जीभ, नाक व हाथ कटवा दिये। लोग इतने आतंकित हो गये थे कि भय से स्वयं वितस्ता व झेलम में डूबकर भीम व जज्ज के समान प्राण विसर्जन कर देते थे। (भीम एवं जज्ज इन दोनों लब्धप्रतिष्ठित पंडितों ने नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या की थी) राजा स्वयं भी इन क्रूर हत्याओं के लिए प्रेरणा देता था।

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लेख साहित्‍य

वैद्यराज श्री भट्ट के प्रयासों से कश्मीर फिर से बन गया था स्वर्ग

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‘‘सामान्य रूप से यही समझा जाता है कि जौहर की प्रथा केवल राजपूतों में ही विद्यमान थी। परंतु ग्रीक सैनिकों ने भारतीय वीरों के इस आत्मोत्सर्ग से अभिभूत होकर उसका जो वर्णन किया है, उससे स्पष्ट है कि राजपूतों से पूर्व भी अपने देश में भारतीय वीरों में जौहर की तेजस्वी परंपरा कायम थी। जौहर शब्द की उत्पत्ति भी संभवत: जयहर शब्द से हुई हो। समरांगण में जीवन और मृत्यु का सौदा करने वाले भारतीय वीरों के अधिदेव थे-हर अर्थात महादेव। इसीलिए जयहर का घोष करती हुई भारतीय वीरों की वाहिनियां समरांगण में शत्रु सैन्य पर टूट पड़ती थीं। आगे चलकर मराठों का भी रणघोष ‘हर-हर महादेव’ ही प्रचलित हुआ।

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समाज

हिन्दुओं को मिले तीन विकल्प-इस्लाम, मृत्यु, कश्मीर छोड़ो

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‘भारत में मूत्र्ति पूजा’ का लेखक हमें बताता है-‘‘मुसलमान फकीर हिंदू वेष में मंदिरों में रहकर वहां की आंतरिक दशा का अध्ययन करते थे और उसकी सूचना अपने प्रचारकों तथा मुस्लिम शासकों को देते रहते थे। जो उस समय उनसे पूरा लाभ उठाते थे। इब्नबतूता का कहना है कि चंदापुर के निकट एक मंदिर में उसकी भेंट एक ऐसे जोगी से हुई जो वास्तव में एक मुसलमान सूफी था और केवल संकेत से बातचीत करता था। फारसी का प्रसिद्घ कवि शेख सादी सोमनाथ के मंदिर में कुछ समय हिंदू साधु बनकर रह गया था।

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